इस नई पहल से अब रागी होगी दो महीने में तैयार, किसानों और शोधकर्ताओं के लिए वरदान

Gaon Connection | Jul 19, 2025, 14:19 IST
ICRISAT ने विकसित की दुनिया की पहली ‘स्पीड ब्रीडिंग’ तकनीक फिंगर मिलेट के लिए। ‘रैपिड-रागी’ से फसल अब 135 दिन की बजाय 68 दिन में होगी तैयार, मोटे अनाजों की खेती में क्रांतिकारी बदलाव।
Rapid-Ragi ICRISAT millet farming
अब किसानों को रागी की खेती के लिए इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब किसान साल में चार से पाँच बार इसकी खेती कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने इसके लिए नई तकनीक विकसित की है।

फसल विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में, ICRISAT (इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स) ने रागी (Finger Millet) के लिए एक नया 'स्पीड ब्रीडिंग प्रोटोकॉल' विकसित किया है। ‘रैपिड-रागी’ नामक इस विधि से परंपरागत तरीकों की तुलना में साल में 4 से 5 बार फसल तैयार की जा सकती है, जबकि पहले सिर्फ एक या दो चक्र ही संभव थे।

यह तकनीक विशेष रूप से एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी सिद्ध हो सकती है, जहाँ फिंगर मिलेट (रागी) न केवल पारंपरिक आहार का हिस्सा है, बल्कि स्कूली पोषण योजनाओं में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

ICRISAT के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा, “यह ICRISAT द्वारा विकसित किया गया तीसरा ओपन एक्सेस स्पीड ब्रीडिंग प्रोटोकॉल है। इससे पहले हमने चने और अरहर के लिए यह तकनीक विकसित की थी। रैपिड-रागी से समय की बचत, लागत में कटौती और उच्च गुणवत्ता वाले, पोषक और जलवायु-स्थिर फसल किस्मों के विकास में तेजी आएगी।”

Rapid-Ragi ICRISAT millet farming
Rapid-Ragi ICRISAT millet farming (2)
फिंगर मिलेट, जो कि ज्वार और बाजरे के बाद तीसरा सबसे महत्वपूर्ण मोटा अनाज है, हाल के वर्षों में फिर से केंद्र में आया है। भारत सरकार ने 2018 को ‘मोटे अनाज का वर्ष’ घोषित किया था और संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को ‘अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ के रूप में मनाया।

ICRISAT के डिप्टी डायरेक्टर जनरल (रिसर्च एंड इनोवेशन) डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड ने कहा, “अब तक फिंगर मिलेट जैसी फसलों का सुधार बेहद समय और संसाधन की मांग करता था। वैश्विक रूप से गेहूं, चावल और मक्का जैसे मुख्य अनाजों पर ध्यान केंद्रित किया जाता रहा, जिससे ये मोटे अनाज उपेक्षित रह गए। यह तकनीक इन उपेक्षित फसलों के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध होगी।”

रैपिड-रागी प्रोटोकॉल के तहत फिंगर मिलेट की वृद्धि अवधि 100–135 दिनों से घटाकर सिर्फ 68–85 दिन कर दी गई है। यदि फसल को 'फिजियोलॉजिकल मैच्योरिटी' पर काटा जाए, तो यह समय और 7 दिन तक घटाया जा सकता है। यह सफलता बेहतर रोशनी, तापमान और नमी नियंत्रण के साथ-साथ पौध रोपण घनत्व, सिंचाई और पोषण प्रबंधन जैसे उपायों के कारण संभव हुई।

डॉ. सीन मेयस, जो ICRISAT के ‘एक्सेलेरेटेड क्रॉप इम्प्रूवमेंट’ प्रोग्राम के निदेशक हैं, ने बताया कि यह प्रोटोकॉल 4 वर्षों की कड़ी मेहनत का परिणाम है। उन्होंने कहा, “हमने न सिर्फ फसल को तेज़ी से बढ़ाने पर ध्यान दिया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि यह विधि शोधकर्ताओं के लिए सुलभ, किफायती और व्यवहारिक बनी रहे।”

Rapid-Ragi ICRISAT millet farming (3)
Rapid-Ragi ICRISAT millet farming (3)
डॉ. शोभन साज्जा, वरिष्ठ वैज्ञानिक और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक ने बताया, “यह पहली बार है जब किसी छोटे मिलेट के लिए स्पीड ब्रीडिंग प्रोटोकॉल विकसित किया गया है। अब हम अन्य छोटे मिलेट्स जैसे कोदो, कंगनी, सावां और चेना के लिए भी इसी तकनीक पर काम कर रहे हैं और प्रारंभिक परिणाम सकारात्मक हैं।”

यह प्रोटोकॉल अब ओपन एक्सेस के तहत उपलब्ध है, जिससे दुनिया भर के शोधकर्ता और ब्रीडर इसका लाभ उठा सकते हैं और पोषक, जलवायु-संवेदनशील और टिकाऊ खाद्य प्रणालियों के निर्माण में योगदान दे सकते हैं।

भारत में रागी उत्पादन क्षेत्र

फिंगर मिलेट भारत के कई हिस्सों में उगाया जाता है। भारत इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जहां यह खासतौर पर इन राज्यों में लोकप्रिय है:

कर्नाटक (देश के कुल रागी उत्पादन का लगभग 60%)
तमिलनाडु
उत्तराखंड
ओडिशा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, और हिमाचल प्रदेश में भी इसका सीमित उत्पादन होता है।

रागी के हैं अनेकों फायदे

  1. पोषण का भंडार: रागी में कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन और फाइबर भरपूर मात्रा में होता है, जिससे यह महिलाओं, बच्चों और वृद्धों के लिए आदर्श आहार है।
  2. ग्लूटेन-मुक्त: यह अनाज ग्लूटेन फ्री होता है, जो सीलिएक रोग से पीड़ित लोगों के लिए उपयुक्त है।
  3. जलवायु-अनुकूल: रागी कम पानी और गरीब मिट्टी में भी अच्छी पैदावार देती है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन के युग में आदर्श फसल बनती जा रही है।
  4. भंडारण में आसान: इसकी लंबी शेल्फ-लाइफ खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
ICRISAT की यह पहल भारत के छोटे किसानों, अनुसंधानकर्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है—पोषण, पर्यावरण और आर्थिक विकास के समन्वय का एक आदर्श उदाहरण।

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