कोरोना महामारी के बीच बच्चों में कुपोषण की गंभीर चुनौती

गंभीर कुपोषण से ग्रस्त छह साल तक के बच्चों में से लगभग 43% उत्तर प्रदेश से आते हैं। एक साल से भी लंबे समय से चली आ रही कोविड महामारी, बेरोजगारी, दबाव झेल रही स्वास्थ्य सेवाओं और बाधित आंगनवाड़ी सेवाओं ने स्थिति को और खराब कर दिया है।

Mohit ShuklaMohit Shukla   9 July 2021 2:37 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। कांति देवी ने तीन महीने पहले ही अपने दूसरे बेटे को जन्म दिया है। उनका बड़ा बेटा डेढ़ साल का है। चिंता से डूबी आंखों के साथ कांति देवी ने अपने बेटे को देखा।

तीन महीने के अनमोल का वजन छह किलोग्राम होना चाहिए। लेकिन उत्तर प्रदेश के सीतापुर में पोषण पुनर्वास केंद्र में बिस्तर पर लेटे इस बच्चे का वजन इसका आधा, यानी तीन किलो है।

पास ही में, चारपाई पर कांति देवी का बड़ा बेटा अदित खेल रहा है। 18 महीने के आदित का वजन छह किलो है। कांति देवी ने गांव कनेक्शन को बताया, "मेरे दोनों बेटों को बुखार और डायरिया हैं।" वह कहती हैं, "मैं उन दोनों को तंबौर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर गई थी। और मुझे वहां के डाक्टर ने जिला अस्पताल जाने के लिए कहा।"

तीन महीने में, अनमोल का वजन 6 किलोग्राम से अधिक होना चाहिए। लेकिन उनका रिकॉर्डेड वजन सिर्फ 3 किलो था। सभी तस्वीरें: गांव कनेक्शन

कांति देवी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 112 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के बेहटा ब्लॉक के बसंतपुर की रहने वाली हैं। 27 साल की दुबली-पतली कांति देवी खुद टीबी की मरीज हैं। मार्च में उन्होंने अनमोल को जन्म दिया था। अभी जिला अस्पताल में उनके दोनों बच्चों का कुपोषण का इलाज चल रहा है।

सीतापुर के जिला अस्पताल में पोषण पुनर्वास केंद्र में उनका इलाज कर रहे डॉक्टर मोहम्मद अफाक ने गांव कनेक्शन को बताया, "अनमोल और आदित, दोनों गंभीर कुपोषण या कुपोषण की लाल श्रेणी में आते हैं।" वह बताते हैं कि 18 महीने के आदित में टीवी के लक्षण हैं और उसे एक्जिमा भी है। डॉक्टर ने कहा, कांति देवी खुद कुपोषित है।

18 महीने का अदित एक्जिमा से पीड़ित है। यह अक्सर चेहरे पर त्वचा के लाल, सूजे हुए पैच के रूप में दिखाई देता है।

कांति देवी के पति ओम प्रकाश ने गांव कनेक्शन को बताया, "यह हमारे लिए मुश्किल समय है।" वह बताते हैं कि उन्होंने 2018 में अपनी तीन साल की बेटी अंशिका को कुपोषण के कारण खो दिया था। उनका आवाज में उदासी थी। उसकी याद अब भी उन्हें सताती है। और अब उनके दोनों बेटे अनमोल और अदित भी कुपोषण की लाल श्रेणी में हैं।

हाल में एक आरटीआई के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने जानकारी दी कि पिछले नवंबर तक देश भर में छह महीने से लेकर छह साल तक के 927,606 बच्चों में गंभीर कुपोषण (एसएएम) की पहचान की गई। इनमें उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक 398,359 बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं, जबकि इसके बाद बिहार (279,427) दूसरे नंबर पर है।

सीधे शब्दों में कहें तो भारत में छह वर्ष तक के गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों में से 43% अकेले उत्तर प्रदेश से हैं। पांच साल तक के बच्चों में गंभीर कुपोषण की समस्या उनमें मृत्यु के जोखिम को बढ़ा देती है और ऐसे बच्चों को संस्थागत देखभाल की जरूरत होती है।

कुपोषण का बढ़ता बोझ

कुपोषित बच्चों की स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन्हें दो श्रेणियों -गंभीर कुपोषण (एसएएम) और मध्यम कुपोषण (एमएएम) में वर्गीकृत किया है। गंभीर कुपोषित बच्चों के विपरीत मध्यम कुपोषित बच्चों को पोषक आहार उपलब्ध कराकर,अस्पताल में दाखिल किए बिना भी ठीक किया जा सकता है।

