उत्तराखंड: यहां है देश का पहला रेड सिंधी गाय संरक्षण केंद्र

Diti Bajpai | May 09, 2019, 07:44 IST
#Indigenous cow
कालसी (देहरादून)। देसी गायों में अभी तक आपने गिर, साहीवाल और थारपारकर गायों के संरक्षण के बारे में ही सुना होगा, लेकिन उत्तराखंड राज्य में बड़ी संख्या में रेड सिंधी गायों का संरक्षण किया जा रहा है। साथ ही देश के कई राज्यों में इनके भ्रूण को भेजा जा रहा है ताकि यह गाय विलुप्त न हो जाए।

यह देश का पहला ऐसा फार्म जहां इतनी बड़ी संख्या में रेड सिंधी गाय देखने को मिल जाएंगी। देहरादून जिले से 45 किलोमीटर दूर विकासनगर के कालसी ब्लॉक में यह फार्म बना हुआ है। इस फार्म में करीब 600 से ज्यादा रेड सिंधी गाय है।

"देश में क्रॉस ब्रीडिंग की वजह इनकी संख्या में काफी गिरावट आ गई। पूरे देश में अगर संगठित क्षेत्र की बात करें तो इन गायों की संख्या सिर्फ डेढ़ से दो हज़ार है। इसलिए इनको यहां बड़ी संख्या में इनका संरक्षण किया जा रहा है," राजकीय पशु प्रजनन प्रक्षेत्र कालसी में फार्म मैनेजर डॉ. अजय पाल सिंह असवाल ने बताया।

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भारत के पूर्वोत्तर और हिमाली क्षेत्र में कालसी प्रक्षेत्र लाल सिंधी के विकास के कार्यों के लिए काफी जाना जाता है। वर्ष 2017 में इस प्रक्षेत्र को भारत सरकार से पहला कामधेनु पुरस्कार भी दिया गया।
रेड सिंधी गायों की खासियतों के बारे में डॉ. अजय बताते हैं, "अभी जिस तरह से तापमान बढ़ रहा है पानी की कमी हो रही है, उसमें यह गाय कारगर सिद्ध हो रही है। यानि 45 डिग्री तापमान में भी यह गाय आसानी से दूध दे सकती है। कम इनपुट में इनसे ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है। गिर साहीवाल गायों के मुकाबले इनका दूध उत्पादन क्षमता भी ज्यादा है।"

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उत्तराखंड पशुधन विकास परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. एमएस नयाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, "लाल सिंधी गाय को उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड (यूपीएलडीबी) कालसी प्रक्षेत्र पर 'इलीट हर्ड' के रूप में रखी गई है। यह देश का पहला ऐसा फार्म है जहां रेड सिंधी गायों का बड़ी संख्या मे संरक्षण और संवर्धन किया जा रहा है। देसी गाय की कुछ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है ऐसे में इनको बचाना बहुत जरूरी है इनको रखने के लिए हमारा राज्य आगे आया।"

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यह गाय अच्छी दुग्ध उत्पादक गाय की नस्ल है। एक लाल सिंधी गाय प्रतिदिन 10 लीटर दूध देती है इस गाय का वार्षिक दूध उत्पादन 3500 लीटर है। अच्छे दु्ग्ध उत्पादन और अनेक खूबियों के कारण भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और अन्य देशों में व्यापक स्तर पर दूध उत्पादन के लिए इन्हें पाला जा रहा है।

फार्म में इनके संरक्षण के साथ-साथ भ्रूण प्रत्यारोपण का कार्य भी किया जा रहा है। इनके भ्रूण को देश के कई राज्यों में भेजा रहा है। फार्म में इस प्रजाति के लगभग 298 भ्रूण संरक्षित किये गए हैं और हाल में भारत सरकार के प्रोजेक्ट सैंक्शनिंग कमिटी द्वारा इस प्रक्षेत्र को भारत के उत्तरी क्षेत्र के लिए सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस के लिए भी स्वीकृत कर दिया गया है।

देश के केरल, कर्नाटक, सीमांध्र, राजस्थान, पंजाब सहित देश के कई प्रांतों से रेड सिंधी गाय के भ्रूण की मांग की गई है। फार्म में भ्रूण उत्पादन के साथ ही डेयरी फार्म से प्रतिदिन 600 लीटर दूध, 3000 लीटर गो अर्क का प्रतिमाह उत्पादन किया जाता है।

विलुप्त होती गई देसी नस्ल

रेड सिंधी गायों की संख्या कम होने का कारण के बारे में डॉ अजय बताते हैं, "देश में दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारों ने विदेशों से हॉलस्टीन फिजियन और जर्सी गाय के सीमन लेकर संकर गायों को पैदा किया गया। दूध उत्पादन तो बढ़ा लेकिन अपनी देसी नस्ल विलुप्त होती गई और जो सकंर गाय पैदा की गई वो हमारी वातावरण के अनुकूल ही नहीं है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए विदेशी पशुओं को तो ले आए उनको लेकर सही से आकंलन नहीं किया। लेकिन धीरे-धीरे इन पर ध्यान दिया जा रहा है।"

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ऐसी हैं रेड सिंधी गाय

रेड सिंधी गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। लाल रंग होने के कारण इनका नाम लाल सिंधी गाय पड़ गया। यह गाय पाकिस्तान के सिंध जिले की है। इस गाय का माथा बड़ा होता है और उस पर उभार होता है। कान सुंदर और छोटे होते हैं और इनके सींग घुमावदार होते हैं। एक मादा लाल सिंधी का शारीरिक वजन 300-350 किलो जबकि वयस्क नर का वजन 400-500 किलो होता है।

देसी गायों के संरक्षण पर दे रही ध्यान

राजकीय पशु प्रजनन प्रक्षेत्र कालसी में फार्म मैनेजर डॉ. अजय पाल सिंह असवाल ने बताया, "पर्वतीय और मैदानी क्षेत्र के लिए जहां किसानों के पास गाय को खिलाने के लिए बहुत कुछ नहीं वहां के लिए यह गाय काफी कारगर है। क्योंकि किसी भी परिस्थितियों में यह बहुत आसानी से रह लेती है और इनको बीमारियां भी नहीं होती है। सरकार भी अब विदेशी गायों की बजाय देसी गायों के संरक्षण पर ध्यान दे रही है।"

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