अब मूंगफली के छिलके करेंगे पानी की सफाई, वैज्ञानिकों की नई खोज
Gaon Connection | Jul 28, 2025, 11:03 IST
मूंगफली के छिलकों को अब कचरा नहीं, जल शुद्धिकरण का सस्ता और टिकाऊ समाधान माना जा रहा है। वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है जिसमें इन छिलकों से बायोफिल्टर तैयार कर गंदे पानी से भारी धातुएँ, विषैले तत्व और रोगाणु हटाए जा सकते हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए यह नवाचार पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीण आजीविका के नए रास्ते भी खोल सकता है।
पानी की कमी और प्रदूषण आज दुनिया भर में एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और औद्योगिकीकरण के चलते नदियाँ, झीलें और भूजल स्रोत लगातार प्रदूषित हो रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिक नई और सस्ती तकनीकों की खोज में जुटे हैं जो न केवल प्रभावी हों, बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हों। इसी दिशा में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में यह पाया गया है कि मूंगफली के छिलके—जो अब तक एक बेकार कृषि अपशिष्ट माना जाता था—को बेहद कम लागत में एक प्रभावी जल शुद्धिकरण तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
क्यों खास है मूंगफली के छिलका?
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक देश है। हर साल करीब 7.44 मिलियन टन मूंगफली पैदा होती है, जिससे लाखों टन छिलके निकलते हैं। ये छिलके कार्बन, सेल्युलोज़, हेमीसेल्युलोज़ और लिग्निन जैसे घटकों से भरपूर होते हैं, जो इनको मजबूत, लचीला और जैविक रूप से टिकाऊ बनाते हैं। इनमें पोर्स (सूक्ष्म छिद्र) की उपस्थिति और सतह पर मौजूद क्रियाशील रासायनिक समूह इन्हें पानी से भारी धातुएँ, रंग, जैविक अपशिष्ट, और पोषक तत्व अवशोषित करने में सक्षम बनाते हैं।
वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि मूंगफली के छिलकों से बना बायोफिल्टर न केवल सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक जैसी भारी धातुओं को हटाने में सक्षम है, बल्कि यह वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) और पोषक तत्वों की अधिकता से होने वाले प्रदूषण (eutrophication) से भी प्रभावी तरीके से निपट सकता है।
बायोफिल्टर कैसे काम करता है?
बायोफिल्टर एक ऐसा जैव-रिएक्टर है जिसमें जीवाणु छिलके की सतह पर पनपते हैं और प्रदूषकों को खा जाते हैं। पानी जब इस फिल्टर से होकर गुजरता है, तो उसमें मौजूद खतरनाक तत्व जैसे भारी धातु, रंग, सूक्ष्म जीवाणु और अन्य जैव प्रदूषक छिलकों में अवशोषित हो जाते हैं और शुद्ध पानी बाहर निकलता है।
मूंगफली के छिलकों को फिजिकल और केमिकल ट्रीटमेंट (जैसे NaOH, H₂SO₄ या गरम पानी से धुलाई) देकर उनकी सफाई क्षमता को और बढ़ाया जा सकता है।
खेती से जल शुद्धिकरण तक: एक सर्कुलर मॉडल
इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि यह ‘सर्कुलर बायोइकोनॉमी’ को बढ़ावा देती है। छिलके से पहले बायोफिल्टर बनाया जाता है, जिससे शुद्ध पानी खेती, नर्सरी और बागवानी में इस्तेमाल होता है। बायोफिल्टर के रूप में इस्तेमाल किए जा चुके छिलकों को खाद के रूप में दोबारा खेतों में लगाया जा सकता है। इससे खेती को पोषण मिलता है और जल संसाधन भी सुरक्षित रहते हैं।
भारत में इस तकनीक को बढ़ावा देकर गाँवों और छोटे कस्बों में जल शुद्धिकरण की लागत को कम किया जा सकता है। इससे पीने योग्य पानी तक पहुँच बढ़ेगी और पानी से फैलने वाली बीमारियों में भी कमी आएगी।
पर्यावरण संरक्षण के साथ रोजगार की संभावना
अगर मूंगफली के छिलकों पर आधारित बायोफिल्टर का उत्पादन स्थानीय स्तर पर शुरू किया जाए तो यह ग्रामीण युवाओं, खासकर महिलाओं के लिए स्वरोजगार का अवसर बन सकता है। छिलके को इकट्ठा करना, उनका ट्रीटमेंट करना और फिल्टर यूनिट तैयार करना एक पूरी मूल्य श्रृंखला तैयार कर सकता है।
क्या कहती हैं वैश्विक रिपोर्ट?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल लगभग 14 लाख लोग असुरक्षित पानी और खराब स्वच्छता के कारण मरते हैं। इनमें से अधिकांश मौतें विकासशील देशों में होती हैं। ऐसे में जैविक और सस्ते विकल्पों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।
हाल के वर्षों में कई देशों ने मूंगफली के छिलकों से न केवल जल शुद्धिकरण, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और मवेशियों के चारे में भी प्रयोग किया है। इससे स्पष्ट होता है कि यह एक बहुउपयोगी संसाधन है।
मूंगफली के छिलकों का उपयोग न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि आर्थिक रूप से भी टिकाऊ है। यह तकनीक विशेष रूप से उन क्षेत्रों में बेहद कारगर हो सकती है जहाँ जल प्रदूषण की समस्या विकराल है और सफाई के पारंपरिक साधन बहुत महंगे हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, जहाँ मूंगफली बड़े पैमाने पर पैदा होती है, वहां इस जैविक संसाधन का दोहन करके पानी की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
अगर आप किसान हैं या ग्रामीण उद्यम शुरू करना चाहते हैं, तो मूंगफली के छिलकों से बायोफिल्टर निर्माण एक शानदार अवसर हो सकता है। इससे न केवल आपको आर्थिक लाभ होगा बल्कि आप अपने समुदाय की स्वास्थ्य सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
क्यों खास है मूंगफली के छिलका?
