बनारसी पान के किसानों का क्यों नहीं खुल पा रहा है बंद किस्मत का ताला

पूरी दुनिया में अपने स्वाद के लिए मशहूर बनारसी पान खुद उसके ही किसानों को बेस्वाद लगने लगा है। जीआई टैग मिलने के बाद भी पान किसान इसकी ख़ेती से क्यों कर रहे हैं तौबा, इसी की पड़ताल है गाँव कनेक्शन की ये रिपोर्ट।

Dewesh PandeyDewesh Pandey   31 May 2023 8:00 AM GMT

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वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। कभी पान की ख़ेती का शौक रखने वाले राधेश्याम चौरसिया अब तक घाटे की चोट से उबर नहीं पाए हैं। तमाम कोशिशों के बावज़ूद ना- उम्मीदी साथ नहीं छोड़ रही है।

बनारस के राधेश्याम कहते हैं, "कई किसानों ने मेरी तरह पान की ख़ेती छोड़ दी है क्योंकि उनके पास पूँजी ही नहीं बची अब। अपनी फसलों की ठीक तरीके से सिंचाई करने का इंतज़ाम तो दूर, कीटनाशक तक समय पर नहीं मिलता है। अगर यही हाल रहा पान की ख़ेती यहाँ गुज़रे ज़माने की बात होगी। "

यही हाल मंजीत चौरसिया का है।

मंजीत पान की ख़ेती करते थे, लेकिन ख़ेती के लिए तैयार भीट सहित पूरी पान की फ़सल जल गई जिसके बाद उनका परिवार सदमे में आ गया। सीवान में पान की ख़ेती के लिए उन्होंने रिश्तेदारों और गाँव के लोगों से 7 लाख रूपये तक का क़र्ज़ ले लिए था सब डूब गया।

बनारस में मिर्जामुराद रिंगरोड से बच्छाव पँचायत तक के इलाके को दशकों से पान की ख़ेती के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन अब सिर्फ़ दो लोग इसकी ख़ेती से यहाँ जुड़े हैं।

"अब तक के मेरे जीवन की ये सबसे बड़ी आफ़त थी, उधारी चुकाने के लिए ज़मीन तक बेच दी, फिर भी देनदारी है। खेत बर्बाद होने के बाद से माँ बीमार हैं, वो सदमे को झेल नहीं पाई हैं।" मंजीत दुःखी भाव से कहते हैं।

बनारसी पान को अब जीआई टैग मिल गया है, लेकिन यहाँ के किसान इसे बड़ी बात नहीं मानते हैं। उनकी नज़र में एक तमगे से ज़्यादा ये कुछ नहीं है। जीआई टैग के ज़रिए किसी क्षेत्र विशेष के उत्पाद या चीज़ को मान्यता दी जाती है। इसके ज़रिए किसी चीज़ को किसी जगह से प्रमाणित किया जाता है। इसी साल बनारस के लंगड़े आम के साथ यहाँ के पान को भी ये टैग मिला।

लेकिन एक सच ये भी है कि साल 1978 में आई फिल्म डॉन का गीत "खईके पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला" जब गीतकार अनजान ने लिखा, तो सोचा भी नहीं होगा कि गंगा किनारे का छोरा कई लोगों को बनारसी पान का दीवाना बना देगा। नब्बे के दशक में कई नए किसानों ने इस तरफ रुख़ किया लेकिन आज हक़ीक़त कुछ और है।

बनारस में दशक भर पहले पचास, साठ किसान पान की ख़ेती करते थे। लेकिन अब कम मुनाफ़ा और जोख़िम से नयी पीढ़ी इससे किनारा कर रही है। पान के किसान मौसम की मार और सरकार से पूरी मदद नहीं मिलने को भी इससे दूर होने की वज़ह मानते हैं। कई किसान असंगठित क्षेत्रों में अपने परिवार का पेट भरने के लिए दिहाड़ी मज़दूरी कर रहे हैं।

इकलौती महिला किसान मीरा देवी

बनारस में कई पीढ़ियों से पान की ख़ेती करने वाले राजेश चौरसिया कहते हैं, "एक समय था जब हमारे पूर्वज इसकी ख़ेती करके शान से गाँव में गुज़र बसर करते थे, लेकिन मेरे लिए अब मुश्किल है। मैंने पान की ख़ेती अब छोड़ दी है। परिवार चलाने के लिए परचून की दुकान पर काम करता हूँ, हर रोज़ पाँच सौ रूपये मिल तो रहे हैं कम से कम। गनीमत है परिवार को दो वक़्त का खाना मिल रहा है, पान की ख़ेती में अब कोई फ़ायदा नही है। " राजेश ने बताया कि उनके साथ करीब 30 लोगों ने पान की ख़ेती छोड़ कर दिहाड़ी मज़दूरी शुरू कर दी है।

बनारस में मिर्जामुराद रिंगरोड से बच्छाव पँचायत तक के इलाके को दशकों से पान की ख़ेती के लिए जाना जाता रहा है। लेकिन अब सिर्फ़ दो लोग इसकी ख़ेती से यहाँ जुड़े हैं।

इसी कड़ी में गाँव कनेक्शन ने बनारस की इकलौती महिला किसान मीरा देवी से मुलाकात की।

