भारत की परंपरागत कृषि पद्धतियाँ सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर खेती की जाती रही हैं। मगर आधुनिक रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को देखते हुए अब किसान जैविक विकल्पों की ओर फिर से रुख कर रहे हैं। इनमें से एक प्रभावशाली और पर्यावरण के अनुकूल जैविक उपाय है “दशपर्णी”, जो बागवानी फसलों में कीट और रोग प्रबंधन के लिए बेहतरीन समाधान साबित हो रहा है।
दशपर्णी क्या है?
दशपर्णी एक पारंपरिक रूप से तैयार किया गया जैविक कीटनाशी और रोगनाशी घोल है, जिसे विशेष रूप से बागवानी फसलों में इस्तेमाल किया जाता है। “दशपर्णी” शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है “दस पत्तियों वाला”, और इसे गोमूत्र, हरी मिर्च, लहसुन, नीम और गुड़ के साथ किण्वित कर तैयार किया जाता है।
दशपर्णी बनाने की प्रक्रिया
दशपर्णी बनाने के लिए दस औषधीय पत्तियों का चयन किया जाता है, जिनमें नीम, करंज, अमरूद, अशोक, तुलसी जैसे पौधे शामिल होते हैं। इन पत्तियों को बारीक काटकर लहसुन, हरी मिर्च, नीम का तेल और गुड़ के साथ मिलाकर प्लास्टिक ड्रम में डाला जाता है। इसे 15-20 दिनों तक किण्वित किया जाता है। किण्वन के बाद घोल तैयार हो जाता है, जिसे छानकर फसलों पर छिड़काव के रूप में प्रयोग किया जाता है।
फसलों में उपयोग की विधि
दशपर्णी को 100 मिलीलीटर की मात्रा में 1 लीटर पानी में मिलाकर फसलों पर छिड़काव किया जाता है। यह छिड़काव विशेष रूप से वर्षा और गर्मी के मौसम में किया जाता है, जब कीट और रोगों की संभावना अधिक होती है।
कीट और रोग जिनका प्रबंधन होता है
दशपर्णी का उपयोग प्रमुख कीटों और रोगों को नियंत्रित करने में किया जाता है। इसमें शामिल हैं:
- कीट: चेपा, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, तना छेदक, मीलिबग्स, आदि।
- रोग: पर्ण झुलसा, पत्ती धब्बा, डाउनी मिल्ड्यू, पाउडरी मिल्ड्यू, जीवाणु जनित रोग, आदि।
दशपर्णी के लाभ
- यह पूरी तरह से प्राकृतिक है और पर्यावरण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता।
- कीट और रोगों के साथ-साथ यह पौधों की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है।
- यह जैविक खेती को बढ़ावा देने में मदद करता है और मिट्टी की जैविक उर्वरता को बनाए रखता है।
- यह घोल लाभकारी कीटों, जैसे मधुमक्खियों और परागणकर्ताओं को नुकसान नहीं पहुँचाता।
दशपर्णी जैविक खेती के क्षेत्र में एक प्रभावशाली और सुरक्षित उपाय साबित हो रहा है। यह न केवल कीटों और रोगों से बचाव करता है, बल्कि किसानों के लिए किफायती और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प भी है। यदि किसानों को इसका सही तरीके से उपयोग करना सिखाया जाए तो यह कृषि में स्थायित्व और समृद्धि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
अब समय आ गया है, अपनी जड़ों की ओर लौटने का – जैविक खेती की ओर!
दशपर्णी अपनाइए, फसल बचाइए और धरती माँ को स्वस्थ बनाइए।