इन वजहों से देश में होती रही है वृक्षों की पूजा

Dr SB Misra | Jul 18, 2024, 09:16 IST
विकास के लिए पेड़ों का कटान होता रहता है, खेती की ज़मीन बनाने के लिए जंगलों और वनस्पति का विनाश हो रहा है, छायादार पेड़ घटते जा रहे हैं और वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ज़मीन की उर्वरा शक्ति घट रही है। ऐसी स्थिति में ज़मीन के अंदर पानी एक तो घुस नहीं पाता और थोड़ी गहराई तक घुस भी गया तो शुद्ध नहीं रह पाता, हमारा भविष्य क्या होगा जीवन कैसा होगा? हम सोच नहीं सकते।
#GaonPostcard
आज कल बरसात का मौसम है और कुछ जगहों पर बाढ़ भी आई है। ऐसी जगह पर ना तो खेती हो सकती है और ना बागवानी। लेकिन जहाँ पर जल भराव नहीं है वहाँ वृक्षारोपण के लिए यह बहुत ही उपयुक्त समय है। गाँव के लोगों को पुराने समय से पेड़ लगाने का अनुभव है। और वह बता भी सकते हैं कि वृक्ष के लिए कैसे तैयारी की जाए। नालियाँ बनाकर बरसात के बाद सिंचाई में सुविधा होगी। गोल थाला बनाकर आजकल कम खर्चा आएगा। एक बात का ध्यान रखना होगा कि गंगा जमुनी मैदान में चार या पाँच फीट की गहराई पर कंकड़ की एक परत है जो पानी को नीचे नहीं जाने देती और नीचे के पानी को ऊपर नहीं आने देती। ऐसी हालत में ऊसर का निर्माण होता है। वृक्ष लगाने के पहले इस कंकड़ की चादर को पंचर करना अनिवार्य हो जाता है। वृक्षों की आपूर्ति प्रतिवर्ष आवश्यक इसलिए है कि उनके कटान को हम रोक नहीं पा रहे हैं, सड़क बनाने में या शहरों के विस्तार में और अन्य अन्य कामो में जमीन को खाली करना पड़ता ही है। इसलिए वृक्षों का लगाते रहना आज की अनिवार्य आवश्यकता है।

विकास के लिए पेड़ों का कटान होता रहता है, खेती की ज़मीन बनाने के लिए जंगलों और वनस्पति का विनाश हो रहा है, छायादार पेड़ घटते जा रहे हैं और वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ज़मीन की उर्वरा शक्ति घट रही है। ऐसी स्थिति में ज़मीन के अंदर पानी एक तो घुस नहीं पाता और थोड़ी गहराई तक घुस भी गया तो शुद्ध नहीं रह पाता, हमारा भविष्य क्या होगा जीवन कैसा होगा? हम सोच नहीं सकते। शायद 50 के दशक में कभी वन महोत्सव का कार्यक्रम आरंभ किया गया था और तब से आज तक प्रतिवर्ष वृक्षारोपण की औपचारिकता होती चली आ रही है। किसी ने इस बात का पता नहीं लगाया कि इतने वर्षों में कितने पेड़ लगाए गए और वह हैं कहाँ। यदि उनमें से पांच प्रतिशत भी बचे होते या बचाए जा सके होते तो आज पर्यावरण के लिए यह हाय तौबा नहीं मचती।

371535-hero-image-8
371535-hero-image-8

पुराने समय में जब पैदल चलने की परंपरा थी तो रास्तों के किनारे पेड़ों को लगाने से पुण्य मिलेगी ऐसा सोचा जाता था क्योंकि यात्री को छाया और विश्राम के लिए स्थान चाहिए होता था। रास्तों के किनारे कुआ भी बनाये जाते थे और प्याऊ भी बनते थे, एक बहाना था वृक्ष लगाने का उन्हें पालने का और फल छाया जमीन की उर्वरा शक्ति और जमीन को परमेबल यानी पारगम्य बनाने का अपने आप अवसर मिल जाता था। आजकल यदि पेड़ लगाए भी जाते हैं, तो व्यापार के लिए एक ही प्रकार के, फलों वाले बाग बगीचे तो मिल जाएंगे, लेकिन जंगल समाप्त हो गए हैं और उसका नतीजा यह है कि जंगली जानवरों को रहने के लिए जगह ही नहीं बची है। यदि वे जानवर गांव में घूमते दिखाई पड़े, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि हमने उनका आशियाना उजाड़ दिया।

