बुंदेलखंड में तेजी से गिरा चने की खेती का ग्राफ
गाँव कनेक्शन | Oct 30, 2017, 16:07 IST
अरविंद सिंह परमार/स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
ललितपुर। चने की खेती में अपने समय में अव्वल रहने वाले बुंदेलखंड का ग्राफ गिरा है, जिसके पीछे की वजह प्राकृतिक आपदाएं हैं। सरकार भले ही चना की खेती के उत्पादन बढ़ाने की तैयारी कर रही है और दलहनी फसलों के उत्पादन का लक्ष्य वर्ष 2017-18 में 210 लाख टन रखा हैं, जिसमें सर्वाधिक 33 प्रतिशत हिस्सा चने का हैं। वहीं, चने की फसल बुंदेलखंड में बुरे दौर से गुजर रही है।
बुंदेलखंड के ललितपुर जनपद में पिछले सात सालों में 2012 में सर्वाधिक चना 22,327 हेक्टेयर में बोया गया, जिसका उत्पादन 32,819 मैट्रिक टन उत्पादन हुआ, जो औसतन प्रति हेक्टेयर 14.70 कुन्तल का रहा। इसके बाद चने के बुवाई वाले क्षेत्रफल में प्राकृतिक आपदाएं, सूखा, अकाल, की मार से गिरावट के चलते किसानों का मोहभंग होता जा रहा हैं। साथ ही साथ चने की फसल में उकसा, इल्ली, फली छेदक कीट रोगों के प्रकोप की मुख्य वजह रही। जिसके चलते चने की फसल में वर्ष 2015 में साढ़े बारह गुना कम उत्पादन हुआ, जो 3,589 हेक्टेयर के सापेक्ष 2,659 मैट्रिक टन उत्पाद औसतन प्रति हेक्टेयर (7.41 उपज प्रति हेक्टेयर) रही।
ललितपुर जनपद से पूर्व-दक्षिण दिशा 82 किमी दूर मड़ावरा तहसील के गोराकलाँ गाँव के राजू झाँ (44 वर्ष) बताते हैं, “चने की खेती करना मतलब सरदर्द को आमंत्रित देना हैं, आसपास जंगल का क्षेत्र हैं वहाँ रहने वाले बंदर, रोज(नील गाय) सहित छुट्टा जानवर तबाह कर देते हैं। क्योकि इनका आतंक हैं, रात दिन रखवाली करने के बाद भी फसल नही बचा पाते और नुकसान भोगना पडता हैं, अब तो चने की खेती करना ही बंद कर दिया।”
वही महरौनी तहसील दिदौरा गाँव के पहाड़ सिंह यादव (55 वर्ष) बताते हैं, “पहले चने की अच्छी पैदावार होती थी, अब गाँव में इक्का-दुक्का खेतों में ही चना की बुवाई होती है। उकसा रोग ज्यादा लगता है, बाकि कसर इल्ली, फली में छेद करने वाले कीट पूरी कर देते हैं, वो बताते हैं, इन्हीं वजहों से चना बहुत कम बोया जाता हैं, क्योकि ये तो घाटे का सौदा है।”
लवकुश टोंटे, जिला सलाहकार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, कृषि विभाग
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ललितपुर। चने की खेती में अपने समय में अव्वल रहने वाले बुंदेलखंड का ग्राफ गिरा है, जिसके पीछे की वजह प्राकृतिक आपदाएं हैं। सरकार भले ही चना की खेती के उत्पादन बढ़ाने की तैयारी कर रही है और दलहनी फसलों के उत्पादन का लक्ष्य वर्ष 2017-18 में 210 लाख टन रखा हैं, जिसमें सर्वाधिक 33 प्रतिशत हिस्सा चने का हैं। वहीं, चने की फसल बुंदेलखंड में बुरे दौर से गुजर रही है।
बुंदेलखंड के ललितपुर जनपद में पिछले सात सालों में 2012 में सर्वाधिक चना 22,327 हेक्टेयर में बोया गया, जिसका उत्पादन 32,819 मैट्रिक टन उत्पादन हुआ, जो औसतन प्रति हेक्टेयर 14.70 कुन्तल का रहा। इसके बाद चने के बुवाई वाले क्षेत्रफल में प्राकृतिक आपदाएं, सूखा, अकाल, की मार से गिरावट के चलते किसानों का मोहभंग होता जा रहा हैं। साथ ही साथ चने की फसल में उकसा, इल्ली, फली छेदक कीट रोगों के प्रकोप की मुख्य वजह रही। जिसके चलते चने की फसल में वर्ष 2015 में साढ़े बारह गुना कम उत्पादन हुआ, जो 3,589 हेक्टेयर के सापेक्ष 2,659 मैट्रिक टन उत्पाद औसतन प्रति हेक्टेयर (7.41 उपज प्रति हेक्टेयर) रही।
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वही महरौनी तहसील दिदौरा गाँव के पहाड़ सिंह यादव (55 वर्ष) बताते हैं, “पहले चने की अच्छी पैदावार होती थी, अब गाँव में इक्का-दुक्का खेतों में ही चना की बुवाई होती है। उकसा रोग ज्यादा लगता है, बाकि कसर इल्ली, फली में छेद करने वाले कीट पूरी कर देते हैं, वो बताते हैं, इन्हीं वजहों से चना बहुत कम बोया जाता हैं, क्योकि ये तो घाटे का सौदा है।”
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ये बात सही हैं, उकसा रोग, अन्य रोगों की व्याधि से चने की फसल पर नुकसान हुआ, उसी के चलते किसानों ने किनारा कर लिया। पानी कम होने की वजह से इस साल दलहनी फसलों का प्रोटेक्शन बढ़ेगा और किसानों को अवरोधी बीजों को बोने की सलाह दी जा रही हैं। इससे पहले पानी ज्यादा था, किसानों ने गेहूँ की बुवाई की क्योंकि ज्यादा पानी चाहिए।