पहले शीत लहर, फिर गर्मी और अब ओलावृष्टि - बदलते मौसम ने कुछ ही हफ्तों में राजस्थान में जीरे की फसल को बर्बाद कर दिया

भारत में लगभग 90 फीसदी जीरे का उत्पादन गुजरात और राजस्थान से होता है। लेकिन एक के बाद एक खराब मौसम की घटनाओं ने राजस्थान के जीरा किसानों को परेशान कर दिया है।

Parul KulshreshtaParul Kulshreshta   18 March 2023 6:26 AM GMT

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पहले शीत लहर, फिर गर्मी और अब ओलावृष्टि - बदलते मौसम ने कुछ ही हफ्तों में राजस्थान में जीरे की फसल को बर्बाद कर दिया

इस साल की शुरुआत से ही जीरे की फसल को मौसम की मार का सामना करना पड़ा रहा है, जिसे रेगिस्तानी राज्य के शुष्क वातावरण के अनुकूल माना जाता है। सभी फोटो: अरेंजमेंट

जयपुर, राजस्थान। राजस्थान के कई जीरा किसानों के लिए इस सीजन में उनकी फसल को जिस तरह की मार पड़ी है, उनकी याद में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। जीरे की तकरीबन 50 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है। शीत लहर, फिर गर्मी और कुछ हफ्तों के अंतराल में आंधी और ओलावृष्टि ने राज्य में मसाला की खेती को खासा नुकसान पहुंचाया है। राजस्थान देश में दूसरा सबसे बड़ा जीरा उत्पादक राज्य है।

अक्टूबर में बोई जाने वाली फसल को मार्च में तैयार होने में लगभग 150 दिन लगते हैं। लेकिन इस साल की शुरुआत से ही जीरे की फसल को मौसम की मार का सामना करना पड़ा रहा है, जिसे रेगिस्तानी राज्य के शुष्क वातावरण के अनुकूल माना जाता है।

जनवरी में पड़ी कड़कड़ाती ठंड ने सरसों की फसल को प्रभावित किया और किसानों को खासे नुकसान का सामना करना पड़ा। अगले महीने फरवरी में, समय से पहले आई गर्मी की लहरों और अचानक तापमान बढ़ने की वजह से फसल पर और असर पड़ा। हाल ही में हुई बारिश और ओलावृष्टि ने आग में घी डालने का काम करते हुए फसल का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद कर दिया।

जीरे की तकरीबन 50 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है। शीत लहर, फिर गर्मी और कुछ हफ्तों के अंतराल में आंधी और ओलावृष्टि ने राज्य में मसाला की खेती को खासा नुकसान पहुंचाया है।

बाड़मेर के एक किसान हस्तीमल राजपुरोहित ने गाँव कनेक्शन को बताया, “जीरा अक्टूबर के अंत या नवंबर की शुरुआत में बोया जाता है। लेकिन दिसंबर के अंत से लेकर करीब 20 जनवरी तक भयंकर ठंड पड़ी थी। फिर फरवरी में तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और अगले महीने मार्च में बारिश और ओलावृष्टि हो गई।"

जालौर के कनिवारा गाँव के रतन सिंह ने गाँव कनेक्शन से कहा, “बारिश, ओलावृष्टि, भयंकर सर्दी और फिर समय से पहले आई गर्मी ने जीरे को अपनी पूरी क्षमता तक नहीं बढ़ने दिया है। बीज ठीक से विकसित नहीं हो पाए, इसलिए जीरे की गुणवत्ता खराब है। इस बार हमें इसके अच्छे दाम नहीं मिलेंगे।"

राजस्थान में बाड़मेर, जैसलमेर, पाली और जालोर जिलों में जीरे का उत्पादन प्रमुखता से होता है। यह एक सूखा सहिष्णु फसल है जिसे कम पानी की जरूरत होती है और कटाई के लिए तैयार होने में सिर्फ 150 दिनों का समय लगता है। राजस्थान के किसानों के लिए यह बहुत ही लाभदायक फसल रही है। भारतीय किसान संघ, जोधपुर के प्रवक्ता प्रह्लाद सियोल के अनुसार, राज्य में लगभग 4 लाख जीरा किसान हैं।

