मध्य प्रदेश खाद संकट: उर्वरक लेने गए किसानों पर कृषि मंत्री के क्षेत्र में मिली लाठियां, यूपी से महंगी डीएपी-एनपीके ले जा रहे किसान

गेहूं, सरसों और आलू समेत रबी की फसलों की बुवाई के लिए किसानों को डीएपी, एनपीए और यूरिया की जररुत है, लेकिन सहकारी समितियों पर खाद के लिए लंबी लाइन हैं। कई जगह हंगामा, लाठीचार्ज हो चुका है। कई जिलों किसानों की माने तो वो यूपी से खाद लेकर जा रहे हैं।

Shyam DangiShyam Dangi   16 Oct 2021 8:03 AM GMT

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मध्य प्रदेश खाद संकट: उर्वरक लेने गए किसानों पर कृषि मंत्री के क्षेत्र में मिली लाठियां, यूपी से महंगी डीएपी-एनपीके ले जा रहे किसान

मध्य प्रदेश के मुरैना में 13 अक्टूबर को खाद के लिए लाइन में लगे किसानों पर हुआ था लाठीचार्ज। फोटो अरेंजमेंट

मध्य प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में रबी सीजन की बुवाई शुरू हो चुकी है, वहीं कुछ इलाकों में जल्द शुरू होने वाली है। इस बीच किसानों के सामने खाद का बड़ा संकट सामने आ गया है। घंटों तपती धूप में खड़ा रहने के बावजूद किसानों को खाद नहीं मिल पा रही है। केंद्रीय कृषि मंत्री के क्षेत्र मुरैना का कैलारस में खाद लेने गए किसानों पर लाठियां भांजने का वीडियो सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हो रहा है।

मध्य प्रदेश में भिंड जिले में भुजपुरा गांव के किसान नीरू सिंह बघेल (35 वर्ष) को इस बार करीब 6-7 एकड़ सरसों बोनी है। लेकिन कहीं खाद नहीं मिली। वो उत्तर प्रदेश के इटावा जिले से खाद लेकर गए हैं।

नीरूं सिंह बताते हैं, " एमपी में कहीं खाद नहीं मिल रही। हम तो अपने गांव से 50 किलोमीटर दूर यूपी से 1400 रुपए बोरी में 30 बोरी डीएपी लाए हैं। 20 रुपए बोरी का किराया अलग से दिया है।"

नीतू के मुताबिक अगस्त में आई भीषण बाढ़ के बाद भिंड, मुरैना इलाके में खरीफ की पूरी फसलें बर्बाद हो गई थीं, ऐसे में पहले से उन्हें आर्थिंक संकट है और अब नई फसल के लिए 1203 वाली यूरिया 1400 में खरीदनी पड़ रही है।

मध्य प्रदेश में खाद संकट को नया नहीं हैं लेकिन इस बाद किसानों को रबी सीजन की बुवाई में ही संकट नजर आ रही है। प्रदेश के 29 जिलों में किसानों को खाद की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। इनमें ग्वालियर, भिंड, मुरैना समेत कई जिलों की स्थिति बेहद ख़राब है। इन जिलों में सहकारी समितियों और मार्कफेड के गोदामों में डीएपी, यूरिया और एनपीके उपलब्ध नहीं हैं। वहीं दूसरी तरफ बाजार में खाद की जमकर कालाबाजारी हो रही है। हालात यह है कि किसानों को घंटों-घंटों धूप खड़े रहने के बावजूद खाद नहीं मिल पा रहा हैं।

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मध्य प्रदेश में खाद की उपलब्धता।

केन्द्रीय मंत्री के संसदीय क्षेत्र में चली लाठियां, किसानों पर भड़के राज्यमंत्री

खाद के लिए किसान सहकारी समितियों के बाद रात-रात भर लाइन लगा रहे हैं। कई जगह भीड़ से निपटने के लिए पुलिस बल का भी प्रयोग कर रही है।

सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें खाद के लिए लाइन लगा खड़े किसानों पर पुलिस बर्बरता से लाठी चला रही है। यह वीडियो यह वीडियो मुरैना के कैलारस है। मुरैना केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर का संसदीय क्षेत्र हैं।

कांग्रेस ने वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है, '' खाद मांगने पर मध्यप्रदेश में किसानों को लाठियां मिल रही है, भाजपा का चरित्र पूरी तरह से किसान विरोधी है। देश के अन्नदाता ने आजाद भारत में कभी ऐसी क्रूरता का सामना नहीं किया।''

खाद संकट पर मुख्यमंत्री बोले- कालाबाजारी पर लगेगी रासुका

खाद की समस्या को देखते हुए गुरुवार को सीएम शिवराज सिंह ने प्रदेश और जिलों के अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। इस बैठक में उन्होंने कलेक्टर को निर्देश दिए कि किसानों को खाद आसानी से मिले और कालाबाजारी करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध है। अक्टूबर महीने के लिए 2 लाख 12 हजार मीट्रिक टन खाद का आवंटन मंजूर हो गया है। डीएपी की जगह एनपीके के वैकल्पिक प्रयोग पर उन्होंने कहा कि डीएपी की तरह ही एनपीके खाद भी प्रभावी है।

प्रदेश के गृह मंत्री ड़ॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि खाद की कालाबाजारी करने वालों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई होगी। सरकार ने एक टीम भिंड और मुरैना भेजी है।

ग्वालियर-चंबल का किसान सड़कों पर

ग्वालियर-चम्बल इलाके में खाद की किल्लत के बाद किसानों में काफी नाराजगी है। यहाँ आये दिन आंदोलन और खाद की बोरियों के लिए झड़पें होने की ख़बरें आ रही है। इस वजह से ग्वालियर और चंबल क्षेत्र का किसान सड़कों उतर आया है। मुरैना के सबलगढ़ में किसानों ने हाइवे जाम कर दिया। वहीं कुछ जगहों पर पुलिस के पहरे में खाद बांटा जा रही है। खाद की किल्लत को लेकर जब गांव कनेक्शन ने मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) के ग्वालियर संभाग के मंडल प्रबंधक रित्विक टेंभरे से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया।

वहीं प्रदेश के कृषि मंत्री ने कमल पटेल ने कहा कि मुरैना में पर्याप्त खाद उपलब्ध थी लेकिन कांग्रेस की डिफॉल्टर समितियों ने आकर व्यवस्था को बिगाड़ा है।

अग्रिम भंडारण में करने असफल सरकार

प्रदेश में बढ़ती खाद की किल्लत पर मध्य प्रदेश किसान कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष केदार शंकर सिरोही ने कहा कि रबी सीजन में प्रदेश में 20 लाख मीट्रिक टन यूरिया, 9-10 लाख मीट्रिक टन डीएपी और 3 लाख मीट्रिक टन एनपीके खाद की जरूरत पड़ती है।

सिरोही के मुताबिक हर साल खरीफ सीजन में खाद का अग्रिम भंडारण शुरू हो जाता है लेकिन इस वर्ष खाद का अग्रिम भंडारण नहीं हो पाया। इस वजह से सहकारी समितियों और मार्कफेड के गोदामों में पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध नहीं है।

उन्होंने गांव कनेक्शन से आगे कहा, "प्रदेश में 4 लाख मीट्रिक टन यूरिया, 2 लाख मीट्रिक टन डीएपी की कमी है। रबी सीजन में खाद की आपूर्ति के लिए तकरीबन 1000 रैक (मालगाड़ी की रैक) की जरूरत पड़ती है। प्रदेश में यूरिया की 650 रैक, डीएपी की 300 से 350 रैक से पहुंचती है। रबी सीजन 45 दिनों के सीजन में 20-22 रैक प्रतिदिन आना चाहिए। लेकिन इस समय प्रदेश में 5-7 रैक के जरिये ही खाद आ पा रहा है। इस तरह 12-13 रैक का घाटा हो रहा है। यही वजह हैं कि प्रदेश में खाद का बड़ा संकट है।"

