महाराष्ट्र: लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूरों के सामने खाने का संकट, कई लोगों के पास ट्रेन का टिकट लेने तक के पैसे नहीं

महाराष्ट्र में प्रवासी मजदूर एक बार फिर खुद को फंसता देख रहे हैं, जैसे वे पिछले साल लगे लॉकडाउन में फंसे थे। मौजूदा समय में प्रदेश में चल रहे मिनी लॉकडाउन के बीच वे बिना नौकरी, आश्रय और पर्याप्त भोजन के असहाय और हताश महसूस कर रहे हैं।

Kavitha IyerKavitha Iyer   23 April 2021 11:27 AM GMT

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महाराष्ट्र: लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूरों के सामने खाने का संकट, कई लोगों के पास ट्रेन का टिकट लेने तक के पैसे नहीं

मुंबई के लोकमान्य तिलक रेलवे स्टेशन के बाहर लगी भीड़ में सैकड़ों ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास घर वापसी के लिए टिकट खरीदने तक के पैसे नहीं। फोटो- कविता अय्यर

मुंबई ( महाराष्ट्र)। अप्रैल की गर्मी में एक पेड़ से अपनी बैसाखी को टिकाकर उसकी छांव में संजय शर्मा बैठे हुए थे और अपने घर जाने के लिए ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। थके और पसीने से तर चेहरा लिए संजय ने गांव कनेक्शन से कहा, "मैं यहां यह देखने के लिए आया था कि ट्रेन मिलने की क्या उम्मीद है।" संजय का घर उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के एक गांव में है, जो मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन से करीब 1500 किमी दूर है। कोरोना के चलते महाराष्ट्र में लगे लॉकडाउन की वजह से वे यहां फंसे हैं।

"प्लास्टिक बैग में मसाला पैक कर उसे सील करने वाली एक फैक्ट्री में काम करता था, लेकिन मेरी नौकरी चली गई।" संजय ने आगे बताया। वह 6,000 रुपये महीने कमा रहे थे, जो उनकी पत्नी और स्कूल जाने वाली दो बेटियों के लिए आय का जरिया था। उन्होंने कहा, "मेरे पास ट्रेन का टिकट खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। मुझे उधार लेना होगा या अगर कुछ काम मिले तो रुक सकता हूं। मैं नहीं जानता कि क्या बेहतर है।" वह परेशान थे और कुछ नहीं सोच पा रहे थे। ये स्टोरी अंग्रेजी में यहां पढ़ें

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अपने गांवों से दूर मुंबई में काम करने वाले प्रवासी कामगार और मजदूर एक बार फिर पिछले साल के लॉकडाउन के ना भूलने वाले खौफ और अनिश्चितता के साए में हैं। महाराष्ट्र सरकार की ओर से 14 अप्रैल से 1 मई तक एक मिनी लॉकडाउन लगाए जाने के बाद से शहर के रेलवे स्टेशनों में काफी भीड़ देख रही है। मजदूर इसलिए भी ज्यादा परेशान हैं क्योंकि चर्चा है कि सरकार चाहती है कि लॉकडाउन को और आगे बढ़ाया जाए।

कोई काम और आश्रय नहीं होने से प्रवासी कामगार घर लौटने को बैचेन हैं। उन्हें डर है कि ट्रेन सेवाओं को बंद किया जा सकता है, जैसे पिछले साल हुआ था। वहीं रेलवे ने उत्तर और पूर्व के राज्यों में जाने के लिए पहले से मौजूद 74 'समर स्पेशल' की सुविधा के अलावा मई के पहले सप्ताह तक 154 ट्रेनें और चलाएगा, जो मुंबई और पुणे से चलेंगी। हालांकि स्पष्ट रूप से, यह पर्याप्त नहीं है।

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"मैंने इससे बदतर साल नहीं देखा है।" घनश्याम यादव ने गांव कनेक्शन को बताया। 65 साल के बुजुर्ग को मुंबई में बेरोजगार हुए पांच महीने हो चुके हैं और अब उन पर तनाव बढ़ने लगा है। मुंबई के उपनगरीय क्षेत्र बांद्रा में स्थित लाल मिट्टी झुग्गी बस्ती में अपने छोटे से घर के बाहर खड़े यादव ने कहा, "गांव वापस जाने के लिए कोई कन्फर्म टिकट उपलब्ध नहीं है।"