हमारी सनातन परंपरा में पेड़ों को बचाने के नए-नए तरीके निकाले जाते रहे हैं। आस्था के कारण अनेक पेड़ चाहे फिर बरगद हो पीपल हो उनको क्षति नहीं पहुँचनी चाहिए क्योंकि साल में एक बार सारी महिलाएँ वट वृक्ष की पूजा करती थी और आज भी करती है। महिलाओं को विश्वास है कि वट वृक्ष की पूजा से वे सदा सुहागन रहेंगी। इस वृक्ष का एक महत्व और भी है कि इसके नीचे बैठ कर गौतम बुद्ध को ज्ञान मिला था । यह पूजा बुद्ध पूर्णिमा के दिन होती है। पीपल पर ब्रह्मदेव या ऐसे ही देवता निवास करते हैं, यह माना जाता रहा है। इसी तरह फलों के महत्व को समझते हुए फलों के बाग लगाने की परंपरा थी जिसमें आम, अमरूद, जामुन, शरीफा, और पहाड़ी इलाकों में सेब, संतरा, चीकू और खुबानी आदि के बगीचे लगाए जाते रहे और उनकी रक्षा, देखभाल पर्यावरण के लिए उपयोगी तो थी मनुष्य की आय बढ़ाने का एक साधन भी था।

पुराने समय में लकड़ी का उपयोग अनेक प्रकार से होता था। जैसे मकान बनाने में, बैलगाड़ी, नाव और फर्नीचर आदि बनाने में, लेकिन अब उनके विकल्प खोजे जा चुके हैं और प्लास्टिक तथा लोहा का उपयोग अधिक से अधिक मात्रा में होने लगा है। अब पेड़ों का कटान घटना चाहिए था लेकिन लालची मनुष्य उसे घटने नहीं दे रहा है और कभी फलों की पैकिंग के लिए तो कभी लकड़ी के खिलौनों को बनाने के लिए लकड़ी का उपयोग किया जाता है। पेड़ों का कटान रुकने से सारी समस्याएँ तो हल नहीं होगी लेकिन काफी हद तक राहत मिलेगी। पहले लकड़ी का कोयला रसोइयों में खाना बनाने के काम आता था और पत्थर का कोयला रेलगाड़ी चलाने में तथा बिजली बनाने के उपयोग में आता था, लेकिन मनुष्य ने उससे होने वाली हानियों को पहचाना है और उन सब कामों के लिए पेड़ों का कटान घटा है।

371534-hero-image-7
371534-hero-image-7

जंगलों के काटने के लिए काफी हद तक बढ़ती हुई आबादी भी जिम्मेदार है। खेती के लिए किसानों ने जंगलों का कटान तो किया लेकिन प्रति एकड़ पैदावार कम होने के कारण उसका वांछित लाभ नहीं मिल पाया। पहाड़ों पर पेड़ों के कटान का और भी खराब परिणाम होता है क्योंकि पहाड़ों की ढलान पर जब तक पेड़ और वनस्पति रहती है तब तक बहता हुआ पानी मिट्टी का अधिक नुकसान नहीं कर पाता लेकिन वनस्पति की आक्षादित करने वाली परत जैसे ही घटती है, वैसे ही भूस्खलन की सम्भावनाएँ भी बढ़ने लगती है। सनातन परंपरा में वृक्ष और वनस्पति के संरक्षण को अनेक बार आस्था से जोड़ा गया है। हमारे यहाँ तुलसी का पौधा लगभग सभी आस्थावान घरों में होता है और पूजा के लिए चरणामृत बनाते हैं तो थोड़ी तुलसी की पत्तियां डालना अनिवार्य होता है। इतना ही नहीं मनुष्य के जीवन की अंतिम यात्रा के अंतिम क्षणों में तुलसी की पत्तियां उसके मुँह में डाली जाती है। मैं नहीं जानता कि तुलसी की रासायनिक संरचना क्या है कि उसे इतना महत्व दिया गया है कि महिलाएँ नित्य तुलसी की पूजा इसलिए करती है कि वह आजीवन अपने पति के साथ रहे। तुलसी की ही तरह बेलपत्र का भी महत्व है और शंकर जी की पूजा अधूरी होती है जब तक उनकी पूजा में धतूरा के फल, बेल पत्र और तुलसी दल आदि न प्रयोग किए जाएँ। ऐसे ही अनेक औषधीय पेड़ हैं जिनको आस्था पूर्वक लगाया और बढ़ाया जाता है इनमें से एक है आंवला का पेड़ जिसे अमृत फल कहते हैं। वास्तव में आंवला, हड़ और बहेड़ा तीनों को अलग-अलग अनुपात में मिलाकर देने से शरीर के अनेक रोग दूर होते हैं।

