एक बार फिर खाली हाथ गन्ना किसान

चौदह दिनों का दावा, मगर छह-सात महीने बाद भी चीनी मिल से भुगतान के इंतजार में किसान, चीनी मिलों को केंद्र सरकार के राहत पैकेज में गन्ना किसान अभी भी खाली हाथ।

Shubham KoulShubham Koul   3 Aug 2018 12:44 PM GMT

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मुजफ्फरनगर/लखनऊ। "गन्ने का पैसा अब तक नहीं मिला। न तो घर खर्च चला पा रहे हैं और न ही समय पर बच्चों की फीस जमा कर पा रहे हैं, अगर ऐसे ही पैसे नहीं मिले तो अगली फसल की बुवाई कैसे करेंगे, "भुगतान पाने के लिए चीनी मिल का दर्जनों बार चक्कर लगा चुके, परेशान किसान रामपाल ने गुस्से से कहा।

किसान रामपाल सिंह उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक गन्ना उत्पादक जिले मुजफ्फरनगर भोकहरड़ी गाँव के रहने वाले हैं, वहीं मुजफ्फरनगर से लगभग 450 किमी. दूर लखीमपुर जिले के किसान दिलजिंदर सहोटा के 4700 कुंतल गन्ने का भुगतान नहीं हो पाया।

दिलजिंदर बताते हैं, "हमारे यहां 24 जनवरी के बाद भुगतान नहीं हुआ, जितना पैसा मिला था धान की खेती में खर्च हो गया, हर महीने गन्ने की खेती में ही निराई, गुड़ाई जैसे कामों में मजदूरी में भी खर्च होते हैं, अब समय पर भुगतान नहीं होगा तो किसान क्या करेगा।"

ये तो बस उदाहरण हैं, ऐसे ही हजारों किसान हैं, जिन्होंने चीनी मिलों को गन्ना तो दिया, लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी भुगतान नहीं हो पाया।

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अभी दो महीने पहले जून में केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों व चीनी मिलों को राहत देने के लिए 7000 करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया, जबकि जुलाई महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के शाहजहांपुर में आयोजित एक रैली में गन्ना किसानों को राहत देने के लिए कहा कि सरकार ने गन्ना की बिक्री का लाभकारी 275 रुपये कुंतल कर दिया है, चीनी के उत्पादन में वृद्धि को देखते हुए ये मूल्य 10% रिकवरी पर तय किया गया है।

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह बताते हैं, "सरकार के 7000 करोड़ रुपए पैकेज में 1200 करोड़ रुपए चीनी के बफर स्टॉक बनाने और 4400 करोड़ रुपए गन्ने से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हैं, ऐसे में इस पैकेज का ज़्यादातर हिस्सा भुगतान में जाएगा, ज़ाहिर है कि किसानों के बक़ाया भुगतान की समस्या बनी रहेगी।"

वर्ष 2017-18 गन्ना सत्र के दौरान पूरे देश में गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 23,000 करोड़ रुपए हो चुका है, इसमें से आधे से अधिक उत्तर प्रदेश के किसानों के हैं। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना किसानों को गन्ना डिलीवरी के 14 दिनों के अंदर भुगतान करने की बात की थी।

मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में पश्चिमी यूपी को गन्ने का गढ माना जाता है। यहां के किसान अपनी कुल जमीन के 80 फीसदी भूभाग पर गन्ने की खेती करते हैं। यहां गन्ना किसानों के हर आयोजन गन्ने के भुगतान पर निर्भर रहता है।

प्रदेश में कुल 119 चीनी मिले हैं, पिछले सत्र की तुलना में लगभग 20 दिन पहले पेराई शुरू हो गई, जिसका फायदा चीनी मिलों ने तो जमकर उठाया, लेकिन बेचारा किसान अब भी ऐसा ही है जैसा पिछली सरकारों में था।

सरकार के 7000 करोड़ रुपए पैकेज में 1200 करोड़ रुपए चीनी के बफर स्टॉक बनाने और 4400 करोड़ रुपए गन्ने से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हैं, ऐसे में इस पैकेज का ज़्यादातर हिस्सा भुगतान में जाएगा, ज़ाहिर है कि किसानों के बक़ाया भुगतान की समस्या बनी रहेगी।
- वीएम सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन

