यूपी के सीतापुर में किसानों के एफपीओ ने खोला पहला आईपीएम मार्ट, जानिए आईपीएम की खूबियां

Kirti Shukla | Aug 18, 2021, 10:21 IST
सब्जियों की खेती को रोग और कीट-पतंगों से बचाने के लिए किसान हजारों रुपए के रासायनिक कीटनाशक डालते हैं। लेकिन ये काम सिर्फ कुछ रुपए का एक फ्रूट प्लाई ट्रैप और फेरोमोन ट्रैप भी कर सकता है। सीतापुर में किसानों के FPO ने इसका आउटलेट खोला है।
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महोली (सीतापुर)। कीटनाशक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल फल और सब्जियों में किया जाता है, क्योंकि उसमें कीट और रोग ज्यादा लगते हैं। लेकिन कुछ और तरीके हैं जिनसे फल और सब्जियों की खेती बिना कीटनाशक के हो सकती है, आईपीएम (एकीकृत जीवनाशी प्रबंधन) के जरिए उनमें से एक है। आईपीएम तकनीकी से बिना पेस्टीसाइड के सब्जियों की खेती को बढ़ावा देने और आईपीएम के अदानों को आम किसानों तक पहुंचाने के लिए यूपी के सीतापुर में किसानों के एक एफपीओ ने प्रदेश के पहले आईपीएम मार्ट (आउटलेट) की शुरुआत की है।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर महोली ब्लॉक के मस्जिद बाज़ार इलाके को सब्जी उत्पादन का गढ़़ माना जाता है। कृषि विभाग के मुताबिक यहां पर करीब 500 हेक्टेयर भूमि सब्जियों की खेती होती है। इसी इलाके में कार्यरत किसानों की कंपनी (एफपीओ) "ओजोन कृषक उत्पादक संगठन" ने आईपीएम मार्ट (आउटलेट) की शुरुआत की है। 13 अगस्त को राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (Nabard) के मुख्य महाप्रबन्धक डॉ डी.एस. चौहान की इसका उद्घाटन किया। इस स्टोर में आईपीएम में इस्तेमाल होने वाले सभी आदान (फ्रूट फ्लाई ट्रैप, सोलर ट्रैप, लाइट ट्रैप, स्टिकी ट्रैप, प्रकाश प्रपंच) आदि आसानी से मिल सकेंगे। एफपीओ और इलाके के दूसरे किसानों को तकनीकी सहयोग और प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केंद्र कटिया द्वारा किया जा रहा है।

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इस दौरान राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन परियोजना के तहत 30 किसानों (आईपीएम दूत) को सोलर लाइट ट्रैप दिए गए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, पूसा, नई दिल्ली के सहयोग से किसानों के बीच आईपीएम (integrated pest management) तकनीकी का प्रचार-प्रसार करने वाले केवीके कटिया के प्रभारी अध्यक्ष डॉ. दया एस श्रीवास्तव आईपीएम की उपयोगिता और जरुरत के बारे में बताते हैं।

वो कहते हैं, "पूरे सीतापुर जिले में सबसे ज्यादा कीटनाशक का प्रयोग इसी मस्जिद बाजार कस्बे के आसपास होता है। साल 2013-14 में केवीके ने यहां पर एक सर्वे किया था जिसमें पता चला था इस इलाके में निमोटोड (सूत्रकृमि) की समस्या काफी है। ये न दिखने वाले कीड़े पौधों की जड़ों में लगते हैं। फसलों बचने के लिए किसान कई तरह के रसायनों का प्रयोग करता है, जिससे लागत ज्यादा और उत्पादन कम हो जाता है। लेकिन हम लोगों ने यहां आईपीएम तकनीकों का प्रदर्शन और प्रशिक्षण शुरु किया जिसके तहत किसानों को काफी फायदा हुआ।"

डॉ. दया श्रीवास्तव के मुताबिक इलाके के कई किसानों के प्रति साल कम कीटनाशक और निमोटोड पर नियंत्रण से साल में 20000-25000 प्रति एकड़ की बचत होने लगी है। ये किसान आईपीएम के महत्व को समझ गए थे लेकिन इसके आदान मिलने में दिक्कत थी इसलिए हम लोगों ने ओजोन को प्रेरित किया और उन्होंने इस आईपीएम मार्ट की शुरुआत की।

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सीतापुर में एक किसान के खेत में लगे सोलर ट्रैप में फंसे कीट पतंगे।