इसी तरह नीम का पेड़ भी औषधीय गुणों से भरपूर है और हमको वायु प्रदूषण से बचाता है। इसको लगाने के लिए हमको प्रोत्साहित करने के लिए हमें बताया जाता है की देवी मंदिर के प्रांगण में नीम का वृक्ष लगाना अच्छा होता है। इसी प्रकार अर्जुन का पेड़ हृदय रोगों के लिए लाभदायक है, इसलिए हम आम के पेड़ लगाएं या ना लगाएं हमें नीम, बेल, अर्जुन, आंवला, हड़, बहेड़ा, जामुन ऐसे तमाम प्रकार के पेड़ अवश्य लगाने चाहिए। केवल बड़े पेड़ ही नहीं छोटी से छोटी घास जिसे दूर्वा या दूब घास कहते हैं वह भी बहुत लाभदायक है और दुधारू जानवरों को तो खिलाते ही हैं।

दुनिया में कोई भी वनस्पति या पेड़ ऐसा नहीं है जिसका उपयोग ना हो। कहते हैं आयुर्विज्ञान का अध्ययन जब पूरा हो जाता था तो परीक्षा के तौर पर विद्यार्थी को एक मार्ग या एक क्षेत्र दिया जाता था जहाँ से ऐसी वनस्पति ढूंढ कर लानी होती थी जिसका कोई उपयोग ना हो। यदि वह कोई वनस्पति लाता था तो उसकी अज्ञानता का प्रमाण होता था क्योंकि गुरुजनों को पता था कि कौन सी वनस्पति किस बात के लिए महत्व रखती है और किन गुणों से भरपूर है। वृक्ष लगाना तो ठीक है लेकिन वृक्षों के प्रकार का चुनाव भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना वृक्षारोपण। अक्सर देखा गया है कि कम समय में होने वाले और ज़मीन से अधिक जल खींचने वाले पेड़ जैसे यूकेलिप्टस, पॉपुलर आदि को इसलिए लगाया जाता है कि वह कैश क्रॉप के नाम से जाने जाते हैं और शीघ्र पैसा दे देते हैं। लेकिन हम इस बात की चिंता नहीं करते कि थोड़े से पैसे के लिए हमने प्रकृति का कितना नुकसान कर दिया है। एक ही प्रकार के पेड़ लगाने के बजाय आम, जामुन, कटहल, और दूसरे फल देने वाले पेड़ जैसे पहले बगीचे में लगाए जाते थे वह परंपरा कायम रहनी चाहिए।

वृक्षारोपण के लिए अवसर निकाले जा सकते हैं जैसे घर में किसी बच्चे का जन्म हो या किसी दूसरे बच्चे का जन्मदिन हो उस अवसर पर एक पेड़ लगाकर और उस समय को याद रखने का अच्छा बहाना है। कई बार कई लोग अपनी शादी की सालगिरह पर या फिर पूर्वजों की याद में उनके पुण्य तिथि पर वृक्ष लगाते हैं और इस प्रकार वृक्षों के साथ भावनाएं जुड़ जाती हैं और उनकी देखभाल सुनिश्चित हो जाती है। पुराने समय में कंदमूल फल आदि का सेवन, रोग नाशक, स्वास्थ्यवर्धक माना जाता था और वह आज भी प्रासंगिक है। हमें वृक्षारोपण की परंपरा बुद्ध पूर्णिमा को या गुरु पूर्णिमा को या ऐसे ही शुभ अवसरों को चुनकर बनानी चाहिए और प्रतिवर्ष उसे जारी रखना चाहिए तभी हम अपने पर्यावरण की रक्षा कर पाएंगे और तभी इस पृथ्वी की हरियाली भी बचेगी।

Tags:
  • GaonPostcard

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.