कछुआ संरक्षण में बड़ा कदम: ट्रॉलिंग बोट्स पर अब अनिवार्य है टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस
Gaon Connection | Jul 24, 2025, 17:22 IST
हर साल सैकड़ों समुद्री कछुए ट्रॉल नेट्स में फँसकर मर जाते हैं। इस संकट को रोकने के लिए अब मछुआरों की नावों पर टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस (TED) लगाए जा रहे हैं, एक छोटा-सा यंत्र जो कछुओं को सुरक्षित बाहर निकाल देता है, जबकि मछलियाँ पकड़ में आ जाती हैं।
भारत के समुद्री तटों पर मछलियों की पकड़ अब सिर्फ जीविकोपार्जन का जरिया नहीं, बल्कि समुद्री जैवविविधता के संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम बन रही है। केंद्र सरकार और विभिन्न राज्यों के सहयोग से अब मछली पकड़ने वाली ट्रॉल बोट्स पर टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस (TED) लगाना अनिवार्य किया जा रहा है—एक ऐसा उपकरण जो मछलियों को तो जाल में फंसा रहने देता है, लेकिन समुद्री कछुओं जैसे संकटग्रस्त जीवों को सुरक्षित बाहर निकलने का रास्ता देता है।
भारत में पांच प्रमुख समुद्री कछुआ प्रजातियाँ पाई जाती हैं: ओलिव रिडले, लेदरबैक, ग्रीन सी टर्टल, हॉक्सबिल और लॉगरहेड। इनमें ओलिव रिडले सबसे अधिक संख्या में पाए जाते हैं और हर साल ओडिशा के गहिरमाथा, रशिकुल्या और देवी नदी मुहानों पर लाखों की संख्या में अंडे देने आते हैं। यह विश्व के सबसे बड़े समुद्री कछुआ प्रजनन स्थलों में से हैं। लेकिन ट्रॉल फिशिंग में बाई-कैच के रूप में फँसकर इनकी बड़ी संख्या में मृत्यु हो जाती है।
भारत के नौ तटीय राज्यों—गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल—ने अपने-अपने MFRA में संशोधन कर TED को अनिवार्य बना दिया है। वहीं, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में बॉटम ट्रॉल फिशिंग पर प्रतिबंध है।
ICAR-CIFT (केंद्रीय मात्स्यिकी प्रौद्योगिकी संस्थान) ने US-NOAA के विनिर्देशों के अनुरूप टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस का मॉडल विकसित किया है। प्रति इकाई लगभग 23,485 रुपये की लागत पर चार एजेंसियों को इसके निर्माण हेतु अधिकृत किया गया है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत इस उपकरण को 100% वित्तीय सहायता (60% केंद्र + 40% राज्य) के साथ लागू किया जा रहा है।
MPEDA-नेटफिश और राज्य मत्स्य पालन विभागों द्वारा फील्ड डेमोंस्ट्रेशन और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। आंध्र प्रदेश सरकार ने अब तक 60 ट्रॉलरों को 85 TED वितरित किए हैं। केरल सरकार ने भी 2019 की अधिसूचना के माध्यम से TED का प्रयोग अनिवार्य कर दिया है और 2,599 ट्रॉलरों में TED लगाने का प्रस्ताव पेश किया है, जिसकी अनुमानित लागत 649.75 लाख रुपये है।
TED के इस्तेमाल से कई फायदे हैं:
भारत में पांच प्रमुख समुद्री कछुआ प्रजातियाँ पाई जाती हैं: ओलिव रिडले, लेदरबैक, ग्रीन सी टर्टल, हॉक्सबिल और लॉगरहेड। इनमें ओलिव रिडले सबसे अधिक संख्या में पाए जाते हैं और हर साल ओडिशा के गहिरमाथा, रशिकुल्या और देवी नदी मुहानों पर लाखों की संख्या में अंडे देने आते हैं। यह विश्व के सबसे बड़े समुद्री कछुआ प्रजनन स्थलों में से हैं। लेकिन ट्रॉल फिशिंग में बाई-कैच के रूप में फँसकर इनकी बड़ी संख्या में मृत्यु हो जाती है।
भारत के नौ तटीय राज्यों—गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल—ने अपने-अपने MFRA में संशोधन कर TED को अनिवार्य बना दिया है। वहीं, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में बॉटम ट्रॉल फिशिंग पर प्रतिबंध है।
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MPEDA-नेटफिश और राज्य मत्स्य पालन विभागों द्वारा फील्ड डेमोंस्ट्रेशन और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। आंध्र प्रदेश सरकार ने अब तक 60 ट्रॉलरों को 85 TED वितरित किए हैं। केरल सरकार ने भी 2019 की अधिसूचना के माध्यम से TED का प्रयोग अनिवार्य कर दिया है और 2,599 ट्रॉलरों में TED लगाने का प्रस्ताव पेश किया है, जिसकी अनुमानित लागत 649.75 लाख रुपये है।
TED के इस्तेमाल से कई फायदे हैं:
- यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संरक्षण कानूनों के अनुपालन को सुनिश्चित करता है।
- समुद्री कछुओं की मृत्यु दर में भारी कमी लाता है।
- ट्रॉल नेट की पकड़ की दक्षता और मछली की गुणवत्ता में सुधार करता है।
- श्रिम्प निर्यात में अमेरिकी विनियमों के अनुरूप प्रमाणन में सहायता करता है।