ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2021 : कोरोना की वजह से बढ़ी असमानता, महिलाओं के साथ भेदभाव खत्म होने में लगेंगे 135 साल

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने महिला-पुरुष समानता को लेकर 156 देशों की रिपोर्ट जारी की है। जिसमें भारत 28 पायदान फिसलकर 140वें स्थान पर पहुंच गया है। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी की वजह से असमानता बढ़ी है। यही वजह है कि अब महिला-पुरुषों के बीच समानता आने में करीब 135.6 साल लग जाएंगे, जो पिछले साल तक 99.5 साल थे। यानि सालभर में यह अंतर करीब 36 साल बढ़ा है।

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ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2021 : कोरोना की वजह से बढ़ी असमानता, महिलाओं के साथ भेदभाव खत्म होने में लगेंगे 135 साल

वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की वैश्विक लैंगिक भेद अनुपात रिपोर्ट 2021 के मुताबिक़ दुनियाभर में कोरोना की वजह से असमानता बढ़ी है। इस रिपोर्ट का सीधा सा आशय यह कि महिला पुरुष के समाज में बराबरी पर आने और लाने की बात हर मंच पर होती है लेकिन रिपोर्ट ये बताती है वास्तविक समानता लाने में एक सदी से ज्यादा का वक्त लगेगा। रिपोर्ट के मुताबिक अब महिला-पुरुषों के बीच समानता आने में करीब 135.6 साल लग जाएंगे, जो पिछले साल तक 99.5 साल थे। यानी साल भर में यह अंतर करीब 36 साल बढ़ा है।

वैश्विक आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक भेद अनुपात रिपोर्ट 2021 में 156 देशों की सूची में भारत 28 पायदान फिसलकर 140वें स्थान पर आ गया है, साथ ही दक्षिण एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला तीसरा देश भी है। इससे पहले ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2020 में 153 देशों में भारत का स्थान 112वें नंबर पर था। यह रिपोर्ट 30 मार्च 2021 को जारी हुई है।

भारत के पड़ोसी मुल्कों में से बांग्लादेश इस सूची में 65, नेपाल 106, पाकिस्तान 153, अफगानिस्तान 156, भूटान 130 और श्रीलंका 116वें स्थान पर हैं। दक्षिण एशिया में केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान सूची में भारत से नीचे हैं। वहीं ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में दक्षिण एशिया विश्व का सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला दूसरा क्षेत्र है।

महिला-पुरुष समानता के मामले में आइसलैंड लगातार 12वें साल दुनिया में पहले स्थान पर रहा। वहां समानता का स्तर करीब 90% है, यानी सबसे कम भेदभाव यहाँ है। महिला पुरुष समानता में पहले स्थान पर आइसलैंड, दूसरे पर फिनलैंड, तीसरे पर नार्वे, चौथे पर न्यूजीलैंड और पांचवें पर स्वीडन है। आम तौर पर पिछड़े माने जाने वाले नामीबिया, रवांडा और लिथुआनिया जैसे देश भी इस मामले में शीर्ष 10 देशों में शामिल हैं।

वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (WEF) की वैश्विक लैंगिक भेद अनुपात रिपोर्ट में जेंडर गैप इंडेक्स को 4 प्रमुख पैमानों के आधार पर मापा जाता है। जिसमें आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षणिक स्थिति, स्वास्थ्य एवं जीवित रहने की स्थिति एवं राजनीतिक सशक्तिकरण शामिल हैं। इनमें महिला-पुरुषों की प्रगति और अंतर का अध्ययन किया जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक अब महिला-पुरुषों के बीच समानता आने में करीब 135.6 साल लग जाएंगे। फोटो : नीतू सिंह

वैश्विक लैंगिक भेद अनुपात रिपोर्ट 2021 की प्रमुख बड़ी बातें

वरिष्ठ और प्रबंधक पदों पर महिलाओं की भागीदारी कम ही रही है। इन पदों पर केवल 14.6% ही महिलाएं हैं, केवल 8.9 फीसदी कंपनियां ही हैं जहां शीर्ष प्रबंधक पदों पर महिलाएं हैं। यह अंतर महिलाओं के वेतन में, शिक्षण दर में भी दिखाई देता है।

लैंगिक साक्षरता के मामले में, 17.6% पुरुषों की तुलना में एक तिहाई महिलाएं (34.2%) निरक्षर हैं।

स्वास्थ्य और अस्तित्व से जुड़े सबइंडेक्स में भारत निचले 5 देशों में शामिल है।

आर्थिक भागीदारी और अवसर की सूची में भी गिरावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र में लैंगिक भेद अनुपात तीन प्रतिशत और बढ़कर 32.6% पर पहुंच गया है।

37 देश शिक्षा के क्षेत्र में महिला-पुरुष समानता का स्तर हासिल कर चुके हैं।

रिपोर्ट में महिला श्रम भागीदारी दर में भी गिरावट आई है, जो अब 24.8% से घटकर 22.3% रह गई है। वहीं इस रिपोर्ट में प्रोफेशनल और टेक्निकल फील्ड में भी महिलाओं की भूमिका घटकर 29.2% रह गई है।

रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा गिरावट राजनीतिक सशक्तीकरण सबइंडेक्स में आई है। जिसमें महिला मंत्रियों की संख्या में फिर से 13.5% (जो कि साल 2019 में 23.1% थी, अब वह घटकर 9.1% रह गई है) की कमी आई है।

लिंग आधारित सोच के कारण, जन्म के समय लिंगानुपात में भी बड़ा अंतर सामने आया है, इसके अलावा चार में से एक महिला को जीवन में घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है।

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