WHO की मलेरिया वैक्सीन को मंजूरी, ओडिशा के आदिवासी कोरापुट जिले में मलेरिया साथियों में खुशी की लहर

Pratyaksh Srivastava | Nov 17, 2021, 12:36 IST
मलेरिया की रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक बनाने, तेजी से जांच करने और दवाएं बांटने के लिए ओडिशा में एक समुदाय संचालित कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जिसमें मलेरिया ‘साथी’ व ‘दूत’ आशा कार्यकर्ताओं और एएनएम के साथ मिलकर काम करते हैं। इस सफल कार्यक्रम की बदौलत 2017 से 2020 तक, पूर्वी राज्य में मलेरिया की घटना 347,860 से घटकर 41,739 हो गई है। 2030 तक वेक्टर जनित इस बीमारी को खत्म करने की योजना बनाई जा रही है। मलेरिया से जूझ रहे कोरापुट जिले से एक रिपोर्ट
#Malaria Vaccine
चिंतागुड़ा (कोरापुट), ओडिशा। तुलसी हबिका अपने इलाके के मलेरिया 'साथी' को बार-बार शुक्रिया कहते हुए नहीं थकती। उन्होंने उस समय उनकी मदद की थी, जब वह अपने आपको काफी असहाय महसूस कर रही थीं।

खाजागुड़ा गांव में रहने वाली तुलसी के लिए वह समय मुश्किल भरा था। सितंबर का महीना था, घर में उनका छह साल का बेटा रजीबा 'दर्द से तड़प रहा था, उसे बहुत उल्टी हो रहीं थी और बुखार भी था'। तुलसी का संबंध कोंधा जनजाति के डोंगरिया कबीले से है।

40 वर्षीया तुलसी कहती हैं, "मैंने अपने 'साथी' राजेंद्रो को इस बारे में खबर की। उन्होंने मेरे बेटे की जांच की और कुछ दवाएं दीं। इसके बाद , हम उसे नारायणपटना के एक अस्पताल में ले गए। डॉक्टर ने सुई और बॉटल (इंजेक्शन और सेलाइन) लगाया और हमें दवा जारी रखने की सलाह दी। " तुलसी अपने उस 'साथी' और डॉक्टर को धन्यवाद कहती हैं जिन्होंने समय पर उसकी मदद की औऱ उसके छह साल के बच्चे को नई जिंदगी दी। रजीबा को मलेरिया था।

356566-tulsi-hobika
356566-tulsi-hobika
तुलसी हबिका अपने बेटे रजीबा के साथ, जिन्हें 21 सितंबर को मलेरिया पॉजिटिव पाया गया था। तस्वीर में उनके पति सिनेया हबिका भी मौजूद हैं। फोटो: प्रत्यक्ष श्रीवास्तव

आदिवासी गांव खाजागुड़ा, राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 500 किलोमीटर दूर कोरापुट जिले के नारायणपटना ब्लॉक में है। कोरापुट एक आदिवासी बहुल इलाका है। जहां वे पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच स्थित सुदूर बस्तियों में रहते हैं। कोरापुट में मच्छरों से होने वाली बीमारियां ज्यादा होती हैं खासकर मलेरिया। यह जिला अक्सर नक्सली उग्रवाद के लिए भी चर्चा में रहता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में 6 अक्टूबर को दुनिया के पहले मलेरिया टीके को मंजूरी दी है। इसके बाद से कोरापुट के राजेंद्रो जैसे स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता काफी खुश हैं। उनके लिए ये खबर आशा की एक किरण बनकर आई है। राज्य की रीढ़ बन चुके इन साथियों की मदद से 2030 तक इस बीमारी को खत्म करने की योजना है। भुवनेश्वर में राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों के बीच नए टीके को लेकर चर्चा शुरु हो गई है।

ओडिशा के राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP) के राज्य कार्यक्रम अधिकारी शुभाशिशा मोहंती ने गांव कनेक्शन को बताया, "अब तक, घाना, केन्या और अफ्रीका के मलावी में मलेरिया के टीके का इस्तेमाल किया गया है। हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार इसे खरीदेगी और इससे मलेरिया की घटनाओं को कम करने में मदद मिलेगी , खासकर बच्चों में।"

राष्ट्रीय कार्यक्रम के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ओडिशा में मलेरिया के मामले देश में सबसे अधिक रहे हैं।

2 दिसंबर, 2020 को प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, भारत में मलेरिया के कुल मामलों में से लगभग 45.47 प्रतिशत (भारत के 3,38,494 मामलों में से 1,53.909 मामले) ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मेघालय और मध्य प्रदेश राज्यों से हैं।

356567-malaria-s-1
356567-malaria-s-1

मलेरिया को खत्म करने के लिए जमीनी स्तर पर कार्यक्रम

ओडिशा सरकार राज्य में मलेरिया को नियंत्रित करने और खत्म करने के लिए जमीनी स्तर पर कार्यक्रम चला रही है। अगस्त 2018 में, राज्य ने न्यूयॉर्क स्थित गैर-लाभकारी संगठन 'मलेरिया नो मोर' के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर कर एक संयुक्त पहल की शुरूआत की। गैर-लाभकारी संस्था कोरापुट के बंधुगांव, बोईपारीगुडा और नारायणपटना ब्लॉक में राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर काम करती है। ये इलाके मलेरिया के उच्च प्रसार के लिए जाने जाते हैं। ओडिशा के जन स्वास्थ्य निदेशक निरंजन मिश्रा के अनुसार, राज्य में मलेरिया के आधे से ज्यादा मामले दक्षिणी जिलों कोरापुट और मलकानगिरी से सामने आए हैं।

356568-odisha-malaria
356568-odisha-malaria
मलेरिया नियंत्रण पहल स्थानीय समुदाय की भागीदारी के आधार पर एक मॉडल का उपयोग करती है और साथी इस कार्यक्रम की मौलिक इकाई हैं।

कोरापुट के मुख्य जिला चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी मकरंदा बेउरा ने गांव कनेक्शन को बताया "कोरापुट पहाड़ी और वन क्षेत्रों से भरा है। 776 गांव ऐसे हैं जहां पहुंचना मुश्किल है। यहां रहने वाले आदिवासी कम कपड़े पहनते हैं जिस कारण मच्छरों से बचाव नहीं हो पाता और वे मलेरिया जैसी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। ये क्षेत्र सड़क मार्ग से भी जुड़े हुए नहीं हैं इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं का यहां तक पहुंचना एक चुनौती है।"

इस मलेरिया नियंत्रण पहल में स्थानीय समुदाय की भागीदारी को आधार बनाया गया है। जिसमें साथी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

कोरापुट में 'मलेरिया नो मोर' के जिला कार्यक्रम प्रबंधक, संतोष कुमार बघार ने गांव कनेक्शन से कहा, "हम स्थानीय समुदाय के लोगों को रोजगार देते हैं। उन्हें जागरूकता फैलाने, दवाओं की आपूर्ति करने, एंटीजन जांच करने और अपने कार्य क्षेत्र में मलेरिया की स्थिति पर रजिस्टर बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।"

356569-narayanpatna
356569-narayanpatna

बघार के अनुसार, इस कार्यक्रम में समुदाय के प्रतिनिधि तीन स्तर पर काम करते हैं - मलेरिया साथी, मलेरिया दूत और फील्ड सुपरवाइजर।

समुदाय संचालित मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम कई ग्रामीण महिलाओं को भी सशक्त बना रहा है। उन्हें गांवों में साथी के रूप में नियुक्त किया गया है। ये महिलाएं न केवल दूर-दराज के इलाकों में मलेरिया के बारे में जागरूकता फैलाती हैं बल्कि मलेरिया के लिए संदिग्ध मरीजों से खून की जांच के नमूने भी एकत्र करती हैं और दवाएं भी बांटती हैं। जिस भी व्यक्ति को साथी के रूप में नियुक्त किया जाता है उसका उड़िया भाषा में साक्षर होना जरुरी है। कोरापुट जिले में 60 साथी और 18 मलेरिया दूत हैं।

नारायणपटना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) से लगभग 24 किलोमीटर दूर, 21 साल की मीता तडिंगी भी अपने गांव चिंतागुड़ा में मलेरिया साथी के रुप में काम कर रहीं हैं।

356570-asha-worker-2
356570-asha-worker-2
मीता तडिंगी अपने पति कस्तू तडिंगी और तीन साल के बेटे स्टालिन के साथ।

वह बताती हैं, "मुझे पिछले साल जुलाई में एमएनएम ने खून की जांच करने, घरों का सर्वे करने और गांव के लोगों को जागरूक करने के काम में प्रशिक्षित किया था। गांव वाले मेरे काम का सम्मान करते हैं और मैं महीने में करीब तीन से चार हजार रुपये कमा लेती हूं। वह आगे कहती हैं "सीएचसी ने अब मुझे आशा कार्यकर्ता बना दिया है।"

साथी-दूत-एएनएम औऱ मरीज मिलकर करते हैं मुकाबला

मलेरिया को खत्म करने के लिए जमीनी स्तर पर चलाई जा रही इस योजना में, ग्रामीण, मलेरिया साथी, मलेरिया दूत और सरकार द्वारा नियुक्त सहायक नर्स-दाइयों (एएनएम) के बीच एक मजबूत साझेदारी है।

जिला कार्यक्रम प्रबंधक बघार समझाते हुए कहते हैं, "साथी आमतौर पर वह युवा होते हैं जो उडिया भाषा पढ़ और लिख सकते हैं। वे ग्रामीणों को मलेरिया के बारे में जागरूक करने, नियत्रंण के उपाय बताने और मलेरिया के संदिग्ध मामलों की जांच करने का काम करते हैं।" वह आगे कहते हैं, " अगर किसी मरीज की मलेरिया रिपोर्ट पॉजेटिव आती है तो साथी मलेरिया दूत के पास जाता है। दूत मरीजों को दी जाने वाली दवाओं के लिए निकटतम उप-केंद्रों से संपर्क करता है।"

356571-santosh-mnm
356571-santosh-mnm
संतोष कुमार बघार, मलेरिया नो मोर के जिला कार्यक्रम प्रबंधक, कोरापुट।

साथी सिर्फ एक गांव के लिए काम करता है जबकि दूत ऐसे तीन से पांच गांवों में दवाओं की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार होता है। मलेरिया के दूत सरकार द्वारा नियुक्त एएनएम के मार्गदर्शन में काम करते हैं। साथी मरीजों की जांच के लिए रैपिड डायग्नोस्टिक किट (RTK) का भी इस्तेमाल करते हैं। यह किट 15 मिनट के अंदर रिजल्ट बता देती है। इसके लिए गांव से बाहर जाने की भी जरूरत नहीं होती।

फील्ड सुपरवाइजर को लगभग 20 गांवों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है कि वे हर महीने मलेरिया के मामलों के आंकड़ों को इक्ट्ठा करते हैं और इसे कोरापुट की जिला परियोजना प्रबंधन इकाई में लाकर जमा करते हैं।

बघार ने कहा, "हम उन युवाओं को फील्ड सुपरवाइजर की भूमिका सौंपते हैं, जिनके पास गांवों और हमारे कार्यालय के बीच की 100 किलोमीटर तक दूरी तय करने के लिए बाईक या फिर स्कूटर जैसा कोई साधन होता है। "

356572-narayanpatna-chc
356572-narayanpatna-chc

बंधुगांव ब्लॉक के एक फील्ड पर्यवेक्षक कुमार गोटापू सागर ने गांव कनेक्शन को बताया "हमारा माओवाद प्रभावित जिला है। अक्सर आते-जाते माओवादियों हमें रोक लेते हैं लेकिन जब उन्हें पता चलता है कि हम गरीबों, आदिवासी और ग्रामीणों के स्वास्थ्य के लिए काम कर रहे हैं, तो वे हमें परेशान नहीं करते।"

नक्सल प्रभावित जिले में इन चुनौतियों का सामने किए बिना काम नहीं किया जा सकता है। 'मलेरिया नो मोर' के राज्य प्रभारी बिस्वजीत मोहंती गांव कनेक्शन से कहते हैं, "हमने शुरू में मलेरिया सूचक नाम दिए जाने के बारे में सोचा था। जिसका अंग्रेजी में मतलब है 'मलेरिया इंफोर्मर' यानि 'मलेरिया मुखबिर'। 'मुखबिर' शब्द उग्रवाद से जूझ रहे जिले में मुसीबत का कारण बन सकता था। " वह बताते हैं, " फिर अधिकारियों ने हमें कुछ ऐसा नाम रखने की सलाह दी जो थोड़ा मिलनसार हो। तब हमने साथी नाम रखने का फैसला किया। "

मलेरिया को नियंत्रण में रखने के उपायों पर ध्यान

कोरापुट में स्वास्थ्य विभाग के वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण विंग के अतिरिक्त निदेशक सुशांत कुमार दास ने गांव कनेक्शन को बताया, अगर समुदाय के लोग पहल में शामिल होंगे तभी मलेरिया को खत्म कर पाना संभव हो पाएगा। समुदाय के अंदर से ही लोगों को बतौर कार्यकर्ता तैयार करना होगा, तभी बदलाव लाया जा सकता है। हम इसके लिए आशा और मलेरिया साथियों की भूमिका की बहुत सराहना करते हैं।"

356573-odisha-cases
356573-odisha-cases

सुशांत कुमार दास आगे कहते हैं, "सरकारी पहल में स्थानीय समुदाय की भागीदारी ही उन्हें सफल बनाती है। बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग, मामलों की सतर्क रिपोर्टिंग, आदिवासी आबादी को उपयुक्त कपड़े पहनने के लिए राजी करना, शाम होने पर कीटनाशक जाल के उपयोग को बढ़ावा देना और मरीजों द्वारा उपचार प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करना, समुदाय की भागीदारी के कारण ही संभव है।"

लंबे समय तक चलने वाले कीटनाशक जाल, इनडोर अवशिष्ट स्प्रे और DAMaN (दुर्गमा अंचलरे मलेरिया निराकरण) पहल रोग को नियंत्रित करने में काफी प्रभावी साबित हुए हैं।

