बिहार की बाढ़: पेड़ों और नावों पर शौच, बांस की चचरी पर अंतिम संस्कार की मजबूरी

बिहार में इस बार समय से पहले बाढ़ आ गई। हजारों लोगों के सामने फिर खाने का संकट है। कोसी बांध के अंदर सैकड़ों गांवों के लोगों का जीवन पेड़ और नावों पर कट रहा है। किसी की मौत हो जाती है तो इतनी सूखी जगह नहीं की अंतिम संस्कार कर सकें, वो भी नाव के जरिए ही होता है...

Rahul JhaRahul Jha   23 July 2021 9:53 AM GMT

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बिहार की बाढ़: पेड़ों और नावों पर शौच,  बांस की चचरी पर अंतिम संस्कार की मजबूरी

बिहार के बाढ़ प्रभावित कई जिलों में हालात बद्तर हैं। लोगों के पास साफ पानी और का प्रबंध नहीं है। 

सुपौल (बिहार)। बिहार के लाखों लोगों पर बाढ़ की आपदा इस बार समय से पहले आ गई। कई जिलों के सैकड़ों गांव जून के दूसरे और तीसरे हफ्ते से पानी में डूबे हैं। सैकड़ों गांवों में आज तक मदद नहीं पहुंच पाई। बंधे के बीच के कई गांवों में लोग खाने-पीने को मोहताज हैं।

"इस बार बाढ़ का पानी 20 दिन पहले आ गया। हर बार बाढ़ आने पर सरकार की तरफ से दालमोट और बिस्कुट आता था, लेकिन इस बार राहत सामग्री को तो छोड़िए कोई बाबू साहब तक मिलने नहीं आए हैं।" बाढ़ में फंसे राम लोचन यादव (48 वर्ष) मायूसी के साथ बताते हैं।

राम लोचन का गांव बिहार की राजधानी पटना से करीब 250 किलोमीटर दूर सुपौल जिले के बौराहा पंचायत में है। सुपौल को कोसी की प्रवेश द्वारा भी कहा जाता है। इस बार जुलाई की बजाए जून से ही कोसी में ऊफान है। बांध के अंदर बसे करीब 100 गांवों में तबाही मची हुई है। रामलोचन के मुताबिक उनके गांव इस बार पानी 24 जून की शाम को ही आ गया था।

नेपाल से सटे सीमावर्ती जिलों में बाढ़ और कटान से हाहाकार मचा हुआ है। लाखों लोग नदी की तेज धाराओं के बीच से बाल-बच्चे, जरूरी सामान और मवेशी लेकर ऊंचे स्थान पर जाने को मजबूर हैं। उत्तरी बिहार और सीमांचल क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों के निचले इलाकों में रहने वाले कई ग्रामीण अपना घर छोड़ सड़कों पर रहने या पलायन को मजबूर हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि बाढ़ पहले आ गई लेकिन सरकार के इंतजाम बहुत पीछे हैं।

बिहार बाढ़ 2021: सर्वे में शामिल 90% लोगों के पास न तो पीने का साफ पानी है और न ही खाने के लिए पर्याप्त खाना, आधे से ज्यादा शौचालय क्षतिग्रस्त

'ज्वाइंट रैपिड् नीड्स असेसमेंट बिहार बाढ़ 2021 के अनुसार 90 फीसदी लोगों के पास पीने का साफ पानी नहीं। फोटो, राहुल झा, सुपौल

बिहार बाढ़ पर हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार 90 फीसदी लोगों के पास पीने का साफ पानी और खाने के लिए पर्याप्त खाना नहीं है। ये रिपोर्ट तीन सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित जिलों पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण और मुजफ्फरपुर में किया गया था। सर्वे रिपोर्ट 'ज्वाइंट रैपिड् नीड्स असेसमेंट बिहार बाढ़ 2021' को बिहार इंटर एजेंसी ग्रुप और स्फीयर इंडिया ने 13 जुलाई को संयुक्त रूप से जारी किया। जिसके मुताबिक लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त खाना नहीं है। घर और शौचालय टूट गए हैं। फसलें बर्बाद हो गई हैं। मवेशी मर गए हैं। मुजफ्फरपुर में 65 प्रतिशत लोग ऊंचाई पर बनी सड़कों या तटबंध पर रह रहे हैं और पूर्वी चंपारण के भी 12 प्रतिशत लोग ऐसे ही हालात में रह रहे हैं।

