अब नहीं लगाने होंगे थाने के बार बार चक्कर, जानिए नए क़ानून से क्या होगा आप पर असर?
पुलिस चौकी या थाने में अपनी शिकायत दर्ज कराने के बाद अब आपको बार-बार उसके चक्कर नहीं लगाने होंगे। जी हाँ, सरकार के नए क़ानून में अब खुद पुलिस 90 दिन के अंदर पीड़ित को बता देगी कि उसके केस की जाँच कहा तक पहुँची है। केंद्र सरकार ने अंग्रेजों के ज़माने के 163 साल पुराने क़ानून में कई बड़े बदलाव किये हैं।
गाँव कनेक्शन 14 Aug 2023 7:12 AM GMT
शिकायत दर्ज़ कराने या अपने केस की जानकारी के लिए थाने के चक्कर लगाना अब गुजरे ज़माने की बात होगी। जल्द ही आने वाला नया क़ानून आपकी कई मुश्किलें आसान कर देगा। अपराध के पीड़ित को 90 दिनों के अंदर जाँच की प्रगति के बारे में खुद पुलिस जानकारी देगी।
यही नहीं, नए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में हर पुलिस स्टेशन में किसी भी गिरफ़्तारी की सूचना देने के लिए पुलिस अधिकारीयों को नामित किया गया है।
सरकार तीन नए क़ानून ला रही है। ये तीनों क़ानून आपराधिक हैं जो सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होते हैं। कुछ क़ानून तो नए सिरे से लिखे गए हैं। यानी नाम के साथ उसका काम भी बदला गया है।
पहले का आईपीसी यानी इंडियन पीनल कोड 1860 अब भारतीय न्याय संहिता 2023 होगा। ऐसे ही सीआरपीसी यानी क्रिमिनल प्रोसीजर कोड अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता होगा और भारतीय साक्ष्य क़ानून यानी इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 अब भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 होगा।
सरकार के मुताबिक नए क़ानून को लाने से पहले 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए थे। 4 सालों तक इस क़ानून पर गहन विचार विमर्श के बाद इसे तैयार कर संसद में पेश किया गया। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इसे लागू कर दिया जायेगा।
अंग्रेजो के जमाने में आईपीसी (इंडियन पैनल कोड) को लार्ड मेकौले ने लिखा था। कहते हैं मेकौले ने जब वकालत शुरू की तो सबसे पहले उन्हें अण्डा चोरी का एक केस मिला। लेकिन वो पहला केस ही हार गए। उन्हें बड़ा दुःख हुआ। पहले केस में ही उनको अपनी हार हजम नहीं हुई। उन्होंने वकालत ही छोड़ दिया और राजनीति में चले गए। जल्द ही वे ब्रिटेन की संसद के सदस्य बने, फिर 163 साल पहले ऐसा मौका आया कि उन्होंने इस आईपीसी को लिखा।
1860 के आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता क्यों?
कई क़ानून में बदलाव की माँग लम्बे समय से की जा रही थी। कुछ क़ानून तो ऐसे हैं जिनकी आज उपयोगिता भी खत्म हो गई है।
केंद्र सरकार ने तो अबतक 2000 से ज़्यादा क़ानूनों की पहचान कर रद्द भी कर दिया है। खुद प्रधानमंत्री ने 14 अप्रेल को गुवाहाटी में हाई कोर्ट के सिल्वर जुबली समारोह में कहा था कि "हमारे कई क़ानून ब्रिटिश काल के हैं और अब अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं।"
कारोबार को आसान बनाने के लिए बजट 2023 में भी इसबात की घोषणा की गई थी कि 39000 से अधिक अनुपालन (आज्ञापालन) कम कर दिए गए है और 3400 से अधिक क़ानूनी प्रावधान जो अपराध की श्रेणी में आते थे उन्हें अपराध मुक्त कर दिया गया है।
देश के सबसे चर्चित कानून आईपीसी में 511 धाराएँ हैं, लेकिन इनमें से 155 धाराएँ अब कम होंगी जिसका प्रस्ताव नए कानून में रखा गया है। यानी सब मिलकर अब नए कानून में 356 धाराएँ ही होंगी। 176 धाराओं में बदलाव किया जा रहा है। 22 धाराएँ हटाई जा रही हैं। 8 धाराएँ जोड़ी जा रही हैं।
मुख्य बदलाव का अगर ज़िक्र करें तो वो है दफा 302 जिसे आप अक्सर फिल्मों में भी सुनते रहे हैं। इसमें हत्या के केस में मौत की सजा दी जाती है। नए कानून में ये दफा अब 101 हो जायेगा।
धारा 420 भी आपने काफी सुना होगा। अक्सर इसे चीटिंग या धोखा धड़ी के मामले में बोला जाता है ये धारा अब 316 हो जाएगी।
धारा 120बी जिसे आपराधिक साजिश के लिए इस्तेमाल किया जाता है उसका नंम्बर भी बदल गया है अब वे 61वें नंबर पर होगी।
जब भी कही दंगा या बवाल होता है तो पुलिस तुरंत धारा 144 लगा देती है। सीआरपीसी में धारा 144 भीड़ जमा होने से रोकने के लिए लगाई जाती है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में अब ये 163 हो जाएगी।
नए क़ानून से बदलाव क्या होगा ?
