जवाहर मॉडल: खेत में नहीं बोरियों में उगाइए फसलें, कम लागत में मिलेगा ज्यादा उत्पादन
Divendra Singh | Dec 14, 2021, 10:57 IST
जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 'जवाहर मॉडल' तैयार किया है, इसमें किसान खेत में नहीं बोरियों में कई तरह की फसलें उगा सकते हैं। यही नहीं इस मॉडल में खेती की लागत भी काफी कम हो जाती है।
महिला किसान ज्योति पटेल पिछले कई वर्षों से बाड़ी में समूह की मदद से सब्जियों और दूसरी फसलों की खेती करती आ रही हैं, लेकिन इस बार उन्हें कम जमीन में ज्यादा पैदावार मिलने वाली है, क्योंकि उन्होंने इस बार नए तरीके से अरहर की फसल लगाई है।
40 वर्षीय ज्योति पटेल मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के पनागर की रहने वाली हैं, ज्योति पटेल और उनके जैसे समूह की कई महिलाओं ने खेती के लिए 'जवाहर मॉडल' का इस्तेमाल किया है, जिसमें जमीन में नहीं बोरियों में फसलें लगाईं जाती हैं। जवाहर मॉडल को मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है।
मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के पनागर की रहने वाली ज्योति पटेल ने बोरियों में अरहर की फसल लगाई है।
ज्योति पटेल ने बोरियों में अरहर की फसल लगाई है, ज्योति गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "हम लोग समूह की मदद से कृषि विद्यालय में गए थे, जहां पर इसके बारे में पता चला। हम लोगों की पास इतनी जमीन तो होती नहीं कि जहां ट्रैक्टर से जुताई कर पाएं, इसलिए हमें ये बहुत सही लगा है, हमें इसकी पूरी जानकारी दी गई कि कैसे हम अपने घरों-घरों के आसपास बोरियों में फसलें लगा सकते हैं। मैंने 200 बोरियों में राहर (अरहर) की फसल लगाई है, जिसमें जमीन से ज्यादा फलियां लगी हैं।"
'जवाहर मॉडल' को जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है, जिसमें किसान के जुताई जैसे बहुत से खर्चे बच जाते हैं। इसके जरिए किसान अपनी बेकार और बंजर पड़ी जमीन में फसलें उगा सकते हैं, यही नहीं घर की खाली पड़ी छतों पर भी कई तरह की फसलें लगा सकते हैं।
जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ मोनी थॉमस गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "किसान का सबसे अधिक खर्च जुताई, कीटनाशक और उर्वरकों में जाता है और भारत के ज्यादातर किसान ऐसे हैं जिनके पास एक एकड़ से कम जमीन है। ऐसे में हम पिछले कई साल से इस पर रिसर्च कर रहे थे कि कैसे किसानों की आमदनी बढ़ाई जाए।"
जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में जवाहर मॉडल का निरीक्षण करते वैज्ञानिक
वो आगे कहते हैं, "तब जाकर हमने इस मॉडल को तैयार किया, इसके जरिए छोटे किसान, जिसके पास कम जमीन है, वो भी अच्छी आमदनी कमा सकते हैं। इसमें कई तरह की फसलें लगा सकते हैं और सहफसली खेती के लिए यह मॉडल बहुत सही होता है।"
इस मॉडल के बारे में डॉ थॉमस विस्तार से बताते हैं, "इसमें हम बोरियों में मिट्टी और गोबर की खाद मिलाकर फसल लगाते हैं। जैसे कि किसान एक एकड़ में अरहर की फसल जमीन में लगाता है तो 15-20 किलो बीज तो लग ही जाता है, लेकिन इसमें बहुत कम बीज लगते हैं, इसमें हर एक बोरी में एक पौधा लगाया जाता है, हर बोरी को एक उचित दूरी पर रखा जाता है, जिससे पौधे को बढ़ने की पर्याप्त जगह मिल जाती है।"
एक एकड़ में लगभग 1200 बोरियां रख सकते हैं, यही नहीं अरहर के साथ दूसरी फसलें भी ले सकते हैं। जैसे कि बोरी में धनिया भी लगा सकते हैं। एक बोरी में लगभग 500 ग्राम तक धनिया की हरी पत्तियां मिल जाती हैं। यही नहीं बोरी में हल्दी भी लगा सकते हैं। हल्दी जैसी फसलें छाव में भी तैयार हो जाती है और एक बोरी में लगभग 50 ग्राम हल्दी का बीज लगता है और छह महीने में 2-2.5 किलों तक हल्दी और अरहर के एक पौधे से 2-2.5 तक अरहर भी मिल जाती है।
