बारिश के मौसम में भिण्डी की खेती के लिए किसान इन किस्मों की कर सकते हैं बुवाई

vineet bajpai | May 29, 2017, 12:46 IST
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लखनऊ। भिंडी गर्मी व बारिश के मौसम की प्रमुख फसलों में से एक है। भिंडी की खेती भारत में सबसे ज्यादा की जाती है। भींडी की खेती किसान नकदी फसल के रूप में करते हैं, इसके अलावा इसे लोग अपने घर के आस-पास क्यारी बनाकर खुद के इस्तेमाल के लिए भी उगाते हैं। हम आपको आज बताने जा रहे हैं कि बारिश के मौसम में किसानों को भींडी की खेती कैसे करनी चाहिए और किस किस्म की भींडी की बुवाई करनी चाहिए।

प्रमुख किस्में

पूसा सावनी : यह प्रजाति बंसत, ग्रीष्म और बारिश के मौसम में उगाई जाती है। इसके पौधो की उँचाई 100-200 सेमी होती है। फल गहरे हरे रंग लगभग 15 सेमी के होते हैं। यह किस्म पिछले कई वर्षो तक पीले मोजेक विषाणु के प्रकोप से मुक्त रही है लेकिन अब यह रोग इस किस्म मे लगने लगा है। इसकी उपज 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

प्रभनी क्रांति

यह किस्म पीतशीरा (मोजेक) विषाणु बीमारी रोकने मे सक्षम पाई गयी है। इसके फल पूसा सावनी जैसे ही होता है। प्रथम तुड़ाई 55-60 दिन के बाद की जाती है। इसकी औसतन पैदावार 8-10 टन प्रति हेक्टेयर होती है।

अर्का अनामिका

यह विषाणु रोग से प्रतिरोधी किस्म है। इसे लगाने के 50 दिनो बाद फूल आते हैं और इसकी उपज 125-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

वर्षा उपहार

भींडी की यह किस्म पीतशीरा (मोजेक) विषाणु रोग प्रतिरोधी होती है। यह 45 दिन बाद प्रथम तुड़ाई के लायक हो जाती है, इसके फल की लम्बाई 18-20 सेमी होती है और उपज प्रति हेक्टेयर 9 से 10 टन होती है।

पूसा मखमली

यह हल्के हरे रंग कि किस्म है और पीतशीरा (मोजेक) विषाणु रोग के प्रति अतिसंवेदनशील होती है। इसके फल 12-15 सेमी लम्बे होते हैं। इसकी औसत पैदावार 8-10 टन प्रति हेक्टेयर होती है।

अर्का अभय

यह किस्म पीतशीरा (मोजेक) विषाणु रोग प्रतिरोधी किस्म है। फल भेदक किट को सहन कर सकती है एवं पेडी फसल के लिए उपयुक्त है।

पूसा ए-4

यह एफिड और जैसिड के प्रति सहनशील हैं। यह पीतरोग यैलो वेन मोजैक विषाणु रोधी है। फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस वाले, 12-15 सेमी लंबे तथा आकर्षक होते है। बोने के लगभग 15 दिन बाद से फल आना शुरू हो जाते है। तथा पहली तुड़ाई 45 दिनों बाद शुरू हो जाती हैं। इसकी औसत पैदावार ग्रीष्म में 10 टन व खरीफ में 15 टन प्रति हेक्टेयर है।

पंजाब-7

यह किस्म भी पीतरोग रोधी है। बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते है। इसकी पैदावार 8-12 टन प्रति हैक्टेयर होती है।

खेत की तैयारी :

वर्षा ऋतु के समय पहली वर्षा होने पर खेत को मिटटी पलटने वाले हल से दो बार अच्छी तरह से जुताई करे। इसके बाद दो बार डिस्क हैरो या देसी हल से दोबारा जुताई कर पाटा चलाये। 250 क्विटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई से पहले फैला दें। ताकि मिटटी मे अच्छी तरह से मिल जाये। सिंचाई की सुविधा होने पर इस फसल को बारिश से 20-25 दिन पहले ही बुआई कर देनी चाहिए। ताकि बाजार भाव अच्छा मिल सके।

बीज की मात्रा

खरीफ (बारिश) के मौसम में 10-12 किग्रा प्रिति हैक्टर की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 किग्रा प्रति हेक्टर की बीज दर पर्याप्त होती है।

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