0

देश में मुफ्त राशन के बावजूद 10 में 8 परिवारों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा: सर्वे

गाँव कनेक्शन | Feb 25, 2022, 07:52 IST
पिछले साल कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद समाज में हाशिए पर खड़े वर्गों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा है, क्योंकि इनकी आय के स्रोत पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। एक सर्वे के अनुसार देश में मुफ्त राशन के बावजूद एक बड़े तबके को ढ़ंग का खाना नहीं मिल पाया।
right to food
कोविड महामारी से दुनिया भर में लोगों की आय पर असर पड़ा, जिससे एक बड़ी आबादी को खाने की दिक्कत हुई। राइट टू फूड कैंपेन अपने सर्वे में शामिल 60% अधिक ने कहा कि उनके पास खाने के लिए पर्याप्त नहीं था, वे हेल्दी फूड नहीं खा सके या उन्हें केवल एक ही तरह का खाना मिला।

सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज के सहयोग से रोज़ी रोटी अधिकार (राइट टू फूड कैंपेन) ने दिसंबर 2021 और जनवरी 2022 के बीच सर्वे किया है, हंगर वॉच- II(Hunger Watch-II)नाम के इस सर्वे को 23 फरवरी को जारी किया गया।

इस सर्वेक्षण में 6,697 लोगों में से केवल 34 फीसदी लोगों ने बताया कि पहले उनके घरों में अनाज की खबत पर्याप्त थी। मगर बाद में स्थिति बदल गई. 50 फीसदी लोगों ने कहा कि महामारी की वजह से महीने में 2-3 बार अंडा, दूध,मांस और फल खाया।

सर्वेक्षण में देश के 14 राज्यों के कुल 6,697 लोगों ने भाग लिया, जिसमें सबसे अधिक 1,192 लोग बंगाल से थे। इनमें 31 फीसदी अनसूचित जनजाति, 25 फीसदी अनुसूचित जाति, 19 फीसदी सामान्य जाति, 15 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग और 6 फीसदी विशेष रुप से कमजोर जनजातीय समूह के लोग शामिल थे। सर्वे में महिलाओं की हिस्सेदारी 71 प्रतिशत थी। पश्चिम बंगाल के साथ ही उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, तमिलनाडु के लोगों को भी इस सर्वे में शामिल किया गया।

357953-hunger-watch-food-security-covid-19-lockdown-pandemic-nutrition-health-right-to-food-livelihood-ration-malnutrition
357953-hunger-watch-food-security-covid-19-lockdown-pandemic-nutrition-health-right-to-food-livelihood-ration-malnutrition

परिवारों के एक बड़े हिस्से ने बताया कि उन्होंने महीने में दो या तीन बार से अधिक पौष्टिक खाना नहीं खाया। केवल 27 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने हफ्ते में एक से अधिक बार अंडे, मांस, दूध, फल और गहरे हरे पत्तेदार सब्जियां खाने के बारे में बताया।

एक तिहाई से अधिक उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि उनके पोषण की गुणवत्ता वही रहेगी या अगले तीन महीनों में खराब हो जाएगी।

हालांकि, सर्वेक्षण के अनुसार, कुछ सरकारी योजनाओं ने महामारी के दौरान अच्छा प्रदर्शन किया था। उदाहरण के लिए, 90 प्रतिशत से अधिक जिनके पास राशन कार्ड था, उन्होंने कहा कि उन्हें देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खाद्यान्न प्राप्त हुआ है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013 के तहत, प्रत्येक लाभार्थी अत्यधिक रियायती कीमतों पर प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो अनाज का हकदार है।

प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत, भारत सरकार 800 मिलियन से अधिक राशन कार्ड धारकों को एक महीने में अतिरिक्त पांच किलो चावल या गेहूं मुफ्त दिया गया। यह एनएफएसए के तहत पांच किलो अनाज के अतिरिक्त है। इस योजना को अप्रैल 2020 में पहले COVID19 राहत पैकेज के हिस्से के रूप में पेश किया गया था।

दिलचस्प बात यह है कि पात्र सदस्यों वाले एक चौथाई (24 प्रतिशत) परिवारों ने कहा कि उन्हें पका हुआ भोजन, सूखा राशन या नकद के रूप में कोई भोजन नहीं मिला। आईसीडीएस [एकीकृत बाल विकास सेवाएं] के लिए पात्र माताओं या बच्चों को हस्तांतरण के लिए यह बढ़कर 28 प्रतिशत हो गया, जो भूख और कुपोषण के लिए सबसे कमजोर लोगों में से हैं।

सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में इनमें से कई योजनाओं के बजट में गिरावट आई है। उदाहरण के लिए, आईसीडीएस के बजट में 2014-15 की तुलना में 2022-23 में वास्तविक रूप से 38 प्रतिशत की कटौती देखी गई है, और मध्याह्न भोजन योजना में वास्तविक रूप से लगभग 50 प्रतिशत की कमी देखी गई है।

हंगर वॉच सर्वे- II की रिपोर्ट के अनुसार, 66 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि महामारी से पहले की अवधि की तुलना में उनकी आय में कमी आई है। कुल मिलाकर, कुल उत्तरदाताओं में से एक तिहाई (31 प्रतिशत) ने कहा कि उनकी वर्तमान आय महामारी से पहले की कमाई के आधे से भी कम है। इसके अलावा, कामकाजी सदस्यों वाले 70 प्रतिशत परिवारों की कुल मासिक आय 7,000 रुपये से कम पाई गई।

इस बीच, करीब 45 फीसदी परिवारों पर बकाया कर्ज था और 21 फीसदी उत्तरदाताओं पर 50,000 रुपये से अधिक का कर्ज था।

घटती मासिक आय के साथ-साथ स्वास्थ्य व्यय का एक अतिरिक्त बोझ भी बताया गया। 23% परिवारों ने एक बड़ी राशि स्वास्थ्य पर की, उन परिवारों में से 13% ने 50 हजार से अधिक खर्च किया, जबकि 35% लोगों ने 10 हजार से अधिक खर्च किया। 32% परिवारों ने बताया कि COVID-19 के कारण एक सदस्य ने काम करना बंद कर दिया या अपनी मजदूरी खो दी।

जबकि 3% लोगों ने बताया कि घर में किसी की मौत कोविड-19 से हुई, हालांकि, 45% से कम लोगों ने किसी भी मौत के बाद मुआवजा मिलने की बात की।

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान खाने का संकट

2020 में गाँव कनेक्शन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 90 प्रतिशत उत्तरदाता परिवारों को लॉकडाउन के दौरान भोजन तक पहुँचने में कुछ कठिनाई का सामना करना पड़ा। कुल मिलाकर, लगभग 35 प्रतिशत परिवार अक्सर पूरे दिन बिना खाए ही चले जाते हैं, और 38 प्रतिशत परिवार कई मौकों पर एक दिन में पूरा भोजन छोड़ देते हैं। यह भी पाया गया कि लॉकडाउन के दौरान 49 फीसदी परिवारों ने आटा-दाल-चावल पर कम और 63 फीसदी ने बिस्कुट-नाश्ता-मिठाई पर खर्च कम किया।

Tags:
  • right to food
  • COVID19
  • story

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.