पिछले सत्र में मिल प्रबंधन भुगतान को लेकर लेट सत्र शुरू होने का बहाना करता रहता था, लेकिन इस बार जहां अगेती प्रजाति से चीनी उत्पादन अच्छा मिल रहा है, वहीं बाजार में चीनी के दाम भी अच्छे हैं। इसके अलावा सरकार ने भी 14 दिन में किसानों के खाते में पैसा देने का दावा किया है, लेकिन इसके बावजूद भी किसानों का पैसा समय से नहीं मिल रहा है।

वहीं मुजफ्फरनगर जिले की ही पीनना गाँव के किसान सुमित मलिक समय पर भुगतान न होने से परेशान हैं, "वो बताते हैं, "चीनी मिल से भुगतान कभी समय पर नहीं मिलता है, किसी दुकानदार से कुछ ख़रीदने जाओ तो वो नक़द में ख़रीदना पड़ेगा, यहां तो किसान की मेहनत से उगाई फ़सल उधार पर जाती है। सरकार ने कह तो दिया, किसान की आय दोगुनी कर देंगे, ऐसे ही पैसे नहीं मिलेंगे तो क्या आय दोगुनी होगी।"

युवा किसान संजीव कुमार कहते हैं, "टीवी पर देखते हैं कि सरकार ये कह रही वो कह रही, नई योजना ला रही है, ऐसे ही रहा तो अब समय पर भुगतान नहीं होगा। न तो किसान के घर के बिजली का बिल जमा हो पा रहा है और न ही ट्यूबवेल का, ऐसे में किसानों का मोहभंग हो रहा है गन्ना की खेती से।"


साल 2012 में चीनी का उत्पादन 2.51 करोड़ टन हुआ था, वहीं 2017 में यह बढ़कर 2.95 करोड़ टन हो गया। इसका कारण है देख़भाल पर कम निर्भरता। देश में बढ़ते चीनी उत्पादन की वजह से गन्ने की क़ीमतों में गिरावट आई है, अक्टूबर 2017 में चीनी ऐक्स-फ़ैक्टरी क़ीमत 36-37 रुपए प्रति किलो थी, और मई 2018 में से 26-27 रुपए किलो हो गई और घटी क़ीमतों की वजह से मिलों का घाटा बढ़ता जा रहा है और किसानों को उनकी लागत भर का दाम भी नहीं मिल पा रहा है।

राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह कहते हैं, "सरकार ने दावा किया है कि 2018-19 गन्ना सत्र में प्रति कुंतल गन्ना पर 20 रुपए अधिक देगी, ये सब राजनीतिक स्टंट है।"

बैंकों से लोन लेना भी समय से भुगतान न होने का एक कारण है, किसान क्रेडिट कार्ड से किसान लोन लेता है, उसी से खेती के साथ ही घर खर्च भी चलाता है। किसान क्रेडिट कार्ड से किसान कर्जदार हो रहे हैं, अगर सही समय पर भुगतान हो जाए तो किसान बैंक से कर्ज ही क्यों लेगा?
- संजीव कुमार, किसान, मुजफफरनगर

"इस फैसले का मतलब है कि 20 रुपए प्रति कुंतल बढ़ोत्तरी केवल उन्हीं राज्यों में प्रभावी होगी, जहां औसत चीनी रिकवरी दस प्रतिशत से कम है, स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार किसानों को गन्ने की प्रति कुंतल कीमत 400 रुपए मिलनी चाहिए जोकि अभी भी बहुत कम है," वीएम सिंह ने आगे कहा।

उत्तर प्रदेश गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। वर्ष 2015-16 में अनुमानित 145.39 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन करता है, जो अखिल भारतीय उत्पादन का 41.28 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल 2.17 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में बोई जाती है, जो कि अखिल भारतीय गन्ने की खेती का 43.79 प्रतिशत हिस्सा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश को चीनी और गुड़ खिलाने वाले उत्तर प्रदेश में 33 लाख गन्ना किसान हैं।

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"बैंकों से लोन लेना भी समय से भुगतान न होने का एक कारण है, किसान क्रेडिट कार्ड से किसान लोन लेता है, उसी से खेती के साथ ही घर खर्च भी चलाता है। किसान क्रेडिट कार्ड से किसान कर्जदार हो रहे हैं, अगर सही समय पर भुगतान हो जाए तो किसान बैंक से कर्ज ही क्यों लेगा, "किसान संजीव कुमार ने कहा।

क्यों दूसरे देश से मंगानी पड़ रही चीनी?

