कानपुर (उत्तर प्रदेश)। “घर का किराया 8 महीने से नहीं दिया है, वो तो इस घर में अपने पिता के समय (करीब 30 साल) से रह रहा हूं और मकान मालिक से संबंध अच्छे हैं वरना रहने का भी ठिकाना नहीं होता। आज हाल ये हैं कि घर के जेवर गिरवी रख कर खर्चा चलाना पड़ रहा है। पता नहीं, यह भी छुड़ा पाउंगा या नहीं, ” अपनी शर्ट की बांह में आंसू पोछते हुए जागरण में ढोलक बजाने वाले पवन त्रिपाठी ने बयां किया दर्द।
ये दर्द अकेले पवन का नहीं है। हर शहर में न जाने कितने कलाकार हैं, जिनकी आय पिछले एक साल से पूरी तरह से बंद या जरूरत के मुताबिक नहीं है और घरों में रहे वाद्य यंत्र आज धूल खा रहे हैं। इनमें से कई दिहाड़ी में मजदूरी तक करने को मजबूर हो गए हैं।
पिछले साल (2020) मार्च में शुरू हुआ करोना काल इन लोगों के लिए एक बुरा दौर साबित हुआ है। लॉकडाउन के बाद से ही लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट उत्पन्न होना प्रारंभ हो गया था। इनमें से एक वर्ग भजन गायकों और जागरण पार्टियों में म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट बजाने वालों का भी है। 2020 में जहां दोनों नवरात्रि के समय मंदिर बंद थे और धार्मिक आयोजनों पर रोक थी। वहीं इस साल भी दूसरी लहर के आने के बाद नवरात्र के दौरान फिर प्रतिबंध लगने शुरू हो गए थे।
दो महीने से तबले और ढोलक को हाथ नहीं लगाया
उत्तर प्रदेश के उन्नाव में शुक्लागंज के कंचन नगर में किराए के मकान में रहने वाले पवन त्रिपाठी (42) जागरण व अन्य धार्मिक आयोजनों में 15 साल की उम्र से ढोलक बजा रहे हैं। इसके अलावा वह घर पर बच्चों को ढोलक व तबला भी सिखाते हैं। “पिछले साल मार्च में काफी काम किया था। उसके बाद लॉकडाउन लग गया और कार्यक्रम मिलने बंद हो गए। लोगों ने भी बच्चों को भेजना बंद कर दिया,” पवन ने कहा।
“दो बच्चों का पिता हूं, लेकिन अब ये नहीं चाहूंगा कि वो संगीत सीखें, क्योंकि अब ये संगीत तो रोटी देने की हालत में भी नहीं है। मैंने भी रियाज करना बंद कर दिया है। इस साल मार्च से ढोलक और तबले को हाथ भी नहीं लगाया। मन ही नहीं करता अब बजाने का, कुछ समझ नहीं आ रहा है।” नम आंखों के साथ पवन ने कहा।
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वहीं पवन त्रिपाठी के पड़ोस के जिले कानपुर के भूसाटोली में रहने वाले शशिकांत मिश्रा उर्फ पप्पू बेधड़क (60) जब 12 साल के थे, तब से जवाबी कीर्तन और भजन गा रहे हैं। करीब 20 साल की उम्र में उन्होंने भजन लिखना शुरू किया। उनका दावा है कि लखबीर सिंह लक्खा के लिए उन्होंने कई मशहूर भजन लिखे हैं। उनके परिवार में पत्नी, 3 बेटे और 2 बेटियां हैं।
“हम लोगों के हालात बद से बदतर हो गए हैं, जहां पहले हमें एक कार्यक्रम के लिए एक रात में 30 से 50 हजार रुपये तक मिल जाते थे, वही पिछले एक साल में यह रकम 3 से 5 हजार रुपये हो गई है। सारी जमा पूंजी खर्च हो चुकी है और लोगों से उधार लेने के कारण कर्जा भी हो गया है और अभी कोई रास्ता ऐसा दिखाई भी नहीं दे रहा है कि हालात सुधर जाएंगे,” अपना दर्द बयां करते हुए शशिकांत मिश्रा ने कहा।
शशिकांत आगे बताते है, “पिछले साल लॉकडाउन से पहले जहां साल में 40 से 45 दिन कार्यक्रम मिल जाते थे, वही पिछले एक साल में अभी तक 5 कार्यक्रम भी नहीं मिले हैं। दोनों बेटे कानपुर में ही नौकरी करते थे, जिससे मदद मिल जाती थी पर उनकी भी नौकरी जाती रही। मैंने आखिरी कार्यक्रम 19 मार्च 2020 को किया था। उसके बाद से दिन-ब-दिन हालत ख़राब होते चले गए और आज 7 लोगों का परिवार भगवन भरोसे है।”
