बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध 5 सालों में 8 गुना बढ़े
Gaon Connection | Jul 31, 2025, 13:00 IST
भारत में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों में 2021‑22 में 32% की वृद्धि दर्ज हुई है। जानें NCRB के आंकड़े, अपराध की प्रवृत्ति और सरकार द्वारा उठाए गए सुरक्षा कदम।
जिस तेज़ी से भारत डिजिटल हो रहा है, उतनी ही तेज़ी से साइबर अपराधों के खतरे भी गहराते जा रहे हैं और अब इनका सबसे कमजोर और मासूम निशाना बन रहे हैं बच्चे। इंटरनेट की दुनिया जहां एक ओर ज्ञान और मनोरंजन का विशाल माध्यम है, वहीं दूसरी ओर वह अपराधियों के लिए एक छिपा हुआ शिकारगाह बन चुकी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ताज़ा रिपोर्ट इस बात की गवाही देती है कि 2018 से 2022 के बीच बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों में 700% से अधिक की बढ़ोतरी हुई है।
अपराधों के आंकड़े: तेजी से बढ़ता खतरा
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में जहां बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के 232 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2022 में यह आंकड़ा 1823 तक पहुँच गया। इसका अर्थ है कि डिजिटल स्पेस में बच्चों की सुरक्षा बेहद कमजोर होती जा रही है।
प्रमुख अपराधों में शामिल हैं:
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि साइबर पोर्नोग्राफी, ऑनलाइन बुलीइंग, और डिजिटल उत्पीड़न जैसे अपराध सबसे अधिक सामने आ रहे हैं।
सरकार की जिम्मेदारी और प्रयास
'पुलिस' और 'लोक व्यवस्था' राज्य सरकारों के विषय हैं, इसलिए साइबर अपराधों की रोकथाम और जांच की जिम्मेदारी मुख्य रूप से राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की होती है।
हालांकि, केंद्र सरकार ने इस दिशा में कई बड़े कदम उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
बच्चों को साइबर अपराधों से बचाने के लिए जागरूकता सबसे कारगर उपाय है। इसी सोच के तहत केंद्र सरकार ने कई पहलें शुरू की हैं:
CBSE स्कूलों में ऑनलाइन सत्र
सूचना सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता (ISEA) के तहत कार्यशालाएं
साइबर स्वच्छता पुस्तिका का निर्माण
एनसीसी, एनएसएस और एनवाईकेएस के 2 लाख छात्रों को प्रशिक्षण
डाकघरों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार अभियान
NCERT पाठ्यक्रम में "साइबर स्वच्छता" जोड़ने की योजना
ये पहल न केवल पूर्वोत्तर राज्यों बल्कि देश भर के स्कूली बच्चों को डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।
डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा सिर्फ तकनीकी नहीं, सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है। सरकार, स्कूल, माता-पिता और समाज सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि इंटरनेट बच्चों के लिए ज्ञान और अवसर का माध्यम बना रहे, न कि डर और अपराध का।
2022 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों में दर्ज 32% वृद्धि यह दर्शाती है कि अब डिजिटल खतरे सिर्फ शहरी बच्चों या वयस्कों की समस्या नहीं रहे—बल्कि ग्रामीण भारत के बच्चे और युवा भी इस खतरे की गिरफ्त में आ चुके हैं। इंटरनेट और मोबाइल फोन की आसान पहुंच ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऑनलाइन गेमिंग, साइबर शोषण और मोबाइल लत को जन्म दिया है।
गाँव कनेक्शन ने इस पर कई विशेष रिपोर्ट की हैं। पहली रिपोर्ट बताती है कि कैसे नोमोफोबिया (मोबाइल न होने का डर), गैजेट्स पर निर्भरता और ऑनलाइन गेम्स की लत ने बच्चों की मानसिक सेहत को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। अभिभावक समझ ही नहीं पा रहे कि बच्चे चुपचाप मोबाइल में क्या कर रहे हैं, और जब तक स्थिति बिगड़ती है, तब तक वे पूरी तरह गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार हो चुके होते हैं।
दूसरी रिपोर्ट ग्रामीण युवाओं में रम्मी, फ्री फायर, रूले, इंडियन फ्लैश जैसे गेम्स के चलते कर्ज में डूबने, आत्महत्या करने या आपराधिक रास्ते अपनाने तक की घटनाओं की ओर इशारा करती है। गेमिंग कंपनियों के प्रलोभनों, कैश इनामों और विज्ञापन से प्रभावित होकर ये युवा ऐसे जाल में फँस जाते हैं जहां से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
इन हालात में यह आवश्यक हो गया है कि हम साइबर अपराध और डिजिटल लत को एक साथ देखें। केवल अपराध रोकने से समाधान नहीं होगा, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, डिजिटल शिक्षा और डिजिटल उपभोग की सीमाओं को भी समझाना ज़रूरी है। स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाना, माता-पिता को डिजिटल पैरेंटिंग की ट्रेनिंग देना, और गेमिंग कंपनियों पर सख्त निगरानी रखना इस दिशा में कारगर कदम हो सकते हैं।