मीरा देवी बताती हैं, "ठंड के बाद हुई बेमौसम बरसात और आँधी से काफ़ी नुक़सान हम लोग झेल चुके हैं, वो तकलीफ़ शायद कुछ किसान भूल चुके होंगे, लेकिन हमें याद है। हम लोगों का पान बंबई, दिल्ली, इलाहाबाद, प्रतापगढ़ के अलावा कई शहरों तक जाता था, अब अपने ही ज़िले में सप्लाई नहीं कर पा रहे हैं। काफ़ी मेहनत करनी पड़ रही है।"


मीरा देवी के मुताबिक़ उनकी शादी 16 साल की उम्र में बच्छाव के राधेश्याम चौरसिया से 16 साल की उम्र में हो गई थी। जब वह 18 साल की हुईं तो पारिवारिक जिम्मेदारियाँ ज़्यादा बढ़ने लगी जिसको ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपने पति का साथ देने के लिए पान की ख़ेती करने लगीं।

58 साल की उम्र में तमाम परेशानियों के बावज़ूद मीरा चालीस साल से लगातार पान की ख़ेती कर रही हैं।

मीरादेवी कहती हैं, "लागत काफ़ी होने से किसान पान की ख़ेती से किनारा कर रहे हैं। सरकार को मदद करना होगा, नुक़सान होने पर उसे सहायता करनी चाहिए। पान के पत्तों को कीटो से बचाने के लिए कीटनाशक दवाओं का मिलना भी कठिन हो गया है। दो साल पहले प्रदेश सरकार की तरफ से लोगों को प्रोत्साहन के रूप में 25 हज़ार रूपये दिए गए थे, इसके बाद से किसी ने मदद नहीं की।"

आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, उत्तर प्रदेश के पूरे वाराणसी जिले में केवल दो किसान बचे हैं, जो अभी भी पान की खेती करते हैं। विभाग की तरफ से जारी लेटर के अनुसार जिला उद्यानिकी विभाग पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए निर्धारित राशि का उपयोग पर्याप्त किसानों की कमी के कारण नहीं कर पा रहा है।


जिला उद्यान अधिकारी के 10 मार्च, 2023 के एक पत्र के अनुसार, पूरे वाराणसी जिले में केवल दो पान के किसान बचे थे और दोनों बचाव पंचायत में थे। उन्हीं में से एक मीरा देवी हैं।

तीन दिन बाद लखनऊ में उद्यानिकी विभाग को संबोधित एक अन्य पत्र में जिला उद्यान अधिकारी ने बताया कि 2022-23 में पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए जिले को दिए गए 201,812 रुपये वापस करने हैं।


काशी पहुँचते ही बनारसी बन जाता है पान

बनारस में बिहार,बंगाल,ओड़िशा,तमिलनाडू और यूपी के दूसरे ज़िलों से भी पान आता है। लेकिन यहाँ पहुँचते ही वो बनारसी हो जाता है। यहाँ पचासा (एक ढोली) में 50 पान की पत्तियाँ होती हैं, फिर सैकड़ा में इन्हें सजाया जाता है।

वरिष्ठ पत्रकार संतोष तिवारी कहते हैं, "चौंंसठ कलाओं में से एक कला पान को पकाने की होती है जो सिर्फ बनारिसयों के पास पानदरीबा में है और किसी के पास नही है। पान को दुनिया के किसी अन्य हिस्से में पकायेंगे तो वह मुलामियत और सुगँध नहीं रहेंगी। बनारस के किसानों ने ख़ास कर महिला किसानों ने इस शहर को अपनी मेहनत से बाहर पहचान दिलाई है, ऐसे किसानों को सम्मानित करना चाहिए। "

पान प्राचीन ही नहीं है बल्कि यह औषधि गुणों से भरा हुआ है। आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि ने भी पान की खूबियों का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है पान खाने से पाचन शक्ति दुरुस्त होती है। वहीं प्राचीन चिकित्सा शास्त्री सुश्रुत का मानना है कि पान गले को साफ रखता है, जिसके चलते मुहँ से दुर्गंध नहीं आती है।

पान की ख़ेती से मुँह मोडऩे वाले किसानों को अब आर्थिक मदद की दरकार है। किसानों का कहना है कि उन्हें अनुदान के रूप में कुछ मिल जाए तो एक बार फिर परम्परागत ख़ेती की तरफ़ लौट सकते हैं।

किसानों के सहयोग के लिए उद्यान विभाग की तैयारी

वाराणसी उद्यान विभाग के अधिकारी ज्योति कुमार सिंह से जब गाँव कनेक्शन की टीम ने बात किया तो उन्होंने भरोसा दिलाया कि इससे जुड़े किसानों को हर मुमकिन मदद दी जाएगी। उन्होंने कहा, "किसानों को उनके फ़सल के रक़बा के आधार पर अनुदान दिया जायेगा। लेकिन जिस किसान को एक बार अनुदान मिल जाएगा उसे दोबारा तीन साल बाद ही दिया जा सकेगा।"

ज्योति सिंह बताते हैं ,"पान को जीआई टैगिंग इसी साल मिला है। हम लोगों ने एक एजेंसी को चुना है जो इस पर काम कर रही है कि किस तरीके से पान के किसानों को क्या- क्या सहायता दी जाए।" उनके मुताबिक़ जीआई टैगिंग सिर्फ़ बनारस के पान को ही नहीं बल्कि मिर्ज़ापुर ,गाज़ीपुर,जौनपुर के साथ ही आस पास के जनपदों को भी इसमें शामिल किया गया है। सरकार से आदेश मिलते ही किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए विभाग की तरफ से अलग- अलग इलाकों में इससे जुड़े शिविर भी लगाए जाएँगे।

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