बुद्ध पूर्णिमा: काला नमक चावल, जिसे खाकर गौतम बुद्ध ने अपना उपवास तोड़ा था, वो अब लुप्त हो रहा

बुद्ध पूर्णिमा पर पढ़िए एक खास फसल के बारे में जो सीधे उनके जीवन से जुड़ी थी, लेकिन अब वो भारत से खत्म होती जा रही है। buddha purnima 2019

Neetu SinghNeetu Singh   18 May 2019 5:59 AM GMT

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बुद्ध पूर्णिमा: काला नमक चावल, जिसे खाकर गौतम बुद्ध ने अपना  उपवास तोड़ा था, वो अब लुप्त हो रहा

काला नमक चावल एक घर में बनता है तो आस पास के कई घरों में इसकी खुशबू जाती है। अब न तो पहले वाला शुद्ध पानी रह गया है और न पहले वाली वो खुशबू रह गयी है। असली काला नमक धान हमारे पूर्वजों के जमाने में होता था।

वर्डपुर (सिद्धार्थनगर)। जिस काला नमक चावल से बनी खीर खाकर गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना उपवास तोड़ा था, वही काला नमक चावल अब अपने ही घर में अपना अस्तित्व खो रहा है। काला नमक धान का गढ़ माने जाने वाले सिद्धार्थनगर के बर्डपुर ब्लॉक में अब इसका उत्पादन नाम मात्र का ही बचा है। अधिक दिन की फसल, पानी की समस्या, कम उपज, बाजार भाव न मिलने जैसी कई वजहों से यहां के किसानों से काला नमक धान के उत्पादन से मुंह मोड़ लिया है।

"पहले हमारे यहां के लोग रोटी खाते ही नहीं थे, सिर्फ काला नमक चावल खाते थे। गेहूं और ज्वार काम भर का बोते थे। महंगाई ज्यादा थी नहीं, इसलिए साल में एक फसल काला नमक धान की ही करते थे। हर घर में काला नमक धान होता था, पिछले 20 वर्षों में धीरे-धीरे काला नमक धान कम होना शुरू हुआ अब 4-5 प्रतिशत ही बचा है।" बर्डपुर-9 ग्राम पंचायत के किसान राधेश्याम जयसवाल (68 वर्ष) ने कहा, "काला नमक चावल एक घर में बनता है तो आस पास के कई घरों में इसकी खुशबू जाती है। अब न तो पहले वाला शुद्ध पानी रह गया है और न पहले वाली वो खुशबू रह गयी है। असली काला नमक धान हमारे पूर्वजों के जमाने में होता था।"

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काला नमक चावल की बुद्ध ने खाई थी खीर

"पहले हमारे यहां के लोग रोटी खाते ही नहीं थे, सिर्फ काला नमक चावल खाते थे। गेहूं और ज्वार काम भर का बोते थे। महंगाई ज्यादा थी नहीं, इसलिए साल में एक फसल काला नमक धान की ही करते थे। हर घर में काला नमक धान होता था, पिछले 20 वर्षों में धीरे-धीरे काला नमक धान कम होना शुरू हुआ

जब अंग्रेज़ आते थे नहर का पानी खोलने

यहां के किसानों ने बताया कि पहले जो यहां अंग्रेज रहते थे वो हर सुबह अपने घोड़े पर बैठकर नहर का पानी खोलने जाते थे। जब एक तरफ के खेत भर जाते तो वहां का बंधा बांधकर दूसरी तरफ पानी खोल देते ये उनकी हर दिन की दिनचर्या में शामिल था। इस अंग्रेज ने अपने पिता बर्ड के नाम से इस ब्लॉक का नाम बर्डपुर रखा। बर्डपुर एक से लेकर क्रमशः वर्डपुर 14 तक ग्राम पंचायतों के नाम हैं जिसकी एक ग्राम पंचायत की आबादी पांच हजार से लेकर 20 हजार तक है। इतनी बड़ी आबादी वाले इस ब्लॉक में काला नमक धान करने वाले किसानों की संख्या 4-5 प्रतिशत ही बची है।