बिहार में 15 जिलों के करीब 8 लाख लोग प्रभावित

मोटे अनुमान के मुताबिक बिहार के 15 जिलों में कम से कम आठ लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। लाखों लोग अपना घर छोड़ कहीं और रहने के लिए मजबूर हैं। पिछले कई दिनों से राज्य में उफान पर चल रही नदियों के बढ़ते पानी से बचने के लिए वे ऊंचाई पर स्थित सड़कों या फिर तटबंधों पर रह रहे हैं।

सुपौल में ही मौजहा पंचायत के राम प्रसाद साह (68 वर्ष) गांव कनेक्शन से कहते हैं, "यह तो ताज्जुब की बात है। हम यहां दाना-पानी को मोहताज हो रहे हैं और प्रशासन को हमारी खबर ही नहीं है।"

वे आगे कहते हैं, "जब पता चलता है कि कोई बड़े बाबू हमको देखने आए हैं तो हम उन्हें अपनी समस्या बताने चलते हैं। तब तक पता चलता है कि साहब तो सड़क पर से ही वापस लौट गए। उन्हें तो सड़क से नीचे हमारे घर आंगन को देखने की फुर्सत ही नहीं हैं।"

स्थानीय लोगों के मुताबिक सुपौल में बांध के अंदर बसी करीब 100 से ज्यादा ग्राम पंचायतों में लोगों का जीवन दुश्कर हो गया है। लोगों के सामने खाने-पीने का संकट है। यहां तक कि पशुओं के लिए चारा तक नहीं बचा है। सैकड़ों घर जमींदोज हो चुके हैं। देखते-देखते लोगों के घर पानी में समा चुके हैं। सुपौल में ही मानाटोला में दर्जनों घर कट चुके हैं। गांव वालों के मुताबिक ऐसा ही रहा तो कुछ दिनों में इस गांव का नामोनिशान मिट जाएगा।

15 जिलों के करीब 8 लाख लोग प्रभावित हैं बाढ़ से। बांध के अंदर रहने वालों की हालत बद्तर। फोटो राहुल झा

देखते ही देखते पानी में समा जाते हैं घर

"जिस घर को बनाने में लोगों की एक जिंदगी की खत्म हो जाती है। पूरी कमाई चली जाती है। कोसी उसे पलभर में गिरा देती है। फिर पूरी जिंदगी घर के लिए भटकते रह जाते हैं।" ये बताते हुए सुपौल जिले में खुखनाहा पंचायत के मानाटोला की आशा देवी फफक पड़ती हैं। यहां उनके जैसे लोगों की संख्या सैकड़ों में है।

सिर्फ सुपौल ही नहीं, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण और मुजफ्फरपुर, सहरसा, अररिया, मधेपुरा, दरभंगा में भी कोसी, गंडक और सहायक नदियां कहर मचा रही हैं। कोसी नदी बाढ़ से ज्यादा कटाव के लिए जानी जाती है। पिछले पांच दिनों में बारिश कम होने के वजह से जलस्तर कम हुआ तो कोसी तटबंध के अंदर बसे गांव में तेजी से कटाव शुरू हो गया। जिससे लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं।

सहरसा जिला के नवहट्टा प्रखंड के केदली पंचायत के चार गांव पहाड़पुर, रामपुर, छतवन और असैय गांव के 500 से अधिक परिवारों में लगभग 100 परिवार का घर का कटाव कोसी कर चुकी हैं। ग्रामीणों का कहना है कि, 'कटाव की रफ्तार यही रही तो आने वाले कुछ दिनों में इस पंचायत के चार गांव का अस्तित्व ही मिट जाएगा।'

इस कटाव में असैय गांव के अरविंद यादव का घर भी कटा है। वे मायूसी के साथ गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, "घर-जमीन कट गई है। जो सामान उठा पाए हैं लेकर ऊंची जगह पर जा रहे हैं। ये हमारे लिए कोई नई बात नहीं है। बंजारा की जिंदगी ही हमारी किस्मत हो गई है।"

बौराहा पंचायत के मुखिया उदय चौधरी गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, "तटबंध के भीतर रह रहे लोगों की जिंदगी खानाबदोश की तरह ही होती है। इसकी गवाही तटबंधों व सड़क किनारे पर बसी बस्तियां दे जाती हैं। हर साल ही उन्हें पहले सड़क किनारे झोपड़ी बनाना पड़ता है फिर कहीं और।"

