गांव बुलेटिन एपिसोड-2 ग्रामीण भारत से इस हफ्ते की गांव कनेक्शन की बड़ी खबरें

नमस्कार, गांव कनेक्शन के खास शो "गांव बुलेटिन" में आपका स्वागत है। गांव कनेक्शन के इस साप्ताहिक शो में हम आपको हफ्ते की वो प्रमुख खबरें दिखाते हैं, जो हमने देश के अलग-अलग हिस्सों से कवर की गई होती हैं।

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गांव बुलेटिन की पहली खबर, यूपी चुनावों पर आधारित विशेष सीरीज से है, जो पानी के मुद्दे पर है। पानी सबकी जरूरत है, पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। गांव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश में पेयजल की उपलब्धता पर जमीनी रिपोर्ट की है। इससे पहले भी गांव कनेक्शन लगातार पानी के मुद्दे पर खबर करता रहा था, दरअसल प्रदेश में 76 में से 63 जिले ऐसे हैं जिससे किसी न किसी हिस्से में पानी की दिक्कत है। कहीं फ्लोराइड ज्यादा है तो कहीं आर्सेनिक कहीं मिलों के चलते पानी दूषित हो गया है तो कहीं पानी खारा है। लोगों को साफ पानी आसानी से मिल सके इसके लिए सरकार ने 2019 में हर घर नल योजना लॉन्च की थी, लेकिन प्रदेश के कई जिलों में उसकी रफ्तार काफी सुस्त है, और समस्या ये है कि तमाम समस्याओं और दिक्कतों के बीच पानी कभी प्रमुख चुनावी मुद्दा नहीं बन पाता है। ( सीरीज की खबरें आप हिन्दी में #क्याकहताहैगांव और अंग्रेजी में #गांवपोस्टकार्ड नाम से पढ़ सकते हैं।)

पानी से संबंधित पूरी खबर यहां पढ़ें- यूपी चुनाव 2022: उत्तर प्रदेश के गाँव जाति व धर्म के नाम पर शायद वोट करेंगे, लेकिन उनकी सबसे बड़ी जरूरत है साफ पानी

गांव बुलेटिन की दूसरी खबर उत्तर प्रदेश के करोड़ों किसानों से जुड़ी है। उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में छुट्टा पशुओं की समस्या है, छुट्टा पशुओं यानि गाय और गोवंश से परेशान किसान दिन रात अपने खेतों को रखवाली करते हैं। छुट्टा पशुओं की समस्या को लेकर किसान कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके हैं। कई जिलों में किसानों और गांव के लोगों के लिए ये उनका सबसे बड़ा मुद्दा है?

प्रदेश में छुट्टा पशुओं की बात करें तो साल 2012 से लेकर 2019 तक देश के बाकी हिस्सों में आवारा मवेशियों की संख्या में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है। लेकिन उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी में 17.34 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इस दौरान राज्य सरकार ने गौ शालाएं बनाईं, काऊ सेस (अतिरिक्त टैक्स) लगाया। लेकिन समस्या कम नहीं हुई। गांव कनेक्शन की चुनावी सीरीज 'क्या कहता है गाँव' में इसके लिए हमने कई जिलों से गांव रिपोर्ट की।

छुट्टा पशुओं से संबंधित खबर- यूपी चुनाव 2022: छुट्टा पशु कहीं चर न जाएं वोट की फसल, क्योंकि खेतों में कट रहे किसानों के दिन रात

गांव बुलेटिन की तीसरी खबर मध्य प्रदेश से है। मध्य प्रदेश का पन्ना जिला देश और दुनिया में बेशकीमती हीरों के लिए भले ही जाना जाता है लेकिन यहां के लोगों की जिंदगी में इन हीरों की चमक कहीं नजर नहीं आती। जिले की बड़ी आबादी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। इसी जिले में एक गांव है मढ़िया राव है, जहां आजादी के 75 साल बाद भी एक सड़क तक नहीं पहुंच पाई है। पिछले दिनों हुई बारिश के दौरान एक व्यक्ति अपने मकान से गिर गया। वो चल उठ नहीं सकते है, अस्पताल ले जाने की जरुरत थी लेकिन एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकती थी, एंबुलेंस तो दूर हल्की सी बारिश के बाद गांव में दुपहिया वाहन भी नहीं जा पाते हैं। गांव के लोग मरीज को 4 किलोमीटर चारपाई पर उठाकर मुख्य सड़क तक ले गए।

