केले की खेती से पहले हरी खाद का करें इस्तेमाल: मिट्टी की उर्वरता में बढ़ने के साथ घट जाएगी लागत
Dr SK Singh | Apr 03, 2025, 15:55 IST
केले की खेती में अधिक उत्पादन और अच्छी गुणवत्ता के लिए मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना ज़रूरी होता है। हरी खाद के इस्तेमाल से किसान अपनी मिट्टी को पोषक तत्वों से भरपूर बना सकते हैं, जिससे उन्हें लंबे समय तक फायदा होगा।
रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता लगातार घट रही है, जिससे फसलों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में किसानों को जैविक खेती को अपनाते हुए हरी खाद के उपयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। हरी खाद मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ाकर उसकी उर्वरक शक्ति को बनाए रखती है। खासतौर पर, केले की खेती से पहले हरी खाद वाली फसलों की बुवाई करने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है।
हरी खाद उन फसलों को कहते हैं, जिन्हें मिट्टी में जैविक तत्वों को बढ़ाने और पोषक तत्वों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उगाया जाता है। ये फसलें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, जस्ता, तांबा, मैंगनीज, लोहा, और मोलिब्डेनम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति करती हैं। हरी खाद से मिट्टी की संरचना बेहतर होती है और जल संरक्षण में भी मदद मिलती है।
ढैंचा, सनई, मूंग, और लोबिया जैसी फसलें हरी खाद के लिए उपयुक्त हैं और इनका प्रयोग मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया से न केवल केला की पैदावार बढ़ेगी, बल्कि रासायनिक उर्वरकों की लागत भी घटेगी, जिससे खेती अधिक लाभदायक होगी।
केला एक ऐसी फसल है, जिसे पोषक तत्वों की अत्यधिक आवश्यकता होती है। इसलिए, मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना बेहद जरूरी है। रबी फसलों की कटाई के बाद और केले की रोपाई के बीच का समय (लगभग 90-100 दिन) हरी खाद वाली फसलों को उगाने के लिए उपयुक्त होता है। इस अवधि में मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाया जा सकता है, जिससे केले की खेती अधिक उत्पादक और टिकाऊ बनती है।
केला लगाने से पहले अप्रैल-मई के दौरान निम्नलिखित हरी खाद वाली फसलों की बुवाई की जा सकती है:
ढैंचा विशेष रूप से उन खेतों के लिए उपयुक्त है जिनकी मिट्टी का pH मान 8.0 से अधिक है, क्योंकि यह मिट्टी की क्षारीयता को कम करने में मदद करता है। यदि खेत में पहले से मृदा सुधारक जैसे जिप्सम या पायराइट का उपयोग किया गया हो, तो ढैंचा की खेती सर्वोत्तम परिणाम देती है।
✅ मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि: जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ती है जिससे फसल की उत्पादकता में सुधार होता है।
✅ रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है: हरी खाद नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करती है जिससे रासायनिक उर्वरकों की जरूरत घटती है।
✅ मृदा संरचना में सुधार: मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है और यह अधिक उपजाऊ बनती है।
✅ पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है: सूक्ष्म जीवों की सक्रियता बढ़ने से मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है।
✅ मिट्टी का क्षरण कम होता है: ढैंचा जैसी फसलें मिट्टी को पत्तियों और तनों से ढककर मृदा कटाव रोकती हैं।
✅ पर्यावरण अनुकूलता: हरी खाद का उपयोग जैविक खेती को बढ़ावा देता है, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान होता है।
हरी खाद की खूबियाँ जान लीजिए
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केले की खेती में हरी खाद का इस्तेमाल
हरी खाद के लिए लगाएं ये फसलें
- ढैंचा (Sesbania bispinosa): यह तेजी से बढ़ने वाली फसल है जो मिट्टी की उर्वरता में सुधार करती है।
- सनई (Crotalaria juncea): यह मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है और उसकी संरचना को सुधारती है।
- मूंग (Vigna radiata): यह हरी खाद और दलहनी फसल दोनों का लाभ देती है।
- लोबिया (Vigna unguiculata): यह मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ाने में सहायक होती है।
ढैंचा: सर्वोत्तम हरी खाद फसल
हरी खाद फसल की बुवाई और प्रबंधन
- अप्रैल-मई में खाली खेत में हल्की सिंचाई करें ताकि नमी बनी रहे।
- प्रति हेक्टेयर 45-50 किलोग्राम ढैंचा बीज की बुवाई करें।
- जब फसल 45-60 दिन की हो जाए और उसमें फूल आने लगे, तब इसे मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर मिट्टी में मिला दें।
- हरी खाद को दबाने के बाद प्रति बिस्वा (1360 वर्ग फीट) 1 किग्रा यूरिया छिड़कें, जिससे यह जल्दी सड़कर मिट्टी में मिल जाए।
- इस प्रक्रिया के बाद खेत केले की रोपाई के लिए तैयार हो जाता है।
हरी खाद के लाभ
✅ रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होती है: हरी खाद नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करती है जिससे रासायनिक उर्वरकों की जरूरत घटती है।
✅ मृदा संरचना में सुधार: मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है और यह अधिक उपजाऊ बनती है।
✅ पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है: सूक्ष्म जीवों की सक्रियता बढ़ने से मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है।
✅ मिट्टी का क्षरण कम होता है: ढैंचा जैसी फसलें मिट्टी को पत्तियों और तनों से ढककर मृदा कटाव रोकती हैं।
✅ पर्यावरण अनुकूलता: हरी खाद का उपयोग जैविक खेती को बढ़ावा देता है, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान होता है।