राजस्थान के जीरा किसानों का कुल उत्पादन में खासा योगदान है। ऐसा अनुमान है कि भारत में विश्व के जीरे का 70 प्रतिशत से अधिक का उत्पादन होता है। देश के भीतर, गुजरात और राजस्थान 90 फीसदी राष्ट्रीय उत्पादन हिस्सेदारी के साथ दो शीर्ष जीरा उत्पादक राज्य हैं।

2021-22 में देश में लगभग 1,036,713 हेक्टेयर भूमि पर जीरे की खेती की गई थी, जिससे 725,651 टन जीरा पैदा हुआ। उसी साल, राजस्थान ने 303,504 टन जीरे का उत्पादन किया था।

किसानों इसे बताया एक आपदा

किसानों का कहना है कि इस साल चीजें बेहतर होते नहीं दिख रही हैं। जैसलमेर के असकंदरा गाँव के 37 वर्षीय भागीरथ सिंह के मुताबिक, यह उनके जीवन में पहली बार है जब उन्होंने मौसम के इस तरह के अनियमित पैटर्न को देखा है।

"मैंने आज से पहले कभी भी इस तरह के मौसम को नहीं देखा है। मेरे गाँव में बहुत से किसान जीरा उगाते हैं क्योंकि यह फायदेमंद फसल है। लेकिन इस बार बड़ा नुकसान होने वाला है। हमें अपना गुजारा चलाना मुश्किल हो जाएगा।” भागीरथ सिंह चिंतित हैं। उन्होंने कहा, 'उत्पादन कम है और हमें बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिलेगी। हम अपने बिजली के बिल या बैंक लोन को कैसे चुकता करेंगे।”

जैसलमेर, मोहनगढ़ तहसील के भाला गाँव के महेंद्र कुमार ने बताया, "पिछले साल भी हमने प्रति बीघा दो से तीन क्विंटल जीरा की फसल ली थी, लेकिन अगर किस्मत अच्छी रही तो शायद इस साल हम एक क्विंटल से थोड़ा अधिक जीरा बचा लें।"

बाड़मेर के गुडामलानी गाँव के एक किसान किशन जाट

उन्होंने कहा, " पहले कड़कड़ाती ठंड, फिर गर्मी की लहर, उसके बाद ओलावृष्टि और बारिश ने फसल को बर्बाद कर दिया है।" 40 वर्षीय किसान ने कहा कि उनके गाँव में पचास फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है।

बाड़मेर के गुडामलानी गाँव के एक किसान किशन जाट ने कहा कि उनके गाँव और उसके आसपास जीरे की लगभग 60 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है। 25 साल के किशन ने गाँव कनेक्शन को बताया, "जिन लोगों ने फसल को जल्दी काट लिया था, वे कुछ हिस्सा बचाने में कामयाब रहे, लेकिन दूसरों को बड़ा नुकसान हो रहा है।"

एक से ज्यादा फसल को नुकसान

राजस्थान में जीरे के अलावा इसबगोल और अरंडी के बीज भी प्रभावित हुए हैं। जालोर के रतन सिंह ने कहा, “हमारे क्षेत्र में इसबगोल की 70 प्रतिशत से ज्यादा फसल खराब हो चुकी है। हमने कलेक्टर से मुलाकात कर अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने के लिए कहा है। उन्होंने हमें आश्वासन दिया है लेकिन हमें जल्द से जल्द मदद की जरूरत है। हम फसल बीमा प्रीमियम के रूप में लगभग 600 रुपये का भुगतान करते हैं, लेकिन पर्याप्त रिटर्न नहीं मिलता है।"

राजस्थान में जीरे के अलावा इसबगोल और अरंडी के बीज भी प्रभावित हुए हैं।

भारतीय किसान संघ के प्रवक्ता प्रह्लाद सियोल, जोधपुर ने गाँव कनेक्शन को बताया, 'मैंने इलाके में पहले कभी इस तरह की तबाही होते हुए नहीं देखी है। पलक झपकते ही हमारी फसल बर्बाद हो गई। हमने जीरा, इसबगोल, जौ और गेहूं की बुआई की थी। फसल कटने को तैयार थी। लेकिन होली का समय था और मजदूर भी नहीं थे तो हमने सोचा कि थोड़ा इंतजार कर लेते हैं। लेकिन अब हमें फसल काटने के लिए नहीं बल्कि अपने खेतों को साफ करने के लिए मजदूरों को लगाना पड़ेगा।"