संबंधित खबर- गांव तक एंबुलेंस तो दूर दोपहिया वाहन भी नहीं पहुंच पाते, बीमार को खटिया पर ले जाना मजबूरी

खबर का असर- साथियों हमें आपको बताते हुए खुशी हो रही है, 400 की आबादी वाले इस गांव सड़क के मुद्दे पर हमारी खबर का असर हुआ है। पन्ना की कलेक्टर ने गांव कनेक्शन को ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है। गांव कनेक्शन में खबर प्रकाशित होने के बाद पन्ना की कलेक्टर दीपा चतुर्वेदी ने बताया कि मडिया गांव तक सड़क पहुंचाने के लिए आज सीमांकन का काम हुआ, इसमें 30 मीटर का रास्ता निजी जमीन से होकर गुजरता है, जिसकी वजह से व्यवधान पड़ रहा था, उन्हें समझाने का प्रयास किया जा रहा है। ताकि गांव तक सड़क और विकास पहुंच सके।हम उम्मीद करते हैं कि इस गांव तक जल्द सड़क पहुंचेगी। साथियों, गांव कनेक्शन का अंतिम लक्ष्य यही है कि ऐसे मुद्दों को उठाया जाए जो सुर्खियां नहीं बन पाते। लोगों की निगाह में नहीं आ पाते लेकिन किसी गांव, कस्बे इलाके के लिए वो बहुत जरुरी होते हैं।

गांव बुलेटिन की चौथी खबर एक जागरुकता अभियान से जुड़ी है। शराब के हानिकारक प्रभावों के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए चलाई जा रही विशेष सीरीज के इस भाग में बाबूजी की कहानी है, जिन्होंने अपनी पत्नी की मौत के बाद शराब पीना शुरू कर दिया था। उनके बेटे ने उन्हें एक ऑनलाइन अभियान के बारे में बताया जिसमें एक महीने के लिए शराब से दूरी बनानी होती है। 30 दिनों के लिए खुद को संयमित करने के बाद बाबूजी ने हमेशा के लिए शराब छोड़ दी।

दरअसल- गांव कनेक्शन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ एक जागरूकता अभियान चला रहा है, जिसमें लोगों को शराब के हानिकारक प्रभावों के बारे में बताया जा रहा। शराब के साथ बाबूजी के संघर्ष की कहानी जागरूकता अभियान का हिस्सा है जिसमें वीडियो, ऑडियो कहानियां और मीम्स शामिल हैं जो वास्तविक जीवन के पूर्व शराबियों के साथ-साथ शराब के खिलाफ लड़ाई जीतने वाले काल्पनिक नायक के अनुभवों को बताते हैं।

पूरी खबर यहां पढ़ें- मेरी प्यारी जिंदगी: एक महीने शराब से दूरी और बाबू जी ने हमेशा के लिए शराब छोड़ दी

गांव बुलेटिन की पांचवीं खबर मौसम के बदलाव और किसानों के नुकसान पर हैं। साथियों में 6 जनवरी से लेकर 12 जनवरी देश के कई राज्यों में मौसम उठापटक वाला है। कई राज्यों में बारिश हुई, ओले गिरे, बर्फबारी हुई। जिससे फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। इन राज्यों में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश भी हैं। यूपी और एमपी के बुंदेलखंड वाले हिस्से में ओलावृष्टि से मटर, चना, सरसों, मसूर जैसी फसलों को भारी नुकसान हुआ। कई किसानों कर्ज़ लेकर अपनी फसलें बोई थीं लेकिन वो चौपट हो गईं।

यूपी के बांदा और झांसी जिले में कई किसानों ने बताया कि उनकी पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो गई है। मटर-सरसों की फसलों को ओलों ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया। वहीं ललितपुर में भी किसानों को मौसम की मार का खामियाजा उठाना पड़ा। यहां अकेले शनिवार को यानी 8 जनवरी को सामान्य से 10000 फीसदी ज्यादा बारिश हुई थी। उन किसानों के लिए समस्या ये भी है रबी सीजन से पहले खरीफ के दौरान भी इनकी उड़द जैसी फसलों का नुकसान हुआ था।

मौसम पर संबंधित पूरी खबर- बारिश से मटर, चना, सरसों की फसलों को बारिश से भारी नुकसान, किसी ने बैंक तो किसी ने साहूकार से लिया था कर्ज़

