किसान धान की पौध तैयार करते समय रखें इन बातों का खास ध्यान

vineet bajpai | Apr 27, 2018, 07:13 IST
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लखनऊ। धान की पौद तैयार करने का समय आ गया है, खरीफ की फसल में धान का खास स्थान है। भारत दुनिया का सब से ज्यादा क्षेत्रफल में धान उगाने वाला देश है। धान की खेती दो तरीके से की जाती है, पहली जराई करके और दूसरी पौध तैयार करके। इसमे सबसे ज्यादा पौध तैयार करके धान की रोपाई की जाती है। इस लिए आज हम आपको बताने वाले हैं कि किसान धान की पौध तैयार करते सामय किन-किन बातों का ध्यान रखें और कैसे पौध तैयार करें ...

धान की उन्नत किस्में

भारत में तमाम तरह की धान की किस्में उगाई जाती हैं, जिन में से कुछ खास हैं आईआर 64, इंप्रूव्ड पूसा बासमती 1 (पी 1460), जया, तरावरी बासमती, पीएचबी 71, पीए 6201, पूसा आरएच 10, पूसा बासमती 1, पूसा सुगंध 2, पूसा सुगंध 3, पूसा सुगंध 4 (पी 1121), पूसा सुगंध 5 (पी 2511), माही सुगंधा, रतना और विकास।

नर्सरी तैयार करते समय इन बातों का रखें ध्यान

खेत का चुनाव व तैयारी : धान की नर्सरी लगाने के लिए चिकनी दोमट या दोमट मिट्टी का चुनाव करें। खेत की 2 से 3 जुताई कर के खेत को समतल व खेत की मिट्टी को भुरभुरी कर लें। खेत से पानी निकलने का सही इंतजाम करें।

नर्सरी लगाने का सही समय : मध्यम व देर से पकने वाली किस्मों की बोआई जून के दूसरे हफ्ते तक करें और जल्दी पकने वाली किस्मों की बोआई जून के दूसरे हफ्ते से तीसरे हफ्ते तक करें।

नर्सरी के लिए क्यारियां बनाना : नर्सरी के लिए 1.0 से 1.5 मीटर चौड़ी व 4 से 5 मीटर लंबी क्यारियां बनाना सही रहता है।

बीज की मात्रा : नर्सरी के लिए तैयार की गई क्यारियों में उपचारित किए गए सूखे बीज की 50 से 80 ग्राम मात्रा का प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से छिड़काव करें। धान की मोटे दाने वाली किस्मों के लिए 30 से 35 किलोग्राम व बारीक दाने वाली किस्मों के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत होती है। नर्सरी में ज्यादा बीज डालने से पौधे कमजोर रहते हैं और उनके सड़ने का भी डर रहता है।

बीजोपचार : बीजजतिन रोगों से हिफाजत करने के लिए बीजों का उपचार किया जाता है। बीज उपचार के लिए केप्टान, थाइरम, मेंकोजेब, कार्बंडाजिम व टाइनोक्लोजोल में से किसी एक दवा को 20 से 30 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से काम में लिया जा सकता है।

थोथे (फरहा) बीजों को निकालने के लिए, बीजों को 2 फीसदी नमक के घोल में डाल कर अच्छी तरह से हिलाएं और ऊपर तैरते हलके बीजों को निकाल दें। नीचे बैठे बीजों को बोआई के लिए इस्तेमाल करें।

अंकुरण क्षमता बढ़ाने और अंकुरों की बढ़वार तेज करने के लिए 400 मिलीलीटर सोडियम हाइपोक्लोराइड व 40 लीटर पानी के घोल में 30 से 35 किलोग्राम बीजों को भिगो कर व सुखा कर बिजाई के काम में लाना चाहिए।

बोआई की विधि : बीजों को अंकुरित करने के बाद ही बिजाई करें। अंकुरित करने के लिए बीजों को जूट के बोरे में डाल कर 16 से 20 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। इस के बाद पानी से निकाल कर बीजों को सुरक्षित जगह पर सुखा कर बिजाई के काम में लें। बीजों को नर्सरी में सीधा बोने पर 3 से 4 दिनों तक चिड़िया आदि पक्षियों से बचाव करें जब तक कि बीज उग न जाएं।

नर्सरी में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल : प्रति 100 वर्ग मीटर नर्सरी के लिए 2 से 3 किलोग्राम यूरिया, 3 किलोग्राम सुपर फास्फेट व 1 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है। यदि नर्सरी में पौधे पीले पड़ने लगें तो 1 किलोग्राम जिंक सल्फेट व आधा किलोग्राम चूने को 50 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।

सिंचाई : बोआई के समय खेत की सतह से पानी निकाल दें और बोआई के 3 से 4 दिनों तक केवल खेत की सतह को पानी से तर रखें। जब अंकुर 5 सेंटीमीटर के हो जाएं, तो खेत में 1 से 2 सेंटीमीटर पानी भर दें। जैसे-जैसे पौधे बढ़ते जाएं, पानी की मात्रा भी बढ़ाते जाएं। ध्यान रखें कि पानी 5 सेंटीमीटर से ज्यादा नहीं भरना चाहिए। क्योंकि अधिक पानी भर जाने से पौधे अधिक लंबे व कमजोर हो जाते हैं। ऐसे पौधे रोपाई के लिए अच्छे नहीं माने जाते हैं।



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