मां बनने की खुशियों पर ग्रहण हैं प्रेग्‍नेंसी कॉम्‍प्लीकेशंस, हिम्‍मत और हौसले से तय करें ये सफर

आपका फ्लूड कम हो गया है, समय से पहले डिलीवरी करानी होगी... बच्चा और मां दोनों की जान को खतरा हो सकता है... आपके बच्चे का मूवमेंट नहीं हो रहा है.. बीपी बहुत ज्यादा हुआ तो डिलीवरी मुश्किल हो जाएगी, दिन रात उल्टियां हो रही हैं... ऐसी तमाम मुश्किलें (pregnancy complications) हजारों महिलाएं प्रेंगनेंसी के दौरान झेलती हैं। डियर मां की पांचवीं किस्त में ऐसे ही कुछ मुश्किलें और उसने बचने के तरीकों पर चर्चा है

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मां बनने की खुशियों पर ग्रहण हैं प्रेग्‍नेंसी कॉम्‍प्लीकेशंस, हिम्‍मत और हौसले से तय करें ये सफर

प्रेग्‍नेंसी कॉम्‍प्लीकेशन : वो शब्‍द जिसे सुनकर दहल जाता है दिल, मां बनने की खुशी चुटकियों में हो जाती है छूमंतर, पढ़िए डियर मां पार्ट-5 

ये मेरी पहली प्रेंगनेंसी थी, तमाम मुश्किलें (pregnancy complications) आईं। कई बार बीमार हुई, अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। शरीर के साथ ही मानसिक रुप से भी बहुत परेशान हुई। मॉर्निंग सिकनेस का जो सिलसला पांच महीने चला, उससे पार पाना ही काफी मुश्किल रहा।

उसके बाद अचानक मेरा ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल लो हो जाता था। मैं चक्कर खाकर गिरने लगी। डॉक्टर से बात की और डॉक्टर ने ड्रिप चढ़ाने के लिए कहा। दो दिन लगातार मुझे ड्रिप चढ़ाई गई। उसके बाद भी बीपी और शुगर सामान्य होने में लगभग एक महीना लगा।

मैं प्रेगनेंसी के सातवें महीने को पार कर रही थी। उस वक्त डॉक्टर एक अल्ट्रासाउंड (pregnancy ultrasound) करवाते हैं। मेरा भी हुआ और उस अल्ट्रासाउंड में पहली बार मैंने ध्यान से अपने बच्चे की पूरी छवि देखी। उसका हाथ माथे की तरफ था, जैसे सलाम कर रहा हो।

अल्ट्रासाउंड टेबल पर ही आंखों से जो आंसू निकले वो कितनी ही देर तक उसकी उस छवि को याद करके बहते रहे। मगर खुशी के उन आंसुओं को गम में बदल दिया अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट ने। बताया गया कि फ्लूड लेवल ( बहुत कम है और आपको तुरंत अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए।

हम भागे-भागे डॉक्टर के पास पहुंचे, डॉक्टर ने रिपोर्ट देखी और उसके बाद जो भी हमें बताया गया, वो दिलो-दिमाग को सुन्न कर देने वाला था। पहली प्रेगनेंसी थी, किसी भी चीज के बारे में कुछ पता नहीं था और जब बात बच्चे की सेहत की आए, तो घबराहट के मारे दिल का क्या हाल होता है, ये मां-बाप ही समझ सकते हैं।

डॉक्टर के वो शब्द मुझे आज भी याद हैं- ''फ्लूड लेवल बहुत कम है, ऐसे में बच्चे को ज्यादा दिन तक पेट में नहीं रखा जा सकता। बच्चा इस फ्लूड के जरिए ही सांस लेता है। ये फ्लूड ना मिलने से कुछ भी हो सकता है।"

उन्होंने आगे कहा, "अब आपको तुरंत एडमिट होना चाहिए। एक हफ्ते बाद दोबारा अल्ट्रासाउंड करवाके देखेंगे। अगर फ्लूड लेवल कम ही रहा, तो आपको डिलिवरी समय से पहले ही करवानी पड़ेगी।''

वो त्योहारों के दिन थे। कुछ ही दिन बाद दीवाली थी। लोग कोविड के डिप्रेशन से निकलर त्योहार सेलिब्रेट करने के बारे में सोच रहे थे। इस अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से पहले मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी। मगर उसके बाद सब कुछ बदल चुका था। मैं हॉस्पिटल में एडमिट हो गई। छह घंटे तक मुझे दवाई चढ़ाई गई। फिर दो दिन इसी तरह एडमिट होकर दवाई चढ़वाई गई।

अल्ट्रासाउंड एक हफ्ते बाद होना था। इसी बीच दीवाली थी। मगर दीवाली के दीये जलाते वक्त, मैं किस तरह भगवान से उम्मीद की रोशनी मांग रही थी, मैं ही जानती हूं। हर पल घबराहट में बीत रहा था। डॉक्टर ने कहा था बच्चे की मूवमेंट का बहुत ख्याल रखना है।

जब भी आशंका हो कि बहुत देर से मूवमेंट नहीं हुई कुछ मीठा खाकर देखो या ठंडा पीओ। तब भी मूवमेंट ना हो, तो बिना देर किए हॉस्पिटल आओ। हर वक्त, हर पल ध्यान मूवमेंट पर ही लगा रहता। डर से दिमाग इस कदर घिर चुका था कि होती हुई मूवमेंट भी, ना होती हुई सी लगती थी।

