लॉकडाउन: ट्रांसजेंडर समुदाय के सामने रोजी-रोटी का संकट, 10 राज्यों में गाँव कनेक्शन ने की बात

ट्रेन और बसों में मांगकर, शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में नाच गाकर अपना घर चलाने वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के सामने अब रोजी-रोटी का संकट आ गया है। गाँव कनेक्शन ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, जम्मु-कश्मीर और पश्चिम बंगाल के ट्रांसजेंडर समुदाय से उनकी समस्याओं के बारे में बात की।

Piyush Kant PradhanPiyush Kant Pradhan   4 May 2020 12:42 PM GMT

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ट्रेन और बसों में मांगकर, शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में नाच गाकर अपना घर चलाने वाले ट्रांसजेंडर समुदाय के सामने अब रोजी-रोटी का संकट आ गया है। लॉकडाउन से जब आज हर कोई घरों में कैद है। दिहाड़ी पर काम करके खाने वाले लोगों के पास राशन नहीं है। ट्रांसजेंडर भी उसी में शामिल हैं। महामारी से ट्रेन और बसें बंद हो गईं हैं, जो ट्रांसजेंडर ट्रेनों और बसों में मांगकर अपना जीवन चलाते थे उनके सामने भारी संकट आ गया है।

लॉक डाउन की वजह से सभी शादी और महोत्सव पर रोक लगा दी गयी है। ऐसे में ट्रांसजेंडर समुदाय से जो लोग बधाई बजाकर और त्योहारों में मांगकर जीवन चलाते थे वो अब बेसहारा हो गये हैं। गाँव कनेक्शन ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, जम्मु-कश्मीर और पश्चिम बंगाल जैसे दस राज्यों के ट्रांसजेंडर समुदाय से उनकी समस्याओं के बारे में बात की।

महाराष्ट्र के वर्धा जिले में उन्नीस साल के अमन के पास अब खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। अमन अपने तीन साथियों के साथ एक छोटे से घर में रहते हैं। अमन बताते हैं, "जब से देश में लॉकडाउन शुरू हुआ है, किन्नरों का जीवन बर्बादी के कगार पर आ गया है। हम लोगों के साथ पहले से ही भेदभाव होता रहा है और आज इतने बड़े संकट के समय में भी वो भेद भाव हो रहा है। सरकार और समाज हमें पीछे छोड़ते जा रहे हैं।


अमन अभी ग्रेजुएशन के पहले साल में हैं, उन्हें लगता है कि अगर और ज्यादा दिनों तक ऐसे ही लॉकडाउन रहा तो और भी बड़ा संकट आ जाएगा। वो कहते हैं, "लोग जगह-जगह खाना बांट रहे हैं लेकिन जब हम लोग वहां खाना लेने जाते हैं तो लोगों के द्वारा एक अजीब तरीके से प्रतिक्रिया दी जाती है। जो ठीक बात नहीं है हम लोग भी तो इसी समाज का हिस्सा हैं। सरकार की तरफ से कुछ किन्नरों को कुछ पैसा आया है वो भी जिनके पास कोई दस्तावेज है उन्हें ही मिल पाया है।" अमन सरकार से निवेदन करते हैं कि सरकार मदद करे नहीं तो अब जीना मुश्किल हो जाएगा।

महाराष्ट्र के ही मुम्बई में रहने वाली ट्रांसजेंडर माधुरी अपनी समस्या बताते हुए कहती हैं, "ट्रांसजेंडर समुदाय के ज्यादातर लोग ट्रेनों में मांगकर, शादियों में बधाई बजाकर अपना पेट पालते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सेक्स वर्क करके अपना और अपने परिवार का जीवन चलाते थे। लॉकडाउन में यह सब कुछ बंद चल रहा है। अब हम लोगों के सामने दिक्कत आ गयी है। अब न तो हम भीख मांग सकते हैं और न अपना खुद का कोई काम कर सकते हैं। जीना मुश्किल हो गया है।"

