गेहूं में इसी समय लगती हैं बीमारियां, ऐसे सावधानी बरतें किसान

Ashwani NigamAshwani Nigam   8 Jan 2018 5:33 PM GMT

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गेहूं में इसी समय लगती हैं बीमारियां, ऐसे सावधानी बरतें किसानफोटो: विनय गुप्ता, गाँव कनेक्शन

लखनऊ। पूरे देश में रबी सीजन की बुवाई के जो सरकारी आंकड़े मिले हैं, उसके मुताबिक गेहूं की बुवाई 283.46 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है। अलग-अलग हिस्सों में गेहूं क्राउन रूट अवस्था में पहली सिंचाई भी शुरू हो चुकी है। गेहूं में इसी समय बीमारियां लगती हैं, ऐसे में किसानों को सिंचाई पर विशेष सावधानी बरतने की सलाह कृषि विभाग की तरफ से दी गई है।

मगर एक बात ध्यान रखें किसान

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के कृषि सलाहकार समिति के वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह जारी की है। सलाहकार समित के अध्यक्ष डॉ. आरके शर्मा बताते हैं, ''इस समय सुबह के समय धुंध कम दिखाई दे रही है। दिन का अधिकतम तापमान सामान्य तौर पर जहां 20.3 डिग्री है, वहीं न्यूनतत तापमान सामान्यतया 7.7 डिग्री सेल्सियस है। ऐसे में किसान अपनी पहली सिंचाई जरूर कर लें, लेकिन ध्यान रहे यह सिंचाई हल्की हो।''

तब पहला खतरा शुरू होता है

डॉ. शर्मा आगे बताते हैं, “जिन गेहूं की बुवाई का 40 दिन हो गया है, उसमें नाइट्रोजन को किसान डालना शुरू कर दें। जिन जगहों पर 45 मिलीमीटर या उससे अधिक बारिश हुई हो, वहां के किसान अभी सिंचाई न करें।“ जिन किसानों ने गेहूं की बुवाई 40 दिन पहले की है उन गेहूं में कल्ले निकलना शुरू हो गया है। यह ही वह समय भी होता है जिसमें गेहूं में बीमारियों का पहला खतरा शुरू होता है।

तापमान में गिरावट होने से गेहूं में पत्ती माहूं, जिसे चापा भी कहते हैं, इस रोग के आने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए किसानों का सलाह दी जाती है कि इस समय गेहूं की पौधे की जांच नीचे से ऊपर तक अच्छी तरह से करें।
बीएस त्यागी, कृषि वैज्ञानिक, भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान

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पत्ती माहूं बीमारी की संभावना ज्यादा

इस बारे में जानकारी देते हुए भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक बीएस त्यागी ने बताया, ''तापमान में गिरावट होने से गेहूं में पत्ती माहूं, जिसे चापा भी कहते हैं, इस रोग के आने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए किसानों का सलाह दी जाती है कि इस समय गेहूं की पौधे की जांच नीचे से ऊपर तक अच्छी तरह से करें।''

ये गेहूं के पौधों को पहुंचाते हैं नुकसान

उन्होंने आगे बताया, “इस बीमारी से गेहूं को बचाने के लिए किसान क्यूनालफोस इसी नामक दवा की 400 मिली लीटर मात्रा को 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़ीकाव करें। गेहूं के खेत में यही वह समय होता है, जब खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे बथुआ, खरबाथू, जंगली पालक, मैणा, मैथा, हिरनखुरी, कंडाई, कृष्णनील, प्याजी, चटरी और मटरी जैसे खरपतवार पर भी आते हैं। यह गेहूं के पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में गेहूं को इनसे बचाने के लिए किसान कारफेन्ट्राजोन दवा का छिड़काव करें।“

गेहूं के बुवाई के 60 से 65 दिन बाद पौधों में गांठे बनना शुरू होती है। इस समय गेहूं में तीसरी सिंचाई करनी चाहिए। पीला रतुआ रोग की भी इसी समय संभावना रहती है।
डॉ. अंकित झा, कृषि वैज्ञानिक

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पीला रतुआ रोग हो तो यह दवा करें इस्तेमाल

गेहूं के पौधों में सिंचाई के समय का विशेष ध्यान रखना होता है। अगर सिंचाई के समय में किसान देरी या जल्दी कर देते हैं तो इससे गेहूं की उत्पादकता पर प्रभाव पड्ताक है। गेहूं फसलों के जानकार और कृषि वैज्ञानिक डॉ. अंकित झा बताते हैं, “गेहूं के बुवाई के 60 से 65 दिन बाद पौधों में गांठे बनना शुरू होती है। इस समय गेहूं में तीसरी सिंचाई करनी चाहिए। पीला रतुआ रोग की भी इसी समय संभावना रहती है। ऐसे में इस समय गेहूं की फसल की विशेष निगरानी की जरुरत पड़ती है। अगर यह रोग किसी पौधे में दिखे तो प्रोपिकोनेजोल नामक दवा को लाकर छिड़काव करें।“

बुवाई कम होना खतरे की घंटी

रबी सीजन में इस बार पिछले साल के मुकाबले कम बुवाई होना कृषि विभाग के लिए खतरे की घंटी है। विभिन्न राज्यों से रबी सीजन की विभिन्न फसलों की बुवाई के जो आंकड़े अभी तक मिले हैं, उसके मुताबिक 586.37 लाख हेक्टेयर भूमि पर रबी की बुवाई की गई, जबकि पिछले वर्ष 2017 में इसी अवधि तक 587.62 लाख हेक्टे यर भूमि पर बुवाई की गई थी।

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