भारत में कितनी बढ़ी है बाघ, शेर और हाथियों की आबादी?

Gaon Connection | Jul 25, 2025, 17:41 IST
भारत में बाघों, शेरों और हाथियों की आबादी में हाल के वर्षों में वृद्धि देखी गई है। जानिए गणना के नए आंकड़े, संरक्षण प्रयास और मानव-वन्यजीव संघर्ष से निपटने की सरकारी रणनीति।
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भारत में बाघों, शेरों और हाथियों की आबादी के आंकड़े उत्साहजनक हैं। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) प्रत्येक चार वर्षों में राज्यों के सहयोग से अखिल भारतीय बाघ अनुमान लगाता है। 2018 में 2,967 बाघों की तुलना में 2022 में इनकी संख्या 3,682 हो गई है, जो संरक्षण प्रयासों की सफलता को दर्शाता है।

इसी तरह, गुजरात सरकार द्वारा 2025 में कराई गई 16वीं एशियाई शेर गणना में शेरों की संख्या 891 पहुंच गई है, जबकि 2020 में यह 674 थी। यह वृद्धि एक सकारात्मक संकेत है कि शेरों के लिए बनाए गए वैकल्पिक आवास जैसे बरदा संरक्षित क्षेत्र काम कर रहे हैं।

हाथियों की बात करें तो, 2017 की गणना में देशभर में हाथियों की संख्या 29,964 आंकी गई थी, जो 2012 के मुकाबले मामूली वृद्धि है। 2024-25 में हाथियों की नई गणना प्रस्तावित है, जिससे उनकी ताजा स्थिति का आकलन हो सकेगा।

केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने यह जानकारी राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।

संरक्षण क्षेत्र और प्रयास

58 बाघ अभयारण्य भारत में अधिसूचित हैं, जो देश के लगभग 2.5% क्षेत्र को कवर करते हैं।

33 हाथी अभयारण्यों को 14 राज्यों में अधिसूचित किया गया है।

गुजरात में शेरों के लिए विशेष रूप से गलियारा विकास और घास के मैदानों का संवर्धन किया जा रहा है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष की चुनौती

वन्यजीव संरक्षण के साथ सबसे बड़ी चुनौती मानव-वन्यजीव संघर्ष है। इसके समाधान के लिए:

  • 2021 में मंत्रालय ने परामर्श जारी किया था, जिससे राज्य और जिला स्तर पर संघर्ष नियंत्रण समितियों का गठन हुआ।
  • 2022 में दिशानिर्देश जारी किए गए, जिनमें 24 घंटे में मुआवजा भुगतान, त्वरित प्रतिक्रिया दल और जोखिम क्षेत्रों की पहचान जैसे प्रावधान शामिल हैं।
  • दिसंबर 2023 में अनुग्रह राशि 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख रुपये की गई, जो मृत्यु या स्थायी अपंगता की स्थिति में दी जाती है।
तकनीक और प्रशिक्षण

राज्यों को भारतीय वन्यजीव संस्थान के माध्यम से आधुनिक चेतावनी प्रणालियों, GPS कॉलरिंग, ड्रोन सर्विलांस और कैमरा ट्रैप तकनीकों के इस्तेमाल की ट्रेनिंग दी जा रही है।

कानूनी प्रावधान

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत:

  • खतरनाक हो चुके जानवरों को नियंत्रित करने के लिए मुख्य वन्य जीव प्रतिपालकों को विशेष अधिकार दिए गए हैं।
  • यह अधिनियम राज्य सरकारों को आपात स्थिति में शिकार की अनुमति देने की भी व्यवस्था करता है।
विशेष परियोजनाएँ

प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट जैसी केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अंतर्गत आवास सुधार, जैव बाड़बंदी, मुआवजा वितरण, और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।

मानव-पशु संघर्ष से निपटने के लिए तीन SOP (मानक संचालन प्रक्रियाएं) जारी की गई हैं:

  • बाघों के आबादी वाले क्षेत्रों में घुसने की स्थिति
  • पशुओं पर हमलों की स्थिति
  • बाघों का पुनर्वास
इन रणनीतियों का उद्देश्य वन्यजीव संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीण समुदायों की सुरक्षा और सहयोग को सुनिश्चित करना है। सरकार की इस समन्वित रणनीति से यह स्पष्ट है कि भारत वन्यजीवों के लिए केवल एक आश्रय स्थल ही नहीं, बल्कि एक संवेदनशील प्रबंधक भी बन रहा है।

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