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक देश है। हर साल करीब 7.44 मिलियन टन मूंगफली पैदा होती है, जिससे लाखों टन छिलके निकलते हैं। ये छिलके कार्बन, सेल्युलोज़, हेमीसेल्युलोज़ और लिग्निन जैसे घटकों से भरपूर होते हैं, जो इनको मजबूत, लचीला और जैविक रूप से टिकाऊ बनाते हैं। इनमें पोर्स (सूक्ष्म छिद्र) की उपस्थिति और सतह पर मौजूद क्रियाशील रासायनिक समूह इन्हें पानी से भारी धातुएँ, रंग, जैविक अपशिष्ट, और पोषक तत्व अवशोषित करने में सक्षम बनाते हैं।
वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि मूंगफली के छिलकों से बना बायोफिल्टर न केवल सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक जैसी भारी धातुओं को हटाने में सक्षम है, बल्कि यह वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) और पोषक तत्वों की अधिकता से होने वाले प्रदूषण (eutrophication) से भी प्रभावी तरीके से निपट सकता है।
बायोफिल्टर कैसे काम करता है?
बायोफिल्टर एक ऐसा जैव-रिएक्टर है जिसमें जीवाणु छिलके की सतह पर पनपते हैं और प्रदूषकों को खा जाते हैं। पानी जब इस फिल्टर से होकर गुजरता है, तो उसमें मौजूद खतरनाक तत्व जैसे भारी धातु, रंग, सूक्ष्म जीवाणु और अन्य जैव प्रदूषक छिलकों में अवशोषित हो जाते हैं और शुद्ध पानी बाहर निकलता है।
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खेती से जल शुद्धिकरण तक: एक सर्कुलर मॉडल
इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि यह ‘सर्कुलर बायोइकोनॉमी’ को बढ़ावा देती है। छिलके से पहले बायोफिल्टर बनाया जाता है, जिससे शुद्ध पानी खेती, नर्सरी और बागवानी में इस्तेमाल होता है। बायोफिल्टर के रूप में इस्तेमाल किए जा चुके छिलकों को खाद के रूप में दोबारा खेतों में लगाया जा सकता है। इससे खेती को पोषण मिलता है और जल संसाधन भी सुरक्षित रहते हैं।
भारत में इस तकनीक को बढ़ावा देकर गाँवों और छोटे कस्बों में जल शुद्धिकरण की लागत को कम किया जा सकता है। इससे पीने योग्य पानी तक पहुँच बढ़ेगी और पानी से फैलने वाली बीमारियों में भी कमी आएगी।
पर्यावरण संरक्षण के साथ रोजगार की संभावना
अगर मूंगफली के छिलकों पर आधारित बायोफिल्टर का उत्पादन स्थानीय स्तर पर शुरू किया जाए तो यह ग्रामीण युवाओं, खासकर महिलाओं के लिए स्वरोजगार का अवसर बन सकता है। छिलके को इकट्ठा करना, उनका ट्रीटमेंट करना और फिल्टर यूनिट तैयार करना एक पूरी मूल्य श्रृंखला तैयार कर सकता है।
क्या कहती हैं वैश्विक रिपोर्ट?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल लगभग 14 लाख लोग असुरक्षित पानी और खराब स्वच्छता के कारण मरते हैं। इनमें से अधिकांश मौतें विकासशील देशों में होती हैं। ऐसे में जैविक और सस्ते विकल्पों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।
हाल के वर्षों में कई देशों ने मूंगफली के छिलकों से न केवल जल शुद्धिकरण, बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने और मवेशियों के चारे में भी प्रयोग किया है। इससे स्पष्ट होता है कि यह एक बहुउपयोगी संसाधन है।
मूंगफली के छिलकों का उपयोग न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि आर्थिक रूप से भी टिकाऊ है। यह तकनीक विशेष रूप से उन क्षेत्रों में बेहद कारगर हो सकती है जहाँ जल प्रदूषण की समस्या विकराल है और सफाई के पारंपरिक साधन बहुत महंगे हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, जहाँ मूंगफली बड़े पैमाने पर पैदा होती है, वहां इस जैविक संसाधन का दोहन करके पानी की समस्या से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
अगर आप किसान हैं या ग्रामीण उद्यम शुरू करना चाहते हैं, तो मूंगफली के छिलकों से बायोफिल्टर निर्माण एक शानदार अवसर हो सकता है। इससे न केवल आपको आर्थिक लाभ होगा बल्कि आप अपने समुदाय की स्वास्थ्य सुरक्षा में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।