सरकार से मुआवजे की मांग

किसानों ने कहा कि उनकी एकमात्र उम्मीद सरकार से है। 9 मार्च को बाड़मेर के गुडामलानी गाँव में सैकड़ों किसानों ने सरकार से आर्थिक मदद की मांग को लेकर धरना दिया था।

बाड़मेर के एक किसान हस्तीमल राजपुरोहित ने कहा, “राज्य और केंद्र सरकारों के सामने अपना मुद्दा उठाने के लिए हमने क्षेत्र के विधायक और सांसद को पत्र भेजे हैं। असमान्य मौसम से हजारों किसान प्रभावित हुए हैं।"

राजस्थान राज्य कृषि विभाग, बाड़मेर के संयुक्त निदेशक पदम सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम मौजूदा समय में किसानों को हुए नुकसान का अनुमान लगाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे क्षेत्र हैं जहां जीरे की फसल प्रभावित हुई है, लेकिन अन्य क्षेत्रों में इतना नुकसान नहीं हुआ है। हम एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं और इसे कुछ दिनों में प्रकाशित कर दिया जाएगा। उस रिपोर्ट के आधार पर नुकसान की भरपाई के लिए कदम उठाए जाएंगे।”

'मौसम में अजीब बदलाव'

राजस्थान मौसम विज्ञान विभाग, जयपुर के निदेशक राधेश्याम शर्मा ने कहा कि इस तरह की असमान्य मौसम की घटनाओं के जारी रहने का अनुमान है। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "अगले चार दिनों में राजस्थान के 50 फीसदी हिस्से में बारिश और गरज के साथ छींटे पड़ने की संभावना है।"

उन्होंने कहा कि एग्रो-एडवाइजरी जारी की जा चुकी है कि 16 मार्च से एक सप्ताह तक राज्य में गर्ज के साथ बारिश या आंधी आने की गतिविधियां बनी रहेंगी।

शर्मा ने कहा कि चूंकि कई जगहों पर फसलें पक चुकी हैं और कटाई के लिए तैयार हैं, इसलिए बारिश और तेज हवाएं जीरा और गेहूं की फसल को प्रभावित कर सकती हैं। निदेशक ने कहा, "हम 19 मार्च के बाद एक बार फिर से तेज गड़गड़ाहट के साथ आंधी या बारिश की उम्मीद कर रहे हैं।"

उन्होंने कहा, “पिछले साल मार्च में मौसम शुष्क था और इसके बाद लू चलने लगीं थी। हम मौसम की स्थिति में एक अजीब बदलाव देख रहे हैं। हर साल अत्यधिक गर्मी या ठंड पड़ने लगी है। ”

राजस्थान के कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने जनवरी में विधानसभा में बोलते हुए किसानों को आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार उनके नुकसान की भरपाई करेगी। उन्होंने यह भी कहा कि सभी जिलाधिकारियों को नुकसान का तत्काल सर्वे करने का निर्देश दिया गया है।

किसान बीमा कंपनी के टोल फ्री नंबर पर कॉल कर सकते हैं या फसल बीमा ऐप के जरिए अपने नुकसान का विवरण दर्ज करा सकते हैं। प्रभावित किसान अपने जिले में कार्यरत बीमा कंपनी, कृषि कार्यालय या संबंधित बैंक को भी नुकसान का फॉर्म ऑफलाइन भरकर सूचित कर सकते हैं।

लेकिन प्रह्लाद सियोल ने यह कहते हुए इन सभी संभावनाओं को खारिज कर दिया कि ये हेल्पलाइन सिर्फ कागजों पर है और वास्तव में ये ज्यादातर किसानों की मदद नहीं कर पाती हैं।

भारतीय किसान संघ, जोधपुर के प्रवक्ता ने शिकायत करते हुए कहा, “बीमा कंपनियों का टोल-फ्री नंबर काम नहीं करता है या ज्यादातर समय कोई भी कॉल नहीं उठाता है। कंपनी के इंश्योरेंस ऐप पर डिटेल भरते समय कुछ मिनट बाद टाइम-आउट दिखाने लगता है। यह प्रक्रिया काफी मुश्किल है और एक प्रतिशत किसान भी बीमा कंपनियों तक नहीं पहुंच पाते हैं।"

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