'पूरे परिवार की जिम्मेदारी है, दोबारा फिर नौकरी चली गई है, अब बस भगवान का ही भरोसा है'

राज्य सरकारों ने लॉकडाउन में उद्योग धंधों को छूट तो दी है लेकिन बाजार में मांग कम होने की वजह से व्यवसाय ठप है। इसकी वजह से संगठित और असंगठित क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोगों की नौकरी जा रही है।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   12 May 2021 6:30 AM GMT

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पूरे परिवार की जिम्मेदारी है, दोबारा फिर नौकरी चली गई है, अब बस भगवान का ही भरोसा है

कई राज्यों में लगे लॉकडाउन की वजह से व्यापार ठप है, जिस वजह से लाखों लोगों का रोजगार छिन गया है। (फोटो- अरेंजमेंट)

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए देश के ज्यादातर राज्यों में लॉकडाउन लगा है, कहीं आंशिक तो कहीं पूरी तरह से। ज्यादातर राज्य सरकारों ने कुछ शर्तों के साथ उद्योग-धंधों को काम जारी रखने में ढील दी है, बावजूद इसके लोगों की नौकरियां जा रही हैं। छोटे-मोटे कारोबार बंदी के कगार पर पहुंच गए हैं। कई रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा कि अप्रैल 2021 में ही लाखों लोगों की नौकरी चली गयी।

इस विषय पर हमने कुछ ऐसे लोगों से बात की जिनकी नौकरी इस विपदा की घड़ी में छूट गई या व्यापार बंद हो गया। उन्होंने क्या कहा, उन्हीं की जुबानी सुनिए-

यूपी के जिला मऊ के कोपागंच के गौरव चौरसिया (24) ने बीकॉम के बाद अकाउंटेंट की नौकरी हासिल की थी, लेकिन मार्च के आखिर में उन्हें काम करने के लिए मना कर दिया गया।

गौरव कहते हैं, "निजी कंपनी में एकाउंटिंग का काम करता था। मार्च के दूसरे सप्ताह में घर से काम करने को कहा सया। फिर महीने के आखिरी में बोला कि अब काम नहीं करना है। 12 हजार रुपये महीना मिलता था, पिता जी नहीं हैं। घर पर मां-मौसी रहती हैं। जमीन जायदाद कुछ नहीं है। मौसी की दवा चलती है। 30 कैप्सूल वाली जो 110 रुपए में मिलते थे, वह अब 150 के हो गए हैं। पिछले साल तो नौकरी गंवाने वालों की खूब बात होती थी, लेकिन इस बार तो कोई पूछ ही नहीं है।"

राजस्थान के जिले झुंझुनू के ओजीटू गांव के रोहित चौधरी (30) पेशे से इंजीनियर हैं और एमटेक किया है। पिछले साल लॉकडाउन में नौकरी गंवा चुके रोहित की किस्मत ने फिर धोखा दिया और इस साल दोबारा नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

रोहित बताते हैं, "मेरी नौकरी तो पिछले साल लॉकडाउन में ही चली गयी थी। हालत कुछ सही हुए तो कॉलेज खुला। 11 जुलाई 2019 को सूरजगढ़ के एक इंजिनयरिंग कॉलेज में बतौर अस्सिटेंट इंजिनियर नौकरी की शुरुआत की थी। पिछले साल पिता जी बीमार हुए थे। डॉक्टर ने उन्हें टीबी बताया था। इलाज के बाद भी उन्हें बचा नहीं पाया। इलाज में सारी पूंजी चली गई।"

"दोबारा कॉलेज जाना शुरू किया, लेकिन 23 मार्च को आने से मना कर दिया गया। इस साल तो सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है। मेरे ऊपर घर के 5 लोगों की जिम्मेदारी है। खर्च कैसे चलेगा, पता नहीं। बस उम्मीद है की सब ठीक हो जाएगा।" वे आगे कहते हैं।

