महाराष्ट्र: कोरोना के कारण दूसरे साल भी बंद हैं बैल बाजार, खरीफ बुवाई में हो सकती है परेशानी

किसानों के लिए समय सबसे महत्वपूर्ण होता है, जब खरीफ फसलों के लिए बुवाई के लिए बैल खरीदते हैं, लेकिन कोराना के चलते महाराष्ट्र में लगे लॉकडाउन ने इनकी मुसीबत बढ़ा दी है, क्योंकि लॉकडाउन के चलते पशु बाजार बंद हो गए हैं। जबकि किसानों के लिए अप्रैल-मई महीने सबसे अहम होते हैं।

Shirish KhareShirish Khare   26 April 2021 11:33 AM GMT

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महाराष्ट्र: कोरोना के कारण दूसरे साल भी बंद हैं बैल बाजार, खरीफ बुवाई में हो सकती है परेशानी

बैल बाजार खास तौर से महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ अंचल में पारंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। (फाइल फोटो साभार: विशाल गोरपडे)

औरंगाबाद/यवतमाल (महाराष्ट्र)। "कोरोना के चलते खरीफ की बुवाई से ठीक पहले हर रविवार पैठण (औरंगाबाद) में लगने वाला बैलों का बाजार बंद हो गया है। यह समय होता है जब कई सारे किसानों को अपने खेतों में बुवाई के लिए ताकतवर बैल चाहिए होते हैं, जबकि बहुत सारे किसान मोटी रकम पर अपने बैल वगैरह बाजार में बेचकर साहूकारों से लिया कर्ज भी चुकाते हैं। इसी तरह, कई किसान जानवरों को बेचकर खेती के लिए बीज और खाद खरीदते हैं, लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह दूसरा साल है जब बैल बाजार बंद होने से किसान परेशान हैं।" ऐसा कहना है पाचोड गांव के पैंतालीस वर्षीय पशुपालक अफसर पटेल का।

अफसर पटेल के साथ ही दूसरे किसानों की भी यही परेशानी है। ऐसे में कई व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए पशुओं की खरीद शुरू हुई है, लेकिन उसकी अलग परेशानी है। किसानों के अनुसार पशु खरीदी-बिक्री से जुड़े दलालों ने मोबाइल पर व्हाट्सएप ऐप के जरिए पशुपालकों और किसानों का एक समूह बनाया है, जिसमें आठ-दस गांवों के कई लोग जुड़े हुए हैं और ये व्हाट्सएप समूह में तस्वीरों और बातचीत करके जानवरों के लिए सौदे कर रहे हैं। हालांकि, ऑनलाइन सौदेबाजी के मामले में पशुपालक और किसान अभ्यस्त नहीं हैं और उन्हें व्हाट्सएप पर यह समझना मुश्किल हो रहा है कि किस जानवर को कितने में खरीदा या बेचा जाए। दूसरी बात यह है कि व्हाट्सएप पर दूध देने वाली गायों को खरीदने से जुड़े ही ज्यादा प्रस्ताव आ रहे हैं।

पिछले साल भी लॉकडाउन के चलते इस समय पशु बाजार नहीं लग पाया था, इस बार भी वही हाल है। फाइल फोटो साभार: मार्केट गली (फेसबुक)

व्हाट्सएप पर सौदेबाजी सही नहीं

इस मामले में पाचोड गांव के ही किसान बालासाहेब नेहाले (50 वर्ष) का अनुभव ठीक नहीं रहा है। बालासाहेब बताते हैं, "हमें बारिश से पहले हर हाल में बुवाई करनी ही है और इसके लिए स्वस्थ बैलों की जोड़ी चाहिए, मगर व्हाट्सएप पर रेट ज्यादा समझ आ रहे हैं। बाजार में आमने-सामने बैलों सहित उनके मालिक भी होते हैं, इसलिए देख-समझकर और आपस में खूब बात करके सीधे बिना दलाल के सौदा करना सही रहता है। व्हाट्सएप पर तो पचास हजार रुपए की एक जोड़ी (बैल) के लिए दलाल छप्पन हजार में सौदा कराना चाहता है। लेकिन, मालूम नहीं चल रहा है कि बैलों की जोड़ी पचास हजार लायक भी है या नहीं। फोटो देखकर तो विश्वास नहीं किया जा सकता है।"

औरंगाबाद के पैठण में लगने वाला बैल बाजार मराठवाड़ा की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह बाजार न सिर्फ पशुपालक और किसान बल्कि मजदूर और व्यापारियों के लिए भी अहम होता है। इस दौरान बाजार में बैलों के अलावा गाय, भैंस और बकरियां भी खरीदी और बेची जाती हैं। बैल बाजार में खेती से जुड़े हल आदि अन्य सामान और टोकरी जैसे उत्पाद भी रखे जाते हैं और इससे लघु उद्योगों को भी लाभ मिलता है। लेकिन, कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए राज्य सरकार द्वारा लगाई गईं पाबंदियों में साप्ताहिक बैल बाजारों पर भी रोक है। बता दें कि पैठण के बैल बाजार में औरंगाबाद के अलावा अहमदनगर, बीड़ और जालना के पशु व्यापारी पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए आते हैं। इससे ग्रामपंचायत को भी खासा कर मिलता है।