“बड़े कार्यक्रमों का आयोजन करने वाले अब छोटे कार्यक्रमों का भी आयोजन नहीं कर रहे हैं और जिन कार्यक्रमों का आयोजन हो भी रहा है, वह लोगों के घरों में 20 से 25 लोगों के बीच में। ऐसे में लोग पैसे नहीं खर्च कर रहे हैं,” शशिकांत ने निराश होकर कहा।
इस नवरात्रि बुकिंग थी, लेकिन लॉकडाउन ने सब चौपट कर दिया
कानपुर से करीब 495 किमी दूर देश की राजधानी दिल्ली में रहने वाले शम्मी गौर ने देश-विदेश में बड़े-बड़े कलाकारों के साथ धार्मिक कार्यक्रम किए हैं और वह आर्गन (एक तरह का पियानो) बजाते हैं।
शम्मी भावुक होकर कहते हैं, “पहले लगता था कि थोड़े समय बाद हालात सुधर जाएंगे, लेकिन एक साल से ज्यादा समय हो गया है, बिना काम के। इस बार नवरात्रि के लिए कार्यक्रमों की बुकिंग थी, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने फिर सब चौपट कर दिया। हमें भी अपने बच्चों की फीस जमा करनी होती है, घर चलाना होता है। फिलहाल इस बुरे दौर के खत्म होने के कोई आसार नहीं नजर आ रहे हैं।”
दिल्ली के ही आदर्श नगर में रहने वाले भजन गायक शीतल पांडेय (30) के मुताबिक, आज कलाकारों की स्थिति एक लेबर से भी ज्यादा गई गुजरी है। कलाकार किसी के आगे हाथ फैलाने की स्थिति में भी नहीं हैं।
शीतल बताते हैं, “पिछले साल दोनों नवरात्रि और इस वर्ष की नवरात्रि में किसी भी तरह के धार्मिक आयोजनों की अनुमति नहीं मिली। आज के समय में लोग केवल अपने जीवन को बचाने के लिए प्रयासरत हैं और भजन-जागरण या चौकी नहीं करा रहे हैं। लोगों में डर का माहौल है। इसकी वजह से हम लोग बहुत गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं।”
सरकार को हमारे बारे में भी कुछ सोचना चाहिए
कानपुर की एक संस्था “एक मंच सर्व कलाकार” आज के समय सभी कलाकरों के हित के लिए लड़ाई लड़ रही है। यह संस्था केवल कानपुर ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के कलाकारों के लिए काम कर रही है।
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संस्था को बनाने वाले शशिकांत मिश्रा उर्फ पप्पू बेधड़क कहते हैं, “आज के समय में संस्था का प्रयास है कि जिस तरह से सभी लोक कलाकारों को प्रदेश सरकार की ओर से प्रोत्साहित किया जाता है, उसी प्रकार हमारे जैसे कलाकारों को भी किसी श्रेणी में रख कर हमारे लिए भी सरकार को सोचना चाहिए। क्योकि भगवान की आराधना का यह माध्यम तो कई वर्षों से चला आ रहा है और चाहे वह वाद्य यंत्र बजाने वाले हों या भजन गाने वाले या भजन लिखने वाले, सब की आय का स्रोत तो यही है। हम लोग भी कलाकर हैं, लेकिन हमारे हालात रेहड़ी वालो से भी बदतर हैं।
कोरोना की दूसरी लहर में 8 फीसदी के करीब पहुंची बेरोजगारी दर
रोजगार सबंधी आंकड़े जारी करने वाले निजी व्यावसायिक इन्फोर्मेशन कंपनी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार देश में कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर लगाए गए लॉकडाउन की वजह से इस साल अप्रैल में संगठित और असंगठित क्षेत्र के 75 लाख लोगों की नौकरी चली गई। वहीं, बेरोजगारी दर भी चार महीने के उच्च स्तर को पार करते हुए 8% के करीब पहुंच गई है।