दूसरा बलात्कार: सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता से रेप पीड़िताओं का बार-बार होता है मौखिक शोषण

गाँव कनेक्शन | Mar 27, 2017, 13:47 IST

मुआवज़े व न्याय में देरी व भयावह अपमान। आदित्यनाथ योगी सरकार की महिला सुरक्षा को लेकर चल रही मुहिम में यौन शोषण पर क़ानूनों के कारण संवेदनहीनता भी शामिल हो।

यामिनी त्रिपाठी/मनीष मिश्रा

लखनऊ। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने गोरखपुर में कहा है कि वे उत्तर प्रदेश की इस छवि को बदलना चाहते हैं कि यहां महिलाएं असुरक्षित हैं। साथ ही ये भी सच है कि यौन शोषण व बलात्कार से जुड़े मामलों में हर महिला को घटना की प्रताड़ना से गुजरने के बाद भी संवेदनहीन पुलिसकर्मियों, वकीलों और अधिकारियों के सामने न्याय में देरी और मुआवज़े को लेकर अपमान का सामना करना पड़ता है, ये रोज़ होता मानसिक बलात्कार है।

गाँव कनेक्शन का मुख्यमंत्री को सुझाव है कि बलात्कार पीड़िताओं को इलाज और न्याय मिलने में देरी और संवेदनहीनता से निपटने के लिए मॉनीटरिंग की व्यवस्था को मजबूत बनाएं, ख़ास कर ज़िला प्रोबेशन अधिकारी (डीपीओ) स्तर पर।



देश भर में हुए अपराधों को दर्ज करने वाली संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, वर्ष 2015 में देशभर में बलात्कार के 34,600 से अधिक मामले सामने आए। इनमें से 33,098 मामलों में अपराधी, पीड़ितों के परिचित थे। महाराष्ट्र में बलात्कार की 4,144 घटनाएं हुईं, जबकि राजस्थान में कुल 3,644 और उत्तर प्रदेश में 3,025 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए।

बलात्कार पीड़िताओं की सहायता कर रहीं अर्चना सिंह लखनऊ के महिला कल्याण विभाग के आशा ज्योति केन्द्र की सोशल वर्कर हैं। वो बताती हैं, “जब पीड़िता बयान के लिए थाने पर जाती है, तो पुलिस के लोग, कोर्ट में वकीलों और जमा भीड़ के सामने उससे सवाल-जवाब किए जाते हैं। उसे बार-बार वही अपने साथ घटी घटना दोहरानी पड़ती है। इसके लिए अधिकारियों को संवेदनशील होना चाहिए,” वह आगे बताती हैं, “बार-बार बलात्कार पीड़िता से यही पूछा जाता है-तुम सतर्क क्यों नहीं थीं?”

लखनऊ की एक झुग्गी कॉलोनी में रहने वाली एक बलात्कार पीड़िता को सरकारी मदद के लिए उसकी फाइल छह माह तक चक्कर काटती रही, और आखिर में यह लिख गया कि इससे पुष्टि नहीं होती कि बलात्कार हुआ।

सर्वेश पांडेय, जिला प्रोबेशन अधिकारी (डीपीओ), लखनऊ

इस तरह के मामलों में पुलिस की संवेदनहीनता और कार्यशैली पर उठने वाले सवालों के जवाब में लखनऊ वीमन पॉवर लाइन (1090) की उपाधीक्षक बबिता सिंह कहती हैं, “क्रिमिनल एमेंडमेंड एक्ट में बहुत से बदलाव किए गए हैं, जैसे-महिला ही एफआईआर लिखेगी, पीड़िता के बयान की वीडियोग्राफी कराई जाएगी, रेप ट्रायल के दौरान आरोपी से सामना न हो, लेकिन लोगों को जानकारी देने की जरूरत है।” बबिता सिंह आगे कहती हैं, “पुलिस को समय-समय पर संवेदनशील किया भी जाता है। हमें हर केस को अलग-अलग देखना चाहिए, डाक्टर्स के लिए भी नियम बनाए जाएं।” एक बलात्कार पीड़िता के साथ जो होता है वह तो गलत है ही, लेकिन उसे न्याय दिलाने की प्रक्रिया के दौरान हर रोज उसके कलेजे को छलनी किया जाता है।

केजीएमयू में भर्ती तेजाब पीड़ित के सामने सेल्फी लेने पर 3 महिला पुलिसकर्मी हुईं सस्पेंड। “कार्यवाही के दौरान यह बार-बार पीड़िता को एहसास दिलाना कि जो हुआ वह गलत हुआ। इससे उसकी आंतरिक शक्ति खत्म हो जाती है। यह पीड़िता को प्रताड़ित किया जाना हुआ। बार-बार वही पूछताछ बंद होनी चाहिए,” लखनऊ विश्वविद्यालय में कार्यरत मनोवैज्ञानिक प्रो. मानिनी श्रीवास्तव कहती हैं, “लड़कियों के मन में यह बहुत बड़ा घाव होता है, वह इससे निकल नहीं पातीं। वह लगातार महसूस करती हैं कि हम गंदे हो गए। हममें कुछ ऐसा आ गया जो नहीं आना चाहिए था। इससे निकलने में सालों लग जाते हैं। कुछ तो इससे निकल ही नहीं पातीं।”

वहीं इस बारे में आशियाना रेप केस में पीड़िता की ओर से पैरवी करने वाले वकील सुनील यादव कहते हैं, “रेप पीड़िताओं को थाने में सबसे अधिक प्रताड़ना मिलती है। कोर्ट में जिरह तो करनी ही पड़ती है, आखिर न्याय कैसे मिलेगा। दोनों पक्ष देखने पड़ते हैं,” आगे कहते हैं, “कानून देखता है कि 90 मुल्जिम बच जाएं, लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिए।”

प्रो. मानिनी श्रीवास्तव, मनोविज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय

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