मध्य प्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ की वेबसाइट के मुताबिक, सरकार ने साल 2019-20 में रबी सीजन के लिए यूरिया 10.99 लाख मीट्रिक टन, डीएपी 2.80 लाख मीट्रिक टन, एनपीके 1.08 लाख मीट्रिक टन की सरकारी बिक्री हुई थी। जबकि इसकी तुलना में सरकार ने साल 2020-21 में रबी सीजन के लिए यूरिया 7.81 लाख मीट्रिक टन, डीएपी 2.49 लाख मीट्रिक टन, एनपीके 0.53 लाख मीट्रिक टन खाद का ही विक्रय किया।

इंदौर जिले की देपालपुर तहहसील के गाँव रुनझी के किसान बालकृष्ण पाटीदार (50 वर्ष) ने बताया के पास 30 एकड़ जमीन है, जिसमें से वो 15 एकड़ में आलू लगा रहे हैं। लेकिन खाद का संकट सामने है।

पाटीदार कहते हैं, "15 एकड़ में आलू की बुवाई शुरु हो चुकी है। लेकिन डीएपी, एनपीके और यूरिया पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पा रहा है। प्रति बीघा जहां आलू की खेती के लिए डीएपी की 2 बोरियों की जरुरत पड़ती है। लेकिन हमें सोसायटी में मुश्किल से एक बोरी प्रति बीघा की मिल पा रही है।"

इस संबंध में मार्कफेड के इंदौर संभाग के मण्डल प्रबंधक अर्पित तिवारी ने गांव कनेक्शन से कहा, " इंदौर, उज्जैन, देवास, खंडवा और खरगोन जिलों में खाद की कोई समस्या नहीं हैं। ग्वालियर संभाग में किसानों को थोड़ी परेशानी हुई है।"

रबी सीजन में खाद संकट से जूझ रहे किसान, बुवाई पर असर।

भ्रष्टाचार और कालाबाजारी वजह तो नहीं?

प्रदेश में सबसे खाद की सबसे ज्यादा किल्लत ग्वालियर, भिंड और मुरैना क्षेत्र में नज़र आ रही है। इस वजह से यहां किसान सड़कों पर उतर आया है। यहां मार्कफेड के गोदामों से किसानों को खाद नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसानों में आक्रोश है।

केदार सिरोही ने प्रदेश की शिवराज सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार सरकारी गोदामों तक खाद पहुंचाने में नाकाम रही। इसकी सबसे बड़ी वजह हैं बढ़ता भ्रष्टाचार। बड़े व्यापारियों और कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए खाद की लैबों में ठेके दिए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा, "बाबू से मंत्री तक खाद की कालाबाजारी में लिप्त है। ऐसे में खुद को किसान पुत्र कहने वाले मुख्यमंत्री को किसानों की पीड़ा को सुनना चाहिए।"

किसान स्वराज संगठन के अध्यक्ष भगवान मीणा भी खाद की किल्लत को लेकर सरकार को घेरते हैं। उन्होंने कहा, "सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों को खाद उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। लेकिन बाजार में धड़ल्ले से खाद की कालाबाजारी हो रही है। किसानों से जबरन खाद के ज्यादा दाम वसूले जा रहे हैं। 260 रूपए में मिलने वाली यूरिया की बोरी 320-350 रूपए में मिल रही है। इसी तरह डीएपी 1210 की बोरी 1500 में बेचीं जा रही है।"

मीणा ने आगे कहा, "खाद सिर्फ महंगी ही नहीं बल्कि उसके साथ किसानों को दूसरी खादें और बीज उपचारित करने वाली दवाइयां खरीदयां खरीदने को बाध्य किया जा रहा है। जिससे खेती की लागत बढ़ रही है।"

