बागवानी के शौक ने दिलायी पहचान, बिना मिट्टी के उगाते हैं गुलाब

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
बागवानी के शौक ने दिलायी पहचान, बिना मिट्टी के उगाते हैं गुलाब

नंदिनी त्रिपाठी, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

महाराजगंज (उत्तर प्रदेश)। बागवानी के शौक ने इन्हें नई पहचान दे दी है, गुलाब लगाने के शौक से इन्होंने कई सारी नई विधियां भी इजाद की हैं।

अरुणाभ ने अपने छत पर रखे सौ से अधिक गमलों में लगे गुलाब की अलग-अलग किस्मों को लगाने में मिट्टी का प्रयोग नहीं किया है। कोयले में वर्मी कंपोस्ट और हड्डी के चूरे का प्रयोग कर अरुणाभ मोहना, डबल डिलाइट, शांति, मोनालिसा, जेमिनी, पैराडाइस, आबरा का डाबरा, पैराडिस और सेटीमेंटल नाम के लाल, हरे, नीले और काले रेग के सैकड़ों गुलाब खिलाये हैं। अरुणाभ के अपने नाम से भी 'अरुणाभ मणि' नाम के एक गुलाब की प्रजाति तैयार की गयी है जो जल्द ही देश की प्रमुख नर्सरियों में उपलब्ध भी होगी।


अरुणाभ बताते हैं, "जब बचपन में वह गुलाब के पौधे घर-आंगन में रोपते थे तो वे कुछ ही दिनों बाद मर जाते थे। यह देखकर उनको बहुत तकलीफ होती थी लेकिन तकलीफ का कोई इलाज ढूंढते कि पढ़ाई के लिये बड़े शहर में चले जाना पड़ा जहां इस शौक से समझौता करना पड़ा, लेकिन पंजाब यूनिवर्सिटी में जब बीटेक में दाखिला लिया तो कृषि पढ़ने वाले कुछ दोस्त बन गये।"

इसके बाद गुलाब के बारे में अरुणाभ जानकारी एकत्र करना शुरू कर दी है। काफी कुछ पढ़े, मित्रों से जाने और प्रोफेसर से पूछे। देश भर के रोजेरियन के बारे में जानकारी ली और फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद जब घर लौटे, गुलाब उगाने में अपना सब कुछ लगा दिया।


अरुणाभ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के साथ गुलाब उगाने में व्यस्त रहते हैं। इसके लिये सबसे पहले इन्होंने उन बीमारियों का उपाय किया जो मिट्टी की वजह से गुलाब को नष्ट कर देती हैं।

ये भी पढ़ें : जानिए कैसे गुलाब की खेती से हर साल 30 लाख रुपए कमाता है यह किसान

मिट्टी में रोपे गये गुलाब के पौधे में डाई बैक, स्केल डिजीज, ब्लैक स्पॉट, लीफ कर्लिंग और लीफ बर्निंग सामान्य बीमारियां होती हैं। इनसे बचने के लिये अरुणाभ पत्थर के उपयोग किये जा चुके कोयले को धुल कर एक किलोग्राम के बचे ढाई सौ ग्राम के हिस्से में पचास-पचास ग्राम वर्मी कंपोस्ट और हड्डी के चूरे को मिलाते हैं और फिर इसे 12 इंच गहरे गमले में भर कर गुलाब रोपते हैं।

अरुणाभ की मानें तो इससे सफलता की दर 92 प्रतिशत हो जाती है। क्योंकि गुलाब को बहुत अधिक खाद की जरूरत होती है इसलिये हड्डी का चूरा और वर्मी कंपोस्ट के साथ कोयला मुफीद होता है।

गुलाब के प्रति इनका यह जुनून इंडियन रोज फेडरेशन, कोलकाता के सुब्रत घोष को इस कदर प्रभावित किया कि सुब्रत ने अरुणाभ के नाम से गुलाब की एक नयी प्रजाति ही विकसित कर दिये। इस मानसून से यह गुलाब देश की प्रमुख तीनों नर्सरी केएसजी बेंगलुरु, पुष्पांजलि कोलकाता और लखनऊ के फ्रेंड रोजरी में मिलने लगेंगी। अरुणाभ बताते हैं कि इस ढंग से कोलकाता में तो गुलाब खूब उगाये जाते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा सिर्फ उनके टैरेस पर ही है। यू ट्यूब पर बागवानी नाम से एक चैनल चलाने वाले अरुणाभ की इच्छा है कि पूर्वांचल में भी एक रोज सोसायटी का गठन हो।

अधिक जानकारी के लिए अरुणाभ के मोबाइल (7696302617) पर संपर्क कर सकते हैं।


    

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.