देश में ट्रांसजेंडर की संख्या 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 49 लाख है जबकि सरकार दस्तावेजों में रजिस्टर्ड ट्रांसजेंडर पांच लाख के करीब हैं।

पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में रहने वाली देबी जिला कल्याण बोर्ड में संविदा पर नौकरी करती हैं। वो ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याओं को लेकर बहुत चिंतित हैं। देबी बताती हैं, "केंद्र सरकार की तरफ़ से हमारे समुदाय के कुछ लोगों को 1500 रुपए मिले हैं और कुछ राशन भी मिला है, लेकिन एक ट्रांसजेंडर के लिए इतने में जीवन बिता पाना संभव नहीं है।"

देबी के अनुसार यह पैसे और राशन भी उन्हीं लोगों को मिले हैं, जिनके पास कुछ कागज जैसे राशन कार्ड, बैंक अकाउंट और आधार कार्ड हैं। देबी खुद सवाल करती हैं कि आप बताइए कि ट्रांसजेंडर समुदाय में इन कागजों को लेकर कितनी जागरूकता है? ऐसे में मुझे लगता है कि लगभग 20 प्रतिशत से भी कम किन्नरों को इसका फायदा मिल पाया है।"


देबी आगे बताती हैं, "कोरोना महामारी के बाद जो हालात होने वाले हैं और भी खतरनाक होंगे। क्योंकि लॉकडाउन खुलने के बाद यदि हम किसी की घर बधाई मंगाते हैं और कुछ पैसों की डिमांड करते हैं तो सामने वाला भी यह कहेगा कि इतने दिनों से बंदी चल रही है कहां से पैसा लाएं। ट्रेन चलने के बाद वहां किसी भाई बन्धु से पैसा मांगते हैं तो वो भी कहां से देगा जो इतने दिनों से घर बैठा है। और फिर हमें अपनी जिंदगी भी तो बचानी हैं, ट्रेनों में सोशल डिस्टेंसिंग को कैसे बनाये रखा जा सकता है।"

झारखण्ड के जमशेदपुर से ट्रांसजेंडर अमरजीत सरकार से काफ़ी नाराज दिखते हैं अमरजीत एक पढ़े-लिखे ट्रांसजेंडर हैं। वो कहते हैं, "ट्रांसजेंडर के साथ शुरू से ही समस्या रही है, लेकिन लॉकडाउन का समय ट्रांसजेंडर के लिए बहुत ही खतरनाक है। हमारे लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार की तरफ़ से कोई योजना नहीं है। सरकार हमारे तरफ़ तब ध्यान देती है जब चुनाव होता है। कुछ दिन पहले हमारे समुदाय के तीन लोग पास मांगने गये थे ताकि कुछ लोग बाहर निकलकर एक दूसरे की मदद कर सकें लेकिन हमें पास देने से भी मना कर दिया गया। अब जो सरकार हमें पास नहीं दे रही है वो हमें क्या मदद करेगी।"

वो आगे कहते हैं, "हम लोगों को अभी तक कोई भी राशन नहीं मिला है। न ही कोई आर्थिक मदद मिल पाई है। कुछ गैर सरकारी संगठन कुछ राशन की मदद किये हैं। लेकिन वो भी कितना मदद करेगें। हम लोगों का जीना मुश्किल हो गया। हमारे समुदाय के पास कोई रोजगार नहीं है, जब नई सरकार बनती है तो कहती है कि हम ट्रांसजेंडर को नौकरी देंगे लेकिन चुनाव के बाद सब भूल जाते हैं।"


कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन हुआ है। इस बंदी के चलते हर दिन कमाने-खाने वाले लोगों की मुश्किलें दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। ट्रांसजेंडर भी देश की एक बड़ी आबादी है जो रोज कमा खाकर अपना भरण-पोषण करती थी। समाज से दरकिनार किया हुआ ये समुदाय आपको खाने के लिए लगी किसी लाइन में भी नहीं दिखेगा क्योंकि लोग इन्हें ही घूरते रहते हैं।

दिल्ली से एक अन्य ट्रांसजेंडर रुद्रानी अपनी समस्या बताते हुए गंभीर हो जाती हैं। वो कहती हैं, "हमारे सामने ही समुदाय के लोग भूख से तड़प रहे हैं। अब आंखों से देखा नहीं जाता है। उनके लिए कोई मदद नहीं है। उनके पास इतना तक नहीं है कि कुछ दिन तक वो बिना काम किये अपना जीवन काट सकें।"

रुद्रानी ने किन्नर समुदाय की एक बड़ी समस्या के ऊपर ध्यान दिलाया, वो कहती हैं कि लॉकडाउन के इस दौर में हम लोगों को रहने की बड़ी समस्या है। लोग अब अपने घर से निकाल रहें हैं। जिस कमरे का किराया पांच हजार तक है मकान मालिक उसी कमरे का दाम आठ हजार मांग रहे हैं। पुलिस या किसी अधिकारी लोगों के पास जाने पर वो आईडी प्रूफ मांगते हैं। किन्नर समाज में बहुत से सदस्यों के पास कोई कागज नहीं है। अब हम कहां से यह लाकर दें। हमारे प्रधानमंत्री जी यह कहते हैं कि मकान मालिक अपने किरायदारों से किराया न लें लेकिन हम लोग तो क़ानूनी तौर पर किरायेदार ही नहीं रह गये हैं।"

वो कहती हैं कि लॉकडाउन खत्म होने के दो साल तक हमारे समुदाय के लोगों का जीवन पटरी पर नहीं आने वाला है। आज पूरी दुनिया की आर्थिक स्थिति डगमगाने वाली है। अब जब लोगों के पास ही पर्याप्त नहीं रहेगा तो वो हमें कहां से देंगे। लॉकडाउन में समाज का हर तबका परेशान है लेकिन उन लोगों के पास कोई न कोई है जिससे वो अपनी समस्या को बता सकते हैं और मदद मांग सकते हैं लेकिन हमारे पास तो कोई नहीं है। किन्नर लोग सिंगल लाइफ जीते हैं वो किससे अपनी समस्या शेयर करें।"

गुजरात के वड़ोदरा की रहने वाली मानवी एक ट्रांसजेंडर हैं, लॉकडाउन में मानवी को अपने घर वालों की बहुत याद आ रही है। मानवी लॉकडाउन में किन्नर समुदाय में बढ़ते घरेलू हिंसा को एक बड़ी समस्या बताती हैं। वो कहती हैं कि जो ट्रांस अपने पार्टनर के साथ रह रहें हैं उनका काफी शोषण हो रहा है। वो कहती हैं कि ट्रांस में गुरु और चेला वाला सिस्टम भी चलता है जो ट्रांस अपने गुरु के पास रह रहे हैं उनके साथ भी समस्या है। गुरु लोग अब चेलों का साथ छोड़ रहे हैं ऐसे में उन लोगों के पास एक अलग से समस्या पैदा हो रही है। मुश्किल के इस दौर में कहाँ जाये और किससे मदद मांगे।


कर्नाटक के बैंगलूरू से ट्रांसजेंडर किरण ट्रांस समुदाय के लिए काम करती हैं। किरण पिछले कई सालों से ट्रांस समुदाय की आवाज बनती रहीं हैं। किरण सवेरे के आठ बजे उठ जाती हैं और राशन का इंतजाम कर अपने साथियों में बांटने चली जाती हैं। किरण कहती हैं, "लॉकडाउन में हम लोगों के लिए हेल्थ प्रॉब्लम एक बड़ी समस्या है। हमारे बहुत से साथी जो देह व्यापार करते हैं उन्हें कई बीमारियां हो चुकी हैं। लॉकडाउन में उन्हें समय से दवाई नहीं मिल पा रही है। बीमार लोगों को खाना नहीं मिल पा रहा है। डॉक्टर लोग कोरोना से बचने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कह रहे हैं। अब जब पौष्टिक भोजन ही नहीं मिलेगा तो कैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। कैसे बचे कोरोना से यहां पेट नहीं भर रहा है।"

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की रहने वाली ट्रांसजेंडर सिमरन लॉकडाउन में मुंबई के उल्लासनगर में फंसी हुई हैं। सिमरन बताती हैं कि यहां पर हालात कुछ ठीक नहीं है। सिमरन अपने उत्तर प्रदेश के साथियों से फ़ोन पर बात करके काफी परेशान हैं। उनके साथियों के पास अब खाने के लिए कुछ नहीं बचा है। मकान के किराये की अलग समस्या है।

जम्मू कश्मीर के श्रीनगर की ट्रांसजेंडर महक की भी स्थिति कुछ ठीक नहीं है। उनकी भी समस्या लगभग एक जैसी ही है। राशन, किराया और मेडिकल की असुविधा है। महक कहती हैं, "जम्मू और कश्मीर तो पहले से ही लॉकडाउन जैसी स्थिति से गुजर रहा है। उस लॉकडाउन पर यह कोरोना की दोहरी मार है।"

मध्यप्रदेश के भोपाल से ट्रांसजेंडर संजना के पास रहने के लिए घर नहीं है। वो किराये के एक छोटे से घर में रहती हैं। संजना कहती हैं, "मध्य प्रदेश के ट्रांसजेंडर लॉकडाउन में समाज की अन्य लोगों को मदद कर रहे हैं लेकिन यह मदद एक निश्चित जगह तक ही सीमित है। अभी भी मध्य प्रदेश के बहुत से ट्रांस हैं जो काफी परेशान हैं। उनके तक कोई मदद नहीं मिल पा रही है।"

छत्तीसगढ़ के धमतरी से एक ट्रांसजेंडर जितेन्द्र (बदला हुआ नाम) के पास अब खाने के लिए राशन नहीं है। उनको इस बात का हमेशा डर बना रहता है कि कल क्या होगा। एक छोटे से कमरे में एक पतली सी चौकी है। कमरे के एक कोने में धूल जमा हुआ छोटा वाला सिलेंडर रखा है। जितेन्द्र अपने कमरे को वीडियो कॉल पर दिखाते हैं और कहते हैं कि कमरे को देखकर हमारी स्थिति का पता चल गया होगा।

वो कहते हैं, "यहां पर कुछ एनजीओ हैं जो कुछ राशन का इंतजाम कर दे रहें हैं नहीं तो जीना मुश्किल हो जाता। कुछ लोग एक दो दिन पर पका हुआ खाना पंहुचा जाते हैं। एक तरफ भूख का डर है तो दूसरी तरफ कोरोना का। एक से बच गये तो पता नहीं दूसरा क्या करेगा।"

छत्तीसगढ़ के ही बस्तर से ट्रांसजेंडर विद्या राजपूत ट्रांस समुदाय को लेकर बहुत दिनों से काम कर रही हैं। विद्या राजपूत ने हिंदी साहित्य से एमए किया है और साथ ही मास्टर ऑफ़ सोशल वर्क की डिग्री भी उनके पास है। विद्या अपना शुरूआती नाम विकास बताती हैं। विकास से विद्या तक का उनका सफर काफी चुनौतियों से भरा रहा है। ट्रांस समुदाय और लॉकडाउन में उनकी समस्या को लेकर विद्या से काफी लंबी बात होती है। वो कहती हैं कि हमारे समुदाय में जागरूकता की काफी कमी है। वो जब तक जागरूक नहीं होंगे तक तक बदलना असम्भव है। हमने सरकार से बात करके ट्रांस समुदाय के लिए 1500 रुपए देने की मांग की थी सरकार ने इस बात को मान भी लिया था। लेकिन बाद में पता चला कि हमारे समुदाय के लोगों के पास बैंक खाते ही नहीं है न ही कोई आईडी प्रूफ है। मैं समुदाय वालों से कहती रही कि सभी लोग अपना राशन कार्ड बनवा लें लेकिन किसी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया। आज स्थिति यह है कि राशन कार्ड न होने के बाद लोगों को राशन नहीं मिल पा रहा है।

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