किसी तरह वो एक हफ्ता बीता। दोबारा अल्ट्रासाउंड हुआ। जो फ्लूड लेवल 7 पर था, अब 10 पर आ गया था। उम्मीद की रोशनी मिल गई थी, मगर डॉक्टर ने कहा मूवमेंट्स का ध्यान अब भी रखना है। अब अगर और कोई दिक्कत नहीं होती है तो ड्यू डेट (डिलीवरी की संभावित तारीख) तक प्रेगनेंसी को रख सकते हैं।

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मेरी ड्यू डेट 22 दिसंबर थी और मैंने 18 दिसंबर को एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। हम नॉर्मल डिलीवरी चाहते थे, लेकिन फ्लूड लेवल कम होना एक बड़ा जोखिम भरा मसला होता है, इसके चलते सिजेरियन से ही डिलीवरी करवानी पड़ी।

ऐसे और भी कई मामले होते हैं, जब प्रेगनेंसी की खुशी कॉम्पलिकेशंस में घिरकर छूमंतर होने लगती है। फ्लू़ड लेवल कम होने पर ऐसे कई मामलों की जानकारी मुझे हुई, जब अपने और बच्चे दोनों की सेहत बनाए रखना एक गर्भवती महिला के लिए बड़ी चुनौती बन जाता है।

दिल्ली-एनसीआर में बीते 22 सालों से बतौर गायनेकोलॉजिस्ट अपने सेवाएं दे रहीं डॉ. अनुपम सिरोही बताती हैं, ' आजकल लड़कियां मां बनने से पहले पूरी तैयारी कर लेना चाहती हैं। कॉम्पलिकेशंस का डर भी इसकी एक वजह है। इसलिए गर्भवती होने से पहले ही महिलाएं सही डाइट लेना, वजन कम करना, एक्सरसाइज करना वगैरह शुरू कर देती हैं। समय बदल गया है, इसलिए हमारे पास अब महिलाएं कंसीव करने से पहले भी सलाह लेने आती हैं, ताकि बाद में कोई परेशानी आने का खतरा कम हो सके। ये सही भी है, क्योंकि एक सेहतमंद मां ही एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है।'

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सही तैयारी और सब बातों का ख्याल रखने के बाद भी जब प्रेगनेंसी में कॉम्पिलकेशंस की बात सामने आती है, तो कैसा लगता है, ये मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं। ये मैंने खुद अनुभव किया है और आज उन डर भरे दिनों को लिख पाना उतना ही मुश्किल है, जितना उन दिनों को बिता पाना था। आप खुद को कोसने लगते हैं कि कहीं हमारी किसी गलती की वजह से तो ऐसा नहीं हो रहा। लेकिन इस सबमें अच्छी बात ये होती है कि समय रहते पता चलने पर कॉम्पिलकेशंस का उपचार किया जा सकता है। प्रेगनेंसी से जुड़ी कुछ कॉम्पलिकेशंस इस तरह हैं-

हाइपरएमेसिस ग्रेविडेरम

नाम सुनने में जितना मुश्किल है, इस समस्या का सामना करना भी उतना ही कठिन है। ज्यादातर गर्भवती महिलाओं को मॉर्निंग सिकनेस की समस्या होती है। लेकिन जिन्हें ये समस्या सामान्य से हजार गुना ज्यादा होती है, उन्हें हाइपरएमेसिस ग्रेविडेरम कहा जाता है। इसमें गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ने की बजाय कम होने लगता है।

ये सुनना ही अपने आप में खतरनाक लगता है कि प्रेगनेंसी में वजन कम हो रहा है। डॉक्टरों की मानें, तो सीधे तौर पर इसकी किसी वजह के बारे में पता नहीं चल पाया है। इस स्थिति में बार-बार उल्टी होने से जरूरी पोषक तत्व आपके शरीर और बच्चे तक नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे में सबसे जरूरी है कि आप सही उपचार लें और अपनी डाइट के साथ लापरवाही ना बरतें। कई मामलों में कमजोरी बढ़ने की वजह से एडमिट भी होना पड़ सकता है।

गेस्टेशनल डायबिटीज

प्रेगनेंसी के दौरान जो डायबिटीज की समस्या होती है, उसे गेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है। इसका सबसे बड़ा साइड इफेक्ट ये होता है कि इसकी वजह से बच्चे का आकार सामान्य से काफी अधिक बड़ा हो सकता है। इसे मैक्रोसोमिया कहा जाता है। ऐसे में नॉर्मल डिलिवरी की संभावना भी कम हो जाती है। आमतौर पर 24 से 28वें हफ्ते के दौरान डॉक्टर इसकी जांच करते हैं। जिन महिलाओं का वजन सामान्य से अधिक होता है या जिन्हें पहले से डायबिटीज की समस्या होती है, उन्हें इसका खतरा ज्यादा होता है। ऐसे में डॉक्टर सलाह देते हैं कि गर्भवती होने से पहले वजन कम करने की सलाह देते हैं। अक्सर डिलीवरी के बाद इस तरह की डायबिटीज ठीक हो जाती है।

प्रीएक्लेम्पसिया

ये एक सिंड्रोम है, जिसमें सूजन, उच्च रक्तचाप, तेज सिर दर्द और रक्त के स्तर में बदलाव हो सकते हैं, जो किडनी, लिवर, मस्तिष्क औऱ यूरीन प्रोटीन को प्रभावित कर सकती है। इससे पी़ड़ित महिलाओं को सही उपचार की जरूरत होती है। सही उपचार से स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया जा सकता है।

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परिचय- लेखिका, दिल्ली में रहने वाली पत्रकार हैं। उपरोक्त उनके निजी विचार और अनुभव हैं

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