यदि हम आज इन खतरों को गंभीरता से नहीं लेंगे, तो भविष्य में हमारे बच्चे तकनीक के उपयोगकर्ता नहीं, तकनीक के शिकार बनकर रह जाएंगे। समय आ गया है कि हम "डिजिटल आज़ादी" और "डिजिटल जिम्मेदारी" के बीच संतुलन बनाएं।
गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।
अपराधों के आंकड़े: तेजी से बढ़ता खतरा
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018 में जहां बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों के 232 मामले दर्ज हुए थे, वहीं 2022 में यह आंकड़ा 1823 तक पहुँच गया। इसका अर्थ है कि डिजिटल स्पेस में बच्चों की सुरक्षा बेहद कमजोर होती जा रही है।
प्रमुख अपराधों में शामिल हैं:
| अपराध | 2018 | 2022 |
| साइबर पोर्नोग्राफी | 44 | 1171 |
| साइबर स्टॉकिंग/बदमाशी | 40 | 158 |
| ब्लैकमेलिंग/धमकी/उत्पीड़न | 4 | 74 |
| नकली प्रोफाइल | 3 | 2 |
| ऑनलाइन गेम के जरिए अपराध | 0 | 2 |
| अन्य अपराध | 141 | 416 |
सरकार की जिम्मेदारी और प्रयास
'पुलिस' और 'लोक व्यवस्था' राज्य सरकारों के विषय हैं, इसलिए साइबर अपराधों की रोकथाम और जांच की जिम्मेदारी मुख्य रूप से राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की होती है।
हालांकि, केंद्र सरकार ने इस दिशा में कई बड़े कदम उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) की स्थापना
- राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (https://cybercrime.gov.in) की शुरुआत
- टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर ‘1930’
- राज्य पुलिस और एजेंसियों के लिए तकनीकी व वित्तीय सहायता
बच्चों को साइबर अपराधों से बचाने के लिए जागरूकता सबसे कारगर उपाय है। इसी सोच के तहत केंद्र सरकार ने कई पहलें शुरू की हैं:
CBSE स्कूलों में ऑनलाइन सत्र
सूचना सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता (ISEA) के तहत कार्यशालाएं
साइबर स्वच्छता पुस्तिका का निर्माण
एनसीसी, एनएसएस और एनवाईकेएस के 2 लाख छात्रों को प्रशिक्षण
डाकघरों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचार अभियान
NCERT पाठ्यक्रम में "साइबर स्वच्छता" जोड़ने की योजना
ये पहल न केवल पूर्वोत्तर राज्यों बल्कि देश भर के स्कूली बच्चों को डिजिटल दुनिया में सुरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।
डिजिटल युग में बच्चों की सुरक्षा सिर्फ तकनीकी नहीं, सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है। सरकार, स्कूल, माता-पिता और समाज सभी को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि इंटरनेट बच्चों के लिए ज्ञान और अवसर का माध्यम बना रहे, न कि डर और अपराध का।
2022 में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों में दर्ज 32% वृद्धि यह दर्शाती है कि अब डिजिटल खतरे सिर्फ शहरी बच्चों या वयस्कों की समस्या नहीं रहे—बल्कि ग्रामीण भारत के बच्चे और युवा भी इस खतरे की गिरफ्त में आ चुके हैं। इंटरनेट और मोबाइल फोन की आसान पहुंच ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऑनलाइन गेमिंग, साइबर शोषण और मोबाइल लत को जन्म दिया है।
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दूसरी रिपोर्ट ग्रामीण युवाओं में रम्मी, फ्री फायर, रूले, इंडियन फ्लैश जैसे गेम्स के चलते कर्ज में डूबने, आत्महत्या करने या आपराधिक रास्ते अपनाने तक की घटनाओं की ओर इशारा करती है। गेमिंग कंपनियों के प्रलोभनों, कैश इनामों और विज्ञापन से प्रभावित होकर ये युवा ऐसे जाल में फँस जाते हैं जहां से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
इन हालात में यह आवश्यक हो गया है कि हम साइबर अपराध और डिजिटल लत को एक साथ देखें। केवल अपराध रोकने से समाधान नहीं होगा, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य, डिजिटल शिक्षा और डिजिटल उपभोग की सीमाओं को भी समझाना ज़रूरी है। स्कूलों में जागरूकता अभियान चलाना, माता-पिता को डिजिटल पैरेंटिंग की ट्रेनिंग देना, और गेमिंग कंपनियों पर सख्त निगरानी रखना इस दिशा में कारगर कदम हो सकते हैं।
यदि हम आज इन खतरों को गंभीरता से नहीं लेंगे, तो भविष्य में हमारे बच्चे तकनीक के उपयोगकर्ता नहीं, तकनीक के शिकार बनकर रह जाएंगे। समय आ गया है कि हम "डिजिटल आज़ादी" और "डिजिटल जिम्मेदारी" के बीच संतुलन बनाएं।
गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी।