जानिए क्या है मंकीपॉक्स, जिसको लेकर WHO ने जारी की हेल्थ इमरजेंसी

Gaon Connection | Aug 16, 2024, 16:57 IST
मंकीपॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति या जानवर के निकट संपर्क के माध्यम से या वायरस से दूषित सामग्री के माध्यम से मनुष्यों में फैलता है।
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कई देशों में मंकीपॉक्स के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं, ख़ासकर मध्य और पूर्वी अफ़्रीका में संक्रामक मंकी पॉक्स के संक्रमण देखे जा रहे हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी इसका पहला मामला सामने आया है।

मंकीपॉक्स के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रॉस एडोनम गेब्रीयेसुस ने कहा, "एमपॉक्स के एक नए क्लेड का उभरना, कांगो गणतंत्र में इसका तेज़ी से फैलना और कई पड़ोसी देशों में इसके मामलों की जानकारी मिलना बहुत चिंताजनक है।"

इससे पहले जुलाई 2022 और मई 2023 के बीच प्रकोप को ऐसा घोषित किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार इस साल अब तक अफ्रीकी देशों में 14,000 से ज़्यादा मामले और 524 मौतें दर्ज की गई हैं, जो पिछले साल के आंकड़ों से कहीं ज़्यादा हैं। इनमें से 96% से ज़्यादा मामले और मौतें अकेले कांगो में हुई हैं।

क्या है मंकी पॉक्स

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मंकीपॉक्स आमतौर पर बुखार, दाने और गाँठ के जरिये उभरता है और इससे कई प्रकार की चिकित्सा जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं। रोग के लक्षण आमतौर पर दो से चार हफ्ते तक दिखते हैं, जो अपने आप दूर होते चले जाते हैं। संक्रमण के मामले गंभीर भी हो सकते हैं।

मृत्यु दर का अनुपात लगभग 3-6 प्रतिशत रहा है, लेकिन यह 10 प्रतिशत तक हो सकता है। मंकीपॉक्स किसी संक्रमित व्यक्ति या जानवर के निकट संपर्क के माध्यम से या वायरस से दूषित सामग्री के माध्यम से मनुष्यों में फैलता है। मंकीपॉक्स वायरस घावों, शरीर के तरल पदार्थ, सांस की बूंदों और बिस्तर जैसी दूषित सामग्री के निकट संपर्क से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।

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मंकीपॉक्स के लक्षण

मंकीपॉक्स के संक्रमण से लक्षणों की शुरुआत तक आमतौर पर 6 से 13 दिनों तक होती है, लेकिन यह 5 से 21 दिनों तक हो सकती है। बुखार, तेज सिरदर्द, लिम्फ नोड्स की सूजन, पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द और एनर्जी की कमी जैसे लक्षण इसकी विशेषता हैं जो पहले स्मॉल पॉक्स की तरह ही नज़र आते हैं।

इसके साथ ही त्वचा का फटना आमतौर पर बुखार दिखने के एक से तीन दिनों के अंदर शुरू हो जाता है। दाने गले के बजाय चेहरे और हाथ-पाँव पर ज्यादा होते हैं। यह चेहरे और हाथों की हथेलियों और पैरों के तलवों को प्रभावित करता है।

क्या करें और क्या नहीं करें

संक्रमित व्यक्ति की किसी भी चीज जैसे बिस्तर, बर्तन, कपड़े, तौलिये के संपर्क में आने से बचें, संक्रमित मरीजों को आइसोलेट करें।

संक्रमित जानवरों या मनुष्यों के संपर्क में आने के बाद हाथ को अच्छी तरह से धोएं। साबुन और पानी से हाथ धोएं या अल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करें।

रोगियों की देखभाल करते समय उपयुक्त व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) जैसे कवर ऑल/गाउन, एन-95 मास्क, फेस शील्ड/सुरक्षा चश्मे और दस्ताने का प्रयोग करें।

पालतू और घरेलू जानवरों को संक्रमित व्यक्ति के वातावरण से दूर रखें।

संक्रमित को अस्पताल/घर के आइसोलेशन रूम में आइसोलेट करें।

रोगी को ट्रिपल लेयर मास्क पहनाएँ।

दूसरों के साथ संपर्क के जोखिम को कम करने के लिए त्वचा के घावों को जहाँ तक मुमकिन हो लंबी आस्तीन, लंबी पैंट जैसे सर्वोत्तम सीमा तक कवर करें।

उस वक्त तक आइसोलेट रहें जब तक कि सभी घाव दूर न हो जाएँ और पपड़ी पूरी तरह से गिर न जाए।

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किन जानवरों से फैलता है इंसानों में मंकी पॉक्स

कई जानवरों की प्रजातियों को मंकीपॉक्स वायरस के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इन जानवरों में गिलहरियों की कई प्रजातियों गिलहरी, पेड़ गिलहरी, गैम्बिया पाउच वाले चूहे, डर्मिस, गैर-मानव प्राइमेट और अन्य प्रजातियाँ शामिल हैं। मंकीपॉक्स वायरस के प्राकृतिक इतिहास पर अनिश्चितता बनी हुई है और इसकी प्रकृति में बने रहने के कारणों की पहचान करने के लिए आगे रिसर्च की जरूरत है।

कहाँ मिला मंकीपॉक्स का पहला मामला?

इंसानों में मंकीपॉक्स की पहचान सबसे पहले 1970 में रिपब्लिक ऑफ कांगो में एक 9 वर्षीय लड़के में हुई थी, जहाँ 1968 में चेचक को समाप्त कर दिया गया था। तब से, अधिकांश मामले ग्रामीण, वर्षावन क्षेत्रों से सामने आए हैं। कांगो बेसिन, विशेष रूप से कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में और मानव मामले पूरे मध्य और पश्चिम अफ्रीका से तेजी से सामने आए हैं।

1970 के बाद से, 11 अफ्रीकी देशों – बेनिन, कैमरून, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, गैबॉन, कोटे डी आइवर, नाइजीरिया, कांगो गणराज्य, सिएरा लियोन और दक्षिण सूडान में मंकीपॉक्स के मानव मामले सामने आए हैं। 2017 के बाद से, नाइजीरिया ने 500 से अधिक संदिग्ध मामलों और 200 से अधिक पुष्ट मामलों और लगभग 3% के एक मामले के घातक अनुपात के साथ एक बड़े प्रकोप का अनुभव किया है। मामले आज भी सामने आ रहे हैं।

साल 2003 में, अफ्रीका के बाहर पहला मंकीपॉक्स का प्रकोप संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था और इसे संक्रमित पालतू प्रैरी कुत्तों के संपर्क से जोड़ा गया था। इन पालतू जानवरों को गैम्बिया पाउच वाले चूहों और डर्मिस के साथ रखा गया था जिन्हें घाना से देश लाया गया था। इस प्रकोप के कारण यूएस मंकीपॉक्स में मंकीपॉक्स के 70 से अधिक मामले सितंबर 2018 में सामने आए। नाइजीरिया से इजरायल जाने वाले यात्रियों में सितंबर 2018 में और दिसंबर 2019, मई 2021 और मई 2022 में यूनाइटेड किंगडम में देखा गया। मई 2019 में सिंगापुर में और जुलाई और नवंबर 2021 में संयुक्त राज्य अमेरिका में रिपोर्ट किए गए हैं। मई 2022 में, कई गैर-स्थानिक देशों में मंकीपॉक्स के मामलों की पहचान की गई थी।

क्यों बढ़ी रहीं हैं जूनोटिक बीमारियाँ

खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार इंसानों में कई तरह की जुनोटिक बीमारियाँ होती हैं। मांस की खपत दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। एएफओ के एक सर्वे के अनुसार, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के 39% लोगों के खाने में जंगली जानवरों के मांस की खपत बढ़ी है। जोकि जुनोटिक बीमारियों के प्रमुख वाहक होते हैं।

पूरे विश्व की तरह ही भारत में भी जुनोटिक बीमारियों के संक्रमण की घटनाएँ बढ़ रहीं हैं। लगभग 816 ऐसी जूनोटिक बीमारियां हैं, जो इंसानों को प्रभावित करती हैं। ये बीमारियाँ पशु-पक्षियों से इंसानों में आसानी से प्रसारित हो जाती हैं। इनमें से 538 बीमारियाँ बैक्टीरिया से, 317 कवक से, 208 वायरस से, 287 हेल्मिन्थस से और 57 प्रोटोजोआ के जरिए पशुओं-पक्षियों से इंसानों में फैलती हैं। इनमें से कई लंबी दूरी तय करने और दुनिया को प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं। इनमें रेबीज, ब्रूसेलोसिस, टॉक्सोप्लाज़मोसिज़, जापानी एन्सेफलाइटिस (जेई), प्लेग, निपाह, जैसी कई बीमारियाँ हैं। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, प्लेग से देश के अलग-अलग हिस्सों में लगभग 12 लाख लोगों की मौत हुई है। हर साल लगभग 18 लाख लोगों को एंटी रेबीज का इंजेक्शन लगता है और लगभग 20 हजार लोगों की मौत रेबीज से हो जाती है। इसी तरह ब्रूसीलोसिस से भी लोग प्रभावित होते हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में जापानी एन्सेफलाइटिस से लोग प्रभावित होते हैं।

इंटरनेशनल लाइवस्टॉक रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, तेरह तरह की जुनोटिक बीमारियों की वजह से भारत में लगभग 24 लाख लोग बीमार होते हैं, जिसमें से हर साल 22 लाख लोगों की मौत हो जाती है। जलवायु परिवर्तन भी जुनोटिक बीमारियों के बढ़ने का एक कारक है।

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