इंटीग्रेटेड फार्मिंग मॉडल: एक एकड़ जमीन से हर महीने 25,000 तक की कमाई
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के कृषि विभाग ने छोटे किसानों की आय बढ़ाने के लिए इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम यानी एकीकृत कृषि प्रणाली तैयार की है। मुर्गी पालन और मछली पालन के साथ ही खेती करके किसान एक एकड़ जमीन से 25000 रुपए हर महीने कमा सकते हैं।
Mohit Shukla 9 Aug 2021 6:12 AM GMT
सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। कोविड-19 महामारी के चलते खेती करने वाले किसानों की की आय कम हो गई है और सबसे ज्यादा नुकसान छोटे और सीमांत किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। ऐसे में कृषि विभाग, सीतापुर ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग मॉडल तैयार किया है। इस मॉडल को अपनाकर छोटे किसान एक एकड़ जमीन से हर महीने 20,000-25000 रुपए तक कमा सकते हैं।
कृषि विभाग, सीतापुर के उप निदेशक अरविंद मोहन मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताते हैं कि एकीकृत कृषि मॉडल में गन्ने की प्राथमिक फसल के साथ मछली पालन, मुर्गी पालन और सब्जी की खेती को जोड़ा गया है। इस मॉडल को एक एकड़ जमीन पर आसानी से अपनाया जा सकता है। इस एकीकृत मॉडल राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 88 किलोमीटर दूर जिला कृषि विभाग के कार्यालय में स्थापित किया गया है।
"कोविड के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के लिए आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा है। हम किसानों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करने के लिए परियोजना लेकर आए हैं, "मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया। "एक एकीकृत फार्म शुरू करने की कुल लागत लगभग 78,000 रुपये आती है। एक छोटा सा तालाब भी बनाया गया है जिसमें बत्तख और मछलियां पाली जाती हैं, "उन्होंने कहा।
एकीकृत कृषि तकनीक विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के लिए फायदेमंद है, खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल किसानों में से 82 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं।
मुर्गी और मछली पालन के साथ एकीकृत खेती
सीतापुर के कृषि विभाग द्वारा विकसित मॉडल के अनुसार, किसानों की 35 प्रतिशत भूमि पर मछली पालन और मुर्गी पालन (बत्तख सहित) करना चाहिए, जबकि 20 प्रतिशत खेत का उपयोग गन्ना जैसी नकदी फसल की खेती के लिए किया जाएगा। 25 प्रतिशत खेत का उपयोग धान जैसी मुख्य फसल उगाने के लिए किया जाना है, 10 प्रतिशत इन फसलों तक पहुंचने के लिए रास्ता बनाने के लिए, और बाकी बची जमीन का उपयोग सब्जियां उगाने के लिए किया जाना है।
"एकीकृत कृषि प्रणाली में कोशिश की जाती है कि रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम से कम हो और जैविक कृषि तकनीकों का उपयोग किया जाए। उदाहरण के लिए, मुर्गी की बीट न केवल मिट्टी की उर्वरता के लिए अच्छा है बल्कि तालाब में मछलियों के लिए चारे के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा, हम केंचुओं का उपयोग वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए करते हैं जिसका उपयोग आगे मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता है, "मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया।
एकीकृत खेती की लागत
एकीकृत खेती की लागत लगभग 108,000 आती है, जिसमें से मत्स्य विभाग द्वारा 40% और कृषि विभाग द्वारा 50% साझा की जाएगी।
उप निदेशक ने बताया, "मछली पालन में लगभग 5,000 रुपए की लागत आती है और मुर्गी पालन में 14,000 की लागत आती है। एकीकृत कृषि प्रणाली में कड़कनाथ किस्म के मुर्गे-मुर्गियों को पालने की सलाह दी जाती है और यह चार महीने की अवधि में इनका वजन लगभग 1.5 किलोग्राम (किलो) से दो किलोग्राम तक बढ़ जाता है। इससे किसानों को लगभग 142,500 रुपये का लाभ आसानी से मिल सकता है।
"इसके अलावा, मछलियां तेजी से बढ़ती हैं। वे 25 दिनों में बढ़ जाती हैं और इससे किसानों की आय में चालीस हजार रुपये और जुड़ सकते हैं। गन्ना और सरसों को एक साथ बोया जाता है, जिसमें 15,000 रुपए की लागत आती है, जिससे 45,000 रुपए का मुनाफा कमाया जा सकता है, "अरविंद मोहन मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया।
किसानों को दी जा रही है ट्रेनिंग
जिला कृषि विभाग ने किसानों को एकीकृत खेती का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है। वर्तमान में 10 किसानों को अपने खेत में इस तकनीक का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है और राज्य भर में एकीकृत खेती को लागू करने के लिए उच्च अधिकारियों को पत्र लिखा गया है।
जिले के आलिया ब्लॉक के बम्बोरा गांव के 55 वर्षीय किसान आनंद कुमार भी उन किसानों में से एक हैं, जिन्होंने सीतापुर के कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लिया है।
"मैंने केंद्र में जो कुछ सीखा है, उससे मैं उत्साहित हूं और मैं इसे अपनी एक एकड़ जमीन पर अपनाने वाला हूं। मुझे लगता है कि इससे हमारी आय बढ़ेगी, "कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया।
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