देश में चीनी के बंपर उत्पादन के बावजूद पाकिस्तान से चीनी मंगाई जा रही है। वर्तमान में चीनी पर 100 प्रतिशत कस्टम ड्यूटी फ्री है। साथ ही भारत और पाकिस्तान विश्व व्यापार संगठन के तहत आने वाले देश हैं, जिसके तहत दोनों देशों के बीच आयात-निर्यात अनिवार्य है। व्यापार व वाणिज्य मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज में बात कही।

क्यों नहीं उगाना चाहते हैं दूसरी फसल?

गन्ने के सही समय पर भुगतान न होने पर ये भी सवाल उठते हैं कि किसान गन्ने अलावा दूसरी फसलों की खेती क्यों नहीं करना चाहता। इस बारे में मुजफ्फरनगर के युवा किसान संजीव कुमार कहते हैं, "हमारे एक बीघा गन्ने पर लगभग 12,000 रुपये खर्च होते हैं, जिसमें बुवाई से लेकर यूरिया, पोटाश जैसे उर्वरकों के साथ ही निराई, गुड़ाई, सिंचाई, कटाई से लेकर शुगर मिल तक गन्ने को पहुंचाने का खर्च शामिल है, फसल तैयार होने के बाद अच्छा मुनाफा हो जाता है।" आगे बताया, "साथ ही दूसरी फसलों के मुकाबले इसमें मेहनत भी कम लगती है और सीधे बिक जाती है, जोकि एक नकदी फसल है, इसलिए किसान दूसरी फसलों को उगाने से ज्यादा गन्ने की खेती पर ही ध्यान देता है।"

दूसरे देशों में क्या है स्थिति

बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में कुल उत्पादित चीनी में आधे से ज्यादा भागेदारी ब्राज़ील की होती थी, जोकि घटकर 45 प्रतिशत तक हो गई है, इससे निपटने के लिए ब्राज़ील इथेनॉल उत्पादन पर ज्यादा ध्यान दे रहा है, अब 60 प्रतिशत गन्ने की फसल इथेनॉल उत्पादन में उपयोग हो रही है, जबकि वहां पर भी किसानों की हालत खराब है। इसी के साथ पाकिस्तान, जो चीनी पालिसी पर सब्सिडी दे रहा है, इस बार पाकिस्तान ने लगभग 1.359 मीट्रिक टन चीनी निर्यात की। थाईलैंड ने भी चीनी निर्यात पर ध्यान देना शुरू किया है, ये सबसे ज्यादा चीनी निर्यात करने वाला दूसरा देश बन गया है।

किसानों की राहत के लिए सरकार ने लिए थे पहले भी फैसले

वर्ष 2014-15 : किसानों के बकाया के भुगतान के लिए केंद्र सरकार ने चीनी मिलों 6000 करोड़ रुपए लोन दिए और चीनी पर आयात शुल्क 25% से बढ़ाकर 40 % कर दिया था।

वर्ष 2015-16 : किसानों के बकाया के भुगतान के लिए 45 रुपए प्रति टन सब्सिडी दी।

वर्ष 2016-17 : उत्तर प्रदेश सरकार ने चीनी मिलों के बकाया भुगतान के लिए 24 रुपए प्रति टन की सब्सिडी दी।

ऐसे पहुंचता है किसान का गन्ना

गन्ना सहकारी समिति से किसानों को पर्ची मिलती है, एक पर्ची पर एक किसान मिल में 25-30 कुंतल गन्ना बेच सकता है। पर्ची न मिलने पर किसान गन्ना नहीं बेच सकता है, पर्ची के आधार पर गन्ना देने पर ये सुनिश्चित हो जाता है कि किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित गन्ने का मूल्य मिल जाएगा।



   

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