ऐसा नहीं कि इस दौरान बस लोगों की नौकरी ही गई है। लघु या सूक्ष्म उद्योग से जुड़े लोगों का भी व्यवसाय चौपट हो गया है।

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लखनऊ के रहने वाले पूर्ण कुमार गुप्ता (40) पेशे से व्यवसायी है और एमबीए किया है। पूर्ण इवेंट मैनेजमेंट का काम करते थे। लोन लेकर अपना काम शुरू किया तो लॉकडाउन लग गया।

पूर्ण ने बताया, "नोएडा में इवेंट मैनेजमेंट का अच्छा काम करता था। फिर लगा कि कुछ अपना काम शुरू किया जाए। फैब्रिक का कैरी बैग बनाने का काम शुरू किया। 35 लाख रुपये लोन लिया। 2020 में जब काम शुरू हुआ तभी लॉकडाउन लग गया। बाद में जब सरकार ने प्लास्टिक के पन्नी पर बैन लगाया तब थोड़ा काम शुरू, लेकिन फिर बाजार में पन्नी के बैग धड्ड्ले से बिकने लगे और अब दोबारा से लॉकडाउन। सरकार ने कम्पनी खोलने की इजाजत तो दी है, लेकिन बाजार में दुकानें भी बंद हैं। हमारा माल तो इन्हीं दुकानों पर जाता था। इस महीने तो ईएमआई तक जमा करने के पैसे नहीं हैं। कर्ज कैसे उतरेगा, पता नहीं।"

तीन अलग-अलग लोगों की कहानी, लेकिन कहानी सबकी एक सी है। इन्हें आपके सामने लाने का मकसद बस इतना है कि वर्ष 2020 की ही तरह 2021 के कोरोना काल में भी लोगों की नौकरियां जा रही हैं। लोगों के व्यवसाय बंद हो रहे हैं, लेकिन पिछले साल की तरह इस साल उसकी चर्चा नहीं हो रही। ये दर्ज इन्हें भी है।

कोरोना की दूसरी लहर तबाही लेकर आई है। कई रिपोर्ट में दावा किया जा रहा कि आर्थिक स्थिति बिगड़ने से आने वाले समय में भोजन का भी संकट पैदा हो सकता है। (फोटो- अरेंजमेंट)

कोरोना की दूसरी लहर में 8 फीसदी के करीब पहुंची बेरोजगारी दर

रोजगार सबंधी आंकड़े जारी करने वाले निजी व्यावसायिक इन्फोर्मेशन कंपनी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार देश में कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन की वजह से इस साल अप्रैल में संगठित और असंगठित क्षेत्र के 75 लाख लोगों की नौकरी चली गई। वहीं, बेरोजगारी दर भी चार महीने के उच्च स्तर को पार करते हुए 8% के करीब पहुंच गई है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की 3 मई 2020 को आई रिपोर्ट में CMIE के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ महेश व्यास ने कहा, "रोजगार के मोर्चे पर स्थिति आगे भी चुनौतीपूर्ण रह सकती है। मार्च की तुलना में अप्रैल में 75 लाख लोगों ने नौकरियां गंवाई हैं। इससे बेरोजगारी दर में बढ़ोतरी हुई है। हमारी शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 7.97% रही है। शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी दर 9.78% और ग्रामीण क्षेत्र में 7.13% रही है। मार्च में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 6.50% रही थी। पिछले साल, कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका लगा था। इससे पहले कि यह पूरी तरह से ठीक हो पाता, कोविड की दूसरी लहर ने फिर से इसे एक झटका दिया है।"

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CMIE की 2021 की महीनेवार रिपोर्ट देखें तो मार्च में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 6.50%, फरवरी में 6.89% और जनवरी में 6.52% थी। दिसंबर 2020 के बाद पहली बार राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 7 फीसदी से ऊपर पहुंची है। हालांकि वर्ष 2020 में लॉकडाउन के समय मई-जून में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 23.52 और 21.71 फीसदी तक पहुंच गई थी।

