खेती में रसायनिक दवाओं के इस्तेमाल का नतीजा, मिट्टी संकट के कगार पर भारत

Kushal MishraKushal Mishra   5 Dec 2018 5:33 AM GMT

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खेती में रसायनिक दवाओं के इस्तेमाल का नतीजा, मिट्टी संकट के कगार पर  भारतफोटो साभार: इंटरनेट

यह खबर आपके लिए है। उन किसानों के लिए है, जो देश में कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और उन लोगों के लिए भी, जो उनके खाद्य पदार्थों का सेवन कर रहे हैं क्योंकि यहां बात देश की मिट्टी की है, कृषि क्षेत्र की मिट्टी की, जिसके पोषक तत्व तेजी से कम हुए हैं।

आने वाले समय में भारत एक उभरते हुए मृदा संकट के कगार पर खड़ा है। किसानों की ओर से तेजी से इस्तेमाल किए गए रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों ने खेती की मिट्टी पर बड़े पैमाने पर प्रभाव डाला है। अब नतीजा यह है कि मिट्टी में कम होते पोषक तत्वों की वजह से नजदीकी भविष्य में संभावित रूप से कृषि पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।

एक तिहाई कृषि क्षेत्र पहले ही समस्याग्रस्त

देश के कृषि संस्थानों के एक संघ की ओर से हाल में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, कुल 350 मिलियन हेक्टेयर की एक तिहाई यानि की 120 मिलियन हेक्टेयर भूमि पहले ही समस्याग्रस्त हो चुकी है। मिट्टी की गिरावट के कारणों की वजह यह भी है कि वे या तो अम्लीय, खारा या क्षारीय मिट्टी है। रिपोर्ट के अनुसार, मिट्टी की खराब स्वास्थ्य के कारण कृषि उत्पादकता, स्थिरता और मानव स्वास्थ्य पर भी बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।

मिट्टी में कार्बन चक्र की होती है महत्वपूर्ण भूमिका

रिपोर्ट के अनुसार, पानी के भंडारण और छानने में मिट्टी में कार्बन चक्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। देश के कई हिस्सों में मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा 0.3 से लेकर 0.5 प्रतिशत तक महत्वपूर्ण स्तर पर आ गई है। सिर्फ इतना ही नहीं, कई सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी देश के विभिन्न हिस्सों की मिट्टी में तेजी से सामने आ रही है।

औसत से आधे से भी कम कार्बन की मात्रा

कृषि संस्थानों में शामिल एक एमएएनएजीई के डॉ. वीपी शर्मा ने उभरते संकट पर एक साक्षात्कार में बताया, "भारत के मैदानी क्षेत्रों में मिट्टी में कार्बनिक तत्व एक प्रतिशत से भी कम है, वहीं दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में यह स्थिति करीब 2 प्रतिशत है। वहीं स्वस्थ मिट्टी में कार्बन तत्व 4 प्रतिशत तक होना अच्छी स्थिति है। सिर्फ इतना ही नहीं, कृषि के भविष्य के लिए बढ़ती लवणता और घटती कार्बन सामग्री अच्छी नहीं है।" कृषि क्षेत्र में उर्वरकों के अधिक छिड़काव के कारण कृषि उत्पादन में पोषण मूल्यों की कमी के साथ मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा।

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हर साल खत्म हो रही 5334 लाख टन उर्वरा मिट्टी

हाल में ही केंद्रीय मृदा एवं जल संरक्षण अनुसंधान संस्थान देहरादून ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि भारत में किसानों की ओर से खेती योग्य जमीन पर तेजी से बढ़े रसायनिक कीटनाशकों, दवाओं और रसायनिक उर्वरकों की वजह से 5334 लाख टन उर्वरा मिट्टी खत्म हो रही है। ऐसे में देश के सामने भविष्य में मृदा संकट एक बड़ी समस्या बनकर उभर सकता है।

राष्ट्रीय नीति की जरूरत

एमएएनएजीई के वीपी शर्मा ने साक्षात्कार में आगे बताया, "मिट्टी की गुणवत्ता को लेकर देश में वर्तमान स्थिति तत्काल ध्यान देने और उपचारात्मक उपायों पर जोर देती है।" उन्होंने आगे बताया, "जर्मनी और केन्या जैसे देशों में मिट्टी के लिए राष्ट्रीय नीतियां बनी हैं।" हालांकि मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादूर और भारतीय भू-विज्ञान संस्थान, भोपाल मिट्टी के कुछ पहलुओं का अध्ययन करने में शामिल हैं।

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लग जाते हैं हजारों साल

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एक विविध भू-वैज्ञानिक, जलवायु और वनस्पति है, जो इसे विभिन्न मिट्टी के प्रकार देता है। एक मीटर गहराई तक मिट्टी बनने के लिए हजारों साल लगते हैं, इसलिए इसके लिए कोई विकल्प नहीं है। हालांकि लोगों के लिए खाद्य सामग्री और कृषि उत्पादन के पोषण संबंधी जरुरतों को पूरा करने के लिए मिट्टी की गिरावट को रोका जाना जरूरी है।

इस रिपोर्ट में एमएएनएजीई की डीजी वी. ऊषा रानी, आईआईएसएस के एके पात्रा, भारतीय संस्थान धान अनुसंधान के बृजेंद्र, प्रोफेसर जयशंकर कृषि विश्वविद्यालय के सुरेंद्र बाबू, एनएएआरएम के श्रीनिवास राव और आईसीआरआईएसएटी के शैलेंद्र कुमार शामिल रहे।

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