कुपोषित बच्चों पर राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। 2016-18 के व्यापक पोषण राष्ट्रीय सर्वेक्षण (सीएनएनएस) के अनुसार, 0-4 वर्ष की आयु के 35 प्रतिशत भारतीय बच्चे अविकसित (उम्र के लिए कम ऊंचाई) और 33 प्रतिशत अंडर -4 बच्चे कम वजन के थे।

इस राष्ट्रीय सर्वेक्षण में पाया गया कि उत्तर प्रदेश में 4 वर्ष से कम आयु के 38.8 प्रतिशत बच्चे अविकसित थे (देखें ग्राफ 1: भारत में अविकसित बच्चों का राज्यवार प्रतिशत (0-4 वर्ष)। राज्य में लगभग 37 प्रतिशत अंडर -4 बच्चे कम वजन के थे (ग्राफ 2 देखें: भारत में कम वजन वाले बच्चों का राज्यवार प्रतिशत (0-4 वर्ष))।

ग्राफ 1: भारत में अविकसित बच्चों का राज्यवार प्रतिशत (0-4 वर्ष)

स्रोत: 2016-18 का व्यापक पोषण राष्ट्रीय सर्वेक्षण (सीएनएनएस)।

ग्राफ 2: भारत में कम वजन वाले बच्चों (0-4 वर्ष) का राज्य-वार प्रतिशत

स्रोत: 2016-18 का व्यापक पोषण राष्ट्रीय सर्वेक्षण (सीएनएनएस)।

उत्तर प्रदेश में स्थिति चिंताजनक है। यहां गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या सबसे अधिक है। उत्तर प्रदेश में जिला स्तर पर 0-5 साल तक के 543,241 बच्चे कुपोषित हैं। एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के कार्यक्रम अधिकारी,सीतापुर राज कपूर ने गांव कनेक्शन को बताया, "इनमें से 44,610 बच्चे पीली श्रेणी (एमएएम) में आते हैं और 8,229 बच्चे लाल श्रेणी (एसएएम) में आते हैं।" (नक्शा देखें: उत्तर प्रदेश में पांच साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चे)

सीतापुर से करीब 383 किलोमीटर दूर राज्य के मिर्जापुर जिले में बाल पोषण विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी प्रमोद सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि जिले में पांच साल तक के 34,550 बच्चे कुपोषित हैं। उन्होंने कहा, "हमारे जिले में 5 साल से कम उम्र के 28,753 बच्चे एमएएम और 5,977 बच्चे एसएएम श्रेणी में है।"

इसी तरह उन्नाव जिले में 0-5 साल के 241,000 बच्चे हैं। उन्नाव जिले के कार्यक्रम अधिकारी दुर्गेश सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि इनमें से कम से कम 28,000 बच्चे कुपोषण की पीली श्रेणी और 4,000 बच्चे लाल श्रेणी में है।

मैप: उत्तर प्रदेश में पांच साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चे


बदायूं जिले में 0-5 साल के कुल 288,706 बच्चों को कुपोषित के रूप में पंजीकृत किया गया है। इनमें से 14,846 एमएएम श्रेणी में और 4,592 एसएएम श्रेणी में आते हैं।

शाहजहांपुर जिले में 0-5 साल के कुपोषित बच्चों की संख्या 299,797 है। इनमें से 9,161 बच्चे एमएएम और 2,474 एसएम श्रेणी में है।

बाराबंकी जिले में 0-5 साल के 325,965 बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से 5,436 बच्चे एमएएम श्रेणी में और 1,310 एसएएम श्रेणी में हैं।

महामारी, बढ़ती भूख और कुपोषण

सीतापुर के ऐलिया ब्लॉक के बेलहारा गांव में चार माह की बच्ची छोटी किसी तरह का खाना खाने से इंकार कर रही है और उसका वजन महज तीन किलो है। छोटी की मां मीना देवी ने गांव कनेक्शन को बताया, "हम उसे जिला अस्पताल ले गए थे और उसे पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती कराया गया। वहां उसे अति कुपोषित घोषित किया गया।"

मीना देवी और उनके पति रमेश कुमार के पांच बच्चे हैं। सभी 10 साल से कम उम्र के है। उनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है। वे पत्थरों को तोड़कर उनसे सिल बट्टे बनाते हैं और गांव-गांव जाकर उन्हें बेचकर जीवन यापन करते हैं। लेकिन महामारी और लॉकडाउन के चलते उनका यह काम भी बंद हो गया। अब उनके पास कोई स्थिर आय नहीं है।

मीना कुमारी की बेटी अति कुपोषित श्रेणी में है।

यही हालत ओम प्रकाश की है जो सीतापुर के बसंतपुर गांव के दो कुपोषित बच्चों अनमोल और आदित्य के पिता हैं। उनके पास पांच बीघा (एक बीघा=.25 हेक्टेयर) पैतृक जमीन थी जो बाढ़ के दौरान शारदा नदी में बह गई। अब वह एक निजी प्लाईवुड कारखाने में दिहाड़ी मजदूर हैं। वह प्रतिदिन लगभग 200 रुपये कमाते हैं।

