आंगनबाड़ी केंद्र : बच्चों का पोषाहार बन रहा पशुओं का आहार
गाँव कनेक्शन | Jun 02, 2017, 22:54 IST
अजय सिंह चौहान, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट
लखनऊ। बख्शी का तालाब विकासखण्ड के अंतर्गत कठवारा, मदारीपुर, सोनवा सहित 280 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चों को दिया जाने वाला पोषाहार जानवरों के मुंह का निवाला बन रहा है। बच्चे केन्द्रों पर भोजन का इंतजार करते रहते है पर केन्द्र कब खुलेगा इसका कोई पता नहीं रहता है। क्षेत्रीय लोगों का आरोप है कि क्षेत्र के अधिकांश केन्द्र खुलते ही नहीं हैं। कार्यकत्रियां पोषाहार को केन्द्रों पर न रखकर अपने घरों पर रखती हैं और घरों से ही पशुओं के आहार के लिये खुलेआम बिक्री कर रही हैं।
तारा यादव, सीडीपीओ बीकेटी
कठवारा गाँव के किसान झरोखा (50वर्ष) बताते हैं,“ ग्राम पंचायत के अंतर्गत सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर आने वाला पोषाहार बच्चों को न देकर कार्यकत्रियां मंहगे दामों में बेंच रही हैं। जबकि यह पोषाहार बच्चों के लिए सरकार भेजती है।” वहीं कठवारा केन्द्र की एक कार्यकत्री ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया,“ बच्चे पोषाहार खाना कम पसन्द करते हैं और हम लोगों को प्रतिमाह सुपरवाइजर को एक हजार रुपए देने पड़ते हैं। ऐसे में हम लोग मजबूरी में पोषाहार की बिक्री करते हैं।”
इसी क्षेत्र के रहने वाले 55 वर्षीय रविकांत बाजपेयी बताते हैं,“ प्रधान भी ध्यान नहीं देते हैं। जनता के हितों का ध्यान रखते हुए सरकार द्वारा चलाई जा रही बाल विकास परियोजना के आलाधिकारी ही इस योजना को धराशायी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पोषाहार की बिक्री को बन्द कराने के लिए कई बार उच्चाधिकारियों को अवगत भी कराया जा चुका है, लेकिन अभी तक कोई सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा है।”
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लखनऊ। बख्शी का तालाब विकासखण्ड के अंतर्गत कठवारा, मदारीपुर, सोनवा सहित 280 आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चों को दिया जाने वाला पोषाहार जानवरों के मुंह का निवाला बन रहा है। बच्चे केन्द्रों पर भोजन का इंतजार करते रहते है पर केन्द्र कब खुलेगा इसका कोई पता नहीं रहता है। क्षेत्रीय लोगों का आरोप है कि क्षेत्र के अधिकांश केन्द्र खुलते ही नहीं हैं। कार्यकत्रियां पोषाहार को केन्द्रों पर न रखकर अपने घरों पर रखती हैं और घरों से ही पशुओं के आहार के लिये खुलेआम बिक्री कर रही हैं।
तारा यादव, सीडीपीओ बीकेटी
कठवारा गाँव के किसान झरोखा (50वर्ष) बताते हैं,“ ग्राम पंचायत के अंतर्गत सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर आने वाला पोषाहार बच्चों को न देकर कार्यकत्रियां मंहगे दामों में बेंच रही हैं। जबकि यह पोषाहार बच्चों के लिए सरकार भेजती है।” वहीं कठवारा केन्द्र की एक कार्यकत्री ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया,“ बच्चे पोषाहार खाना कम पसन्द करते हैं और हम लोगों को प्रतिमाह सुपरवाइजर को एक हजार रुपए देने पड़ते हैं। ऐसे में हम लोग मजबूरी में पोषाहार की बिक्री करते हैं।”
इसी क्षेत्र के रहने वाले 55 वर्षीय रविकांत बाजपेयी बताते हैं,“ प्रधान भी ध्यान नहीं देते हैं। जनता के हितों का ध्यान रखते हुए सरकार द्वारा चलाई जा रही बाल विकास परियोजना के आलाधिकारी ही इस योजना को धराशायी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पोषाहार की बिक्री को बन्द कराने के लिए कई बार उच्चाधिकारियों को अवगत भी कराया जा चुका है, लेकिन अभी तक कोई सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा है।”
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