दक्षिण भारत में कसावा की फ़सल बचा रहा विदेशी दोस्त

Gaon Connection | Mar 27, 2025, 14:04 IST
वैज्ञानिक किसानों से शत्रु और मित्र कीटों को समझने की सलाह देते हैं, क्योंकि कई मित्र कीट ही शत्रु कीटों का सफाया कर देते हैं; इसका उदाहरण देखने को मिला है दक्षिण भारत में
Cassava Production South India cassava mealybug
दक्षिण भारत में अमेरिका के कीट से कसावा की फ़सल बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने अफ्रीका के कीट की मदद ली है; पिछले कुछ सालों में ये कीट दक्षिण भारत के कई राज्यों में कसावा की फ़सल बर्बाद कर रहा था।

सबसे पहले साल 2020 में दक्षिण अमेरिका के कसावा मिलीबग कीट ने दक्षिण भारत में कसावा की फ़सल पूरी तरह से बर्बाद कर दी; सबसे पहले इस कीट को केरल में देखा गया और देखते ही देखते ये पुडुचेरी और तमिलनाडु के प्रमुख कसावाउत्पादक क्षेत्रों में फैल गया, जिससे 1.43 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर कसावा की फसल को भारी नुकसान हुआ।

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इस कीट के आक्रमण से कसावा की उत्पादन में 50% से 85% तक की कमी आई, खासकर तमिलनाडु के प्रमुख क्षेत्रों जैसे सेलम और नमक्कल में, जहाँ उत्पादन 20-25 टन प्रति हेक्टेयर से घटकर केवल 5-12 टन प्रति हेक्टेयर रह गया।

भारत दुनिया में कसावा कंद का पाँचवां सबसे बड़ा उत्पादक है। यह मुख्य रूप से दक्षिणी राज्यों में उगाया जाता है, जिनमें से तमिलनाडु और केरल क्रमशः 51.9% और 31.7% क्षेत्रफल और 57.8% और 34.9% उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, नागालैंड, असम, मेघालय, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और कुछ हद तक पुडुचेरी, त्रिपुरा, मिजोरम और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी उगाया जाता है। भारत में कसावा की उत्पादकता प्रभावशाली है, जो 27.92 टन/हेक्टेयर है, जबकि विश्व औसत 10.76 टन/हेक्टेयर है, लेकिन इस कीट के कारण उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ा।

कैसावा की फ़सल बचाने और इस समस्या का समाधान खोजने के लिए, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत राष्ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्यूरो (NBAIR), बेंगलुरु लगातार कोशिश कर रहा था।

south india (4)
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शनल ब्यूरो ऑफ एग्रीकल्चरल इंसेक्ट रिसोर्सेज की कृषि कीट वैज्ञानिक डॉ अंकिता शर्मा के अनुसार, “हम इसका जैविक समाधान ढूंढ रहे थे, क्योंकि यहाँ पर अभी तक इससे निपटने के दूसरे कीट नहीं थे, तब हमने अंतर्राष्ट्रीय उष्णकटिबंधीय कृषि संस्थान (IITA), बेनिन से एक छोटे परजीवी कीट अनागायरस लोपेज़ी (Anagyrus lopezi) मंगाया।”

इस कीट के आने के बाद करने के बाद, NBAIR ने इस कीट पर नियंत्रण के लिए जरूरी परीक्षण किए और इसके सुरक्षित उपयोग के लिए ज़रूरी क्वारंटाइन अध्ययन किए। सफल परीक्षणों के बाद, ICAR-NBAIR ने बड़े पैमाने पर इस कीट के उत्पादन और क्षेत्र में छोड़े जाने की प्रक्रिया को समझा।

यही नहीं यहाँ के किसानों और कृषि कर्मियों को भी ट्रेनिंग दी गई ताकि वे मित्र कीट अनागायरस लोपेज़ी के बड़े पैमाने पर उत्पादन और इसके छोड़े जाने की तकनीक को समझ सकें और इसका इस्तेमाल कर सकें।

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सात मार्च 2022 को पहली बार इस कीट को तमिलनाडु के सेलम जिले के यथापुर में खेतों में छोड़ा गया, जिसमें 300 से अधिक किसान मौजूद थे। यह जैविक नियंत्रण की दिशा में एक बड़ा कदम था, और इसके बाद तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में 500 से अधिक स्थानों पर इस मित्र कीट को छोड़ा गया।

धीरे-धीरे इस मित्र कीट की संख्या भी बढ़ने लगी है और इसने मिलीबग पर भी नियंत्रण पा लिया है। इस जैविक नियंत्रण कार्यक्रम की मदद से 2023-24 में तमिलनाडु के सेलम, नमक्कल और धर्मपुरी जिलों में कैसावा की उपज फिर से 20-25 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुंच गई, जो कीट आक्रमण के समय घटकर 5-12 टन प्रति हेक्टेयर रह गई थी।

इस सफल जैविक नियंत्रण कार्यक्रम से दक्षिण भारत के हजारों छोटे किसानों को लाभ हुआ है। Anagyrus lopezi ने कैसावा मीलिबग के खिलाफ एक महत्वपूर्ण हथियार साबित होकर न केवल किसानों की आजीविका को पुनर्जीवित किया, बल्कि कैसावा उत्पादन की स्थिरता भी सुनिश्चित की।

अप्रैल 2020 में भारत में कैसावा मीलिबग (Phenacoccus manihoti) नामक एक खतरनाक कीट का आक्रमण हुआ, जिससे दक्षिण भारत में कैसावा (जिसे टैपिओका भी कहा जाता है) उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ। यह कीट मूल रूप से दक्षिण अमेरिका का है और सबसे पहले केरल में देखा गया था। थोड़े ही समय में यह कीट केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु के प्रमुख कैसावा उत्पादक क्षेत्रों में फैल गया, जिससे 1.43 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर कैसावा की फसल को भारी नुकसान हुआ।

मक्के के कीट को भी बर्बाद कर रहा विदेशी कीट

करीब छह साल पहले अफ्रीका में मक्के की फसल बर्बाद करने वाला फॉल आर्मीवर्म अब भारत के कई राज्यों में पहुँच गया है। इस कीट को भारत में सबसे पहले मई, 2018 में कर्नाटक के शिवमोगा में देखा गया था। इसके बाद तमिलनाडु, आँध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बँगाल, गुजरात, छत्तीसगढ़, केरल, राजस्थान, झारखण्ड, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और सिक्किम में भी किसानों के खेतों में नज़र आया।

कृषि और खाद्य संगठन के अनुसार, अमेरिकी फॉल आर्मीवर्म मूल रूप से अमेरिका का कीट है, लेकिन 2016 में धीरे धीरे पूरे अफ्रीका में फैल गया। इसके साथ ही यह भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम, कोरिया, कंबोडिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, जॉर्डन, सीरिया, स्पेन जैसे देशों तक पहुँच गया है।

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