ओम प्रकाश ने गांव कनेक्शन को बताया, "लॉकडाउन के चलते एक दिन में 200 रुपये कमाना भी मुश्किल हो रहा है। और डॉक्टर ने मेरी पत्नी और बच्चों को फल सब्जियां खाने और दूध पीने की सलाह दी है।" वह कहते हैं, "हम मुश्किल से एक दिन में एक समय का ही पूरा खाना खा पाते हैं। मैं फल, दूध और सब्जियां कहां से लेकर आऊं। वह शिकायत के लहजे में कहते हैं, कुछ दिन तो हमने सिर्फ नमक और रोटी खाकर ही गुजारा किया था।

कई शोध अध्ययन और रिपोर्ट इशारा करते हैं कि कैसे महामारी ने भारत में बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण को स्थिति को खराब कर दिया है। माता-पिता अपना रोजगार खो चुके हैं। स्कूल बंद है (इसलिए मिड डे मील भी नहीं मिलता) आंगनवाड़ी सेवाएं (0-6 साल के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए भोजन दिया जाता है) बाधित हैं।

नवंबर में जारी इंडिया चाइल्ड वेलबीइंग रिपोर्ट 2020 ने बताया कि कैसे कोविड-19 महामारी और उसके बाद लॉकडाउन ने लगभग 11 करोड़ 50 लाख बच्चों को कुपोषण के खतरे में डाल दिया है। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2020 में, भारत जैसे विकासशील देशों में कोविड-19 के कारण पैदा हुए गंभीर आर्थिक संकट का भी संज्ञान लिया है

यूनीसेफ ने अपनी रिपोर्ट एवर्टिंग ए लास्ट कोविड जेनरेशन पिछले नवंबर में जारी की थी। इस रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि 12 महीने की इस अवधि के दौरान सेवाओं में गंभीर रुकावट और बढ़ते कुपोषण के कारण वैश्विक स्तर पर अनुमानित बीस लाख बच्चे और दो लाख अजन्में बच्चों की अतिरिक्त मृत्यु हो सकती है। 2020 में पांच वर्ष से कम उम्र के 60 से 70 लाख अतिरिक्त बच्चे गंभीर कुपोषण से पीड़ित होंगे।यह 14 प्रतिशत की वृद्धि हर महीने 10,000 अतिरिक्त बच्चों की मृत्यु का कारण होगी। अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के अनुसार ज्यादातर मामले उप सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया के हैं।

कई शोध अध्ययन और रिपोर्ट इशारा करते हैं कि कैसे महामारी ने भारत में बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण को स्थिति को खराब कर दिया है।

राशन कहां है?

बाल्यावस्था की देखभाल और विकास के लिए भारत सरकार द्वारा एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना चलाई जा रही है। यह दुनिया का सबसे बड़ी योजना है जिसमें देश के 15 करोड़ 80 लाख से अधिक बच्चे (2011 की जनगणना के अनुसार) जिनकी उम्र 0-6 साल के बीच है,गर्भवती और स्तनपान कराने वाली मांओंको जोड़ा गया है।

आईसीडीएस देश के सभी जिलों में फैले 13 लाख 60 हजार कार्यात्मक आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से (जून 2018 तक) छह सेवाएं प्रदान करता है। ये सेवाएं हैं- पूरक पोषण, प्रीस्कूल अनौपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और परामर्श।

उत्तर प्रदेश में कुल 189,789 आंगनवाड़ी केन्द्र हैं। राज्य सरकार के बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के अनुसार, छह महीने से 3 साल की उम्र के लगभग 83 लाख बच्चों को दलिया समेत सूखा राशन दिया जाता है। तीन से छह साल के 40 लाख से अधिक बच्चों को ऊर्जा से भरपूर मीठा दलिया, नमकीन दलिया और विशेष लड्डू मिलते हैं। आईसीडीएस के टेक होम राशन के तहत राज्य में 35 लाख 50 हजार गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को कवर किया गया है।


लेकिन महामारी की शुरुआत से ही आंगनवाड़ियों के बंद होने से छोटे बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पूरक पोषण नहीं मिल पाया है।

सीतापुर के बेलहारा गांव की मीना देवी की चार महीने की बेटी एसएमएस श्रेणी में है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि भोजन मिल पाना काफी मुश्किल हो रहा था। यहां तक कि आंगनवाड़ी से मिलने वाला सूखा राशन भी उनकी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त था। वह कहती हैं, "अगर हमें गेहूं मिलता है तो चावल नहीं होते और अगर चावल होतेतो तेल नहीं होता। अगर हम इस बारे में आंगनवाड़ी के लोगों से पूछते तो उन्हें अच्छा नहीं लगता और बहसा बहसी में बात यहीं खत्म हो जाती।"