30 आईपीएम दूत दिखाएंगे किसानों को कम लागत में खेती की राह

नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक ने आईपीएम स्टोर का उद्घाटन करने के साथ ही कई गांवों का दौरा किया और किसानों से मुलाकात की। सीतापुर में ही अल्लीपुर गांव के प्रगतिशील किसान विनोद मौर्या के कृषि फार्म पर पहुंचे डॉ. चौहान ने जैविक विधि से तैयार की जा रही मिर्च की नर्सरी की जानकारी ली। उन्होंने विक्रमपुर गांव मे आयोजित किसान गोष्ठी में प्रगतिशील 30 किसानों (आईपीएम दूत ) को एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन से जुड़े उपकरण फेरोमोन ट्रैप, लाइट एवं फ्रूट फ्लाई ट्रैप वितरित किए।

आईपीएम दूतों के बारे में डॉ. दया श्रीवास्तव ने कहा, "राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन परियोजना के तहत महोली ब्लाक के तीन गांवों विक्रमपुर, राजपुर, भगवानपुर को चयनित किया गया है। इनमें से हर गांव से 10-10 किसानों (आईपीएम दूत) को चुना गया है, जिन्हें आईपीएम के उपकरण मुफ्त में दिए गए हैं। ये आईपीएम दूत पर्यावरण स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए समेकित नाशीजीव प्रबंधन तकनीकों को लेकर जागरूकता फैलाने का काम करेंगे। तीन गांवों का रिजल्ट देखने के बाद योजना को जिले में विस्तार किया जाएगा।"

इस दौरान मुख्य महाप्रबन्धक डॉ डी.एस. चौहान ने कहा, "सब्जी की खेती में कीट-व्याधियों की समस्या बहुत होती है, जिसके चलते किसानों को हर साल कई तरह के रासायनिक पेस्टीसाइड डालने पड़ते हैं। जिसका असर न सिर्फ मिट्टी बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी पड़ता है, लेकिन कम कीमत में उपलब्ध एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन से जुड़े उपकरण लाभदायक सिद्ध होंगे। इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।"

ओजोन कृषक उत्पादक संगठन के संरक्षक विकास तोमर ने गांव कनेक्शन को बताया, "किसानों के इस एफपीओ से 800 किसान जुड़े हैं। जिनमें से ज्यादातर सब्जियों की खेती करते हैं। समेकित नाशीजीव प्रबंधन एवं परम्परागत स्वदेशी तकनीकी ज्ञान का प्रमाणीकरण परियोजना के जरिए मृदा, जल, बीज, खाद, दवा, फसल चक्र एवं पर्यावरण हितैषी तकनीकों के माध्यम से किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है।"

तोमर ने कहा, "सब्जियों की खेती में किसानों के हजारों रुपए कीटनाशक और खरपतवार नाशक में खर्च हो जाते हैं। आईपीएम के जरिए न सिर्फ पैसे बचाए जा सकते हैं बल्कि फसल भी रयासन मुक्त होगी, जिसका अच्छा मूल्य मिलेगा। लेकिन एक समस्या थी कि आईपीएम के आदान (एग्री इनपुट) आसानी मिल नहीं पाते थे, लेकिन हमारे स्टोर में आसानी में मिल सकेंगे।"



लाइट और फ्रूट फ्लाई ट्रैप हैं कारगर

विकास सिंह तोमर ने कहा, "जो किसान सब्जी की खेती के साथ साथ मछली पालन करते है उनके लिए सोलर से संचालित लाइट एवं फ्रूट फ्लाई ट्रैप बहुत ही कारगर है। फसल के लिए जो शत्रु कीट हैं, वो ट्रैप में फंस जाते है। जिन्हें किसान भोजन के रूप में मछलियों दो दे सकते हैं।"

एफपीओ ने निदेशक और प्रगतिशील किसान विनोद कुमार ने इस दौरान कह, "हमारे संगठन के किसान कम कीटनाशक या फिर जहर मुक्त उत्पादों को पैदा करने को प्रयासरत हैं। हमारी कोशिश है कि बेहतर क्वालिटी की सब्जियां पैदा की जाएं और उन्हें यूरोपिटन देशों को निर्यात किया जाए, साथ ही उनका प्रसंस्करण भी किया जाए।"

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डॉ. दया एस. श्रीवास्तव ने आईपीएम की खूबियां बताते हुए कहते हैं, "एक फल मक्खी तरबूज, कद्दू और लौकी जैसी फसलों के 40 बतिया (फलों) को सड़ा सकती है। खेत में ऐसी हजारों मक्खियां होती हैं। किसान ऐसे कीट-पतंगों से फसल बचाने के लिए हजारों रुपए के कीटनाशक डालते हैं फिर भी कई बार किसानों की पूरी फसल चली जाती है लेकिन 50 से 70 रुपए का एक फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई) ट्रैप आसानी से ये फसल बचा सकता है।"

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