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जहां से धान के लिए मिलता था पानी वहां होने लगा मछली पालन

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर वर्डपुर ब्लॉक है। काला नमक धान का गढ़ माने जाने वाले सिद्धार्थनगर के इस ब्लॉक में अब गिने चुने किसान ही अपने खाने के लिए ही काला नमक धान का उत्पादन करते हैं। किसान हरिनारायण चौरसिया बर्डपुर-9 में खाली पड़ी काला नमक धान की मंडी की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं, "पहले यहां धान की बहुत बड़ी मंडी लगा करती थी, अब किसान धान नहीं करता इसलिए मंडी धीरे-धीरे खत्म हो गयी। पानी की सबसे बड़ी समस्या है, यहां के जो दो बड़े तालाब हैं जिससे पहले पानी मिलता था अब उसमें बड़े पैमाने पर मछली पालन हो रहा है। जब किसान को पानी की जरूरत होती है तब मिलता नहीं है।"

वो आगे बताते हैं, "अब किसान साल में धान और गेहूं दो फसलें लेता है इसलिए काला नमक धान खत्म हो रहा है। दिसम्बर आख़िरी में धन कटती है तब तक गेहूं बुवाई का समय चला जाता है। ये धान एक बीघा में ढाई से तीन कुंतल होती है जबकि बाकी धान 8 से 10 कुंतल होती है। काला नमक का भाव छह सात हजार कुंतल है, घाटे की फसल मानते हुए किसान ने अब इसे करना बंद कर दिया है।"

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काला नमक धान की पहचान बुद्ध काल से है। बढ़ती महंगाई कम उत्पादन, मजदूर न मिलने की वजह से किसानों का रुझान इस धान की तरफ से खत्म होता जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र सोहना के कार्यक्रम समन्यवक डॉ. सतीश कुमार तोमर गांव कनेक्शन को बताते हैं, "पिछले पांच साल पहले काला नमक का उत्पादन बहुत कम हो गया था। कृषि विज्ञान की पहल से किसानों का इसका मुफ़्त में बीज उपलब्ध कराया गया, अब किसान इसे कर रहे हैं। इस वैराइटी पर लगातार शोध हो रहे हैं जिससे इसे कम दिनों का किया जा सके। काला नमक दो - तीन की नई वैराइटी पर गोरखपुर के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं।"

वो आगे बताते हैं, "आने वाले वर्षों में हमारी कोशिश है कि किसान काला नमक धान के बाद गेहूं की फसल ले सकें और उन्हें इसकी बाजार उपलब्ध कराई जाए जिससे इस धान को किसान फिर से करना शुरू कर सकें। असली काला नमक धान अब सही मायने में बचा नहीं है बीज मिक्स हो गया है इसलिए पहले जैसा स्वाद भी नहीं बचा है। जैसे-जैसे हम बीज उपलब्ध करा रहे हैं किसान कर रहे हैं पर अभी करने वालों की संख्या कम है।"

काला नमक चावल

बर्डपुर-9 के प्रधान पति ओमप्रकाश यादव का कहना है, "पहले एक गांव में अगर 100 एकड़ काला नमक धान बोया जाता था तो अब पांच से दस एकड़ ही बचा है। सरकार ने इस धान के लिए किसानों को प्रोत्साहित नहीं किया जिसकी वजह से किसानों का रुझान कम हुआ। अब स्थिति ये बन गयी है कि अगर सरकार न चेती तो आने वाले कुछ वर्षों में ये धान पूरी तरह समाप्त हो जायेगा।" वो आगे बताते हैं, "काला नमक धान के इस गढ़ में कभी कोई कृषि विभाग से अधिकारी गांव में आया हो किसानों से उनकी समस्याएं जानी हों ऐसा हमने कभी देखा नहीं। पिछड़ा क्षेत्र होने की वजह से कृषि से जुड़ी किसी भी योजना का छोटी जोत के किसानों को लाभ नहीं मिल पाता।"

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