बैल बाजार खास तौर से महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ अंचल में पारंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। फोटो साभार: विशाल गोरपडे

ये दो महीने सबसे महत्त्वपूर्ण

बैलों की खरीद-बिक्री के लिए हर साल अप्रैल और मई के महीने बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। अफसर पटेल के मुताबिक ऐसा इसलिए कि हर साल जनवरी से मार्च महीनों के बीच गन्ना काटने वाले खेत मजदूर वापस अपने-अपने गांव लौटते हैं और अपने पशुओं को बेचते हैं। अफसर बताते हैं, "मार्च से लेकर मई तक बैल बाजारों में खास रौनक और भीड़भाड़ देखी जा सकती है। इसका कारण यह है कि इसी समय गन्ना मजदूर भी अपने गांवों में होते हैं और अपने जानवरों को बेचकर कुछ पैसा कमाना चाहते हैं, जबकि किसानों को भी मानसून से पहले खेत जोतने पड़ते हैं तो उन्हें भी बढ़िया बैलों की तलाश होती हैं। ऐसे में बैल बाजार में बैलों के दाम ऊंचे रहते हैं और इन्हीं महीनों में बड़ी संख्या तक बैल बेचे और खरीदे जाते हैं, मगर अफसोस कि कोरोना महामारी के चलते लगातार दूसरे साल बैल बाजार फिर सूने हो गए हैं।"

दरअसल, देश के अधिकतर छोटे किसान खेती के लिए आज भी बैलों पर निर्भर हैं। मशीनीकरण के दौर में भी छोटी जोतों के खेत मालिकों की एक बड़ी संख्या है जो आज भी खेती के अधिकतर कार्य बैलों की शक्ति से ही पूरे करती है।

यवतमाल में भी छोटे किसानों पर आफत

इसी क्रम में महाराष्ट्र के विदर्भ अंचल का यवतमाल जिला भी है, जो बैल बाजारों के लिए प्रसिद्ध है। यवतमाल जिले में पुसद, उमरखेड और आर्नी में बैलों के बड़े-बड़े बाजार लगते हैं। लेकिन, यहां भी खरीफ मौसम के दौरान ही बैल बाजार न खुलने से इस अंचल में खेती के कार्यों से जुड़े छोटे किसानों की माली हालत और अधिक तंग हो सकती है।

महाराष्ट्र में अभी भी बहुत से किसान बैलों से ही खेती करते हैं। फोटो: दिवेंद्र सिंह

इस बारे में कृषि आधारित बाजार समिति, पुसद के सभापति शेख अख्तर (54 वर्ष) गाँव कनेक्शन से अपने अनुभव साझा करते हैं वे कहते हैं कि इस क्षेत्र में अकेले पुसद स्थित बैल बाजार चार एकड़ में लगता है। शेख अख्तर के मुताबिक, "अकेले पुसद के बैल बाजार में सीजन के समय एक दिन में पच्चीस से तीस लाख रुपए का कारोबार होता था। इन बाजारों में पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसान-व्यापारी भी आते हैं और अच्छी कीमत देकर बैल खरीदते हैं। इन बाजारों में बैलों की एक जोड़ी कोई 50 से 80 हजार रुपए तक में बिक जाती है। इस कारोबार में लगे परिवार गाय के बछड़े को अच्छी तरह से पाल-पोसकर शारीरिक रूप से उसे इस तरह से तैयार करते हैं कि बैल बाजारों में खूब पैसा कमा सकें।"

यवतमाल जिले में पुसद गांव के ही एक छोटे किसान अरुण राऊत (45) मानते हैं कि कोरोना महामारी के कारण बाजारों से बैलों की खरीद और बिक्री न होने से कई किसानों की जुताई का पहिया रुक जाएगा। इसकी वजह यह है कि विदर्भ में ज्यादातर छोटे किसान हैं और कई छोटे किसानों के पास ट्रैक्टर नहीं हैं। इसलिए उन्हें खेतीबाड़ी के लिए बैलों की जरूरत पड़ती है। लेकिन, बैल न होने से उन्हें खेती में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

अरुण राउत इस बात को समझाते हुए कहते हैं, "मई महीने में भी यदि कोरोना महामारी के कारण बैल बाजार न खुले तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि मानसून सिर पर होगा और तब उन्हें बुवाई की बहुत जल्दी होगी, मगर किसानों के पास बैलों की खरीदी के लिए बहुत कम समय रह जाएगा।"

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