डॉ मोनी के अनुसार किसान चाहे तो अरहर के पौधे पर लाख के कीट पालकर अतिरिक्त आमदनी भी कमा सकते हैं। 8 महीने में एक पौधे से 350 ग्राम के लगभग लाख प्राप्त होता है। साथ ही अरहर से जलाऊ लकड़ी भी मिल जाती है।
किसान बोरियों में सीधे बीज या फिर पहले नर्सरी में पौधे तैयार करके बोरियों में उन्हें लगा सकते हैं। इससे अच्छे तरीके से पौधों को बढ़ने का मौका मिलता है।
डॉ थॉमस बताते हैं, "बोरी में मिट्टी और गोबर के साथ बायो फर्टीलाइजर शुरूआत में ही मिला देते हैं। बाद में किसी और खाद की जरूरत नहीं पड़ती है। पौधे को जो भी पोषक तत्व चाहिए वो मिलते रहते हैं, अगर हम जमीन में खाद डालते हैं तो मिट्टी के अंदर चला जाता है, लेकिन बोरियों में डालने पर उसी में रहता है और अगली फसल के लिए बढ़िया मिट्टी भी तैयार हो जाती है।"
कम पानी में होती है खेती
किसान जमीन में कोई फसल लगाता है तो उसे पूरे खेत की सिंचाई करनी होती है, जबकि पानी सिर्फ पौधे को चाहिए होता है। इस मॉडल में किसान चाहे तो ड्र्रिप से या फिर हफ्ते में एक दिन बाल्टी या फिर पाइप से पानी डाल सकता है।
किसान अरहर ही नहीं दूसरी कई तरह की फसलें इस मॉडल में लगा सकते हैं। किसान इसमें पालक, मूली, धनिया, बैंगन, टमाटर, लौकी मिर्च जैसी फसलें लगा सकते हैं।
गृह मंत्री अमित शाह और मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान।
600 से अधिक महिला किसान कर रही हैं खेती
स्वयं सहायता समूह से जुड़ी 600 से अधिक महिला किसानों ने जवाहर मॉडल को अपनाया है। डिस्ट्रिक्ट मैनेजर, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, जबलपुर, डीपी तिवारी बताते हैं, "हमारे जिले में 615 महिला किसानों ने इस मॉडल को अपनाया है, ज्यादातर महिलाएं ऐसी हैं जो अपने घरों के बगल बाड़ी में कुछ न कुछ फसलें उगाती रहती हैं। इस बार इन्होंने ने बैग में पौधे लगाए हैं, इसमें जब अरहर जब छोटी थी तो उसमें धनिया लगा दी थी, जिससे उन्हें धनिया भी मिल गया था।"
वो आगे कहते हैं, "कई महिलाओं ने तो सब्जियों की फसलों के साथ ही हल्दी और अदरक की भी फसलें लगाई जो अरहर तैयार होने से पहले तैयार हो जाती है, इससे उन्हें दूसरी नकदी फसलें भी मिल जाती हैं।"
इस मॉडल को जबलपुर जिले की 615 महिलाओं ने अपनाया है। डेढ़ से दो साल तक चलती है बोरी
वैज्ञानिकों के अनुसार एक बार बोरी में फसल लगाने के बाद बोरी करीब डेढ़ से दो साल तक चलती है। अगर बोरी फट भी जाए तो मिट्टी दूसरी बोरी में डालकर फिर से दूसरी फसल लगा सकते हैं।
मध्य प्रदेश के साथ ही दूसरे राज्यों के किसान भी विश्वविद्यालय में इस मॉडल की जानकारी लेने आ रहे हैं। डॉ थॉमस बताते हैं, "हमारी कोशिश है कि इस मॉडल से ज्यादा से ज्यादा किसानों को आमदनी बढ़े, क्योंकि आने वाले समय में खेत और कम होंगे इससे किसान बढ़िया उत्पादन ले सकते हैं।"
40 वर्षीय ज्योति पटेल मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के पनागर की रहने वाली हैं, ज्योति पटेल और उनके जैसे समूह की कई महिलाओं ने खेती के लिए 'जवाहर मॉडल' का इस्तेमाल किया है, जिसमें जमीन में नहीं बोरियों में फसलें लगाईं जाती हैं। जवाहर मॉडल को मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है।
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ज्योति पटेल ने बोरियों में अरहर की फसल लगाई है, ज्योति गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "हम लोग समूह की मदद से कृषि विद्यालय में गए थे, जहां पर इसके बारे में पता चला। हम लोगों की पास इतनी जमीन तो होती नहीं कि जहां ट्रैक्टर से जुताई कर पाएं, इसलिए हमें ये बहुत सही लगा है, हमें इसकी पूरी जानकारी दी गई कि कैसे हम अपने घरों-घरों के आसपास बोरियों में फसलें लगा सकते हैं। मैंने 200 बोरियों में राहर (अरहर) की फसल लगाई है, जिसमें जमीन से ज्यादा फलियां लगी हैं।"
