गन्ने की खेती से क्यों दूर हो गए पूर्वांचल के किसान

"पूर्वांचल में ज्यादातर छोटे किसान हैं और उधार लेकर गन्ने की खेती करते हैं, पांच-छह महीनों से पेमेंट न मिल पाने से अब क्या कर सकते हैं किसान, बच्चों की पढ़ाई घर का खर्च सब इसी पर निर्भर है, ऐसे में किसान क्या करें।"

Shubham KoulShubham Koul   4 Sep 2018 1:01 PM GMT

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कुशीनगर। एक समय था जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा गन्ना उत्पादन पूर्वांचल में होता था, लेकिन गन्ने का सही समय पर भुगतान न मिलने पर किसानों ने गन्ने की खेती को कम कर दी है, जो किसान अभी भी खेती कर रहे हैं वो भी गन्ने को छोड़ दूसरी फसलों की खेती करना चाहते हैं।

कुशीनगर जिले के रामपुर ब्लॉक के किसान बद्रीनाथ साहनी बताते हैं, "कुशीनगर गन्ने की खेती के लिए जाना जाता है, पिछले कुछ साल गन्ने के पेमेंट की समस्या बढ़ी है, कई शुगर मिलें भी बंद हो गईं हैं, इससे परेशान होकर कई किसानों ने केला और सब्जियों की खेती शुरू कर दिया, जब प्रदेश सरकार ने ये कहा कि 14 दिनों में गन्ने का पेमेंट मिल जाएगा तो कई किसानों ने फिर से गन्ने की खेती शुरू कर दी है, लेकिन अभी भी वही समस्या है।"

चीनी का कटोरा कहे जाने वाले पूर्वांचल के कई जिलों में कभी गन्ने की फसल लहलहाती थी, और गन्ने की खेती में कम मेहनत भी करनी पड़ती। यहां की मिट्टी गन्ने की खेती के लिए एकदम सही है, तभी तो यहां पर कई चीनी मिलें भी लगाई गईं थीं। ये चीनी मिलें किसानों का गन्ना लेती थीं, उन्हें समय पर पैसे देती थीं और किसान आगे की फ़सल की तैयारी करता था। यह क्रम क़रीब पचास दशक तक बना रहा।


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लेकिन 1990 के बाद से मिलें बंद होने लगीं और किसान बर्बाद होने लगे। आज स्थिति ये है कि इस इलाक़े की ज़्यादातर चीनी मिलें या तो बंद पड़ी हैं या फिर वो घाटे में चल रही हैं।

वर्ष 2017-18 गन्ना सत्र के दौरान पूरे देश में गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 23,000 करोड़ रुपए हो चुका है, इसमें से आधे से अधिक उत्तर प्रदेश के किसानों के हैं। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना किसानों को गन्ना डिलीवरी के 14 दिनों के अंदर भुगतान करने की बात की थी। यूपी गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, क्योंकि यह अनुमानित 145.39 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन होता है, जो पूरे देश के गन्ना उत्पादन का 41.28 प्रतिशत है।

"पूर्वांचल में ज्यादातर छोटे किसान हैं और उधार लेकर गन्ने की खेती करते हैं, पांच-छह महीनों से पेमेंट न मिल पाने से अब क्या कर सकते हैं किसान, बच्चों की पढ़ाई घर का खर्च सब इसी पर निर्भर है, ऐसे में किसान क्या करें, "बद्रीनाथ आगे बताते हैं।

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उत्तर प्रदेश गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। वर्ष 2015-16 में अनुमानित 145.39 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन करता है, जो अखिल भारतीय उत्पादन का 41.28 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल 2.17 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में बोई जाती है, जो कि अखिल भारतीय गन्ने की खेती का 43.79 प्रतिशत हिस्सा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पूरे देश को चीनी और गुड़ खिलाने वाले उत्तर प्रदेश में 33 लाख गन्ना किसान हैं।

अभी जून महीने में केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों व चीनी मिलों को राहत देने के लिए 7000 करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान किया, जबकि जुलाई महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के शाहजहांपुर में आयोजित एक रैली में गन्ना किसानों को राहत देने के लिए कहा कि सरकार ने गन्ना की बिक्री का लाभकारी 275 रुपये कुंतल कर दिया है, चीनी के उत्पादन में वृद्धि को देखते हुए ये मूल्य 10% रिकवरी पर तय किया गया है।

वहीं किसान जीतेंद्र कुमार गुप्ता कहते हैं, "पहले धान और गेहूं भी साथ में उगाता था लेकिन जब से राशन मिलने लग गया है तब से सिर्फ गन्ना ही उगा रहा हूं। गन्ने में लागत काम आती है, लेकिन पेमेंट समय से नहीं मिल पाता है, मेरा तो 22000 रुपए फरवरी से अटका हुआ है।"

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वर्ष 2017-18 गन्ना सत्र के दौरान पूरे देश में गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 23,000 करोड़ रुपए हो चुका है, इसमें से आधे से अधिक उत्तर प्रदेश के किसानों के हैं। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ना किसानों को गन्ना डिलीवरी के 14 दिनों के अंदर भुगतान करने की बात की थी।

किसान विक्रम प्रसाद ने बताया, "भाजपा सरकार में यह था कि 14 दिनों में पेमेंट होगा, इस सुविधा के लिए हमने ज़्यादा से ज़्यादा गन्ना उगाया, लेकिन 14 दिन में पेमेंट असंभव हो गया। इससे पहले धान और बैंगन की खेती कर रहे थे, लेकिन फिर खेती बदल दी, मेरे करीब 35-37 हजार रुपए फंसे हैं फरवरी से, मेरी तरह ऐसे बहुत से किसान हैं जिनका पेमेंट फसा हुआ है।"

"पैसा तुरंत मिल जाने से आर्थिक स्थिति में सुधार हो जाएगा, समय से खेती और बच्चों की पढाई का खर्च निकल जाता है, अगर क़र्ज़ लिया है उसका भी समाधान हो जाता है और जब पैसे नहीं मिलते है तो दोबारा क़र्ज़ लेना पड़ता है, करीब 20000 रुपए क़र्ज़ पांच प्रतिशत इंटरेस्ट देने पड़ते हैं, "विक्रम प्रसाद ने आगे बताया।

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