कोसी में पानी कम होने पर तेज होती है कटान

कोसी और बिहार में बाढ़ पर लंबे समय से काम कर रहे डॉ. दिनेश चंद्र मिश्रा गांव कनेक्शन को बताते हैं, "घर और जमीन कटने की तो अभी शुरुआत हुई है। यह सिलसिला अभी लम्बा चलेगा। कोसी के स्वभाव के अनुसार पानी घटने पर कटान तेज हो जाता है। बाढ़ की अवधि 15 जून से 15 सितंबर तक रहती है। अमूमन इसके बाद पानी घटना शुरू हो जाता है। संभवत सितंबर से पानी घटना चालू हो जाता है। इसके साथ ही कोसी में कटान और तेज होती है। जो हजारों लोगों को बेघर कर देती है।"

बिहार में दो तरह से लोग बाढ़ को झेलते हैं। एक वे जो कोसी के बांध के अंदर हैं वे हमेशा बाढ़ की विभीषिका झेलते हैं दूसरे वे हैं जो किसी तटबंध के टूटने पर आपदा में घिरते हैं, इस बार भी कई जगह तटबंद टूटे हैं।

इस बार के मॉनसून में एक जून से 15 जुलाई तक पश्चिम चंपारण जिले में सामान्य से 194 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। दरभंगा में 111 फीसदी, मधुबनी में 78 फीसदी, सुपौल में 73 फीसदी, सीवान में 71 फीसदी, सारण में 77 फीसदी, वैशाली में 64 फीसदी, समस्तीपुर में 77 फीसदी और भउआ में 70 फीसदी सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई है। बिहार के लोगों की समस्या ये भी है कि नेपाल की तराई में लगातार बारिश का दौर जारी है, जबकि अभी मानसून के दो महीने बाकी हैं।

जून से लेकर सितंबर-अक्टूबर तक कोसी इलाके में लोगों का जीवन नाव के सहारे की कटता है। फोटो राहुल झा

बाढ़ में पानी के बीच बांस की चचरी में मिट्टी की कोठी रखकर करते हैं शव का दाह संस्कार

बिहार में बांध के भीतर के कई इलाकों में 6 महीना बाढ़ का पानी रहता है। जो इस इलाके के लोगों का जीवन नर्क बना देता है। सैकड़ों लोगों को जीवन नाव और पेड़ों पर बीतता है यहां तक कि शौच तक पेड़ों पर बैठकर करते हैं।

अररिया जिले में बांध के भीतर के गांव 'घोड़ाघाट' के अब्दुल खदुस गांव कनेक्शन बताते हैं कि, "कई बार हालात इतने खराब हो जाते हैं कि बच्चे और बूढ़े सभी पेड़ पर चढ़कर शौच करते हैं। महिलाओं की स्थिति के बारे में आप खुद जान लीजिए। और ये दर्द हमें प्रत्येक साल झेलना पड़ता हैं।"

इस बाढ़ में एक तरह जीवन बचाने की जद्दोजहद रहती है तो दूसरी तरफ इस आपका के बीच अगर किसी की मृत्यु हो गई तो उसका अंतिम संस्कार भी किसी आपदा से कम नहीं होता है। कई बार लोगों को अपने घरों के बिल्कुल बगल में जो कई बार नावों तक में अंमित संस्कार किए जाते हैं।

मधुबनी जिला के झंझारपुर विधानसभा क्षेत्र के पंकज झा कहते हैं कि, "सूखी जमीन के अभाव में घर के बगल में लाशों को भी जलाया जाता हैं।"

पिछले दिनों दरभंगा के सिवनी यादव की मौत हो गई थी। वो कुशेश्वरस्थान पूर्वी प्रखंड के रहने वाले थे। परिवार और ग्रामीणों ने उनका अंतिम संस्कार नाव से किया। यहां बांस की चचरी बनाई जाती है, जिसके ऊपर मिट्टी से विशेष प्रकार की कोठी बनाई जाती हैं ताकि आग से लकड़ी को नुकसान न हो।

सिवनी यादव के अंतिम संस्कार में शामिल हुए शरीक गांव के नुन्नू लाल यादव बताते हैं कि, "गांव से सटे श्मशान में पानी के बीच बांस की चचरी बनाकर उसे खूंटा के सहारे बांध दिया गया फिर उसके ऊपर मिट्टी की कोठी रख दी गई। फिर मुखाग्नि देने वाले को नाव से ही शव की परिक्रमा कराई गई।"

राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग क्या कर रहा है?

