देश में 4,361 थैलेसीमिया रोगी हैं रजिस्टर्ड, बच्चों की संख्या सबसे अधिक
Gaon Connection | Jul 29, 2025, 18:16 IST
जुलाई 2025 तक देश में 4,361 थैलेसीमिया रोगी पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें आधे से अधिक बच्चे हैं। सरकार उन्हें 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दे रही है बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए। थैलेसीमिया की रोकथाम और इलाज के लिए राज्यों के साथ मिलकर केंद्र सरकार लगातार नई पहलें कर रही है।
भारत में थैलेसीमिया जैसे आनुवंशिक रोग को लेकर सरकार की गंभीरता बढ़ती जा रही है। हाल ही में राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, जुलाई 2025 तक देश में 4,361 थैलेसीमिया रोगी पंजीकृत किए गए हैं, जिनमें से 2,579 मरीज 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे हैं। यह आंकड़ा सिकल सेल पोर्टल के माध्यम से एकत्र किया गया है, जिसमें वर्ष 2023 से एक समर्पित थैलेसीमिया मॉड्यूल को भी जोड़ा गया है।
थैलेसीमिया एक गंभीर आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें रोगी के शरीर में पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बनता और नियमित रक्त चढ़ाने की ज़रूरत होती है। यह बीमारी जीवन भर चलती है और सही समय पर इलाज नहीं होने पर गंभीर परिणाम दे सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने इस रोग की निगरानी और उपचार को मज़बूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
देशव्यापी डेटा संग्रह और निगरानी
सिकल सेल पोर्टल के ज़रिए अब थैलेसीमिया मरीजों का राष्ट्रीय स्तर पर डाटा एकत्र किया जा रहा है। इससे न केवल राज्यों को मौजूदा मरीजों का रिकॉर्ड रखने में मदद मिल रही है, बल्कि नियमित निगरानी, अनुवर्ती कार्रवाई और स्क्रीनिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी हो पा रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम थैलेसीमिया की समग्र देखभाल को प्रभावशाली और केंद्रीकृत बनाने की दिशा में एक अहम प्रयास है।
राज्य सरकारों की जिम्मेदारी और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की भूमिका
थैलेसीमिया की रोकथाम और प्रबंधन की मुख्य जिम्मेदारी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों की है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत इन राज्यों को सहायता दी जाती है ताकि वे अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बेहतर बना सकें। इसमें निम्नलिखित सुविधाओं का समावेश किया जाता है:
थैलेसीमिया बाल सेवा योजना: इलाज के लिए आर्थिक सहायता
एक और महत्वपूर्ण पहल है थैलेसीमिया बाल सेवा योजना (TBSY), जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) मिलकर चला रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता उन परिवारों को दी जाती है, जिनके बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित हैं और बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) की ज़रूरत है।
यह सहायता कोल इंडिया की कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) निधि से दी जाती है।
देशभर के 17 सूचीबद्ध अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध है।
अब तक कई बच्चों का सफल बीएमटी इस योजना के अंतर्गत हो चुका है।
थैलेसीमिया जागरूकता और रोकथाम की ज़रूरत
स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि इलाज के साथ-साथ थैलेसीमिया की समय रहते पहचान और रोकथाम भी उतनी ही जरूरी है। थैलेसीमिया माता-पिता दोनों में जीन की उपस्थिति के कारण अगली पीढ़ी में आता है। ऐसे में शादी से पहले थैलेसीमिया कैरियर टेस्ट की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
कई राज्य सरकारों ने स्कूल और कॉलेज स्तर पर कैरियर स्क्रीनिंग कैंप भी शुरू किए हैं ताकि युवाओं को जागरूक किया जा सके और विवाह पूर्व जांच को बढ़ावा मिले। कुछ राज्यों में विवाह पंजीकरण के समय थैलेसीमिया रिपोर्ट की सिफारिश भी की जा रही है।
सरकार की यह पहल दर्शाती है कि भारत अब थैलेसीमिया जैसे दुर्लभ और महंगे इलाज वाले रोगों के प्रति न केवल जागरूक हो रहा है, बल्कि उन परिवारों की भी मदद कर रहा है जो आर्थिक रूप से इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं। सिकल सेल और थैलेसीमिया जैसी बीमारियों के लिए डिजिटल पोर्टल, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का सहयोग, तथा नीतिगत समर्थन मिलकर एक ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं जो सभी के लिए समान रूप से उपयोगी हो।
