मां-बेटियों के नाम से है इस आदिवासी गाँव की पहचान, हर घर के बाहर लगी है उनके नाम की प्लेट

Neetu Singh | Jul 30, 2018, 12:43 IST
तिरिंग गाँव झारखंड का पहला ऐसा आदिवासी गाँव हैं जहां के घरों में बेटी और उनकी माँ के नाम की नेमप्लेट दरवाजे पर लगी हैं। यहां पर घरों की पहचान पिता और बेटों से नहीं मां और बेटियों से है।
#Jharkhand
जमशेदपुर (झारखंड)। चौखट के बाहर अपनी छह वर्षीय बेटी रूपा को गोद में लिए बैठी एक माँ दरवाजे पर लगी नेमप्लेट को देखकर मुस्कुरा रहीं थी। क्योंकि उस नेमप्लेट में उसकी बेटी और उसका नाम था। अब लोग उस नेमप्लेट को देखकर उसके घर का पता बताते हैं। रूपा और उसकी माँ की तरह तिरिंग गाँव की हर बेटी और माँ को उसके नाम की पहचान इस नेमप्लेट से मिली है।

RDESController-2429
RDESController-2429


तिरिंग गाँव झारखंड का पहला ऐसा आदिवासी गाँव है जहां के घरों में बेटी और उनकी माँ के नाम की नेमप्लेट दरवाजे पर लगी हैं। रूपा की माँ लखीमनी मुण्डा (35 वर्ष) ने दरवाजे पर लगी नेमप्लेट पर खुशी जाहिर करते हुए कहा, "हमारी इतनी उमर हो गयी है, गांव में गिने-चुने लोग ही थे जिनको हमारा नाम पता था, जबसे ये नेमप्लेट लगी है तबसे हर किसी को मेरा और मेरी बेटी का नाम पता चल गया है।" लखमनी के साथ-साथ इनकी छह वर्षीय बेटी रूपा मुण्डा इस छोटी उम्र में नेमप्लेट का मतलब भले ही न जानती हो, लेकिन अपना देखकर बहुत खुश होती है। लखमनी ने बताया, "जब कोई इससे इसका नाम पूछता है तो इस नेमप्लेट की तरफ इशारा कर देती है, कई बार बता भी देती है।"

पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय जमशेदपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर पोटका ब्लॉक के तिरिंग गाँव की पहचान यहां बेटियों से हो रही है। जहां एक तरफ देशभर में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान तेजी से चल रहा है वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय जमशेदपुर के डिप्टी कलेक्टर संजय कुमार ने वर्ष 2016 में मेरी बेटी, मेरी पहचान अभियान की शुरुआत तिरिंग गाँव से की। इस आदिवासी बाहुल्य गांव की दीवारें रंग बिरंगी हैं जिस पर परम्परागत तरीके की कुछ कलाकृतियां बनी हुई हैं।

RDESController-2430
RDESController-2430


वर्तमान में विशेष पदाधिकारी, जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति, संजय कुमार गाँव कनेक्शन सम्वाददाता को फोन पर बताते हैं, "ये अभियान प्रायोगिक तौर पर तिरिंग गाँव में शुरू किया था, इसके पीछे मेरी सोच यही थी कि हर बेटी और माँ को उसके नाम की पहचान मिले। जब कोई बेटी बाहर से या स्कूल से घर आएगी तो दरवाजे पर नाम देखकर खुश होगी। माँ का नाम नेमप्लेट में इसलिए लिखवाया क्योंकि देश के ज्यादातर हिस्सों में पत्नी को कभी उसके नाम की पहचान ससुराल में नहीं मिलती है, नेमप्लेट में नाम होने से उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा।"

इस गाँव के अलावा आपने इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए क्या कोई प्रयास किया है इस सवाल के जबाब में संजय कुमार ने कहा, "जितना इस अभियान को बढ़ना चाहिए उतना नहीं हो पाया पर कोशिशें जारी हैं। पोटका प्रखंड से ही जुड़े गाँव में पांच गलियों का नाम उस गली की सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी बेटी या बहु का नाम पर रखा। मंशा यही थी कि पिता अपनी बेटी को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाएं।"

RDESController-2431
RDESController-2431


वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार तिरिंग गाँव में शिशु लिंगानुपात एक हज़ार लड़कों पर 768 बेटियां थी और महिलाओं में साक्षरता दर महज़ पचास फ़ीसदी थी। पूरे जिले में महिलाओं की साक्षरता 67 फ़ीसदी तक ही थी। इस शिशु लिंगानुपात को बेहतर करने और महिलाओं में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए संजय कुमार ने ये अनूठा प्रयास शुरू किया था जो देश के कई हिस्सों में खूब चर्चित हुआ।

पंचायत की मुखिया सावित्री सरदार ने बताया, "अभी पूरी पंचायत में ये नेमप्लेट नहीं लग पाए हैं, तिरिंग गाँव के दो टोला में ही इसे लगाया गया है। ये नेमप्लेट तो हर जगह लगनी चाहिए ये देश के लिए अच्छा सन्देश है।" इसी गाँव की एक बेटी दयावती मुण्डा (17 वर्ष) ने मुस्कुराते हुए कहा, "पहले गांव में कोई घर खोजता था तो पापा का नाम लेते थे, अभी कोई पता पूछता है तो मेरी सहेलियां मेरा बोर्ड वाला घर बता देती हैं। हमसे भी कोई किसी का घर पूंछता है तो हम यही कहते हैं दरवाजे पर उनकी बेटी के नाम का बोर्ड लगा होगा।"

मेरी बेटी, मेरी पहचान अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने वाली पंचायत समिति सदस्य उर्मिला सामाद (30 वर्ष) ने आत्मविश्वास से कहा, "इस अभियान का असर ये हुआ जो गांव कभी तिरिंग के नाम से जाना जाता था आज वो बेटियों के नाम से जाना जाता है, इससे बढ़ी खुशी क्या हो सकती है।"

Tags:
  • Jharkhand
  • women
  • women empowerment
  • झारखंड
  • महिला
  • तिरिंग
  • आदिवासी
  • जमशेदपुर

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.