यादव पांच साल तक एक बैंक के बाहर गार्ड थे। जब पिछले साल (2020) महामारी शुरू तो उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में अपने गांव गमाहिरा जाने के लिए मुंबई छोड़ने का फैसला किया था। वह तभी लौटे जब पिछले साल (2020) अक्टूबर में मुंबई में बारिश कम हो गई और कोरोना के केस भी कम होने लगे थे।

मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिलन से पलायन करने वालों में ज्यादातर लोग यूपी, बिहार, झारखंड आदि राज्यों के हैं। फोटो- कविता अय्यर

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घनश्याम यादव जब लौटे तो उनकी गार्ड की नौकरी चली गई थी। यादव ने कहा, "कंपनी ने किसी और को काम पर रख लिया था।" तब से वे काम तलाशने की कोशिश कर रहे हैं और इन हालात में जब एक मिनी लॉकडाउन चल रहा है, जो पूर्ण लॉकडाउन में बदल सकता है, उन्हें बहुत कम उम्मीद है। इससे वह परेशान थे कि उनके परिवार को पूरी तरह से अपने बेटे की कमाई पर निर्भर रहना पड़ा, जो एक सब्जी विक्रेता है। यादव परिवार दो एकड़ जमीन का मालिक है, लेकिन जिंदा रहने के लिए इसकी उपज भी कम है।

अंगमेहंती काष्टकारी संघर्ष समिति के चंदन कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, " यह बेहद निराशाजनक है कि प्रवासी कामगारों को दोबारा बेरोजगार होना पड़ रहा है।" यह समिति महाराष्ट्र के पुणे और पिंपरी-चिंचवाड़ औद्योगिक केंद्र में रहने वाले विभिन्न राज्यों के श्रमिकों के लिए साथ काम करती है। उन्होंने कहा, "इस बार फर्क सिर्फ इतना है कि ट्रेनें चल रही हैं और रेलवे स्टेशनों के बाहर अव्यवस्था है क्योंकि लोग अपने गांवों को लौटने की कोशिश कर रहे हैं।"

कितना काम आएगा सरकार का राहत पैकेज

13 अप्रैल को राज्य में मिनी लॉकडाउन की घोषणा करते हुए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 5,476 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की थी। इसमें विभिन्न श्रेणियों के लाभार्थियों जैसे महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं, विकलांगों, ऑटो चालकों और आदिवासी समुदायों को वित्तीय सहायता देना शामिल है।

इस पैकेज के तहत करीब 70 मिलियन लाभार्थियों को एक माह तक 3 किलो गेहूं और 2 किलो चावल निशुल्क दिया जाना है। इसके अलावा राज्य सरकार की योजना 'शिव भूमिपूजन थाली' के तहत 200,000 थाली हर दिन मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएगी और संजय गांधी निराधार योजना, श्रवणबल योजना और केंद्र प्रायोजित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था सेवानिवृत्ति योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा सेवानिवृत्ति योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता सेवानिवृत्ति योजना के तहत 3.5 मिलियन लाभार्थियों को 1,000 रुपये दिए जाएंगे।

इसके अलावा, 1.2 मिलियन पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को महाराष्ट्र भवन और अन्य कामगार कल्याण बोर्ड से 1,500 रुपये मिलेंगे। ठाकरे सरकार ने पंजीकृत घरेलू कामगारों, ऑटो रिक्शा चालकों और फेरीवालों के लिए भी सहायता की घोषणा की है।