यदि ये प्रयास लंबे समय तक निरंतर रूप से लागू किए जाएं, तो भारत जल्द ही थैलेसीमिया को नियंत्रित करने में एक उदाहरण बन सकता है।
थैलेसीमिया एक गंभीर आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें रोगी के शरीर में पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बनता और नियमित रक्त चढ़ाने की ज़रूरत होती है। यह बीमारी जीवन भर चलती है और सही समय पर इलाज नहीं होने पर गंभीर परिणाम दे सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने इस रोग की निगरानी और उपचार को मज़बूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
देशव्यापी डेटा संग्रह और निगरानी
सिकल सेल पोर्टल के ज़रिए अब थैलेसीमिया मरीजों का राष्ट्रीय स्तर पर डाटा एकत्र किया जा रहा है। इससे न केवल राज्यों को मौजूदा मरीजों का रिकॉर्ड रखने में मदद मिल रही है, बल्कि नियमित निगरानी, अनुवर्ती कार्रवाई और स्क्रीनिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी हो पा रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम थैलेसीमिया की समग्र देखभाल को प्रभावशाली और केंद्रीकृत बनाने की दिशा में एक अहम प्रयास है।
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थैलेसीमिया की रोकथाम और प्रबंधन की मुख्य जिम्मेदारी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकारों की है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत इन राज्यों को सहायता दी जाती है ताकि वे अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बेहतर बना सकें। इसमें निम्नलिखित सुविधाओं का समावेश किया जाता है:
- ब्लड बैंक और सुरक्षित रक्त की उपलब्धता
- डे-केयर सेंटर, जहाँ नियमित रक्त चढ़ाने की सुविधा हो
- औषधियाँ और प्रयोगशाला सेवाएँ
- जनजागरूकता और सूचना-संचार गतिविधियाँ
- स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण और संवेदनशीलता
थैलेसीमिया बाल सेवा योजना: इलाज के लिए आर्थिक सहायता
एक और महत्वपूर्ण पहल है थैलेसीमिया बाल सेवा योजना (TBSY), जिसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) मिलकर चला रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत 10 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता उन परिवारों को दी जाती है, जिनके बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित हैं और बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) की ज़रूरत है।
यह सहायता कोल इंडिया की कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) निधि से दी जाती है।
देशभर के 17 सूचीबद्ध अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध है।
अब तक कई बच्चों का सफल बीएमटी इस योजना के अंतर्गत हो चुका है।
थैलेसीमिया जागरूकता और रोकथाम की ज़रूरत
स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि इलाज के साथ-साथ थैलेसीमिया की समय रहते पहचान और रोकथाम भी उतनी ही जरूरी है। थैलेसीमिया माता-पिता दोनों में जीन की उपस्थिति के कारण अगली पीढ़ी में आता है। ऐसे में शादी से पहले थैलेसीमिया कैरियर टेस्ट की अनिवार्यता पर ज़ोर दिया जा रहा है।
कई राज्य सरकारों ने स्कूल और कॉलेज स्तर पर कैरियर स्क्रीनिंग कैंप भी शुरू किए हैं ताकि युवाओं को जागरूक किया जा सके और विवाह पूर्व जांच को बढ़ावा मिले। कुछ राज्यों में विवाह पंजीकरण के समय थैलेसीमिया रिपोर्ट की सिफारिश भी की जा रही है।
सरकार की यह पहल दर्शाती है कि भारत अब थैलेसीमिया जैसे दुर्लभ और महंगे इलाज वाले रोगों के प्रति न केवल जागरूक हो रहा है, बल्कि उन परिवारों की भी मदद कर रहा है जो आर्थिक रूप से इलाज कराने में सक्षम नहीं हैं। सिकल सेल और थैलेसीमिया जैसी बीमारियों के लिए डिजिटल पोर्टल, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का सहयोग, तथा नीतिगत समर्थन मिलकर एक ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली की ओर बढ़ रहे हैं जो सभी के लिए समान रूप से उपयोगी हो।
यदि ये प्रयास लंबे समय तक निरंतर रूप से लागू किए जाएं, तो भारत जल्द ही थैलेसीमिया को नियंत्रित करने में एक उदाहरण बन सकता है।