4 मई को आपदा प्रबंधन विभाग ने अपने वेबसाइट पर बाढ़ से बचाव के लिए सुझाव देने का निर्देश जारी किया था। इस निर्देश में नाव की व्यवस्था से लेकर राहत सामग्री तक शामिल था। जिसे पूरा करने की अंतिम तिथि 15 जून तय की गई थीं। फिर 16 जून को पश्चिमी चंपारण के इलाकों में बाढ़ आ गयी। इसके बाद विभाग की वेबसाइट पर कोई गतिविधि नहीं है।

बिहार में 15 जिलों में 8 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हो रहे हैं। अखबार बाढ़ और कटाव की खबरें से भरे पड़े हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद बाढ़ का हवाई जायजा लेते हुए दिख रहे हैं। हजारों लोग तटबंध पर रहने को मजबूर हैं। गांव के गांव पानी में घुसा हुआ है। हालांकि सरकार की तरफ से अब तक बाढ़ प्रभावित आबादी के आधिकारिक आंकड़े साझा नहीं किए हैं। खाने पीने का भीषण संकट है। सरकार के द्वारा राहत शिविर या कम्युनिटी किचेन बनाएं जाने के नाम पर 28 समुदायिक रसोई संचालित हैं।

नीतीश सरकार के डाटा यानी राज्य के जल संसाधन विभाग के द्वारा बाढ़ की खबरों और सूचनाओं को प्रदर्शित करने के लिए तैयार वेबपोर्टल फ्लड मैनेजमेंट इंप्रूवमेंट सपोर्ट सिस्टम और आपदा प्रबंधन विभाग के वेबसाइट के अनुसार राज्य के सभी तटबंध सुरक्षित हैं। लेकिन धरातल की कहानी कुछ और ही कह रही हैं।

बृहस्पतिवार (22 जुलाई) के रात करीब एक बजे कोसी नदी का पश्चिम सुरक्षा बांध (सिकरहटा-मझारी बांझ) टूट गया। ये इलाका सुपौल जिले के निर्मली प्रखंड में आता है। जिसके बाद सैकड़ों गांवों में लोग दशहत में हैं।

सुपौल जिले में मौजहा पंचायत के राम प्रसाद साह का घर। फोटो-राहुल झा

मुआवजे और राहत कार्यों का गणित भी जान लीजिए

बिहार में बाढ़ से मुआवजे और राहत कार्यों पर जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े महेंद्र यादव गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, "सालों मरम्मत, नए निर्माण, बाढ़ राहत और बचाव के नाम पर जम कर पैसे का बंदरबांट किया जाता हैं। सुपौल के बीरपुर में कोसी पश्चिमी तटबंध के नेपाल प्रभाग में 15 जून 2020 को 80 करोड़ की लागत से एंटीरोजन कार्य कराया गया था। जिसके बाद 9 लाख क्यूसेक पानी का दबाव झेलने का दावा था लेकिन सिर्फ 2 लाख क्यूसेक से अधिक पानी डिस्चार्ज होने के साथ ही नदी का आक्रामक प्रभाव दिखने लगा है। एस्टिमेट बनता है, लेकिन काम क्या होता है? यदि तटबंधों का मरम्मत और बाढ़ से निपटने की तैयारियां सही ढंग से हो तो वे टूटेंगे कैसे?"

सुपौल के समाजसेवी और कोशी नदी पर विगत 20 सालों से काम कर रहे चंद्रशेखर झा मुआवजे और राहत कार्यों के विषय पर कहते हैं कि, "बिहार में बाढ़ एक घोटाला है।"

बाढ़ पीड़ित परिवारों को आपदा राहत कोष से प्रति परिवार 6000 रुपए की सहायता राशि देने का प्रावधान है। सुपौल जिला के किशनपुर प्रखंड के करीब एक हजार पचास पीड़ित परिवारों को सहायता राशि नहीं मिल पाई है। किशनपुर प्रखंड के नौआबाखर पंचायत वार्ड नं 3 के परसाही निवासी सीता देवी गांव कनेक्शन को बताती है कि, "वर्ष 2017 के बाद से बाढ़ सहायता राशि नहीं मिली। अंचल कार्यालय का चक्कर लगाकर थक गए लेकिन अब तक किसी भी तरह की कोई राशि नहीं दी गई है।"

बिहार के बाढ़ पीड़ितों के दर्द को सुपौल की किशनपुर गांव की रमा देवी (40 वर्ष) के शब्दों से समझा जा सकता है।

"बाबू साहब (सरकारी अधिकारी) लोगों को लगता है कि हम यहां खुशी से रह रहे हैं। सांप और बिच्छू के डर से कभी कभी रात भर जागना पड़ता है तो चारों पानी से घीरे रहने के बावजूद भी पीने को साफ पानी नहीं मिलता हैं।"

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