मुंबई में ट्रेन के इंतजार में प्रवासी।

कोरोना की लहर के साथ खाने का संकट

मुख्यमंत्री के राहत पैकेज के लेकर चंदन कुमार ने कहा, "राशन केवल पंजीकृत कर्मियों के लिए था। उन सभी लोगों के बारे में क्या, जो पंजीकृत नहीं थे? " उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, "महाराष्ट्र में प्रवासी कामगारों को पंजीकृत करने के हमारे बार-बार किए गए आग्रह के बावजूद ऐसा नहीं किया गया। इसलिए मजदूर एक बार फिर बिना काम के और बिना मजदूरी के हैं।" उन्होंने कहा, जो कुछ भी जरूरी था, वह सरकार की ओर से किया गया कि कोई भी प्रवासी कामगार न जाए और हर एक को राशन मिले।

पिछले साल अप्रैल में राज्य ने फंसे हुए प्रवासी कामगारों के लिए आश्रय स्थल स्थापित किए थे। 30 अप्रैल तक 4871 ऐसे आश्रयों में 75 हजार से अधिक लोग इकट्ठे हुए। कार्यकर्ता पूछ रहे हैं कि इन आश्रयों को फिर से शुरू किया जाए, क्योंकि किराया न दे पाने वाले श्रमिकों की बढ़ती जा रही है।

इस बीच ठाणे जिले के कलवा में दर्जी का काम करने वाले असलम एक संगठन के कार्यकर्ताओं से राशन के लिए पूछने जा रहे हैं, जिससे उनके परिवार के 6 सदस्यों का गुजारा तब तक हो जाए, जब तक उन्हें घर जाने का टिकट नहीं मिल जाता। उनका घर मुंबई से 1800 किमी दूर झारखंड के गिरिडीह में है। वह बच्चों के कपड़े बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते हैं, जो लगभग दो सप्ताह के लिए बंद है और उन्हें रुपये भी नहीं मिले हैं।

उन्होंने कहा, " मेरे चार बच्चे हैं, यह मुश्किल समय है।" ट्रेन का टिकट खरीदने के लिए पैसों का इंतजाम करना मुश्किल होने वाला था, लेकिन अंसारी ने कहा कि अगर उन्हें कोई विकल्प नहीं मिला तो वह वापस घर चले जाएंगे।

देसमा टी भाग्यशाली थी कि वह और उनके पति तेलंगाना के खम्मम के घर वापस लौट सकते हैं। उनके पति महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कंस्ट्रक्शन मजदूर के तौर पर काम करते थे, लेकिन वे यहां से निकलने में कामयाब रहे। उन्होंने गाव कनेक्शन से कहा, "हमारे पास कुछ बचत थी, इसलिए हम एक गाड़ी लेकर तुरंत घर आ गए। हम बिना काम या आय के फंसे होने के चलते कुछ महीनों का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे।"

उन प्रवासी मजदूरों के लिए जो शहरों में फंसे हुए हैं, उनकी जिंदगी संघर्ष बन गई है। औरंगाबाद में फैक्ट्री के कर्मचारी और यूनियन मेंबर गजानन खंडारे ने गांव कनेक्शन को बताया, "जो लोग सेवा से जुड़े जरूरी क्षेत्रों में काम करते हैं, उन्हें खाना खरीदने में दिक्कत हो रही है, क्योंकि दोपहर 1 बजे दुकानें बंद की जा रही हैं। उन्होंने कहा, "मैं एक ऐसे समूह से मिला जो आज बिहार के लिए रवाना हो गया। वापस लौट रहे प्रवासी कामगारों को चुनते समय व्यावहारिक समस्याएं सामने आ रही हैं।"

कार्यकर्ताओं और ट्रेड यूनियनिस्ट ने महाराष्ट्र में गहराते संकट की चेतावनी दी क्योंकि यह स्पष्ट हो जाता है कि राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए मौजूदा सहायता-पैकेज बुरी तरह अपर्याप्त हैं। जो लोग अपने घर और अपनों से दूर हैं वे इस महामारी, आजीविका की हानि, अनिश्चितता से डरे हुए है।

यादव को आश्चर्य होगा, अगर वह अपने गांव गमाहिरा को फिर से देखेंगे। उन्होंने कहा, "मैंने अपने एक बेटे को दुर्घटना में खोया है, लेकिन पहले कभी ऐसी लाचारी और हताशा महसूस नहीं की।"

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