भिंड के गोरमी कस्बे से खाद की कालाबाजारी कर रहे हैं एक व्यापारी सनी उर्फ़ संजय जैन पर आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत और उर्वरक नियंत्रण आदेश के तहत मामला दर्ज किया है। व्यापारी 1210 की डीएपी की बोरी 1500 रुपये में बेच रहा था। खाद की कालाबाजारी पर मध्य प्रदेश कांग्रेस ने शिवराज सरकार की जमकर आलोचना की है।

कांग्रेस ने अपने ट्विटर पर हैंडल अकॉउंट से एक ख़बर शेयर करते हुए कहा कि ''इधर किसान खाद के लिये भटक रहे, उधर माफिया खाद की कालाबाज़ारी में लगे।''

डीएपी के वैकल्पिक तौर पर एनपीके का उपयोग

इंदौर में ही देपालपुर के पाड़ल्या गांव के किसान हर्मेन्द्र पटेल ने बताया कि किसानों को डीएपी की जगह एनपीके (12:32:16) खाद दिया जा रहा है। जो डीएपी की तुलना में महंगा होती है। वहीं केदार सिरोही का कहना हैं कि डीएपी (18:46:0) में 18 फीसदी नाइट्रोजन, 46 फीसदी फॉस्फोरस होता है। जबकि एनपीके में 12 फीसदी नाइट्रोजन, 32 प्रतिशत फास्फोरस और 16 प्रतिशत पोटाश होता है। फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए फास्फोरस बेहद आवश्यक पोषक तत्व है, ऐसे में एनपीके की तुलना में डीएपी में अधिक फास्फोरस होता है। जिससे अच्छी पैदावार होती है। लेकिन किसानों को जबरन डीएपी की जगह एनपीके डालने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

डीएपी की जगह एनपीके देने पर मार्कफेड के इंदौर संभाग के मण्डल प्रबंधक अर्पित तिवारी ने कहा, "यहां जमीन में पोटाश की काफी कमी है। इसकी पूर्ति के लिए किसानों को एनपीके दिया जा रहा है, जिसमें 16 फीसदी पोटाश होता है।"

इन इलाकों में शुरू होने वाली है बोवनी

मध्य प्रदेश के मालवा, निमाड़, चंबल और बुंदेलखंड (कुछ हिस्सों में) आदि इलाकों में रबी सीजन की बुवाई या तो शुरू हो चुकी है या होने वाली है। जो कि नवंबर के अंत तक चलेगी। इंदौर के आसपास के इलाकों में किसानों ने आलू, मटर और दूसरी फसलों की बोवनी शुरू कर दी है।

वहीं कुछ हिस्सों में गेहूं, चना, प्याज और लहसुन जल्द लगाई जाएगी। जबकि ग्वालियर और चम्बल क्षेत्र में सरसों तथा अन्य फसलें की बुवाई शुरू होने वाली है। प्रदेश के 29 जिलों में रबी सीजन की फसलें उगाई जाती है, इनमें इंदौर, उज्जैन, हरदा, देवास, शाजापुर, होशंगाबाद, राजगढ़, आगर मालवा, भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, श्योपुर, गुना, अशोक नगर, विदिशा, सागर, भोपाल, खंडवा, बुरहानपुर, बड़वानी, धार जिलें शामिल हैं। गौरतलब हैं कि रबी सीजन में प्रदेश में गेहूं, चना, आलू, मटर, प्याज, लहसुन आदि फसलों की खेती होती है।

गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि खाद की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ सरकार सख्त है। उन्होंने किसानों से भी अपील की है कि खाद का अधिक भंडारण न करें। प्रदेश में खाद की नई रैक जल्द आएगी। जिससे किसानों को हो रही परेशानी दूर हो जाएगी।


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