अयोध्या पर विशेष: 'बाहरियों ने छीना अयोध्या का अमन'

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साल 1992 में बाबरी मस्जिम विध्वंस के बाद अयोध्या का नाम आते ही ज़ेहन में एक तस्वीर उभरती है, जो हम सभी को दिखाई गई है। अयोध्या के लोग कहते हैं अयोध्या का अमन बाहरियों ने छीन लिया।

यहां के रहने वाले बाबू खां रामलला के कपड़े सिलते रहे हैं, तो जगदंबा शरण तिवारी कहते "न हिन्दू आया है, न मुसलमान आया है, आया है तो बस इंसान आया है। अयोध्या के बच्चे शिक्षित हों, नौजवानों को रोजी-रोटी मिले, रोजगार मिले। हम तो यही चाहते हैं।"

अयोध्या में राम जन्म भूमि का विवाद भले ही दशकों से न सुलझ पाया हो, लेकिन महज एक किमी दूर एक महंत द्वारा दी गई ज़मीन पर बनाई जा रही मस्जिद देती है गंगा-जमुनी तहजीब की निशानी।

देश की राजनीति में ध्रुवीकरण की कोशिश तभी से शुरू हो गई थी जब 1989 के चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने हिन्दुओं से जिताने की अपील करते हए पहली चुनावी सभा अयोध्या से शुरू की और वादा किया कि कांग्रेस सत्ता में आई तो रामराज्य लेकर आएगी। हालांकि कांग्रेस को इसका फायदा नहीं मिला लेकिन उसके बाद से ही भाजपा, वीएचपी व अन्य दलों ने राम मंदिर निर्माण को लेकर आंदोलन करने शुरू कर दिए।

भाजपा राम मंदिर के सहारे दो सीटों से 180 तक पहुंच गई। लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती जैसे नेता हिन्दुत्व का चेहरा बन कर उभरे। "जबसे विवाद होना शुरू हुआ है, तबसे हिन्दू-मुसलमानों में दरारें पड़नी शुरू हुईं, इससे पहले दोनों कौम के लोग सीने से सीना मिलाकर रहते थे। पहले हिन्दू-मुसलमान की दीवार गिराई जाए, उसके बाद राजनीति की जाए। राम मंदिर को पराठा सेंकने के लिए स्टोव बना लिया है," जगदंबा शरण तिवारी कहते हैं। भाजपा अपने घोषणा पत्र में इस बार भी संवैधानिक दायरे में रहते हुए राम मंदिर के निर्माण की बात कही है। लेकिन अयोध्या के लोग इससे आगे निकल चुके हैं।

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