सीतापुर के जिला कार्यक्रम अधिकारी राजकपूर के अनुसार, जिले में 4,332 आंगनवाड़ी केंद्र है और इनमें0-6 साल की उम्र के 182,373 बच्चे नामांकित हैं।

कपूर ने गांव कनेक्शन को बताया, "इन केंद्रों पर सूखा राशन वितरित किया जाता है। घी और दूध केवल एक बार दिया जाता है।" वह आगे बताते है, "मार्च में जो दाल बांटी जानी थी, वह अभी जून में हमारे पास आई है। हमें अभी तक अप्रैल, मई और जून का पूरा राशन नहीं मिला मिला है।"वह पूछते है कि ऐसे में हम कैसे दूध और घी की उम्मीद कर सकते हैं।

कपूर बताते हैं कि युवा और गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट के जरिये उन्हें आयरन के कैप्सूल बांटे जाते थे। हालांकि इस प्रोजेक्ट को भी फिलहाल होल्ड पर रख दिया गया है और आपूर्ति रोक दी गयी है।

आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का दावा है कि जरूरतमंदों को राशन नहीं बांटने के लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बेहटा ब्लॉक के सुमली गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता राजकुमारी मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमारे गांव में चार गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे हैं"वह कहती है, "हमें इस साल मार्च से सूखा राशन नहीं मिला है। हम कैसे इन बच्चों को अनाज मुहैया कराएं।"


राशन बांटने के अलावा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अपने गांव के बच्चों के वजन और उंचाई का भी ध्यान रखना होता है। मिश्रा ने शिकायत भरे अंदाज में कहा, "मेरे पास न तो वजन तौलने वाली मशीन है और नही लंबाई नापने वाली टेप। मैं सिर्फ बच्चों को देखकर उन्हें कुपोषित या गंभीर रूप से कुपोषित की श्रेणी में रखती हूं।"वह आगे कहती हैं, "कभी-कभी मैं गांव के किसी व्यक्ति से वजन तौलने की मशीन उधार लेकर बच्चों का वजन रिकॉर्ड कर लेती हूं।"

ज़ाहिर है डॉक्टर और सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता चिंतित हैं। सीतापुर जिला अस्पताल में पोषण पुनर्वास केंद्र के डॉक्टर मोहम्मद अफाक ने गांव कनेक्शन को बताया,"जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक है और हमारे पास उनके लिए पर्याप्त पोषण पुनर्वास केंद्र नहीं हैं।" वह आगे कहते हैं, "जिला अस्पताल में पोषण केन्द्र के लिए सिर्फ 10 बैड का वार्ड है।आहार विशेषज्ञ का पद भी पिछले तीन साल से खाली पड़ा है।"

डॉक्टर महामारी की तीसरी लहर की संभावना के बीच इन कुपोषित बच्चों पर अधिक ध्यान देने की जरुरत पर बल देते हैं। क्योंकि इन बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली काफी कमजोर होती है और वे जल्द ही किसी भी बीमारी की चपेट में आ सकते हैं।

सीतापुर जिला अस्पताल में पोषण पुनर्वास केंद्र के डॉक्टर मोहम्मद अफाक।

संपर्क करने पर सीतापुर के सीएमओ मधु गैलरोला ने गांव कनेक्शन को बताया,"हमारी राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम टीम कुपोषित बच्चों की पहचान के लिए गांव का दौरा कर रही है। पोषण पुनर्वास केंद्र के अलावा हमारे पास कुपोषित बच्चों के लिए कोई अन्य विशेष व्यवस्था नहीं है।"

गांव कनेक्शन ने सीतापुर के जिलाधिकारी विशाल भारद्वाज से भी राशन उपलब्ध कराने में हो रही देरी पर उनका कोट लेने के लिए संपर्क करने का प्रयास किया। उनके कार्यालय में बार-बार कॉल और संदेश छोड़े जाने के बावजूद, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

इस बीच जब ओमप्रकाश और रमेश कुमार हर सुबह काम पर निकलते हैं तो उनके दिमाग में बस एक ही ख्याल रहता है,"क्या मैं आज इतना कमा पाऊंगा कि अपने बच्चों के लिए दूध और मौसमी खरीद सकूं।"

शाहजहांपुर में रामजी मिश्रा, मिर्जापुर में बृजेंद्र दुबे, उन्नाव में सुमित यादव और बाराबंकी में वीरेंद्र सिंह के सहयोग से।

अंग्रेजी में खबर पढ़ें

अनुवाद- संघप्रिया मौर्य

#Malnutrition Child Hunger #child #unemployment corona pandemic #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.