'जवाहर मॉडल' को जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है, जिसमें किसान के जुताई जैसे बहुत से खर्चे बच जाते हैं। इसके जरिए किसान अपनी बेकार और बंजर पड़ी जमीन में फसलें उगा सकते हैं, यही नहीं घर की खाली पड़ी छतों पर भी कई तरह की फसलें लगा सकते हैं।
जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ मोनी थॉमस गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "किसान का सबसे अधिक खर्च जुताई, कीटनाशक और उर्वरकों में जाता है और भारत के ज्यादातर किसान ऐसे हैं जिनके पास एक एकड़ से कम जमीन है। ऐसे में हम पिछले कई साल से इस पर रिसर्च कर रहे थे कि कैसे किसानों की आमदनी बढ़ाई जाए।"
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वो आगे कहते हैं, "तब जाकर हमने इस मॉडल को तैयार किया, इसके जरिए छोटे किसान, जिसके पास कम जमीन है, वो भी अच्छी आमदनी कमा सकते हैं। इसमें कई तरह की फसलें लगा सकते हैं और सहफसली खेती के लिए यह मॉडल बहुत सही होता है।"
बोरियों में लगाते हैं फसलें
एक एकड़ में लगभग 1200 बोरियां रख सकते हैं, यही नहीं अरहर के साथ दूसरी फसलें भी ले सकते हैं। जैसे कि बोरी में धनिया भी लगा सकते हैं। एक बोरी में लगभग 500 ग्राम तक धनिया की हरी पत्तियां मिल जाती हैं। यही नहीं बोरी में हल्दी भी लगा सकते हैं। हल्दी जैसी फसलें छाव में भी तैयार हो जाती है और एक बोरी में लगभग 50 ग्राम हल्दी का बीज लगता है और छह महीने में 2-2.5 किलों तक हल्दी और अरहर के एक पौधे से 2-2.5 तक अरहर भी मिल जाती है।
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डॉ मोनी के अनुसार किसान चाहे तो अरहर के पौधे पर लाख के कीट पालकर अतिरिक्त आमदनी भी कमा सकते हैं। 8 महीने में एक पौधे से 350 ग्राम के लगभग लाख प्राप्त होता है। साथ ही अरहर से जलाऊ लकड़ी भी मिल जाती है।
सीधे बीज या फिर लगा सकते हैं पौधे
पूरी तरह से जैविक तरीके से होती है खेती
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कम पानी में होती है खेती
किसान जमीन में कोई फसल लगाता है तो उसे पूरे खेत की सिंचाई करनी होती है, जबकि पानी सिर्फ पौधे को चाहिए होता है। इस मॉडल में किसान चाहे तो ड्र्रिप से या फिर हफ्ते में एक दिन बाल्टी या फिर पाइप से पानी डाल सकता है।
जवाहर मॉडल में लगा सकते हैं कई तरह की फसलें
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600 से अधिक महिला किसान कर रही हैं खेती
स्वयं सहायता समूह से जुड़ी 600 से अधिक महिला किसानों ने जवाहर मॉडल को अपनाया है। डिस्ट्रिक्ट मैनेजर, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, जबलपुर, डीपी तिवारी बताते हैं, "हमारे जिले में 615 महिला किसानों ने इस मॉडल को अपनाया है, ज्यादातर महिलाएं ऐसी हैं जो अपने घरों के बगल बाड़ी में कुछ न कुछ फसलें उगाती रहती हैं। इस बार इन्होंने ने बैग में पौधे लगाए हैं, इसमें जब अरहर जब छोटी थी तो उसमें धनिया लगा दी थी, जिससे उन्हें धनिया भी मिल गया था।"
वो आगे कहते हैं, "कई महिलाओं ने तो सब्जियों की फसलों के साथ ही हल्दी और अदरक की भी फसलें लगाई जो अरहर तैयार होने से पहले तैयार हो जाती है, इससे उन्हें दूसरी नकदी फसलें भी मिल जाती हैं।"
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वैज्ञानिकों के अनुसार एक बार बोरी में फसल लगाने के बाद बोरी करीब डेढ़ से दो साल तक चलती है। अगर बोरी फट भी जाए तो मिट्टी दूसरी बोरी में डालकर फिर से दूसरी फसल लगा सकते हैं।