“ सभी फसलों को एमएसपी के दायरे में लाना टेढ़ी खीर ”
गाँव कनेक्शन | Feb 05, 2018, 12:59 IST
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि उपयुक्त खरीद व्यवस्था की कमी और खेती की सही लागत के निर्धारण की चुनौतियों आदि के कारणों सभी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में लाने के फैसले को लागू करना आसान नहीं होगा
नयी दिल्ली। सरकार ने इस बार के बजट में सभी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में लाने का फैसला किया है जबकि कुछ कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि उपयुक्त खरीद व्यवस्था की कमी और खेती की सही लागत के निर्धारण की चुनौतियों आदि के कारणों से इसे को लागू करना आसान नहीं होगा। उनका कहना है कि यह प्रावधान तभी लाभकारी होगा जब किसान अपनी उपज उपयुक्त माध्यम से बेचें। यह विंडबना है कि देश में अधिक खाद्य उत्पादन के बावजूद किसानों को उनकी मेहनत का फल नहीं मिल रहा। इसका कारण कृषि विपणन व्यवस्था की कमजोरी और लाभकारी मूल्य का नहीं मिलना है। इसको देखते हुए वत्ति मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के बजट में किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना लाभकारी मूल्य देने का वादा किया है और इसे सभी फसलों पर लागू करने का नर्णिय किया है।
कृषि विशेषज्ञ और अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार ने कहा "यह प्रावधान किसानों के लिए तभी लाभकारी हो सकता है जब वे अपनी उपज एपएमसी पर नियमित चैनलों के जरिेये बेचते हैं। कई बार देखा गया है कि वास्तव में इस तरह की योजरनाओं का लाभ बिचौलिये कारोबारी उठा लेते हैं और किसानों का उसका लाभ नहीं मिलता।"
बेंगलुरू स्थित अनुसंधान निकाय सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन संस्थान (आईएसईसी) के प्रोफेसेर कुमार ने कहा "गांवों में बिचौलियों के माध्यम से खाद्यान की बिक्री से निपटना एक बड़ी चुनौती है। इस समस्या के समाधान के लिए बजट में खासकर छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए स्थानीय स्तर पर बाजार संबंधी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए 22,000 ग्रामीण हाटों को उन्न्त बनाकर ग्रामीण कृषि बाजार बनाने का प्रस्ताव किया गया। इसके लिए बजट में 2,000 करोड़ रुपए का कोष आवंटित किया गया है।
इस बारे में इसी संस्थान की प्रोफेसर तथा कृषि मामलों की जानकार मीनाक्षी राजीव ने कहा "इस बारे में कुछ मुद्दे हैं। पहला, देश में 6 लाख से अधिक गांव हैं क्या ऐसे में 22000 ग्रामीण हाटों को उन्नत कृषि मंडी में तब्दील करने से किसानों को उनकी समस्याओं से राहत मिलेगी? दूसरा क्या 2000 करोड़ रुपए किसानों की स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव लाने में पर्याप्त होंगे?
तीसरा कृषि राज्य का विषय है, ऐसे में योजना की सफलता के लिए राज्य सरकारों की प्रतिबद्वता की जरूरत होगी।" उनके अनुसार सबसे बड़ा मुद्दा फसल की लागत के कम से कम डेढ़ गुना के बराबर एमएसपी की घोषणा है। मीनाक्षी और कुमार के अनुसार इसमें एक बडा मसला यह है कि आखिर सरकार किस लागत को ध्यान में रखेगी। क्या यह फसल की लागत में परिवार के श्रम की लागत (ए2 जमा एफएल) या इसमें फसल लागत एवं पारिवारिक श्रम के साथ जमीन के मूल्य को भी (सी 2) शामिल किया जाएगा। कृषि मूल्य एवं लागत आयोग (सीएसीपी) सी2 के आधार पर एमएसपी की सिफारिश करता है।
क्या है ए2, ए2+एफएल और सी2
2004 में यूपीए सरकार ने किसानों के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया था। इसका लक्ष्य भारत में खेती, खाद्यान्न उत्पादन, सूखे की समस्या से निपटने के लिए अपने सुझाव देना था। इस आयोग को स्वामीनाथन कमीशन के नाम से जाना गया। कमीशन ने अपनी रिपोर्ट (2006) में किसानों को फसलों पर आई लागत का 50 फीसदी एमएसपी देने को कहा था। इस कमीशन ने फसल पर आने वाली लागत को तीन हिस्सों- ए2, ए2+एफएल और सी2 में बांटा था।
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कुमार के अनुसार पूर्वी क्षेत्र में बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल जैसे गरीब राज्यों तथा मध्यवर्ती, दक्षिणी एवं पश्चिमी क्षेत्रों के कुछ राज्यों के किसान बिचौलियों के जरिये खेतों या गांव के स्तर पर ही अपनी उपज बेचते हैं। उन्होंने कहा कि एमएसपी में उन फसलों को शामिल करना जो अबतक उसके दायरे में नहीं है, उनके मामले में क्रियान्वयन एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि ऐसी फसलों के लिए कोई खेती की लागत का स्वीकार्य अनुमान उपलब्ध नहीं है।
कुमार ने कहा कि पुन: खरीद केवल गेहूं और चावल में है, ऐसे में शेष फसलों के मामले में वास्तविक मूल्य तथा घोषित एमएसपी के बीच अंतर का भुगतान सीधे किसानों को किया जा सकता है। मीनाक्षी के अनुसार "पायलट आधार पर मध्य प्रदेश में आठ तिलहन फसलों के लिए चलायी जा रही भावांतर भुगतान योजना तथा हरियाणा में चार सब्जियों की फसल के लिए चलायी जा रही कीमत अंतर भुगतान योजना से मदद मिल सकती है।
इसके जरिये किसानों को एमएसपी फसलों के लिए प्राप्त वास्तविक मूल्य तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत घोषित कीमत के बीच अंतर का सीधे भुगतान किया जा सकता है। साथ ही राज्य सरकारों के लिए सभी किसानों तथा उनके बैंक खातों एवं अन्य जानकारी का पंजीकरण करने की आवश्यकता होगी ताकि वे वास्तविक मूल्य एवं घोषित एमएसपी के बीच अंतर के बराबर राशि अंतरण कर सके। इस योजना के क्रि यान्वयन में विशष्टि पहचान संख्या आधार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
(भाषा से इनपुट)