दो सौ रुपए का नील-हरित शैवाल बचाएगा आपके हज़ारों रुपए

Divendra SinghDivendra Singh   21 May 2018 7:05 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
दो सौ रुपए का नील-हरित शैवाल बचाएगा आपके हज़ारों रुपएडेढ़ से दो सौ रुपए में तैयार हो जाता है उर्वरक

लखनऊ। धान की फसल में किसान हज़ारों रुपए खर्च करके नाइट्रोजन की कमी पूरी करने के लिए यूरिया डालता है, जो इंसान व वातावरण दोनों के लिए नुकसानदायक होता है, जबकि किसान डेढ़ से दो सौ रुपए खर्च करके नील-हरित शैवाल का प्रयोग कर नाइट्रोजन की कमी को पूरा कर सकता है।

कृषि विज्ञान केंद्र, आजमगढ़ के वरिष्ठ मृदा वैज्ञानिक डॉ. रणधीर नायक बताते हैं, "इस गर्मी के मौसम में अप्रैल से जुलाई महीने तक किसान भाई अपने घरों में डेढ़ से दो सौ रुपए खर्च करके काई वाली खाद नील हरित शैवाल जैव उर्वरक का आधा किग्रा. मदर कल्चर लेकर, इसका उत्पादन कर सकते हैं और इसे धान की फसल में डालकर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।"

ये भी पढ़ें- जैविक खेती से लहलहाएगी फसल, पर्यावरण रहेगा सुरक्षित

रसायनिक खाद और कीटनाशकों के अंधाधुध इस्तेमाल और गोबर-हरी खाद के कम उपयोग से देश की 32 फीसदी खेती योग्य जमीन बेजान होती जा रही है। जमीन में लगातार कम होते कार्बन तत्वों की तरफ अगर जल्द ही किसान और सरकारों ने ध्यान नहीं दिया तो इस जमीन पर फसलें उगना बंद हो सकती हैं।

इस गर्मी के मौसम में अप्रैल से जून महीने तक किसान भाई अपने घरों में डेढ़ से दो सौ रुपए खर्च करके काई वाली खाद नील हरित शैवाल जैव उर्वरक का आधा किग्रा. मदर कल्चर लेकर, इसका उत्पादन कर सकते हैं और इसे धान की फसल में डालकर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं।
डॉ. रणधीर नायक, वरिष्ठ मृदा वैज्ञानिक

नील-हरित शैवाल उत्पादन के बारे में वो बताते हैं, 'किसान भाइयों ये नील हरित शैवाल जैव उर्वरक खाद तैयार करने के लिए पांच मीटर लंबा, एक मीटर चौड़ा और आधा फिट गहरा गड्ढ़ा बनाना होता है, इस गड्ढे में मोटी पॉलिथिन बिछानी होती है, चारों तरफ से उसे मिट्टी से ढ़ककर क्यारी बना लें, उस क्यारी में पांच इंच पानी भरते हैं, पांच किग्रा खेत की उपजाऊ मिट्टी डालते हैं, पांच सौ ग्राम काई का भोजन सिंगल सुपर फास्फेट खाद डालते हैं, सात दिन में तैयार होती है। इसमें कीड़े न पड़े इसलिए इसमें 50 ग्राम कॉर्बोफ्यूरान डालते हैं और इसमें सब कुछ अच्छे से मिला देते हैं। सबकुछ अच्छे से मिलाने के बाद उसे चार घंटे के लिए छोड़ देते हैं, ताकि सब कुछ आसानी से बैठ जाए उसके बाद नील हरित शैवाल के मदर कल्चर को उसमें डाल दें।"

ये भी पढ़ें- इस महीने कर सकते हैं पपीते की खेती, मिलेगी बढ़िया पैदावार

नील हरित शैवाल जनित जैव उर्वरक में आलोसाइरा, टोलीपोथ्रिक्स, एनावीना, नासटाक, प्लेक्टोनीमा होते हैं। ये शैवाल वातावरण से नाइट्रोजन लेते हैं। यह नाइट्रोजन धान के उपयोग में तो आता ही है, साथ में धान की कटाई के बाद लगाई जाने वाली अगली फसल को भी नाइट्रोजन और अन्य उपयोगी तत्व उपलब्ध कराता है।

सात दिनों में हो जाती है तैयार।

"टैंक बनाते समय ये जरूर ध्यान दें, जहां पर आप टैंक बना रहे हैं वहां पर खुली धूप आनी चाहिए और वहां पर छोटे बच्चों और जानवरों की पहुंच नहीं होनी चाहिए, क्योंकि उस उत्पादन टैंक में कॉर्बोफ्यूरान जहर पड़ा होता है अगर इसे जानवर पीते हैं तो उन्हें नुकसान अगर छोटे बच्चे भी इसे छूते हैं उन्हें भी नुकसान पहुंचेगा, "डॉ. रणधीर नायक ने बताया।

ये उर्वरक सात दिनों में तैयार होता है, सात दिन बाद आप देखोगे कि पानी भी सूख जाएगा, देखेंगे जैसे की दूध में मलाई पड़ती है, उसी तरह से काई की एक मोटी परत उसपर छा जाएगी। इस तरीके से एक टैंक से आप एक हफ्ते में आप छह किग्रा नील हरित शैवाल आप उत्पादित कर सकते हैं, इसके उपयोग के लिए किसान धान की रोपाई के पांच दिन बाद इसके साढ़े बारह किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल देते हैं, इसमें 25 किलो सिंगल सुपर फास्फेट मिला लें, या किसी खेत की उपजाऊ मिट्टी को मिलाकर खेत में डाल दें।

ये भी पढ़ें- हाइड्रोजेल बदल सकता है किसानों की किस्मत, इसकी मदद से कम पानी में भी कर सकते हैं खेती

नील-हरित शैवाल के होते हैं कई फायदे

इससे कई फायदे होते हैं, खेत में जो नमी होती है, उसे पाकर ये पूरे खेत में फैल जाता है, इसके फैलने से जो इसमें सीजनल खरपतवार होते हैं वो नहीं बढ़ेंगे। नील हरित शैवाल जो वायूमंडल में 78 प्रतिशत प्राकृतिक नाइट्रोजन होता है, उसको ये जमीन में स्थिर करता है और फसल को नाइट्रोजन उपलब्ध कराता है, इसके परिणाम स्वरूप आप देखेंगे प्रति हेक्टेयर 75 किग्रा. यूरिया की बचत होती है, जो भी यूरिया की आप खेत में डालते हैं, उसमें 25 प्रतिशत कम करके खेत में डाले

इसके प्रयोग से धान में जो सूखी बाली निकलने की समस्या होती है, उसमें बाली सूखने की समस्या नहीं आती है, जो सूक्ष्म पोषक तत्व होते हैं, जैसे कि जिंक, बोरान, आयरन इनकी उपलब्धता भी इसके माध्यम से बढ़ती है, इसके प्रयोग से सिंचाई भी कम करनी पड़ती है, अगर तीन साल लगातार आप काई डालते हैं तो चौथे साल आपको काई डालने की जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि ये अपने आप पैदा होती है, यही नहीं अगर आपने इसे धान की फसल में प्रयोग किया है तो रबी की फसल में भी इसका फायदा होगा।

ये भी पढ़ें: कम समय में तैयार होती है धान की उन्नत सांभा मंसूरी किस्म, मधुमेह रोगी भी खा सकते हैं चावल



           

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.