आईपीसी की जिस धारा लो लेकर सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है वो है राजद्रोह। हाल के दिनों में सरकार और विपक्ष के बीच ये बहस का मुद्दा भी रहा। नए कानून में धरा 124B को पूरी तरह खत्म किया जा रहा है। आमतौर पर लोग इसे देश द्रोह कहते हैं लेकिन अंग्रेजों के समय में ये राजद्रोह था। ये धारा राजद्रोह की है देश द्रोह की नहीं है।
देश के खिलाफ लड़ाई छेड़ने के मामले की एक अलग धारा आईपीसी की सेक्शन 121 में है। अगर आपको मुंबई के ताज होटल में 26 नवम्बर 2008 में हुआ हमला याद हो तो उसे अंजाम देने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब के खिलाफ यही धारा लगाई गई थी।
देश द्रोह के नाम पर जो नया कानून बन रहा है उसमें कई बातें नयी हैं। सशत्र विद्रोह, देश को तोड़ना, अलगावादी गतिविधयों में शामिल होना, देश की एकता अखंडता को ख़तरा पहुंचाने जैसे अपराध को नए कानून में जोड़ा गया है। ये नया कानून अब सेक्शन 150 होगा।
नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ अपराधों में सज़ा को प्राथमिकता दी गई है।
छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा के दंड को नए क़ानून में शामिल किया गया है। यानी कोई छोटी मोटी चोरी जैसे मामलों में पकड़ा जाता है तो उसे बड़ी सजा देने की जगह कहा जायेगा जाओ समाज के लिए कुछ अच्छा काम करों। उसे काम बता दिया जायेगा। ये पहली बार शामिल किया जा रहा है।
नए कानून में गैंगरेप के दोषियों को 20 साल से लेकर उम्र कैद तक की सज़ा का प्रावधान है।
नाबालिग से बलात्कार पर इसे सख़्त करते हुए मौत तक की सज़ा कर दिया गया है।
शादी या नौकरी का झांसा देकर रेप करने पर अलग से सज़ा का प्रावधान है।
मॉब लिंचिंग केस में 7 साल से उम्र कैद तक की सज़ा है। यानी अगर भीड़ में कोई किसी को पकड़कर मारता है तो उसे अलग कानून में अब रखा गया है। अभी तक धारा 302 में ही ऐसे केस को शामिल किया जाता था।
मामले में जल्द कार्रवाई के लिए जो ज़ीरो एफआईआर की सुविधा है उसमें अब कुछ बदलाव किया गया है। केस पर जल्द कार्रवाई के लिए अब जिस थाने का केस होगा वहाँ ज़ीरो एफआईआर 15 दिन के अंदर भेजनी होगी।
ज़ीरो एफआईआर का मतलब है आप राज्य के किसी भी शहर या थाने में जाकर अपना एफआईआर दर्ज़ करा सकते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता है कि केस किस थाने या शहर का है। साल 2012 में निर्भया गैंग रेप मामले के बाद केंद्र सरकार ने देश में बढ़ते गंभीर मामलों को रोकने के लिए ज़ीरो एफआईआर की व्यवस्था लागू करने का फैसला किया था।
नए क़ानून में एफआईआर से लेकर पूरी प्रक्रिया तक डिजिटाइजेशन की बात कहीं जा रही है।
हर केस में चार्जशीट 90 दिन में दाखिल करनी होगी। कोर्ट अगर चाहे तो 90 दिन इसे और बढ़ा सकता है। लेकिन 180 दिन से ज़्यादा का समय नहीं मिलेगा।
नए कानून में चार्जशीट मिलने के 60 दिन के भीतर आरोप तय करने की बात प्रस्तावित है। सबसे ख़ास बात ये है कि सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के अंदर कोर्ट को अपना फैसला सुनाना होगा। लेकिन अगर जरुरी हुआ तो इसे 60 दिन तक बढ़ाया जा सकता है।
अदालत का फैसला 7 दिन के अंदर ऑनलाइन उपलब्ध कराने की बात कहीं गई है।
समरी ट्रायल को तीन साल की सज़ा में अनिवार्य किया जायेगा। पहले ये दो साल तक की सज़ा में अनिवार्य था। माना जा रहा है की इससे सेशन कोर्ट में केस की संख्या में 40 फीसदी तक की कमी आएगी।
निचली अदालतों में इससे न सिर्फ काम का बोझ कम हो सकेगा बल्कि मामलों के निपटारे में भी तेज़ी आएगी। दरअसल समरी ट्रायल का मतलब है कम गंभीर मामलों की तेज़ी से सुनवाई कर केस का निपटारा करना। इनमें वे केस शामिल होंगे जिनकी अधिकतम सज़ा तीन साल तक की है।
मामले के तुरंत निपटारे और सही जाँच के लिए नए कानून में किसी भी क्राइम सीन में अब फॉरेंसिक टीम का वहाँ जाना जरुरी कर दिया गया है।
नए क़ानून में पहली बार अपराध करने वाले को एक तिहाई सज़ा काटने के बाद खुद जमानत मिल जाएगी। लेकिन आजीवन कारावास या मौत की सज़ा पाए व्यक्ति को ये छूट नहीं मिलेगी।
हिट- एंड- रन के मामले में मौत होने पर अपराधी घटना का खुलासा करने के लिए अगर पुलिस या मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं होता है तो जुर्माने के अलावा 10 साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है।
Bhartiya Nyay Sanhita
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