जब रुपया नहीं था तब क्या था, कितनी क़ीमती थी फूटी कौड़ी और दमड़ी ?
महंगाई से जनता परेशान है, लेकिन आपको पता था, जब रुपए ही नहीं था तब क्या होता था..
गाँव कनेक्शन 22 Aug 2019 6:34 AM GMT

भारतीय रुपये का इतिहास बहुत पुराना है। भारतीय मुद्रा की कई इकाइयां रही हैं जिनके बारे में शायद आपको भी न पता हो। लेकिन ये ज़रूरी है कि भारतीय मुद्रा के इस सफर की सभी इकाइयों के बारे में आप खुद भी जानें और अपने बच्चों को भी बताएं।
रुपये शब्द का प्रयोग सबसे पहले शेरशाह सूरी ने 1540 से 1545 के बीच अपने शासन के दौरान किया। उन्होंने रुपये का जो सिक्का चलाया वह चांदी का था जिसका वज़न लगभग 11.543 ग्राम था। उसने तांबे के सिक्के जिन्हें 'दाम' कहते थे और सोने के सिक्के जिन्हें 'मोहर' कहते थे, भी चलाए। लेकिन आज जिस रुपये का इस्तेमाल हम करते हैं वह कई पड़ावों से गुज़रता हुआ यहां तक पहुंचा है।
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जब रुपये का दशमलवीकरण नहीं हुआ था तब 11.66 ग्राम के वज़न वाले रुपये के सिक्के को 16 आने या 64 पैसे या फिर 192 पाई में बांटा जाता था। 1957 में रुपये का दशमलवीकरण हो गया और एक रुपया 100 पैसे का हो गया। इसके बाद 1869 में श्रीलंका में और 1961 में पाकिस्तान में भी रुपये का दशमलवीकरण हुआ।
रुपये का पूरा इतिहास जानने से पहले हम ये भी जान लेते हैं कि प्राचीन भारत में मुद्रा को किस तरह वर्गीकृत किया जाता था। आज जिस एक रुपये की क़ीमत हमारे लिए न के बराबर है कभी वह बहुत बड़ी मुद्रा माना जाता था और उससे छोटी कई मुद्राएं ही चलन में थीं। कई बार हम अपनी ग़रीबी को बताने के लिए जिस जुमले का इस्तेमाल करते हैं- हमारे पास तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं है, वह भी मुद्रा हुआ करती थी और उसे प्राचीन भारत में सबसे छोटी मुद्रा के रूप में जाना जाता था।
आप फूटी कौड़ी से रुपये तक के वर्गीकरण को इस तरह समझ सकते हैं -
- फूटी कौड़ी (Phootie Cowrie) से कौड़ी, (3 फूटी कौड़ी - 1 कौड़ी)
- कौड़ी से दमड़ी (Damri), (10 कौड़ी - 1 दमड़ी)
- दमड़ी से धेला (Dhela), (2 दमड़ी - 1 धेला)
- धेला से पाई (Pie), 1 धेला = 1.5 पाई
- पाई से पैसा (Paisa), 3 पाई - 1 पैसा ( पुराना)
- पैसा से आना (Aana), 4 पैसा - 1 आना
- आना से रुपया (Rupya) बना, 16 आना - 1 रुपया।
इस तरह भी समझें -
- एक रुपया = 265 दमड़ी
- 265 दमड़ी = 192 पाई
- 192 पाई = 128 धेला
- 128 धेला = 64 पैसा (old)
- 64 पैसा = 16 आना
- 16 आना = 1 रुपया
प्राचीन मुद्रा की इन्हीं इकाइयों ने हमारी बोल-चाल की भाषा को कई कहावतें दी हैं, जो पहले की तरह अब भी प्रचलित हैं। जैसे -
- एक 'फूटी कौड़ी' भी नहीं दूंगा।
- 'धेले' का काम नहीं करती हमारा बेटा !
- चमड़ी जाये पर 'दमड़ी' न जाये।
- 'पाई-पाई' का हिसाब रखना।
- सोलह 'आने' सच।
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