गांव बुलेटिन की छठी स्टोरी राजस्थान है, राजस्थान वो राज्य है, जिसने देश को सूचना का अधिकार कानून दिया। इसी राज्य में 17 दिनों तक एक विशेष यात्रा जवाबदेही यात्रा निकाली गई। राजस्थान में सामाजिक कार्यकर्ता प्रदेश में जवाबदेही कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि कई बार सरकार, जनप्रतिनिधि और अधिकारी वादा करते हैं लेकिन उसे निभाते नहीं इसलिए जवाबदेही कानून होना चाहिए।

राजस्थान में 20 दिसंबर से 6 जनवरी के बीच 13 जिलों में 2400 किलोमीटर से लंबी दूरी की एक यात्रा निकाली गई। हालांकि कोविड-19 के चलते यात्रा स्थगित हो गई है लेकिन वर्चुअल माध्यमों से सरकार, अधिकारियों और अधिकारियों, कर्मचारियों की जवाब देही तय करने वाले कानून की मांग जारी है। कानून की मांग करने वालों की दलील है कि "सरकार नियम बनाती हैं, कानून बनाती हैं और फिर उनको भूल जाती हैं। सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का अराजक तत्व अपने मनमाफिक इस्तेमाल करते हैं लेकिन उन पर समय अनुसार कोई कार्रवाई नहीं होती। सरकारी दफ़्तर शिकायतों के बोझ तले दबे हैं लेकिन शिकायत सुनने वाले गायब है। यहां तक की महीनों निकल जाते हैं लेकिन मजदूरों के कार्ड तक नहीं बनते इसलिए जवाबदेही कानून जरूरी है।

जवाबदेही कानून से संबंधित खबर- देश को सूचना का अधिकार देने वाले राजस्थान से उठ रही जवाबदेही क़ानून की मांग

गांव बुलेटिन की आखिरी खबर आपके खाने और खुराक से जुड़ी है। भारत में लोगों के खाने-पीने की चीजों पर निगरानी रखने वाली केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण ने जीएम फूड को विनियमित करने के लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया है, जिस पर लोगों की राय मांगी गई थी। खाने, खेती और पर्यावरण के जानकार इसका जोरदार विरोध कर रहे हैं। भारत में बीटी कॉटन को छोड़कर देश में किसी भी आनुवांशिक संशोधित रूप से फसल को मंजूरी नहीं मिली है। लेकिन हो सकता है आने वाले दिनों में आप भारत में जीएम खाद्य पदार्थ बिकने लगे।

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण ने जीएम फूड को रेग्युलेट (विनियमित) करने के लिए एक ड्राफ्ट मसौदा तैयार किया है। लेकिन जीएम फसल और फूड का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक ये रेगुलेट करने के लिए नहीं बल्कि देश में उसके प्रवेश के लिए पास देने का तरीका है। भारत में जीएम फूड पर कानूनी प्रतिबंध हैं लेकिन विदेश से आने वाले कई उत्पादों में जीएम के अंश होने की बात जन सरोकार रखने वाले लोग लगातार विरोध करते रहे हैं।

जीएम फूड का मुद्दा 17 नवंबर 2021 ने फिर तूल पकड़ा जब भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं नियामक प्राधिकरण ने इसे विनियमित करने के लिए एक ड्राफ्ट मसौदा जारी किया और आम लोगों की उस पर राय मांगी, राय देने की आखिरी सीमा 15 जनवरी 2022 है। जीएम फूड का विरोध करने वालों के मुताबिक पहले तो जीएम फूड भारत में आना ही नहीं चाहिए, दूसरा मसौदे में कई खामियां हैं और तीसरा कि लोगों से प्रतिक्रिया के लिए जो समय दिया गया है वो काफी कम है और मसौदा स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं कराया गया। सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक देश में भारी विरोध के चलते जीएम फसलों की इजाजत नहीं मिल पाई है इसलिए वो जीएम फूड के रास्ते देश में प्रवेश करना चाहते हैं।

जीएम फूड से संबंधित खबर- जीएम फूड का क्या है मुद्दा? FSSAI के मसौदे का क्यों हो रहा है विरोध

आज के बुलेटिन में फिलहाल इतना ही, अगले शनिवार मिलेंगे फिर हफ्ते भर की प्रमुख खबरों के साथ.. तब तक आप गांव कनेक्शन हिंदी और अंग्रेजी में खबरें पढ़ते रहे। गांव कनेक्शन के YouTube पर वीडियो देखते रहिए। गांव कनेक्शन की जो चुनावी सीरीज है क्या कहता है गांव उससे संबंधित लगातार वीडियो हम कर रहे हैं। उसपर अपना फीडबैक दीजिए.. और जोड़े रखिए गांव से, अपनी जड़ों से अपना रिश्ता..


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