पपीते की फसल में इस नई बीमारी को ख़तरनाक क्यों बता रहे हैं वैज्ञानिक

मौसम में नमी की वजह से फैलने वाला काला धब्बा रोग अगर एक बार फसल में लग गया तो ये बढ़ता ही जाता है।

Dr SK SinghDr SK Singh   3 Oct 2023 9:39 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
पपीते की फसल में इस नई बीमारी को ख़तरनाक क्यों बता रहे हैं वैज्ञानिक

पपीते की फसल में एक नई तरह की बीमारी देखने को मिल रही है, इस रोग की शुरूआत में पत्तियों पर धब्बे पड़ते हैं और फिर गिर जाती हैं। फलों पर धब्बे पड़ जाते हैं, जिससे बाज़ार में इनका सही दाम नहीं मिलता है।

यह रोग एस्परस्पोरियम कैरिका नामक कवक से होता है, जिसे पहले सेरकोस्पोरा कारिकाई नाम से जाना जाता था। यह रोग दुनिया भर में पाया जाता है, इसे एशिया, अफ्रीका, उत्तर, दक्षिण और मध्य अमेरिका, कैरिबियन, ओशिनिया के साथ ही ऑस्ट्रेलिया, फिजी, फ्रेंच पोलिनेशिया, न्यू कैलेडोनिया और सोलोमन द्वीप से भी रिपोर्ट किया गया है।

इस रोग का मुख्य मेज़बान पपीता है। बिहार की कृषि-जलवायु परिस्थितियों में यह रोग पहली बार साल 2021 में देखा गया था। उसकी मुख्य वजह इस साल वातावरण में भारी नमी का होना है। लगातार बारिश होने से यह रोग भारी उग्रता में देखा जा रहा है। इस रोग का मुख्य लक्षण और जीवन चक्र, प्रभाव का आसानी से पहचान और कैसे प्रबंधन करना है, यह जानना ज़रूरी है, नहीं तो भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।


यह रोग पपीता की पत्तियों पर धब्बे जो अनियमित आकार के गोल, 3 से 6 मिमी व्यास, पुरानी पत्तियों पर विकसित; पीले भूरे रंग के साथ ऊपर भूरे रंग के होते हैं। नीचे, बीजाणु धब्बों को गहरे भूरे या काले रंग में विकसित करते हैं। अगर पत्तियां गंभीर रूप से संक्रमित होती हैं तो वे भूरे रंग में बदल जाती हैं और मर जाती हैं।

फल पर धब्बे भी भूरे से काले और थोड़े धँसे होते हैं। पत्तियों के नीचे से बीजाणु हवा और हवा से चलने वाली बारिश में फैलते हैं। बाज़ारों में फलों का व्यापार करने पर लंबी दूरी का प्रसार होता है।

क्या होता है इसका असर

आमतौर पर, पहले यह बीमारी एक छोटी सी समस्या थी,लेकिन इस साल वातावरण में भारी परिवर्तन की वजह से आज बड़ी समस्या बनकर हमारे सामने है। इसमें बहुत अधिक पत्तियाँ गिरने लगती हैं। अगर ऐसा होता है, तो पेड़ों की वृद्धि प्रभावित होती है और स्वस्थ पेड़ों की तुलना में फलों की पैदावार कम होती है। संक्रमण के कारण फल भी गिर जाते हैं, और परिपक्व फलों पर संक्रमण उनके बाज़ार की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। मौसम में आद्रता इस बीमारी को कई गुना ज़्यादा कर देता है।


जाँच और निरीक्षण

फलों पर और पत्तियों के नीचे की तरफ काले धब्बों की तलाश करें जहाँ बीजाणु उत्पन्न होते हैं; शीर्ष सतह पर धब्बे हल्के भूरे रंग के हाशिये के साथ होते हैं, और रंग में फीके पड़ जाते हैं। ज़्यादातर पुरानी पत्तियों पर धब्बे देखे जाते हैं। अत्यधिक धब्बे होने पर पत्तियाँ सूख जाती हैं या जल्दी मर जाती हैं। नीचे से पत्तियों पर धब्बे आसानी से देखे जा सकते हैं।

काला धब्बा रोग का प्रबंधन

इस रोग के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले इसे विभिन्न शष्य विधियों द्वारा नियंत्रित किया जाए। संक्रमित पत्तियों और फलों को तुरंत हटा दें जैसे ही वे दिखाई देते हैं, उन्हें खेत से बाहर निकालें और उन्हें जला दें।

रासायनिक नियंत्रण

इस रोग को कॉपर ऑक्सी क्लोराइड, मैन्कोजेब या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव का उपयोग करके आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है। सुनिश्चित करें कि पत्तियों के नीचे के हिस्से तक छिड़काव किया जाए, क्योंकि यह वह जगह है जहाँ बीजाणु पैदा होते हैं। इस बीमारी को प्रबंधित करने के लिए टेबुकोनाज़ोल 1.5 मिलीलीटर का प्रयोग भी किया जा सकता है।

Papaya 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.