356574-niranjan-mishra
356574-niranjan-mishra
ओडिशा के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के निदेशक निरंजन मिश्रा।

कीटनाशक मच्छरदानी पर रसायनों का लेप लगाया जाता है। यह तीन साल तक प्रभावी जिसके बाद इन्हें बदलना पड़ता है। अतिरिक्त निदेशक ने कहा, "केंद्र सरकार ने ओडिशा को इस तरह के जाल या मच्छरदानी मुहैया कराई हैं। हम 2030 तक ओडिशा को मलेरिया मुक्त बनाने की उम्मीद कर रहे हैं।"

दास ने इस बात पर भी जोर दिया कि मरीज को समय पर पूरा इलाज भी मिलना जरुरी है वरना खून में मौजूद गैमेटोसाइट की वजह से मरीज की स्थिति कुछ ही समय में खराब हो सकती है।

दास ने कहा कि इंटरैक्टिव चार्ट और जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए स्कूली बच्चों को भी मलेरिया के बारे में शिक्षित किया जा रहा है।

भुवनेश्वर में राज्य के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के निदेशक निरंजन मिश्रा ने कहा कि साक्षरता बढ़ने, गांव तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग बनने और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं ने राज्य में मलेरिया के प्रसार को कम किया है।

दूरदराज के गांवों से संपर्क करने के लिए बनाए 'हैलो पॉइंट'

कोरापुट के नारायणपटना ब्लॉक में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में टेक्निकल सपोर्ट सुपरवाइजर संतोष कुमार बेहरा के अनुसार, मलेरिया की घटनाओं को नियंत्रित करने के उपायों को क्रियान्वित करने में प्रमुख चुनौतियों में से एक कनेक्टिविटी है।

वह कहते हैं, "मुझे हर महीने जिला मुख्यालय को समय पर डेटा भेजना होता है ताकि वे मलेरिया की स्थिति का आकलन कर सकें। लेकिन मोबाइल कनेक्टिविटी न होने और इंटरनेट के ढंग से न चलने के कारण हमें रिपोर्ट भेजने में देरी हो जाती है।

356575-santosh-behera
356575-santosh-behera
संतोष कुमार बेहरा दूर-दराज के क्षेत्रों में कनेक्टिविटी की समस्या से लड़ने के लिए, दूत ने उन स्थानों की पहचान की है जहां मोबाइल कनेक्टिविटी बहुत खराब नहीं है। बिस्वजीत मोहंती ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमने ऐसे क्षेत्रों को 'हैलो पॉइंट' नाम दिया है, जिनका इस्तेमाल दूरदराज के पहाड़ी इलाकों से संपर्क करने के लिए किया जा रहा है।"

कुछ मलेरिया साथियों और दूतों ने समय पर दवाओं की कमी और उपलब्धता न हो पाने की ओर इशारा किया।

20 साल की मलेरिया दूत नागेश हुइका ने गांव कनेक्शन को बताया, "कभी-कभी एएनएम और उपकेंद्रों से दवाएं मिलने में एक दिन से ज्यादा का समय लग जाता है। जिस कारण हम समय पर मरीजों तक दवाएं नहीं पहुंचा पाते।" उन्हें जोगीपालुर उप-केंद्र से मेडिकल सप्लाई उपलब्ध कराई जाती है।

इस काम में एक और बाधा है। मलेरिया के मामलों का रिकॉर्ड रखने में कई तरह की विसंगतियों का पाया जाना।

356576-susanta
356576-susanta
सुशांत कुमार दास, कोरापुट में वेक्टर जनित रोग नियंत्रण विंग के अतिरिक्त निदेशक।

वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण विंग के अतिरिक्त निदेशक सुशांत कुमार दास ने कहा, "कभी-कभी सरकारी रिपोर्ट और एमएनएम रिपोर्ट मेल नहीं खाती है। इससे पता चलता है कि ग्रामीण मलेरिया साथियों को दरकिनार कर सीधे सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर आकर अपने मामलों की रिपोर्ट दे रहे हैं। इसके चलते वास्तविक मामलों की तुलना में गैर-लाभकारी संस्था कम मामले दर्ज कर पाते हैं।"

अगर इन छोटी-छोटी बाधाओं को छोड़ दिया जाए तो, राज्य सरकार और जमीनी स्तर के कार्यकर्ता दोनों ही राज्य से 2030 तक मलेरिया को खत्म करने के लिए आश्वस्त हैं। मलेरिया के टीके को हाल ही में मिली मंजूरी उनके संकल्प को और मजबूत करती है।

Tags:
  • Malaria Vaccine
  • Odisha
  • who
  • story

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.