हाइड्रोजेल बदल सकता है किसानों की किस्मत, इसकी मदद से कम पानी में भी कर सकते हैं खेती
Divendra Singh 5 April 2018 12:09 PM GMT

देश में जिस तरह से जलसंकट बढ़ रहा है, कई राज्यों में तो सूखे ने खेती को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। अगर ऐसा ही रहा तो कुछ साल में कहीं खेती नहीं हो पाएगी। ऐसे में हाइड्रोजल जेल की मदद से कम पानी में भी खेती कर सकते हैं।
भारत में जितनी खेती होती है, उनमें से 60 प्रतिशत खेती ऐसे क्षेत्र में की जाती है जहां पानी की बेहद किल्लत है। इनमें से 30 प्रतिशत जगहों पर पर्याप्त बारिश नहीं होती है। भारत में खेती मुख्य रूप से बारिश पर निर्भर है। देश में 60 प्रतिशत खेती बारिश के पानी पर निर्भर है और इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 1150 मिलीमीटर से भी कम होती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूसा के वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजल विकसित किया है, जिसकी मदद से बारिश के पानी को स्टोर कर रखा जा सकता है और इसका इस्तेमाल उस वक्त किया जा सकता है जब फसलों को पानी की जरूरत पड़ेगी।
हाइड्रोजेल विकसित करने में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ नेचूरल रेजिन एंड गम ने एक नई उपलब्धि हासिल की है। आईआईएनआरजी, भारतीय प्राकृतिक रेजिन और गम्स संस्थान के वैज्ञानिकों ने ग्वार फली से हाइड्रोजेल विकसित किया है, जो पूरी तरह से प्राकृतिक है। हाइड्रोजेल पॉलिमर है जिसमें पानी को सोख लेने की क्षमता होती है और यह पानी में घुलता भी नहीं। हाइड्रोजेल बायोडिग्रेडेबल भी होता है जिस कारण इससे प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहता है।
आईआईएनआरजी के वैज्ञानिक डॉ. नंदकिशोर थोंबरे बताते हैं, "हाइड्रोजेल खेत से उर्वरा शक्ति पर भी कोई असर नहीं पड़ता है, ये अपनी क्षमता से कई गुना अधिक पानी सोख लेता है, एक एकड़ खेत में एक-दो किलो हाइड्रोजल की जरूरत होती है। हाइड्रोजेल 40 से 50 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी खराब नहीं होता है, इसलिये इसका इस्तेमाल ऐसे क्षेत्रों में किया जा सकता है, जहां सूखा पड़ता है।
हाइड्रोजेल के कण बारिश होने पर या सिंचाई के वक्त खेत में जाने वाले पानी को सोख लेता है और जब बारिश नहीं होती है तो कण से खुद-ब-खुद पानी रिसता है, जिससे फसलों को पानी मिल जाता है। फिर अगर बारिश हो तो हाइड्रोजेल दुबारा पानी को सोख लेता है और जरूरत के अनुसार फिर उसमें से पानी का रिसाव होने लगता है।
खेतों में हाइड्रोजेल का एक बार इस्तेमाल किया जाये, तो वह दो से पांच वर्षों तक काम करता है और इसके बाद ही वह नष्ट हो जाता है लेकिन नष्ट होने पर खेतों की उर्वरा शक्ति पर कोई नकारात्मक असर नहीं डालता है, बल्कि समय-समय पर पानी देकर फसलों और खेतों को फायदा ही पहुंचाता है।
हाइड्रोजेल का इस्तेमाल उस वक्त किया जा सकता है जब फसलें बोई जाती हैं। फसलों के साथ ही इसके कण भी खेतों में डाले जा सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने मक्का, गेहूं, आलू, सोयाबीन, सरसों, प्याज, टमाटर, फूलगोभी, गाजर, धान, गन्ने, हल्दी, जूट समेत अन्य फसलों में हाइड्रोजेल का इस्तेमाल कर पाया गया कि इससे उत्पादकता तो बढ़ती है, लेकिन पर्यावरण और फसलों को किसी तरह का नुकसान नहीं होता है।
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