वैज्ञानिकों ने किया चींटी के फौलादी दांतों के पीछे छिपे रहस्य का खुलासा

India Science Wire | Sep 07, 2021, 09:42 IST
गैजेट्स में उपयोग करने के लिए बेहद छोटे और जबरदस्त मजबूती वाले उपकरणों का निर्माण जरूरी है। इसके लिए वैज्ञानिकों प्रकृति से प्रेरणा लेकर काम कर रहे हैं। उन्होंने चींटी के दांतों को अध्ययन किया है, जो आकार में बेहद सूक्ष्म होने के बावजूद बेहद मजबूत और धारदार होते हैं।
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यदि आपका कभी चींटियों से पाला पड़ा हो, तो आपने अनुभव किया होगा कि वे आपको कितनी तेज़ काट सकती हैं। अपने घर में भी आपने देखा होगा कि चींटी, दीमक में लकड़ी और दूसरे चीजों को काटने की क्षमता होती है। ऐसे में वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि क्या है चींटियों के फौलादी दांतो का रहस्य?

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आकार लगातार सिकुड़ रहा है। गैजेट्स में उपयोग करने के लिए बेहद छोटे और जबरदस्त मजबूती वाले उपकरणों का निर्माण आवश्यक है। इसके लिए वैज्ञानिकों का एक समूह प्रकृति से प्रेरणा लेकर काम कर रहा है। उन्होंने चींटी के दांतों को अध्ययन किया है, जो आकार में बेहद सूक्ष्म होने के बावजूद बेहद मजबूत और धारदार होते हैं।

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मनुष्य के बालों से भी पतले, कीड़ों के बेहद सूक्ष्म चॉपर या दांत मजबूत पत्तियों को पूरी ताकत से काट सकते हैं। आणविक स्तर पर इमेजिंग से पता चलता है कि छोटे जीव अपने सूक्ष्म उपकरणों को तेज करने के लिए जस्ता का उपयोग करते हैं। अपने अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने पाया है कि जिंक अणुओं की परत चींटी के दांतों को सख्त एवं धारदार औजार में बदल देती है। उनका कहना है कि समान रूप से व्यवस्थित दाँतों के जिंक अणुओं से यह संभव हो पाता है, जिससे किसी चीज़ को काटते समय जीवों के बल का समान वितरण होता है।

चींटी के दांतों की संरचना पर किए गए इस अध्ययन से जुड़े अमेरिकी ऊर्जा विभाग के पैसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेटरी के वरिष्ठ शोधकर्ता अरुण देवराज ने कहा, "समान वितरण होना, अनिवार्य रूप से, इसका एक रहस्य है।" चींटियों के चॉपर्स "मानव त्वचा को भी आसानी से काट सकते हैं, जबकि यह कर पाना हमारे अपने दाँतों से भी मुश्किल होगा।" यह अध्ययन, हाल में शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

इन्सान की जरूरतों के अनुसार टिकाऊ एवं उपयोगी पॉकेट-साइज़ इलेक्ट्रॉनिक्स के निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए वैज्ञानिक प्रकृति के रहस्यों की तह तक जाने की ऐसी कोशिशें करते रहते हैं।

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यह अजीब लगना स्वाभाविक है कि बेहद छोटे जीवों के जबड़े और दांत अत्यधिक सख्त होते हैं। वास्तव में, ऐसे कीटों के जबड़े विशिष्ट प्रोटीन और पॉलीसेकेराइड पॉलीमर काइटिन के संयोजन से बने होते हैं, जो कि काइटिन माइक्रोफाइब्रिल्स उत्पादन के लिए हाइड्रोजन बॉन्ड द्वारा जुड़े होते हैं। काइटिन सख्त होता है, और जब इसे कैल्शियम कार्बोनेट जैसी अन्य सामग्रियों के साथ मिलाया जाता है, तो झींगा और केकड़ों के खोल में पाए जाने वाले सख्त पदार्थ बन जाते हैं। इसका एक उदाहरण है कि जब आठ प्रतिशत जिंक मिलता है, तो काइटिन काफी सख्त हो जाता है, जिससे चींटी के दाँत जैसी तेज़ एवं टिकाऊ संरचनाएं बनती हैं।

ओरेगॉन विश्वविद्यालय के रॉबर्ट स्कोफिल्ड के नेतृत्व में जैव-भौतिकविदों की एक टीम चींटी के दाँतों के साथ-साथ अन्य सूक्ष्म जीव उपकरणों के प्रभावी प्रतिरोध को मापने का प्रयास कर रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे कैसे काम करते हैं, और कैसे उनकी नकल करके बड़े पैमाने पर उसकी प्रतिकृतियाँ तैयार की जा सकती हैं। इसके लिए, वैज्ञानिक चींटी के दाँत एवं इसके जैसे अन्य जीव उपकरणों की कठोरता, लचीलेपन, घर्षण प्रतिरोध, और प्रतिरोधी प्रभाव का आकलन करते हैं।

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