पांच मई को स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया (State of Working India) नाम की एक रिपोर्ट में भी दावा किया गया है कि पिछले साल अप्रैल-मई में किए गए लॉकडाउन (lockdown) के बाद 10 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई। जून 2020 तक बहुत से लोग अपने घर वापस चले गए। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 के आखिरी महीने तक भी देश में डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों को जीवन यापन के लिए काम-धंधा नहीं मिला।

समय पर फैसले नहीं लिए गए तो और खराब होगी स्थिति

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर डॉ चंद्र सेन चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि अगर समय पर सरकार ने फैसले नहीं लिए तो रोजगार को लेकर स्थिति बिगड़ेगी, ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ा रोजगार संकट पैदा हो सकता है।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "सरकार को ग्रामीण को ध्यान में रखते हुए आर्थिक पैकेज का एलान करना चाहिए, क्योंकि गांवों में छोटा-मोटा व्यापार एक दम ठप है। कारण यह है कि गांवों में बनने वाला प्रोडक्ट शहरों में जाता है और शहरों में ज्यादातर जगहों पर लॉकडाउन है। एक बड़ी आबादी शहरों से गांव लौट आयी है, ऐसे में सरकार को गांवों में केंद्र में रखकर आर्थिक नीतियां तैयार करनी होंगी वह भी जल्द से जल्द।"

देश में कोरोना के प्रतिदिन तीन लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। (फोटो-अरेंजमेंट)

देशभर में बेरोजगारी का मुद्दा उठाने वाले संगठन युवा हल्ला बोल के संयोजक अनुपम गांव कनेक्शन से फोन पर कहते हैं, "सरकार को चाहिए कि संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों के लिए बड़े पैकेज का ऐलान करे। हम दूसरे देशों का उदाहरण देख सकते हैं, जिन्होंने अपनी जीडीपी का 20-20 फीसदी पैकेज रोजगार को बचाने के लिए खर्च किया। कई देशों ने तो इंडस्ट्री को कह दिया कि जब तक लॉकडाउन है, तब तक आपके कर्मचारियों का एक हिस्सा सरकार वहन करेगी। किसी ने 40 तो किसी 60 फीसदी तक एक ऐलान किया।"

"ऐसा करके बहुत से देशों ने अपने देश के लोगों को बेरोजगार होने से बचा लिया, लेकिन हमारी सरकार ने तो कुछ किया ही नहीं। दूसरे देशों ने समय पर फैसला लिया। हमारे यहां सरकार क्रेडिट पैकेज लेकर आई। अब सरकार को असंगठित क्षेत्रों के स्पोर्ट करना होगा, ताकि वहां काम करने वाले कर्मचारियों को सैलरी मिलती रहे। पिछले लॉकडाउन में मनरेगा और पीडीएस सिस्टम ने काफी हद तक स्थिति को संभाले रखा। ऐसे ही सरकार को अर्बन एम्प्लॉयमेंट एक्ट या स्कीम लेकर आना चाहिए। इससे स्थिति काफी संभल सकती है।" अनुपम आगे कहते हैं।

प्रवासी मजदूरों के लिए काम करने वाली संस्था, अजीविका ब्यूरो के लिए मुंबई में काम करने वाले दीपक पराड़कर एक दूसरे पहलू पर भी बात करते हैं। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "महाराष्ट्र की बात करें तो यहां सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को छूट दी है, लेकिन असल दिक्कत दूसरे राज्यों में हुए लॉकडाउन की वजह से भी है। गाड़ियां बंद हैं, माल बन तो रहा है लेकिन उसकी डिलेवरी नहीं हो रही है।"

"असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले कामगार जो बैग या कंस्ट्रक्शन कंपनियों में काम करते हैं, उनकी संख्या आधी से भी कम हो गई है। जहां 15 लोग काम करते थे वहां अब 3-4 लोग हैं। ऐसे में अब जरूरी है कि केंद्र सरकार इसके लिए स्पष्ट नीति बनाएं, जो एक समान हर राज्यों में लागू हो।" दीपक आगे कहते हैं।

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